Tuesday 27 October 2015

रूस पड़ रहा है अमेरिका पर भारी


अरूण जैन
इस्लामिक स्टेट के मुकाबले पिछले कई महीनों में जो काम अमेरिका नहीं कर पाया वो रूसी सेना ने कुछ ही हफ्तों में कर दिखाया। रूस सीरिया में जबरदस्त हवाई हमले कर रहा है। रूस के इस आक्रमक रुख ने पश्चिमी देशों के सैन्य विशेषज्ञों को सकते में डाल दिया है। इस लड़ाई को गौर से देख रहे पर्यवेक्षकों का मानना है कि सीरिया में पुतिन की सैन्य रणनीति के सामने ओबामा का संशयभरे फैसले कही नहीं टिक पा रहे हैं। अमेरिका का रुख इस लड़ाई के माध्यम से असद सरकार को हटाना मात्र है, आईएस को रोकना महज बहाना दिख रहा है। इस्लामिक स्टेट के कहर से मासूस लोगों को बचाने के नाम पर अमेरिका ने सीरियाई विद्रोहियों को प्रशिक्षण और हथियार देने के अलावा ज्यादा कुछ नहीं किया। दरअसल अफगानिस्तान और इराक में उलझे अमेरिकी नेतृत्व का मानना था कि मध्य-पूर्व में एक और मोर्चा खोलने से कोई फायदा नहीं होने वाला लेकिन सऊदी अरब में आईएस की आमद के साथ ही इस मामले पर अमेरीका पर सऊदी सरकार ने दबाव बनाना शुरू कर दिया था। नतीजतन अमेरिका ने अधूरे मन से आईएस के खिलाफ हवाई कार्यवाही आरंभ की। रूस इस मुद्दे पर शुरू से ही असद सरकार का हिमायती रहा है। असद के विरोधियों को सीआईए द्वारा प्रशिक्षण और हथियारों की मदद के बाद असद सरकार समर्थित फौजों को विद्रोहियों और इस्लामिक स्टेट से दो मोर्चों पर लडऩा पड़ रहा है। लेकिन रूस ने देर आया पर दुरुस्त आए की तर्ज पर पूरी ताकत से आईएस पर हमला बोल दिया है। अमेरिका का आरोप है कि रूस आईएस के बहाने सीरियाई विद्रोहियों को भी निशाना बना रहा है लेकिन रूस इस ओर कोई ध्यान दिए बिना सीरिया में अपना काम जारी रखे हुए है।  रूस से हवाई हमले के अलावा अब सीरिया में मिलिट्री ऑपरेशन में सबसे घातक हथियारों को भी शामिल किया है। रूसी सेना का मोबाइल मल्टिपल रॉकेट लॉन्चर (टीओएस-1ए) थर्मोबैरिक जो एक साथ कई निशानों को तबाह करने की ताकत रखता है सीरिया में तैनात है। टीओएस-1ए सिस्टम से एक बार में 24 से 30 बैरल मल्टिपल रॉकेट लॉन्च किए जा सकते हैं।यह टी-72 टैंक चैसिस पर लगाया जाता है। अपनी ताकत और तेजी से यह मिसाइल सिस्टम अमेरिका के मिसाइल तंत्र से अधिक परिष्कृत और खतरनाक है। सूत्रों के अनुसार इसे आईएस के प्रमुख सीरियाई शहरों पर हमले की आशंका के चलते तैनात किया गया है।  इसके अलावा रूस ने आईएसआईएस के 40 ठिकानों पर हवाई हमले किए थे जिन्होंने इस खतरनाक आतंकी संगठन की कमर तोड़ दी है। पश्चिमी खुफिया तंत्र और सैन्य रणनीतिकार भी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की इस आक्रमक कार्यवाही से प्रभावित है और मानते हैं कि इस कार्यवाही से रूस की फीकी पड़ चुकी फौजी प्रतिष्ठा को पाने में बेहद मदद मिलेगी। पुतिन ने इस ऑपरेशन में कई कड़े कदम उठाए हैं जैसे सुखोई स्ह्व-34 स्ट्राइक फाइटर जो पहली बार किसी लड़ाई में शामिल हुआ है। इसके अलावा रूसी नौसेना ने 1500 किमी. की दूरी से सीरिया में आईएस के ठिकानों पर क्रूज मिसाइल से हमला कर नाटो को सख्त संदेश दे दिया है। रूसी सेना के दमखम को देखकर सैन्य विशेषज्ञ मान रहे हैं कि कई क्षेत्रों में रूस की टेक्नोलॉजी कई मायनों में अमेरिका से बेहतर है।  जहां एक ओर अमेरिका सीरिया में रूस के बढ़ते दखल से परेशान है वहीं ईरान ने असद सरकार के समर्थन में अपने सैकड़ों सैनिकों को उत्तरी और मध्य सीरिया में तैनात कर दिया है। ईरान के उच्च प्रशिक्षित कंमाडों विद्रोहियों खिलाफ असद समर्थित सेना को ग्राउंड कवर देंगे। सऊदी अरब के एक सैन्य विशेषज्ञ के अनुसार पिछले 4 सालों में पहली बार ईरान ने सीरियाई गृहयुद्ध में अपनी उपस्थिति दर्ज की है। हालांकि, न्यूज एजेंसी एपी के अनुसार ईरानी सैनिक रूसी हवाई हमले के कुछ दिन बाद ही सीरिया पहुंच गए थे।  दरअसल रूस और ईरान दोनों ही इस क्षेत्र में इस्लामिक स्टेट का प्रभाव बढऩे से रोकना चाहते हैं क्योंकि अमेरिका के बनिस्बत दोनों ही देशों की सीमाएं और हित सीरिया से जुड़े हैं और यदि इस्लामिक स्टेट को रोका नहीं गया तो उनका अगला निशाना शिया बहुल ईरान और रूस का मुस्लिम बहुल क्षेत्र होगा जो मध्यपूर्व के अलावा एशिया में भी अशांति ला सकता है। 

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