Thursday 24 September 2015

माहौल बनाने में जुटे विपक्ष से निपटना होगा भाजपा को 


डॉ. अरूण जैन
भूमि अधिग्रहण संशोधन अध्यादेश को पुनर्जीवित नहीं करने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला समयानुकूल कहा जा सकता है क्योंकि उनकी सरकार के बारे में जो अनेक भ्रम फैलाए जा रहे हैं, उनमें सबसे अधिक इस संशोधन विधेयक को लेकर रहा है। उनकी सरकार को किसान हित विरोधी और पूंजीपतियों का हित चिंतक बताया गया। आधारहीन होते हुए भी यह आरोप उनकी सरकार पर चिपक कर रह गया और सरकार की लोकप्रियता का ह्रास भी हुआ। इस संदर्भ में यदि तटस्थ भाव से देखा जाये तो यह मानना पड़ेगा कि यह संशोधन विधेयक ग्रामीण विकास की कुंजी है। मोदी सरकार ने एक भी निर्णय ऐसा नहीं किया जो देश के पूंजीपतियों के हित में कहा जा सकता है। लेकिन मेक इन इंडिया, स्मार्ट सिटी आदि के बारे में अतिशय आग्रह से यह भावना बढ़ी कि मोदी सरकार धनपतियों के लिए अवसर प्रदान कर रही है। भारत एशिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति होने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। चीन में आई मंदी के कारण विश्व भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है। भारत आर्थिक शक्ति बिना उद्योगों के विस्तार के नहीं बन सकता। लेकिन मोदी सरकार के विरोध का जो माहौल बना है उसे बनाने वालों की प्राथमिकता यह साबित करना है कि मोदी असफल प्रधानमंत्री हैं। यह साबित करने के लिए उन्होंने सब प्रकार के अप्रचार का सहारा लिया। संसद का हंगामा उसी प्रयास का एक पक्ष है। पटना की जुटान और औरंगजेब के पक्ष में अभिव्यक्ति भी उसी मानसिकता का प्रतीक है। देश की राजनीति मोदी बनाम अन्य में सिमटती जा रही है। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्वकाल में पारित भूमि अधिग्रहण कानून से विकास कार्यों में बाधा पड़ेगी यह आशंका उस समय अधिकांश मुख्यमंत्रियों ने व्यक्ति की थी लेकिन सरकार बदलते ही वे भी बदल गए। देश में भाजपा विरोध का राजनीतिक माहौल बनाने के लिए उसके खिलाफ चार प्रचार किये जा रहे हैं- भाजपा अल्पसंख्यकों की हितचिंतक नहीं है, उसने काला धन लाकर पंद्रह लाख रूपया हर खातेदार के खाते में जमा करने का वादा भुलावा देने के लिए किया था, वह गरीब और किसान विरोधी है। उसने अपने एक साल से अधिक कार्यकाल में कोई वादा यहां तक कि भ्रष्टाचार खत्म करने, दो करोड़ लोगों को प्रतिवर्ष रोजगार देने आदि का वादा पूरा नहीं किया। सबका साथ सबका विकास की नीति और नीयत से विरत होने का यद्यपि आरोप लगाने वालों के पास कोई सबूत नहीं है तथापि कतिपय व्यक्तियों की प्रतिक्रियाओं और भारतीयत्व की विश्व में धाक बढ़ाने के लिए योग जैसे कार्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने को साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से देखने वाले केवल भारत में ही मिलेंगे। एक ईसाई प्रवक्ता ने तो यहां तक कह डाला कि भाजपा मस्जिद और गिरजाघरों के बजाय चाहती है सब मंदिर में पूजा करें। दुनिया में ऐसा एक भी देश नहीं है जहां भारत के समान देशी−विदेशी अनगिनत पूजा पद्धतियों को नागरिक अधिकार माना गया है। भगवाकरण आदि प्रचार नयी नहीं है लेकिन सरकार को बिना सबूत के विरोध करने के लिए जिस प्रकार इसे मुद्दा बनाने के लिए पाकिस्तान का हस्तक तक लोग बाग बन रहे हैं, वह निश्चय ही चिंता का विषय है। हमारे देश में विदेशी आक्रमणकारी शासकों के नाम पर अनेक सड़कें थी महत्वपूर्ण स्थान पर उनके पुतले खड़े थे, वे सब क्यों हटाए गए और जब हटाए गए तो किसी ने विरोध नहीं किया लेकिन औरंगजेब के नाम पर जो सड़क थी उसे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का नाम देने पर हंगामा खड़ा किया जा रहा है। क्यों, क्योंकि यह भाजपा के शासनकाल में हो रहा है। दिल्ली की तमाम सड़कों के नाम कांग्रेस के शासनकाल में ही बदले गए। जो कनाट प्लेस या कनाट सर्कस के नाम से जाना जाता था उसे इंदिरा चौक और राजीव चौक कर देने पर किसी ने आपत्ति नहीं की। साम्प्रदायिक विद्वेष तो फैलाया जा रहा है, बिहार के चुनाव को लेकर जातीय उन्माद भी पैदा किया जा रहा है। नरेंद्र मोदी का रास्ता रोकने के लिए। लोकसभा चुनाव में प्रचार के समय नरेंद्र मोदी ने कहा था कि विदेशों और देश में इतना कालाधन है कि यदि वह मिल जाये तो प्रत्येक व्यक्ति के खाते में पंद्रह लाख रूपया आ सकता है। कालेधन की मात्रा का अरबों खरबों में जिक्र से ज्यादा इस कथन से समझ में आता है। मोदी विरोधियों ने इसे किसी खाते में एक रूपया भी नहीं आया कहकर मुद्दा बनाया जबकि सभी यह जानते हैं कि अदालतों से हुआ जुर्माना या छापेमारी से बरामद धन किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के खाते में नहीं जाता बल्कि वह सरकारी खजाने में जमा होता है। न तो मोदी ने लालच दिया और न आम लोग इतने बुद्धु हैं कि वे इसे समझते नहीं। लेकिन कहा गया पंद्रह लाख का प्रलाप जारी है। भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा है। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्वकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ जिसने मुहिम चलाई जनता उसके पीछे खड़ी हो गई। ऐसे अभियान किस कारण असफल हुए उसके विस्तार में जाने की जरूरत नहीं है। नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए सिस्टम में बदलाव की बात कही थी। केवल कोयला खदानों की नीलामी का फैसला ही सिस्टम में बदलाव का प्रतीक नहीं है। राजीव गांधी ने एक रुपया दिल्ली से चलने पर सोलह पैसा लाभार्थी तक पहुंचने पर जो चिंता व्यक्त की थी, उसके सटीक उपाय भी नरेंद्र मोदी ने किया। लाभार्थी के खाते में सीधे धनराशि को भेजकर। जो मनरेगा भ्रष्टाचार को गांवों तक ले गया, अब उसमें घपला नहीं हो सकेगा। रसोई गैस की सब्सिडी खाताधारकों के खाते में भेजने के फैसले से न केवल गैस की किल्लत कम हुई है बल्कि कई हजार करोड़ रूपए की बचत भी हुई है। सरकार यूरिया अनुदान को भी पात्रों के खाते में सीधे भेजने पर अमल करने जा रही है। मोदी ने कहा था कि छापामारी से यह दाग मिटने वाला नहीं है ऐसा उपाय करना होगा जिससे यह रोग पनपे ही नहीं। इस सटीक उपाय का प्रभाव दिखायी पडऩे लगा है। मोदी सरकार पहली सरकार है जिसके किसी मंत्री पर भ्रष्टाचार या पद के दुरूपयोग का आरोप नहीं लगा। सुशासन के उनके वायदे के मुताबिक केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में जो बदलाव आया है उसका विस्तार राज्यों में हुए बिना ग्राम स्तर पर सुशासन की अपेक्षा पूरी नहीं होगी। लेकिन यह काम राज्य सरकारों का है। जो ऐसा कदम उठाने के बजाय भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचने लगी है।

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