Monday 7 December 2015

इस बार एक नही, कई के मुंह काले होंगे ?


डॉ. अरूण जैन
आप, लाख सिर फोड़ कर मर जाओ! पर अधिकारी तो वहीं करेगे जैसा वे चाहेंगे। संभागआयुक्त और कलेक्टर इन्हें हड़का-हड़का कर परेशान है, पर मजाल है कि अधिकारी तिल भर भी हिल पाएं। ऐसा लगता है कि इस बार एक नही, कई अधिकारियों के मुंह काले किये जा सकते है।
दिसम्बर, दिसम्बर और दिसम्बर की रट लगाकर उच्चाधिकारी हैरान-परेशान हैं। पर मजाल है कि किसी के चेहरे पे शिकन भी आ जाए।
पुरातत्व विभाग की 15 करोड रूपए की डाक्यूमेंट्री बनाने का प्रस्ताव मुख्य सचिव की सजगता से नामंजूर कर दिया गया, वरना कलेक्टर-संभाग आयुक्त ने रेवड़ी बंटवाने की व्यवस्था कर ही दी थी।
फिर भी रेवड़ी कैसे बंट रही है, देखिए एक जायजा तो ले ही लें। सिंहस्थ क्षेत्र में जो अस्थायी शौचालय 36 करोड रूपए में बनने थे, वे अब 111 करोड रूपए में बनाए जाएंगे। बजट से साधु-संत भी नाखुश हैं। उनके पड़ाव क्षेत्रों में 50-50 लाख रूपए के काम करने की मंजूरी दी गई है। जबकि 12 वर्ष, पूर्व ही प्रत्येक अखाड़े में इससे कहीं अधिक राशि के निर्माण कार्य प्रशासन-शासन ने करवाए थे। जैसा कि मैने पूर्व में ही कहा था, बाबा लोगों का आगमन अभी ‘से शुरू हो गया है। व्यवस्थाएं करने के लिए उन्होंने अधिकारियों को हड़काना शुरू कर दिया है। इधर इस बार के सिंहस्थ में किन्नरों का अखाड़ा विशेष आकर्षण और रोमांच का केन्द्र रहेगा ऐसा मेरा मानना है। और अगर कुछ के काले मुंह हुए अथवा पिटाई हुई तो मानकर चलिए कि वह भी इसी अखाड़े से शुरू होगी। पिछले, सिंहस्थ की तुलना में साधु-संतों के पडाव स्थलों की संख्या तीन गुना हो गई है। अन्य संस्थाएं भी बढ़ेगी ही। 56 करोड रूपए खर्च कर बनाई गई सड़के अभी से खराब हो गई हैं। पड़ाव स्थलों का समतलीकरण ही नहीं हो पाया है। पुलों का कार्य मात्र 20 से 25 प्रतिशत पूरा हो पाया है। क्या कांग्रेस और क्या सत्तारूढ़ भाजपा ? क्या नजरे रखेंगी। परफारमेंस गांरटी तो किसी का काकाजी भी नहीं दे सकता। पार्किंग के लिए आरक्षित भूमि पर फसलों की बुवाई हो गई है। अतिक्रमण ही सिंहस्थ क्षेत्र से नहीं हट पाए हैं, जो 6 माह पहले हट जाना चाहिए थे। यहां भी शिप्रा नदी सफाई के नाम पर करोड़ो का खेल चल रहा है। 10 हजार की सफाई पर 10 करोड़ खर्च किए जा रहे हैं। मेरे ख्याल से 1968 से अब तक अरबों रूपए इसी शुद्धिकरण कार्य पर खर्च हो चुके है, परन्तु 11 नाले आज भी नदी में मल-मूत्र और गंदगी विसर्जित कर रहे हैं। सही है वह कहावत-राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट। अंत काल पछताएगा, जब प्राण जाएंगे छूट। पिछले सिंहस्थ में भी महापर्व के तुरंत बाद तीन अधिकारी परलोक जा चुके हैं।

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