Tuesday 27 October 2015

सिंहस्थ स्नान का पुण्य लाभ शिप्रा नदी में नहाने से है, रामघाट पर नही
अरूण जैन
सिंहस्थ के समय शासन, प्रशासन और पुलिस से समक्ष सबसे बड़ी समस्या है कि हर व्यक्ति रामघाट पर ही स्नान करना चाहता है। अभी तक किसी ने भी इस बात को ठीक से प्रचारित नही किया  कि सिंहस्थ का पुण्य लाभ शिप्रा नदी में स्नान करने से ही मिलेगा, केवल रामघाट पर नही। नदी के किसी भी घाट पर स्नान करने से पुण्य लाभ प्राप्त होगा! प्रशासन, पुलिस समस्त प्रचार साधनों में इसे भली प्रकार प्रचारित करे तो भीड़ नियंत्रण स्वतः आसान हो जाएगा। 
अभी तक के हुए सभी सिंहस्थ और कुंभ महापर्वो पर एक नजर डाले तो एक बात बहुत स्पष्ट है कि इस महापर्व स्नान का पुण्य लाभ उन निश्चित तिथियों अथवा ग्रह युति में गंगा, गोदावरी अथवा शिप्रा नदी में स्नान करने से प्राप्त होगा। पुराणों में भी इन नदियों में स्नान करने का उल्लेख है, किसी घाट विशेष का कहीं भी जिक्र नही है।
यह ठीक है कि साधु जमातें और अखाड़े शाही निकाल कर संयुक्त रूप से रामघाट पर आते है और वहां स्नान करते हैं। यहां भी रामघाट और सामने का दत्त अखाड़ा घाट जमातों के लिए तय किया हुवा है। पर इसका यह अर्थ भी नही है कि शिप्रा नदी में विस्तार से फैले अन्य घाटों पर स्नान करने से धर्मालुओं को महापर्व का पुण्यलाभ नही मिलेगा, देखा जाए तो शिप्रा नदी का पाट शनि मंदिर, त्रिवेणी से लेकर नृसिंह घाट, रामघाट, रेतीघाट, गढ़कालिका से होकर कालियादेह महल तक फैला हुवा है। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि ग्रहों की युति उस समय उज्जैन पर निर्मित होती है, किसी घाट विशेष पर नही। शासन ने समस्त प्रचार कार्य भोपाल में केन्द्रित कर रखा है। वहां बैठे प्रशासनिक अधिकारियों को इस बात को विस्तार और व्यापकता से प्रत्येक विज्ञापन, वेबसाइट, समाचारों में स्थायी रूप से प्रचारित करना चाहिए कि प्रशासन द्वारा शिप्रा नदी पर जो विस्तारित घाट बनाए गए है, धर्मालु वहीं पर नदी स्नान का पुण्यलाभ लें। इसमें कोई दो राय नही कि महापर्व के दौरान प्रशासन को भीड़ नियंत्रण में इस प्रचार से बेहद मदद मिलेगी।

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