Wednesday 23 May 2018

सत्ता गये तीन साल हुए, भ्रष्टाचार के आरोप कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ रहे

डाॅ. अरूण जैन
भ्रष्टाचार का भूत कांग्रेस का पीछा छोडऩे का नाम ही नहीं ले रहा। विगत तीन वर्षों से केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ खड़ा होने की कोशिश कर रही कांग्रेस को एक के बाद एक भ्रष्टाचार के तगड़े झटके लग रहे हैं। कांग्रेस लाख चाह कर भी अपनी पूर्व की छवि से भ्रष्टाचार के दागों को हटा नहीं पा रही है, बल्कि इस फेहरिस्त में नित नए नाम जुड़ते जा रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री जयंती नटराजन के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो ने भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया है। ब्यूरो ने नटराजन के कई ठिकानों पर छापे मारे। इससे कांग्रेस फिर से आरोपों के कटघरे में हैं। ऐसी हालत में केंद्र सरकार के खिलाफ हमलावर होने की मुद्रा के बजाए कांग्रेस रक्षात्मक स्थिति में है। कांग्रेस आलाकमान से लेकर वरिष्ठ नेताओं को समझ में ही नहीं आ रहा है कि पहले सुप्रीम कोर्ट और अब केंद्र की भाजपा सरकार के उठाए भ्रष्टाचार के मुद्दों पर जवाबी हमला कैसे करें। भ्रष्टाचार के एक मामले की गूंज शांत भी नहीं होती है कि दूसरा सामने आ जाता है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव के दौरान नटराजन के भ्रष्टाचार का मामला उठाया था। उस वक्त प्रचार की कमान संभाल रहे मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जयंती टैक्स का जिक्र कई बार किया था। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री रहते हुए जयंती पर कई परियोजनाओं का अनापत्ति प्रमाण पत्र देने में कुंडली मार कर बैठे रहने के आरोप लगे थे। केंद्र की भाजपा सरकार की भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई से कांग्रेस चकरघिन्नी बनी हुई है। कांग्रेस शासन में हुए कोलगेट, राष्ट्रमंडल खेल और टूजी स्पेक्ट्रम घोटालों की जांच के बाद भाजपा सरकार का मानो मौका मिल गया। नेशनल हेराल्ड मामला हो या आय से अधिक सम्पत्ति का, सबमें कांग्रेस घिरी हुई है।  नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी उलझे हुए हैं। इससे पहले हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और अब पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदम्बरम के पुत्र कार्तिक के व्यवसायिक ठिकानों पर आयकर और प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई का कांग्रेस पहले ही सामना करना रही है। कार्तिक के मामले में तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कोई राहत देने इंकार कर दिया। सोनिया के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा भी फंसे हुए हैं। कांग्रेस की कर्नाटक सरकार के मंत्री डीके शिवकुमार के 64 स्थानों पर छापों में करोड़ों के कालेधन का खुलासा हुआ। गौरतलब है कि शिवकुमार ने गुजरात के राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस विधायकों को होर्स ट्रेडिंग से बचाने के लिए कर्नाटक में ठहराने का इंतजाम किया था। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि कुछ बड़े मामलों का धमाका केंद्र सरकार ऐन चुनावी वक्त पर करे। इससे विपक्षी एकजुटता को तो झटका लगेगा ही प्रमुख विपक्ष कांग्रेस के लिए जवाब देना भारी पड़ जाएगा।  दशकों तक सत्ता में रही कांग्रेस को यह गलतफहमी हो गई कि उसके नेता कानून को ठेंगा दिखाने के लिए स्वतंत्र हैं। कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यदि गलती से केंद्र में कभी भाजपा सरकार आई भी, तब भी वे अपने काले कारनामों से अभेद्य रहेंगे। इससे पहले केंद्र में रही अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर ऐसी सख्ती नहीं दिखाई जैसी की अब मोदी सरकार दिखा रही है। इसी से कांग्रेस की गलतफहमी और बढ़ गई कि राजनीतिक दल एक−दूसरे के खिलाफ सीधे कार्रवाई करने से बचते हैं। हालांकि भाजपा की तरफ से शुरू से दलील यही दी जाती रही है कि राजनीतिक रंजिशवश कार्रवाई नहीं की जा रही है। कानून अपना काम कर रहा है। दरअसल कांग्रेस चुनाव से पहले भाजपा के रथ पर सवार नरेन्द्र मोदी के दृढ़ इरादों को भांप नहीं पाई। इसी गलतफहमी से सत्ता से साफ होने के बाद भी कांग्रेस की लगातार फजीहत हो रही है।  ऐसा भी नहीं है कि भ्रष्टाचार से भाजपा और उसके सहयोगी राजनीतिक दल सौ फीसदी मुक्त हों। शिवसेना हो या अकाली दल या फिर भाजपा शासित कई राज्य, भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे। किन्तु सत्ता में रहते हुए जितनी अंधेरगर्दी कांग्रेस ने मचाई, उसकी तुलना में भाजपा और उसके सहयोगियों पर लगे आरोप कांग्रेसी भ्रष्टाचार के दलदल में खिले कमल पर छींटे मात्र ही रहे। भाजपा चूंकि केंद्र में काबिज ही कांग्रेस के विरूद्ध भ्रष्टाचार का बिगुल फूंक कर हुई थी, इसलिए उसके खिलाफ पूरी तरह कमर कसे हुए है। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि केंद्र में भाजपा सरकार के तीन वर्षों में और उससे पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर की गई भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाई पर कांग्रेस सफाई देती ही नजर आई। कांग्रेस ने सत्ता गंवा कर भी होश नहीं संभाला। अपने घर की सफाई के बजाए सारा जोर इसी बात पर लगाया कि भ्रष्टाचार पर हुई कार्रवाई को कैसे गलत ठहराया जाए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से राष्ट्रमंडल, टूजी स्पेक्ट्रम और कोलगेट घोटाले में दिए जांच के आदेश और उनमें कई नेता−अफसरों की गिरफ्तारी से कांग्रेस की कलई खुल गई। देश में 132 सालों से बरगद की तरह जड़ें जमाए कांग्रेस यह भूल गई कि कुछ खराब टहनियों को काटने से पेड़ का कुछ नहीं बिगड़ेगा, बल्कि पूरे पेड़ को सडऩे से बचाया जा सकेगा। इससे जनमानस में उसकी पारदर्शिता बढ़ेगी और भ्रष्टाचार के खिलाफ ढुलमुल रवैया अपनाने के इरादों पर संदेह दूर हो जाएगा। इसके विपरीत कांग्रेस ने प्रारंभ से ही अपने नेताओं पर कार्रवाई का बचाव ही किया। कांग्रेस जनमानस से सहानुभूति बटोरने के लिए केंद्र की भाजपा सरकार पर बदले की भावना से कार्रवाई करने के प्रत्यारोप लगाती रही। लगता यही है कांग्रेस को कानून पर भरोसा नहीं रहा। यदि एकबारगी यह मान भी लिया जाए तो सत्तारुढ़ दल बैरभाव से कार्रवाई कर भी रहा है तो न्याय के दरवाजे बंद नहीं हुए हैं। कांग्रेस अदालत के जरिए बाइज्जत बरी होने का दावा कर सकती है। जांच एजेंसियों के खिलाफ मानहानि का मुकदमा कर सकती है। कांग्रेस को अपने पाक साफ होने पर यदि इतना ही यकीन है तो भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे नेताओं को तब तक पार्टी से बाहर किए जाना चाहिए था, जब तक कि वे अदालत से बरी नहीं हो जाते। कांग्रेस यह भूल गई कि इतना विशालकाय संगठन चंद आरोपी नेताओं से नहीं चल रहा। इनकी कीमत समूची कांग्रेस को भुगतनी पड़ रही है। आरोपियों की पैरवी करने के बजाए बाहर का रास्ता दिखाने से कांग्रेस रास्ते पर आ जाती। कांग्रेस जब तक अपनी गंभीर गलतियों को लेकर प्रायश्चित नहीं करेगी, तब तक फिर से मुख्यधारा में लौटने के मार्ग में भ्रष्टाचार के आरोप आड़े आते रहेंगे।

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