Sunday 23 October 2016

प्रजातंत्र के तीन स्तम्भों की रखैल बनकर रह गया चौथा स्तम्भ-पत्रकारिता




अरूण जैन
भले ही प्रजातंत्र में और संविधान में तीन स्तम्भ परिभाषित किए गए हों और लाख तीनों स्तम्भ, पत्रकारिता को प्रजातंत्र का चौथा स्तम्भ कहते थकते नहीं हो, परन्तु वास्तविकता यह है कि सुख-सुविधाओं और आजादी का भरपूर उपभोग तीनों स्तम्भ सगी बहनों की तरह कर रहे हैं। चौथे स्तम्भ ‘पत्रकारिता’ को सभी ने ‘रखैल’ का दर्जा दे रखा है। उसके साथ बंधुआ मजदूर से भी गया-बीता व्यवहार किया जा रहा है। पत्रकारों को सुविधाएं देने के मामले में इन तीनों को ‘भयंकर पेट’ दर्द होता है। 
मध्यप्रदेश और देश में पत्रकारों और पत्रकारिता का जिस प्रकार शोषण हो रहा है उसे कमोबेश सभी जानते-समझते हैं। अपवाद छोड़ दिए जाएं तो तीनों महत्वपूर्ण स्तम्भ, पत्रकारिता का नाम आने पर नाक-भौंह सिकोड़ने लगते हैं। हमेशा कहा जाता है कि वीवीआयपी सुख पत्रकार उठा रहे हैं। हकीकत यह है कि शासन स्तर पर और समाचार पत्र मालिकों के स्तर पर पत्रकारों को शारीरिक-मानसिक स्तर पर बुरी तरह प्रताडि़त किया जा रहा है। 
अब मध्यप्रदेश में ही ले लीजिए। कुछ माह पहले सभी दलों के विधायकों ने संयुक्त रूप से मिलकर अपने वेतन-भत्ते असीमित रूप से बढ़ा लिए। इसके तुरन्त बाद माननीय मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने स्वयं के, स्पीकर के और मंत्रियों के वेतन-भत्ते बढ़ा लिए। न्यायपालिका के वेतन-भत्ते बढ़ाने की स्वीकृति प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में लिखित रूप में दे दी है। पिछले सप्ताह मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और कलेक्टरों समेत आयएएस/आयपीएस के वेतन भत्ते अप्रत्याशित रूप से बढ़ा दिए गए। एक नजर भी डाल लीजिए- विधायक 71 हजार रूपए से बढ़ाकर  1.10 लाख रूपए, राज्य मंत्री  1.20 लाख से बढ़ाकर1.50 लाख, काबीना मंत्री 1.20 लाख से 1.70 लाख, मुख्यमंत्री 1.43 लाख से सीधे 2 लाख,        स्पीकर 1.75 लाख, सीएस/डीजीपी को 2.25 लाख रूपए (45 हजार की वृद्धि), कलेक्टर-एसपी को 1.25 लाख (30 हजार वृद्धि)। राज्य कर्मचारियों को भी धड़ाधड़ नए वेतनमान दिए जा रहे हैं। मुख्यमंत्रीजी की विदेश यात्राएं देखे तो एक विदेश यात्रा पर 50 लाख से 2 करोड़ रूपए का व्यय मामूली बात है। बदले में मिला क्या, यह एक अलग बहस का विषय है। सत्ता सुख का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि पिछले वर्ष एक होटल में 10 लोगों को शिवराजसिंह ने आधे घंटे का भोज दिया, पूर्णतया मांसाहारी। इसका बिल था सवा तीन लाख रूपए। हेलीकाप्टर और वायुयान लेकर देश में ऐसे घूमते हैं जैसे सायकल से न्यू मार्केट से एमपी नगर जा रहे हों। 
इधर पत्रकारों की स्थिति भी देख लें-एक-डेढ़ वर्ष पूर्व राज्य सरकार ने 60$ आयु के राज्य अधिमान्य पत्रकारों के लिए 5 हजार रूपए प्रतिमाह सम्मान निधि शुरू की है। करीब 6 माह से भी अधिक समय से इंडियन फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट, एमपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन और अन्य पत्रकार संगठन प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष मुख्यमंत्री और जनसम्पर्क मंत्री से निवेदन कर रहे हैं कि सम्मान निधि की राशि 60$ के लिए 10 हजार, 70$ के लिए 15 हजार और 80$ के लिए 20 हजार रूपए प्रति माह की जाए। सारे खतरों से जूझते हुए, अपनी जान जोखिम में डालते हुए पत्रकार रिपोर्टिंग करते हैं। उनके लिए यह सुविधाएं मात्र सम्मान ही है, ऐश का साधन नही। पर मजाल है, शासन के कान पर जूं तक रेंगी हो। विधायिका और कार्यपालिका चुप्पी लगाकर बैठी हैं। न्यायपालिका इसलिए विवश है कि कोई पत्रकार संगठन उनके समक्ष गुहार लगाने नही पहुंचा। अब संज्ञान लें तो कैसे। शायद इससे अधिक दुर्गति चौथे स्तम्भ की और नही हो सकती। कुछ संगठनों ने प्रधानमंत्री के समक्ष मसला पहुंचाया है, देखे क्या होता हैं ?

Monday 10 October 2016

अमेरिका-भारत सम्बंध व्यक्तिगत सम्बंध महत्वपूर्ण या देश सुधार...?



सांता कलारा (केलीफोर्निया)। भारतीय पत्रकार अरूण जैन के साथ सांता कलारा शहर का भ्रमण किया, इस दौरान हम लोगों ने यह महसूस किया कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने अपनी विगत यात्रा अमेरिका यात्राओं के दौरान यहॉं के राष्ट्रपति के साथ व्यक्तिगत सम्बंधों की अभिवृद्धि के अलावा यदि यहां के प्रशासनिक सुधारो पर चिंतन-मनन कर उन्हे भारत में लागू करने पर बल दिया होता, तो उससे न सिर्फ प्रधानमंत्री को विदेशों के साथ भारत में भी लोकप्रियता में और वृद्धि होती, बल्कि देश आज कई दृष्टि से अनुशासित और कर्तव्यनिष्ठ हो गया होता।
    आज इस शहर की यात्रा के दौरान हमने जहां शनीवेल हिन्दू मंदिर में हिन्दूओं के सभी देवी-देवताओं को अर्चना के साथ गणेशोत्सव के दर्शन किए, वहीं पर्यूषण पर्व के दौरान जैन समाज का अपने आराध्य के प्रति निष्ठा और सेवा भाव के भी दर्शन किए। करीब पचास कि.मी. की इस कार यात्रा के दौरान लोग सबसे अधिक यहां के यातायात नियंत्रण और यातायात नियमों के प्रति यहां के आम आदमी के समर्पण भाव से प्रभावित हुए। इस यात्रा के दौरान हमें राष्ट्रीय व राजकीय मार्ग और गली-कूंचो में न तो पुलिस कर्मी नजर आया नजर आया और न ही कोई नियंत्रक, सब कुछ अनुशासन बद्ध टेªफिक जारी था।
    उसके बाद जब हमारी नजर यहॉं के मकानों, उनके द्वारा घेरी गई भूमि पर पड़ी तो देखा कि यहां न तो किसी ने अतिक्रमण किया है और न मकान के आसपास भारत जैसी कोई सुरक्षा दीवार या द्वार ही बनाया है, कहने का मतलब यह कि सब कुछ नियमों के दायरे में।
    अमेरिका प्रवास के दूसरे दिन तक हमें न तो एक भी झुग्गी-झोपडी नजर आई और न घरों में काम करने वाली बाई। ऐसा कतई नहीं है कि यहां बेरोजगारी या गरीबी नहीं है, वह तो ईश्वर की तरह ही हर कहीं व्याप्त है, किन्तु यहां गरीबी के साथ लाचारी कतई नहीं है।
    अपनी अभी तक की दो दिनी यात्रा में हमनें अवश्य महसूस किया कि यहां मोटर साईकिल या बाईक बहुत ही कम है, यहां बाईक को विलासिता की वस्तु माना जाता है और कार को आवश्यक आमजीवन यापन की वस्तु। इसीलिए यहां के सम्पन्न या करोड़पति-अरबपति मंहगी मोटर साईकलें चलाते है और सामान्य वर्ग कार चलाता है।
    इसके अतिरिक्त यहां शिक्षा के क्षेत्र में आई क्रांमि के भी दर्शन हुए, यहां सरकारी स्कूलों में सम्पन्न वर्ग के बच्चे पढ़ते है और निजी स्कूल गरीब बच्चों से भरे रहते है, यहां सरकारी स्कूलों में निःशुल्क शिक्षा है, जब कि निजी स्कूलों पर सरकार का सख्त नियंत्रण है।
    आम आदमी से जुड़ी कुछ ये अच्छाईयां हमें हमारी प्रारंभिक यात्रा के दौरान नजर आई, यदि मोदी जी व्यक्तिगत सम्बंधों की अपेक्षा इन पर ध्यान देकर भारत में ऐसी व्यवस्था लागू करते तो वह न सिर्फ मोदीजी की ‘कुर्सी’ को दीर्घजीवी भी बनाती बल्कि देश के हित में भी होती।
जापान ने सुभाषचन्द्र बोस की मौत की जानकारी पहले अमेरिका को क्यों दी ?


सांताक्लारा, (कैलिफोर्निया) (अरूण जैन)। कितनी अजीब बात है कि वर्ष 1945 में ताईवान मे विमान दुर्घटना में मारे गए नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के बारे में पूरी जानकारी जापान सरकार ने अमेरिका को कुछ ही हफ्तों बाद दे दी थी। परन्तु भारत सरकार को अंतिम रिपोर्ट की प्रस्तावना सन् 1956 (11 वर्ष बाद) में सौंपी गई। त्रासदी देखिए, न अमेरिकी सरकार ने सूचना दी और न भारत सरकार ने कुछ किया। यहां तक कि सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक न करते हुए रहस्य बनाए रखा।
इस ताजा जानकारी का श्रेय 91 वर्षीय गोविन्द तलवलकर को दिया गया है, जो अभी अमेरिका में रह रहे हैं। महाराष्ट्र टाइम्स के पूर्व मुख्य संपादक रह चुके श्री तलवलकर को ये दस्तावेज नेशनल डाइट पार्लियामेंट लायब्रेरी ऑफ जापान से मिले हैं। बोस फाइल्स डॉट इंफो पर बताया गया है कि 97-2 मॉडल की जापानी बमवर्षक विमान सुभाषचन्द्र को दोपहर एक बजे ताइहोकू (ताइपे का जापनी नाम) एयर फील्ड पर पहुंचा था। तेल भरने के बाद दोपहर दो बजे विमान ने फिर से उड़ान भरी और कुछ मीटर की उंचाई पर जाते ही तकनीकी गड़बड़ी के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया और नेताजी की मौत हो गई।
इस सारे रहस्योद्घाटन का एक और दिलचस्प पहलू यह भी है कि भारत सरकार को यह रिपोर्ट दक्षिण पूर्व एशिया में मित्र देशों की सेना के कमांडर लार्ड लुइस माउंटबेटन द्वारा जानकारी मांगने पर सन् 1956 में दी गई। लब्बोलुआब यह है कि भारत सरकार ने तब भी जानकारी नही मांगी थी। भारत सरकार का यह रवैया सभी की समझ से परे है, जबकि देश आजाद होने के बाद लम्बे समय तक कांग्रेस की सरकार सत्ता में रही। हालांकि भाजपा के माध्यम से सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ माह पूर्व बोस से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करने की घोषणा की है। पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने भी दस्तावेज सार्वजनिक करने की घोषणा की, पर राजनैतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह भी ‘वोट राजनीति’ है। क्योंकि नेताजी से जुड़ी 200 महत्वपूर्ण फाइलें अभी भी गोपनीय रखी गई है। कांग्रेस ने लम्बे समय तक इसे रहस्य के पर्दे में क्यों रखे रखा ? नरेन्द्र मोदी इसे क्यों उजागर करना चाहते है ? जापान ने भी इतने लम्बे समय से चुप्पी क्यों साध रखी है ? अब इस जानकारी को देने के पीछे क्या मंशा है? यह सब ऐसे अनुत्तरित प्रश्न है जिसका जवाब संभवतः कोई भी नही देना चाहेगा। परन्तु विश्लेषक यह कहने से नही चूक रहे कि नरेन्द्र मोदी कुछ समय पूर्व अपनी जापान यात्रा में वहां की सरकार को इस बात के लिए राजी करके आए हैं और इस घटना रिपोर्ट के माध्यम से वे एक बार फिर कांग्रेस को घेरे में लेना चाहते हैं।

तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रही है अमेरिका-रूस की लड़ाई


मिडिल ईस्ट में भयावह युद्ध का दौर चल रहा है… भारत-पाकिस्तान-चीन में तनातनी नॉर्मल से आगे की बढ़ चुकी है… रूस-अमेरिका के रिश्तों में और खटास आ चुकी है. तीसरे विश्व युद्ध की आशंकाओं के बादल अगर किसी समय सबसे ज़्यादा प्रबल होने के आसार हैं, तो वो ये समय है. जिन्होंने बाकी दो विश्व युद्धों को करीब से देखा और झेला है, उनके हिसाब से इस वक़्त जो स्थितियां बन रही हैं, वो किसी बड़े टकराव की ओर ही ले जा रही हैं. अगर हालिया घटनाओं पर नजऱ डालें, तो तीसरे विश्व युद्ध की कल्पना से इनकार नहीं किया जा सकता. इसका ताज़ा सबूत है रूस-अमेरिका के बीच बढ़ता तनाव. ये दोनों ही देश, वेसे तो कभी भी एक-दूसरे के फेवरेट नहीं रहे, लेकिन बातचीत की कोशिशें दोनों ने जारी रखी, जिस पर हाल ही में दोनों दशों ने विराम लगा दिया.
रूस की मिनिस्ट्री ऑफ़ डिफेन्स के देश भर में प्रसारित होने वाली टीवी सर्विस में बोला गया है कि अमेरिका मॉस्को के खिलाफ अपने परमाणु हथियार तैयार कर रहा है और हो सकता है कि ये बात आगे तक जाये. आगे का मतलब साफ़ तौर पर जंग से था. रूस के प्रेजिडेंट व्लादिमीर पुतिन ने भी अमेरिका के साथ हथियारों को लेकर किये गए अपने एक समझौते से हाथ खींच लिए, जिससे साफ ज़ाहिर होता है कि रूस अब अमेरिका के साथ किसी भी तरह की दोस्ती निभाने के मूड में तो नहीं है. सीरिया में सिविलियन्स के खिलाफ अपनी असंवेदनशील कार्यवाही के लिए रूस को पहले ही अमेरिका सहित बाकी देश लताड़ चुके हैं, लेकिन वो इससे पीछे नहीं हटा. ये सीरिया में रूस की नीति का अहम हिस्सा है.जनता को जारी किये गये सन्देश में मॉस्को में ऐसे अंडरग्राउंड शेल्टर्स की भी बात की गयी, जहां इमरजेंसी के समय मॉस्को शहर की पूरी पॉपुलेशन आ सकती है. वहीं अमेरिका में पेंटागन की तरफ से बयान आया है कि तीसरा विश्व युद्ध जल्द ही होगा और बहुत जल्दी ख़त्म हो जाएगा. दोनों देशों के स्टेटमेंट्स की तुलना की जाए, तो इनका इशारा एक परमाणु हमले की तरफ है. हालांकि परमाणु शक्ति से लैस, दुनिया का कोई भी देश ऐसे हमले की कल्पना नहीं करेगा, लेकिन इन दोनों देशों के प्रतिनिधिओं की बात से ये तो साफ़ है कि इनका इरादा शांति तो कतई नहीं है. हालांकि इस बात से नकारा नहीं जा सकता है कि ये दोनों देश खुद को युद्ध के लिए तैयार कर रहे हैं, वहीं ये सच्चाई ये भी है कि वॉर करना इतनी आसान चीज़ नहीं है. इसमें जान, माल की जो क्षति होगी, उसकी भरपाई सदियों में भी नहीं हो पाएगी, दुनिया का नक्शा बदल जाएगा.
हिरोशिमा पर हुए एटम बम अटैक के वक़्त जो लोग उस क्षेत्र के आस-पास भी कहीं थे, वो पल भर में गायब हो गए थे. ऐसे अटैक्स के कारण आने वाली कई जेनरेशन्स तक कई बीमारियों और अक्षमताओं के साथ पैदा होंगी. करोड़ों लोग एक बलास्ट में ख़त्म हो जाएंगे, बचेगा तो बस रेडियोएक्टिव एलिमेंट्स का धुआं, जो बची हुई चीज़ों को भी लील लेगा. हिरोशिमा के एटॉमिक हमले में जो भी इसकी चपेट में आये थे, वो पल भर में ऐसे गायब हुए थे कि उनकी राख तक नहीं मिली थी. आप सोच सकते हैं उसे कई गुना ज़्यादा शक्तिशाली परमाणु हमला क्या तबाही का सकता है? हम आशा करते हैं कि भारत-पाकिस्तान समेत सभी देश अपने मतभेदों का हल बातचीत से निकालें, क्योंकि अगर युद्ध हुआ, तो ये इस धरती का अंत होगा.

अमेरिका में लगातार चौथा राष्ट्रपति, चुनौती वही पुतिन


वाशिंगटन डीसी से अरूण जैन
अमेरिका में बीते डेढ़ दशक से राष्ट्रपति बदलते रहे हैं, लेकिन अमेरिकी विदेश नीति की एक चुनौती अपनी जगह कायम है. चुनौती है रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से निपटना.बात सीरिया संकट की हो, यूक्रेन की या फिर साइबर स्पेस में होने वाली गतिविधियों की, पुतिन का रूस खतरे उठाने और ताकत दिखाने के मामले में जोखिम उठाने के लिए अमेरिका से ज्यादा तत्पर दिखाई देता है. पुतिन ने 2000 में जब पहली बार बतौर राष्ट्रपति सत्ता संभाली थी, तो बिल क्लिंटन अमेरिका के राष्ट्रपति थे. उसके बाद जॉर्ज बुश और बराक ओबामा आए और अब फिर अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं.
बीते चार साल में रूसी राष्ट्रपति ने यूक्रेन के क्रीमिया को अपने देश में मिला लिया और सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद को सत्ता बाहर करने की अमेरिकी योजना को कामयाब नहीं होने दिया. इसके अलावा अमेरिका पर होने वाले साइबर हमले भी बढ़े हैं जिनके लिए अमेरिकी अधिकारी रूसी खुफिया एजेंसी के इशारों पर काम करने वाले हैकर्स को मानते हैं.
ताजा घटनाक्रम में पुतिन ने अमेरिका के साथ उस संधि को भी तोड़ दिया है जिसमें हथियारों में इस्तेमाल होने सकने वाले प्लूटोनियम को नष्ट करना है. हथियार कंट्रोल संघ के डेरिल किमबॉल कहते हैं, अगर उनके संबंध खराब होते हैं तो वे दोनों परमाणु हथियार नियंत्रित करने के क्षेत्र में अपना दबदबा कायम करने या ताकत दिखाने की कोशिश करेंगे.
अमेरिका के कुछ पूर्व और मौजूदा अधिकारी मानते हैं कि अमेरिका समझ ही नहीं पाया है कि जिस दशक में सोवियत संघ का पतन हुआ, उसे लेकर पुतिन के मन में कितनी कड़वाहट है. एक अमेरिकी अधिकारी का कहना है कि पुतिन अपने देश का खोया हुआ रसूख हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं जबकि इराक और अफगानिस्तान में युद्धों से सहमा अमेरिका जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं है.
नाम न जाहिर करने की शर्त पर इस अधिकारी ने कहा, प्रशासन कभी समझ नहीं पाया है कि पुतिन और बहुत सारे रूसी लोग 1990 के दशक को लेकर किस कदर भावुक हैं और उनके हिसाब से दुनिया में रूस का जो स्थान होना चाहिए, वो उसे हासिल करने के लिए कितने प्रतिबद्ध हैं और पुतिन वही हासिल करने में लगे हैं. वो तब तक आगे बढ़ते रहेंगे जब तक उन्हें किसी गंभीर प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा और अब तक उन्हें ऐसा कुछ झेलना नहीं पड़ा है.
सीरिया के मुद्दे पर रूस से वार्ता टूटने के बाद अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि व्हाइट हाउस को अभी तय करना बाकी है कि सीरिया में आगे क्या करना है, लेकिन ये उम्मीद कम ही लोगों को है कि अपने कार्यकाल के आखिरी महीनों में वो कोई बड़ा बदलाव करेंगे.

Wednesday 5 October 2016

चाइना सदर्न ने अमेरिकी उड़ानों पर भारतीय परम्परागत भोजन शुरू किया


सेन फ्रांसिस्को से अरूण जैन
आखिरकार ब्लूआईजन्यूज. कॉम की पहल रंग लाई और चाइना सदर्न एयरलाइन्स ने अपनी समस्त अमेरिकी उड़ानों पर आने-जाने वाले भारतीयों एवं अन्य यात्रियों को पूर्ण शाकाहारी भोजन देना शुरू कर दिया। इस भोजन में भी भारतीय परम्परागत भोजन यात्रियों को दिया जा रहा है। ब्लूआइजन्यूज ने पिछले माह इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था कि चाइना सदर्न एयरलाइन अमेरिका जाने वाले भारतीयों को ‘बीफ’ परोस रही है, नो वेज फूड।
यह समाचार प्रकाशित होने के बाद इस एयरलाइन के चीन स्थित संचालक हरकत में आए। पता लगाया गया कि ऐसा कैसे हुवा। जानकारी मिली कि चाइना सदर्न ‘वेज फूड’ के नाम पर कुछ भी नही रखती, यात्रा के दौरान। जबकि, इस एयरलाइन से प्रतिदिन बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक अमेरिका आते-जाते हैं। सेन फ्रांसिस्को जाते समय जब भारतीय पत्रकारों ने शाकाहारी भोजन मांगा तो वायुयान में एयर होस्टेस और केप्टेन ने आश्चर्य व्यक्त किया कि वे केवल ‘बीफ’ परोस सकते हैं। क्योंकि यात्रा में ‘वेज फूड’ रखा ही नही जाता। नाराजी जताने पर उन्होने कहा कि वेज फूड जैसी कोई व्यवस्था है ही नही। बड़ी जद्दोजहद के बाद अमेरिका जाते समय पत्रकारों को सेंवफल और कुछ अन्य फल खाने के लिए उपलब्ध कराए गए। सहज ही ब्लूआइजन्यूज. कॉम ने इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया। तब चीन से एयरलाइन संचालकों ने पत्रकारों को संदेश दिया कि लौटते समय से वे ध्यान रखेंगे कि सभी भारतीयों को ‘वेज फूड’, विशेष कर भारतीय परम्परागत भोजन मिले। उन्होने भारतीय दल के ‘आर्गेनाइजर’ को दूरभाष पर आश्वस्त करते हुए कहा कि वापसी यात्रा पर वे सेन फ्रांसिस्को में पत्रकारों से तस्दीक कर लेवें। उस समय सुखद आश्चर्य हुवा जब वापसी के लिए चाइना सदर्न में बठने के कुछ ही देर बाद एयर होस्टेस ने अरूण जैन और ओमप्रकाश मेहता से सीधे आकर पूछा कि सर! वेज फूड लेंगे। हां, कहने पर सबसे पहले दोनों को वेज फूड दिया गया। उसके बाद वायुयान में बैठे अन्य करीब 40-45 भारतीय यात्रियों को वेज फूड दिया गया। इसमें भी छोले, चांवल, पाव-भाजी, दही आदि प्रमुख थे। बताया गया कि टिकिट पर ‘वेज फूड’ दर्ज कराने पर एयरलाइन ने नामजद ‘वेज फूड’ मांग के अनुसार और अतिरिक्त रूप से प्रत्येक उड़ान पर रखना शुरू कर दिया है। एयर लाइन को पत्रकारों की ओर से धन्यवाद और साधुवाद।

Tuesday 27 September 2016

हिलेरी के लिए शुरूआत से जीत की राह आसान हुई


(लॉस एंजेलिस से अरूण जैन )
सितम्बर के अंतिम सप्ताह में शुरू हुई सार्वजनिक बहस के साथ ही डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन की राष्ट्रपति पद की दौड़ की राह आसान दिखाई देने लगी है। बहस के साथ ही सीएनएन और ओआरसी द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के दौरान 62 प्रतिशत मतदाताओं ने हिलेरी क्लिंटन को अगले राष्ट्रपति के रूप में देखने की इच्छा जाहिर की है। वहीं रिपब्लिक उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प आश्यर्चजनक रूप से पिछड़ गए। उन्हे केवल 26 प्रतिशत मतदाताओं ने पसंद किया। 11 प्रतिशत मतदाता किसी के भी पक्ष में नही गए। 
अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव 8 नवम्बर को होना है, जिसमें मात्र पांच सप्ताह का समय शेष रह गया है। इस बार के राष्ट्रपति चुनाव का एक आश्चर्य जनक पहलु यह है कि ऐन बहस की शुरूआत के दिन ही मीडिया खुलकर ट्रम्प के विरोध में खड़ा हो गया। दो प्रभावशाली समाचारपत्रों द वाशिंगटन पोस्ट और द न्यूयार्क टाइम्स ने इस दिन सुबह से ट्रम्प के विरूद्ध संपादकीय लिखते हुए हिलेरी क्लिंटन की जोरदार तरफदारी की। अर्थव्यवस्था, करों में कटौती, नस्लवाद, आईएस जैसे मुद्दों पर ट्रम्प की काफी खिंचाई हुई। इन समाचारपत्रों ने यहां तक लिख डाला कि ट्रम्प को किसी भी सूरत में राष्ट्रपति नही चुना जाना चाहिए। इसके समर्थन में अखबारों ने तर्क भी दिए। दोनों उम्मीदवारों की पहली बहस के बाद का सर्वेक्षण भी चौंकानेवाला है। जबकि पिछले माह ही एनबीसी और वाल स्ट्रीट जर्नल के एक सर्वेक्षण में हिलेरी को 8 प्रतिशत बढ़त बताई गई थी। एबीसी न्यूज और वाशिंगटन पोस्ट के सर्वे में इसके पहले हिलेरी को 46 प्रतिशत मतदाताओं और ट्रम्प को 44 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन बताया गया था। कहा गया कि ट्रम्प के समर्थक आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के हैं। इसके विपरीत हिलेरी को शिक्षित वर्ग का साथ मिला है। श्वेत महिलाओं में हिलेरी को 25 प्रतिशत बढ़त मिली है। 59 प्रतिशत अमेरिकी ट्रम्प को नकारात्मक ढंग से देखते हैं।
चुनावी बहस का एक और उल्लेखनीय पहलू यह है कि 90 मिनिट की इस बहस को 10 करोड़ लोगों ने विभिन्न माध्यमों से प्रत्यक्ष देखा। इसके पूर्व सन् 1980 में जिमी कार्टर और रोनाल्ड रीगन की बहस को 8 करोड़ लोगों ने देखा था। यह भी अपने आप में रिकार्ड है और एक दिशा विशेष की ओर संकेत करता है।

Monday 26 September 2016

राष्ट्रपति चुनाव के बाद 

भारत-अमेरिका के सम्बंधों को लेकर चिंतित वासीभारतीय…!


बोस्टन से अरूण जैन
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव प्रचार चरम पर है, डेमोक्रेटिक और रिपब्लिक दोनों दलों के उम्मीदवारों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है, यद्यपित मतदान में अभी एक महीने से भी अधिक का समय है और दोनांे ही दलों के उम्मीदवार ट्रम्प और हिलैरी क्लिंटन के बीच फिलहाल कांटे की टक्कर है, किन्तु दोनों ही राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को लेकर अमेरिका में निवासरत प्रवासी भारतीय काफी चिंतित और सहमा हुआ है, वह फिलहाल यह बताने की स्थिति में भी नहीं है कि भारत के लिए कौन सा उम्मीदवार उपयोगी व सहयोगी होगा ।
आम प्रवासी भारतीय की इस चिंता का मुख्य कारण यह है कि जिस तरह पिछले दो सालों में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच जो दोस्ताना रिश्ते कायम हुए और राष्ट्रपति ओबामा का भारत व मोदी के प्रति स्नेह व सौहार्द्र का सम्बंध रहा और जिसके कारण हम पूरी दुनिया के साथ चीन व पाक के लिये भय व चिंता का कारण बने, क्या अब वैसे रिश्ते अमेरिका को भावी राष्ट्रपति के साथ बरकरार रह पाएगें ? क्योंकि अमेरिका में रहने वाला आम भारतीय राष्ट्रपति पद के सशक्त दावेदार ट्रम्प की उस घोषणा से चिंतित है, जिसमें उन्ही के अमेरिकी युवाओं की बेरोजगारी का मुख्य कारण भारती युवाओं को बताया था और आरोप लगाया था कि भारत के युवा तकनीकी छात्र अमेरिका में आकर अमेरिकी युवाओं की दाल-रोटी छीन रहे है और यदि वे (ट्रम्प) राष्ट्रपति चुनलिए गए तो सबसे पहला काम यहां काम कर रहे भारतीय युवाओं को अमेरिका से बाहर निकालने का करेगें।
अब चाहे रिपब्लिकन उम्मीदवार श्री ट्रम्प ने अमेरिकी युवाओं को रिझाने और हो उनका वोट प्राप्त करने के लिए यह घोषणा की हो, किन्तु इस घोषणा से अमेरिका में कार्यरत हर युवा उद्यमी के दिल-दिमाग में भय की भावना तो जाग्रत हो ही गई। इसके अलावा ट्रम्प ने अपनी घोषणा को आगे बढ़ाते हुए खुद के पेरों पर कुल्हाड़ी मारने की तर्ज पर यह भी कहा था कि वे राष्ट्रपति बनने के बाद मुसलमानों को भी अमेरिका में नहीं रहने देगें, फिर वे मुसलमान चाहे किसी भी देश के क्यों न हों ? इस घोषणा के कारण अमेरिका का हर आम मुस्लिम भी डरा-सहमा है, यद्यपि अमेरिका वासियों ने ट्रम्प की इस घोषणओं को चुनावी स्टंट ही माना, किन्तु चूंकि ट्रम्प और हिलैरी के बीच बराबरी के कांटे की लड़ाई बनती जा रही है, इसलिए ट्रम्प को लेकर आम भारतीय व मुसलमान चिंतित तो है।
यद्यपित ओबामा की डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार और पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हिलैरी क्लिंटन के बारे में भी यह माना जाता रहा है कि वे भारत से ज्यादा पाकिस्तान समर्थक रही है। किन्तु चूंकि उन्होने अपने चुनाव प्रचार के दौरान भारत या पाक के बारे में कोई विवादास्पद टिप्पणी नहीं की इसलिए अमेरिका में निवास करने वाला हर भारतीय यह चाहता है कि हिलैरी ही अमेरिका की अगली राष्ट्रपति बनें, क्योंकि वही अपनी पार्टीं के निवृत्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा के देशहितेषी कार्यों व सिद्घांतों को आगे बढ़ा सकती है।
इस प्रकार कुल मिलाकर फिलहाल यह कहना तो मुश्किल है कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कौन होगा, किन्तु हां, उम्मीदवारों को लेकर फायदे-नुक्सान के कयास जरूर लगाऐ जाने लगे है।

Sunday 25 September 2016

हिलेरी ही होगी अगली अमेरिकी राष्ट्रपति !


(नियाग्रा सिटी से अरूण जैन)
विश्व के एकमात्र जीवित कापालिक महाकाल भैरवानंद सरस्वती ने दावा किया है कि नवम्बर में होने वाले चुनाव में हिलेरी क्लिंटन ही अमेरिका की नई राष्ट्रपति चुनी जाएंगी। उन्होने कहा कि श्मशान साधना के दौरान उन्हे इस बात के स्पष्ट संकेत प्राप्त हुए हैं, जो कभी असत्य नही होते।
कापालिक महाकाल के नाम से प्रख्यात बाबा भारत के जाने-माने साधना स्थल कामाख्या देवी (असम) में लगातार 16 वर्षों तक सतत, दिगम्बर अवस्था में श्मशान साधना कर चुके हैं। पंजाब में सन् 1940 में जन्मे कापालिक बाबा किशोर अवस्था में दिल्ली स्थानांतरित हो गए थे। इन्दौर से एलएल.एम और सागर से एम.एस. डब्लू. की डिग्री प्राप्त कर बाबा कोल इंडिया लिमिटेड में निदेशक बने। परन्तु उनका विरक्त स्वभाव और जीवन को गइराई से समझने की लालसा उन्हे तंत्र साधना के गढ़ कामाख्या ले गई। वहीं पर श्मशान में उनकी मुलाकात तंत्र साधक योगानंद महाराज से हुई, जो बाद में उनके गुरू हो गए। वहीं पर 16 वर्ष रहकर कापालिक बाबा ने कपाल साधना की और जीवन के कई गूढ़ रहस्यों का ज्ञान पाया। उनके गुरू ने ही उनका नामकरण ‘कापालिक महाकाल’ रखा। अपने नाम के अनुरूप बाबा समस्त पेय और भोजन मानव, खोपड़ी में ही करते हैं, जिसे ‘कपाल’ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि कपाल में खाद्य-पेय पदार्थ ग्रहण करने से दैवीय शक्तियों को स्वतः भोग लगता है और दैवीय शक्तियां उपयोग कर्ता को स्वतः प्राप्त होती हैं। कापालिक बाबा कुछ वर्षों दिल्ली और हरिद्वार में रहने के बाद इन दिनों महाकाल की नगरी उज्जैन में साधनारत हैं। पिछले करीब एक वर्ष से वे अपना ज्यादातर समय चक्रतीर्थ श्मशान में शव साधना में बिताते हैं । बाबा ने बताया कि शव साधना के दौरान ही उन्हे भविष्य की कई घटनाओं के संकेत मिलते हैं। बराक ओबामा के चुनाव लड़ने के करीब डेढ़ वर्ष पूर्व उन्हें संकेत मिले थे कि वही अगले राष्ट्रपति होंगे। तभी बाबा ने उनकी भविष्यवाणी कर दी थी। इसी प्रकार अटल बिहारी वाजपेयी के दो बार प्रधानमंत्री बनने और उनके दोनों कार्यक्राल के संकेत भी मिले थे। डॉ. शंकरदयाल शर्मा के भारत के राष्ट्रपति बनने का आभास भी उन्हे 6 माह पूर्व हुवा था। बाबा ने स्पष्ट कहा कि आतंकवाद की ताजा घटनाओं के बाद परिस्थितियां कैसी भी निर्मित हों पर श्मशान साधना के दौरान साफ-साफ संकेत मिले हैं कि हिलेरी क्लिंटन ही अमेरिका की अगली राष्ट्रपति बनेगी। विश्व की राजनैतिक स्थितियां भी इसी ओर संकेत दे रही हैं। इस समय पूरे विश्व की निगाहें अमेरिका पर लगी हुई हैं। क्योंकि चुनाव के बाद कई देशों में राजनीतिक उथल-पुथल और महत्वपूर्ण परिवर्तन संभव हैं।

Friday 23 September 2016

सर्व शक्तिमान देश अमेरिका में भय की भावना क्यों...?

(वाशिंगटन डी.सी.से अरूण जैन)
पूरे विश्व में एक सर्वशक्तिमान देश माने जाने वाले अमेरिका में इन दिनों अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना असर दिखाने वाले आतंकवाद और आईएस.आई एस की धमकियों के कारण भय की भावना व्याप्त हो गई है, जो न्यूयार्क और वाशिंगटन जैसे महानगरों के चौराहों और दीवारों पर लगे बैनरों व पोस्टरों के माध्यम से उजागर हो रही है। अमेरिका के इन दोनों महानगरों की दीवारों और चौराहों पर लगे पोस्टरों व बैनरों पर लिखा है-‘‘वी आर नॉट कॉबर्ड, वी केन यूस गन टू सेव अॅवर फ्रीडम (हम डरपोक नहीं है, हम अपनी आजादी की रक्षा के लिए बंदूक भी उठा सकते है) एक अन्य ‘स्लोगन’ में लिखा है- वी डोंट वांट टू बिकम सिओल, वी सेव अॅवर फ्रीडम’’ (हम सिओल नही बनना चाहते, हम हमारी आजादी की रक्षा करेंगे)
अमेरिका के प्रमुख शहरों की दीवारों व चौराहों पर लगे इन पोस्टरों व बैनरों से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि अमेरिका अपनी आजादी की आड़ में अपना भय छुपाना चाहता है। एक ओर जहां संयुक्त राष्ट्रसंघ के भयं से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अपरोक्ष रूप से भारत का साथ देने के नाम पर दबे शब्दों में अमेरिका की धरती पर उसकी आलोचना करते हैं वहीं अमेरिका अपनी एक प्रमुख रिपोर्ट के माध्यम से पाक को दुनिया का सबसे बड़ा और पांचवा खुराफाती आतंकी देश बता रहा है।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ के जिस मंच से पाक प्रधानमंत्री ने कश्मीर का हल निकले बगैर एशिया में ‘शांति स्थापित नहीं होने की धमकी दी, वहीं उसी मंच से अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के अंतिम भाषण में स्पष्ट कह दिया कि यदि कुछ लोग (देश) ऐसा सोचते है कि सुनहरा भविष्य सिर्फ ‘सशक्त’ का ही साथ देता है, तो यह मैं नहीं मानता, सुनहरे भविष्य के दिन दिखने के लिए सशक्त होना जरूरी नहीं, इसलिए अपने आपको हर तरीके से सक्षम बनाने या समझने की यह स्पर्धा खत्म होनी चाहिए और हर एक को अपने दायरे में रहकर अपनी समृद्धि के बारे में सोचना चाहिए। राष्ट्रपति ओबामा के विदाई संदेश का इशारा किस देश की ओर था, यह किसी से भी छुपा हुआ नहीं है, उन्होने बिना नाम लिए चीन-पाकिस्तान के गठजोड़ और सर्वशक्तिमान बनने की स्पर्धा मंे शामिल होने का यह संकेत दिया है।
यह तो हुई अमेरिका में व्याप्त आंतरिक भय और कुछ ही दिनों के मेहमान अमेरिकी राष्टपति के इशारे की बात। अब यदि हम यहां बन रहे माहोल की बात करें, तो एक ओर जहां यहां अगले माह होने वाले राष्ट्रपति चुनाव की गहमा-गहमी है, इलेक्ट्रानिक मीडिया इनके प्रचार का प्रमुख साधन बना हुआ है, वहीं इसी दौरान पिछले सप्ताह न्यूयार्क शहर में तीन जगह हुए बम विस्फोटो ने भी चुनावी माहोल को और अधिक डरावना बना दिया है। राजनीतिक तौर पर यह आशंका की जाने लगी है कि राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ऐसे बम धमाके कही चुनाव माहौल को न बिगाड़ दें, वहीं राष्ट्रपति पद के दोनों प्रमुख उम्मीदवारों, ट्रम्प और हिलैरी क्लिटन की सुरक्षा भी काफी बढ़ा दी गई है, जिसका असर उनके अपने जनसम्पर्क पर पड़ा है।
इस तरह कुल मिलाकर अमेरिका में धीरे-धीरे एक अजीब तरह का माहौल बनता जा रहा है, और इस माहौल से निपटने का हल किसी के पास भी नही दिखाई दे रहा है।

Thursday 22 September 2016

पाकिस्तान दुनिया का 5वॉं खुराफाती देश: अमेरिका रिपोर्ट



(अरूण जैन)

न्यूयार्क, 23 सितम्बर/आतंकवाद को बढ़ावा और प्रक्षय देने के मामले में पाकिस्तान को दुनिया का सबसे खुराफाती देश करार देते हुए उसे विश्व में पांचवा खतरनाक देश करार दिया गया है। यह खुलासा अमेरिकी इंटेलीजेंस थिंक टैंक ‘इंटेल सेन्टर’ ने अपनी ताजा सर्वेक्षण रिपोर्ट में किया है।
पिछले 10 माह में पाकिस्तान 10 वें स्थान से पांचवे स्थान पर पहुंच गया है। यह रिपोर्ट 18 सितम्बर तक किए गए अध्ययन के बाद इंटेल सेंटर ने ‘कंट्री थ्रेट इंडेक्स (सीटी आई) के बाद जारी की है। इसे विश्व के विभिन्न देशों में चल रही आतंकवादी और विद्रोही गतिविधियों के आंकलन के आधार पर तैयार किया गया है। सेन्टर इन गतिविधियों में हुई मौतों और घायलों की संख्या के आधार पर आंकलन करता है। इस रिपोर्ट ने पाकिस्तान की नींद उड़ा दी है। क्योंकि इससे साफ पता चलता है कि पाकिस्तान को लेकर भारत ही नही दुनिया के देशों के बीच क्या धारणा है।
इधर चीन ने पाकिस्तानी मीडिया की उन रिपोर्टो को सिरे से खारिज कर दिया है जिसमें काश्मीर पर चीन के पीएम के समर्थन की बात कही गई थी। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने स्पष्ट किया कि न्यूयार्क में प्रधानमंत्री ली केकियांग 21 सितम्बर को पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ से मिले जरूर थे। अंतर्राष्ट्रीय और क्षैत्रीय मुद्दों के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर भी बातचीत हुई। पर हमारा मानना है कि काश्मीर मुद्दे का समाधान भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी चर्चा से ही निकलेगा।
यहां संयुक्त राष्ट्र महासभा के 71वें सत्र में बोलते हुए पाक पीएम नवाज शरीफ ने फिर से काश्मीर मुद्दा उठाते हुए जनमत संग्रह कराने की मांग की। उन्होंने कहा कि हमारा देश आतंकवाद का सबसे पीडि़त देश है। हमारे हजारों सैनिक आतंकी हमलों में मारे जा चुके हैं। नवाज ने दावा किया कि आतंक विरोधी अभियान में हम सबसे आगे हैं। उन्होंने कहा कि हम भारत के साथ शांति चाहते हैं। भारत के कड़े रूख से घबराए नवाज ने खुद के परमाणु साधन संपन्न होने की धौंस भी दी। बुरहान वानी का जिक्र करते हुए नवाज ने कहा कि वह काश्मीरी युवा नेता था, उसका कत्ल हुवा है। नवाज ने काश्मीर हिंसा की जांच की मांग करते हुए जनमत संग्रह कराने की बात दुहराई/उन्होंने कहा कि काश्मीर मुद्दा सुलझेगा तभी शांति आएगी। उन्होंने भारत पर असहयोगी रवैये का आरोप लगाया।

Monday 12 September 2016

चीन एयरलाइन भारतीयों को परोस रही ‘बीफ’ ?



केलिफोर्निया जाते विमान से (अरूण जैन) 12 सितम्बर । कितनी अजीब बात है ? चीन की एयरलाइन भारत से अंतर्राष्ट्रीय उड़ाने संचालित करती है, पर भारत से जाने वाले यात्रियों को यह एयरलाइन खाने में ‘बीफ’ और ‘मछली’ देती है, इसके अलावा कुछ नही ?
ब्लू आइज़ न्यूज के इस प्रतिनिधि को दिल्ली से ग्वांगजू होकर यूएसए जाने का मौका मिला। चीन, यहां से चाइना सदर्न उड़ान संचालित करता है। इस उड़ान पर चाय नही दी जाती बल्कि कोल्ड ड्रिंक और बीयर दी जाती है। इसी प्रकार खाने में सिर्फ मांसाहारी भोजन परोसा जाता है यात्रियों को। उसमें भी ‘बीफ’ और ‘मछली’ बस! बाकी कुछ भी नही दिया जाता । शाकाहारी भोजन तो इस एयरलाइन्स पर है ही नही। उल्लेखनीय है कि अमेरिका में रहने वाले भारतीय बड़ी संख्या में इस एयरलाइन से अमेरिका जाते हैं। जो लोग शाकाहारी हैं वे भूखे रहकर ही यात्रा करने पर विवश है। क्योंकि यात्रा के दौरान और कोई विकल्प है ही नही। अब यदि मांसाहारी खाना है तो फिर ‘बीफ’ खाना ही होगा। अब बताइए चीन, भारतीयों को जबरन ‘बीफ’ खिलाने पर आमादा है, इस बात से कौन इंकार करेगा ? क्या चाइना एयरलाइन की ड्यूटी नही बनती कि जब बड़ी संख्या में भारतीय यात्री उनके माध्यम से यात्रा करते हैं तो उनके लिए शाकाहारी भोजन की व्यवस्था भी रखे ? इस दिशा में भारत सरकार कोई पहल करेगी क्या ? कम से कम मैं तो नही बता सकता। शायद भारत सरकार या उनके प्रतिनिधि कोई स्पष्टीकरण देकर सकारात्मक कदम उठा सकते है।
यह कह पाना मुश्किल है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चार बार की अमेरिका यात्रा में क्या खाया ? यदि वे एक बार चाईना सदर्न एयरलाइन से सामान्य यात्री की तरह जाएं तो शायद ये कटु अनुभव कर पाएं।

Thursday 1 September 2016

दूसरों के पैसों पर ऐश
शिवराजसिंह चौहान से सीखो


अरूण जैन
नई दिल्ली, 1 सितम्बर। दूसरों के पैसों पर कैसे ऐश किया जाता है यह कोई मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से सीखे ? ये माननीय जब से मुख्यमंत्री बने हैं तब से इनकी पिकनिकनुमा सरकारी विदेश यात्राएं बराबर जारी हैं। दावा किए गए करोड़ों रूपए के करारों के बावजूद इनमें से 10 प्रतिशत का भी भौतिक क्रियान्वयन प्रदेश में नहीं हुवा है। अभी भी इनका अमेरिका दौरा जारी है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री सचिवालय ने एक लिखित प्रतिउत्तर में कहा है कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का कार्यालय उनकी विदेश यात्राओं का कोई रिकार्ड नही रखता।
नियमानुसार देश के किसी भी हिस्से में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने की नैतिक जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उस जिम्मेदारी को बखूबी निभा भी रहे हैं। वैसे प्रधानमंत्री ने किसी भी बहाने शौकिया विदेश यात्रा करने वाले मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों पर लगाम कसी है। ऐसे किसी भी मंत्री का विदेश यात्रा प्रस्ताव पहले पीएमओ जाएगा। उनके संतुष्ट होने और अनुमति देने पर ही संबद्ध मंत्री विदेश जा सकेगा। संतुष्टि के लिए पीएमओं ने मंत्री के लिए व्यवहारिक प्रेजेंटेशन देने का प्रावधान भी रखा है। ऐसे में मुख्यमंत्री श्विराजसिंह चौहान को लगातार विदेश यात्रा की अनुमति किस आधार पर दी जा रही है, यही समझ से परे है।
शिवराजसिंह चौहान ने 29 नवम्बर 2005 को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। एक वर्ष भी मुश्किल से बीता और माननीय शिवराजजी ने विदेश की दौड़ शुरू कर दी। उनकी पहली विदेश यात्रा दिसम्बर 2006 में सिंगापुर की हुई। यहां तीन करारनामेे होना बताए गए। जनवरी 2007 में श्रीमान फिर इजराइल उड़ लिए। कृषि, कम पानी में सिचांई, डेयरी के करारनामे यहां भी बताए गए। भाग्य देखिए दूसरी बार दिसम्बर 2008 में फिर मुख्यमंत्री बन गए। तीसरी बार भी मुख्यमंत्री बन गए। विदेश यात्राएं भी चलती रही क्योंकि चस्का जो लग गया था। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से तो शिवराज जी की विदेश यात्राएं एक और माने में उल्लेखनीय हैं। जहां भी प्रधानमंत्री गए, तुरन्त बाद शिवराज भी चले गए। चीन, अमेरिका, यूरोप, श्रीलंका कुछ भी नही छोड़ा। शिवराज की चीन यात्रा तो उस समय हुई जब इस देश ने भारत का नीतिगत विरोध किया था। इस दौरे पर प्रश्न भी खड़े हुए थे। अभी ये श्रीमंत अमेरिका में सपत्नीक पिकनिक मना रहे हैं। हालांकि उद्योगपतियों के साथ बैठकें दिखाकर निवेश अभियान प्रचारित किया जा रहा है। लेकिन वास्तविकता एकदम विपरीत है। पिछले 11 वर्षों में जो भी करार बताए गए उसका 10 प्रतिशत भी मैदान में नही आया है। मजा देखिए वापिस आने के शीघ्र बाद ये श्रीमंत लंदन जाने वाले हैं। राजनैतिक विश्लेषकों का एक और निष्कर्ष है कि प्रदेश में लोकप्रिय योजनाओं का क्रियान्वयन और विदेश यात्राएं दिखाकर शिवराज कहीं न कहीं स्वयं को नरेन्द्र मोदी से कमतर नहीं आंकना चाहते। शायद वे दिखाना चाहते हैं कि नरेन्द्र मोदी के बाद, बल्कि उनसे भी अच्छा विकल्प शिवराज के रूप में देश में मौजूद है। 
आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे के एक सूचना आवेदन में मुख्यमंत्री कार्यालय ने लिखित रूप से स्पष्ट किया है कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की विदेश यात्राओं और उससे जुडी गतिविधियों का कोई समन्वय अथवा संकलन इस कार्यालय द्वारा नही रखा जाता। केन्द्र सरकार के निर्देशानुसार जनप्रतिनिधियों के ऐसे ब्यौरे स्वतः सार्वजनिक किए जाना चाहिए। 
इधर सोई हुई कांग्रेस भी अब जागी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव ने विदेशी निवेश के नाम पर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के सरकारी दौरों को निजी बताते हुए कहा है कि राजस्व कोष से करोड़ों रूपए व्यय किए गए हैं। श्री यादव ने इस पर विस्तृत श्वेत पत्र जारी करने की मांग मुख्यमंत्री से की है। उन्होंने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री और उनके सलाहकार विदेशों में पढ़ रहे पुत्र-पुत्रियों से मुलाकात करने और उच्च शिक्षा हेतु प्रवेश दिलवाने के लिए निजी दौरों को शासकीय दौरों में तब्दील कर रहे हैं आपने प्रधानमंत्री से कड़ा रूख अपनाने का आग्रह किया हैं जैसा कि वे अन्य मंत्रियों के साथ सख्ती से कर रहे हैं।

Tuesday 28 June 2016

गंगटोक को म्यूजियम में रखने लायक शहर भी कहा जाता है

डॉ. अरूण जैन
पर्वतराज हिमालय की गोद में बसा सिक्किम भारत के सुंदरतम राज्यों में से एक है। भारत में फूलों व पक्षियों की सर्वाधिक किस्में सिक्किम में ही पाई जाती हैं। आर्किड की विश्व भर में पाई जाने वाली लगभग पांच हजार प्रजातियों में से अकेले सिक्किम में 650 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं।  सिक्किम के मूल निवासी लेपचा और भूटिया हैं लेकिन यहां बड़ी तादाद में नेपाली भी रहते हैं। अधिकांश सिक्किमवासी बौद्ध एवं हिन्दू धर्म को मानते हैं। सिक्किम उन कुछेक राज्यों में शुमार है, जहां अभी रेल सुविधा नहीं है। सिक्किम की राजधानी गंगटोक देश का एक खूबसूरत हिल स्टेशन भी है। गंगटोक की खूबसूरती का अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि कुछ इतिहासकारों ने गंगटोक को म्यूजियम में रखने लायक शहर भी बताया है। गंगटोक शहर से आठ किलोमीटर दूर स्थित ताशी व्यू पाइंट से कंचनजंघा एवं सिनोलचू पर्वत शिखरों का बड़ा मनोहारी रूप दिखाई पड़ता है। बर्फ से ढकी इन चोटियों का धूप में धीरे−धीरे रंग बदलना भी एक अद्भुत समां बांधता है। सिक्किम के पूर्व राजाओं का राजमहल एवं परिसर में बने त्सुकलाखांग बौद्ध मंदिर की खूबसूरती देख कर पर्यटक अचंभित रह जाते हैं। यहां हर वर्ष भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है। शहर से तीन किलोमीटर दूर स्थित आर्किड सेंक्चुअरी में आर्किड की सैंकड़ों किस्में संरक्षित हैं। वसंत ऋतु में इस स्थान की शोभा निखरने लगती है। तिब्बती भाषा, संस्कृति व बौद्ध धर्म के शोधार्थियों के लिए रिसर्च इंस्टीट्यूट आफ तिब्बतोलोजी एक अद्वितीय संस्थान है। इसकी प्रसिद्धि विश्व भर में है। यहां संग्रहालय में दुर्लभ पांडुलिपियों, पुस्तकों, मूर्तियों, कलाकृतियों का अनूठा संग्रह है। विषेशकर थंका पेंटिंग का वृहदाकार रूप तो यहां के संग्रहालय की अनमोल धरोहर है। इस संस्थान की नींव 1957 में दलाई लामा ने डाली थी।  गंगटोक से लगभग सात किलोमीटर दूर गणेश टाक से गंगटोक के पूर्वी हिस्सों एवं कंचनजंघा पर्वतमाला का शानदार नजारा दिखता है। कुटीर उद्योग संस्थान हस्तनिर्मित वस्तुओं, विशेषकर शालों, गुडिय़ों, कालीनों आदि के लिए प्रसिद्ध हैं। उपहार में देने लायक अनेक सस्ती व उत्तम वस्तुओं की यहां से खरीदारी की जा सकती है। यह संस्थान मुख्य बाजार से केवल आधा किलोमीटर दूर है। पालजोर स्टेडियम के पास स्थित एक्वेरियम में सिक्किम में पाई जाने वाली मछलियों की खास−खास किस्में भी आप देख सकते हैं। गंगटोक से पैंतीस किलोमीटर दूर लगभग 12,120 फुट की ऊंचाई पर छंगु लेक है। अत्यंत पवित्र मानी जाने वाली यह झील लगभग एक किलोमीटर लंबी है। जाड़ों में जब यह झील पूरी तरफ से बर्फ से ढक जाती है तब इसकी खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरी यह झील प्रवासी पक्षियों की शरणगाह भी है। छंगु लेक के किनारे दुर्लभ याक की सवारी पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र है। गंगटोक से छंगु तक जाने के लिए जीप या टैक्सियां उपलब्ध रहती हैं। छंगु जाने के लिए परमिट बनवाना आवश्यक है। यह काम टूर एजेंट आसानी से करवा देते हैं। आप स्वयं पुलिस अधिकारी से संपर्क कर भी परमिट बनवा सकते हैं। गंगटोक से चौबीस किलोमीटर दूरी पर है, रूमटेक मठ। यह बौद्ध धर्म की काग्युत शाखा का मुख्यालय है। पूरे विश्व में रूमटेक मठ की 200 शाखाएं हैं। इस मठ का अपना एक विद्यालय है और रंगबिरंगे पक्षियों से सुसज्जित पक्षीशाला भी। मठ में विश्व की कुछ अद्भुत धार्मिक कलाकृतियां भी संग्रहीत हैं। हर साल जून माह में इस स्थान पर धार्मिक समारोह का आयोजन भी किया जाता है। 51.76 वर्ग किलोमीटर में फैला फंबोंग लो वाइल्ड लाइफ सेंक्चुअरी गंगटोक से पच्चीस किलोमीटर दूर है। यहां रोडोडेंड्रोन, ओक, किंबू, फर्न, बांस आदि का घना जंगल तो है ही साथ ही यह दर्जनों पशुओं का आवास भी है। सेंक्चुअरी में पक्षियों एवं तितलियों की अनेकानेक प्रजातियां मौजूद हैं। गंगटोक सड़क मार्ग द्वारा सिलिगुड़ी, न्यू जलपाईगुड़ी, बागडोगरा, दार्जिलिंग, कलिंगपोंग आदि शहरों से जुड़ा हुआ है। सिलिगुड़ी114 किलोमीटर, न्यू जलपाईगुड़ी−125 किलोमीटर गंगटोक के दो निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। बागडोगरा−124 किलोमीटर गंगटोक का निकटतम हवाई अड्डा है। बागडोगरा से पर्यटक हेलीकाप्टर द्वारा भी गंगटोक पहुंच सकते हैं। सिलिगुड़ी से गंगटोक जाने के लिए टैक्सियां एवं बसें आसानी से मिल जाती हैं। विदेशी पर्यटकों को सिक्किम में प्रवेश के लिए परमिट बनवाना आवश्यक है। विदेशियों के लिए अधिकतम पंद्रह दिन का परमिट बनता है। सिक्किम में पालीथीन नहीं मिलती। अगर आपको इनकी जरूरत हो तो अपने साथ ले कर जाएं।

तंत्र से नहीं होता किसी का अनिष्ट: कापालिक बाबा


डॉ. अरूण जैन
कापालिक महाकाल भैरवानंद सरस्वती ने गुप्त नवरात्रि को महत्वपूर्ण बताते हुए सभी साधकों को सलाह दी है है कि वे प्रतिदिन नियमित रूप से मां की आराधना करें, संभव हो तो अन्न ग्रहण न करें। साथ ही यदि हवन भी कर सके तो उत्तम होगा। आपने कहा कि यह एकदम मिथ्या-भ्रांति है कि गुप्त नवरात्रि में किसी अनिष्ट विशेष के लिए तंत्र साधना की जाती है। ऐसी कोई भी तंत्र साधना अथवा क्रिया नहीं होती ।
कापालिक बाबा ने गुप्त नवरात्रि के संदर्भ में इस प्रतिनिधि से चर्चा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि वर्ष में चार नवरत्रियां होती है जो हर तीन माह में आती है। जिनमें से दो गुप्त नवरात्रि कहलाती है और दो सार्वजनिक नवरत्रि होती है लेकिन चारों ही नवरात्रियों में साधना की क्रियाएं एक ही होती है। साधक चाहे तो 9 दिन व्रत रख सकता है। यदि 9 दिन केवल फलाहार पर रहा जाए तो उत्तम है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि अन्न खाने वाला साधना नहीं कर सकता। साधक को प्रतिदिन सबेरे नहा-धोकर मां की आराधना करना चाहिए। इस दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ आवयक रूप से करना चाहिए। इसके एक अध्याय का पाठ भी रोज किया जा सकता है अथवा पूरी दूर्गा सप्तशती भी प्रतिदिन पूरी की जा सकती है। इसके लिए कोई निर्धारित पैमाना नहीं है।
गुप्त नवरात्रि में कई तांत्रिकों द्वारा काले जादू के नाम से साधना की जाती है, इस प्रश्न पर कापालिक बाबा ने कहा कि ऐसी कोई साधना नहीं होती। कुछ लुच्चे-लफंगे किस्म के जो लोग तंत्र साधना के नाम पर व्यापार कर रहे है वे लोगों को इस दिशा में भरमाते है। ऐसी कोई भी साधना नहीं होती। साधना एक सामान्य आदमी द्वारा किस प्रकार की जाए, इस प्रश्न के उत्तर में कापालिक बाबा ने कहा कि जब व्यक्ति अपनी प्रातः की नित्य पूजा करता है तभी कम से कम 5 माला एक मंत्र की की जाना चाहिए। आपने कहा कि ये मंत्र है- ओम, एं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्छै । जरूरी नहीं है कि पांच माला जपी जाए, साधक समय और श्रद्धा के अनुरूप जितना चाहे इस मंत्र का जाप कर सकता है। इस जाप के समय मां के चित्र के सामने दीप जरूर जलना चाहिए और बैठने का आसन उन या घास का होना चाहिए। साधक अपना चेहरा पूर्व में या उत्तर में रखे। आपने कहा कि इस मंत्र के जाप से व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिल सकता है। माता के चित्र के समक्ष संध्या अथवा रात्रि को 10 से 15 मिनट हवन अवश्य करना चाहिए। तंत्र साधना को लेकर फैली भ्रांतियों का जिक्र करते हुए बाबा ने कहा कि कुछ ऐसे लोग जिन्हें तंत्र विद्या का रत्ती भर भी ज्ञान नहीं है, वे ही इन्हें जिंदा रखे हुए है लेकिन सामान्य जन को इससे भयभीत होने की आवश्यकता नही है। मूठ मारना, तंत्र क्रिया से फूंक मारना और किसी व्यक्ति विशेष्ज्ञ का अनिष्ट करना संभव ही नहीं है ये सब लोगों की धार्मिक आस्थाओं को ठगने का प्रयास है। लोगों को इससे बचना चाहिए। एक प्रश्न के उत्तर में आपने कहा कि गुप्त और सार्वजनिक नवरात्रियों में केवल इतना भर अंतर है कि बाद की नवरात्रियों पर समारोह किए जाते है।

जलती चिता पर सेंकी रोटियां और भूने आलू


डॉ. अरूण जैन
कापालिक महाकाल भैरवानंद सरस्वती ने बीती रात चक्रतीर्थ श्मशान पर मां काली की अनूठी आराधना की। जागृत चिता के समक्ष मंत्रोच्चार पूजा, प्रसादी निर्माण, भोग अर्पण और उज्जैन सिंहस्थ के लिए शांतिपूर्ण माहौल की प्रार्थना माता से की गई। शव साधना का यह अनोखा दृष्य था। जिस समय बाबा श्मशान पर साधना करने के लिए पहुंचे, उसी दौरान एक शव लेकर कुछ लोग वहां आ गए। हालांकि बाबा ने उस शव पर साधना नहीं की, अलबत्ता प्रज्जवलित हो रही एक चिता पर उन्होंने अपनी साधना प्रारंभ कर दी। लगभग 4 घंटे तक वे साधनारत रहे । इस दौरान चक्रतीर्थ पर कई लोग एकत्रित हो गए।
शाम 6 बजे:  कापालिक बाबा अंगारेश्वर महादेव के दर्शन के पश्चात अपनी कार में बैठे और अचानक आदेश हुवा चक्रतीर्थ श्मशान पर चलो। 15 मिनिट में चक्रतीर्थ के उपरी भाग पर स्थित शिव मंदिर जा पहुंचे। फिर आदेश हुवा-दिए, तेल, गेंहू का आटा, आलू, मसाले, फूल और अन्य सामग्री मंगाओ। तुरन्त पालन हुवा। समझ नही आ रहा था कि इन सबका क्या होगा ?
संध्या 7 बजे: बाबा एक खाली चिता स्थल पर जा बैठे। संकेत पर उनके शरीर से सारे वस्त्र उतारे गए। निर्वस्त्र कापालिक महाकाल ध्यान की मुद्रा में आलथी-पालथी मारकर बैठे। ठीक सामने एक चिता जागृत थी। इशारे से जागृत चिता की भस्म उठाकर शिष्यों ने बाबा के पूरे शरीर पर मली। और फिर शुरू हो गई मंत्रोच्चार के साथ मां काली की आराधना। मरघट में मंत्रों की आवाज अंधेरे में गूंज रही थी और सामने चिता धूं-धूं कर प्रज्जवलित थी। बाबा ने मंत्रोच्चार के साथ जल छिड़काव, मंदिरा छिड़काव किया। इसके पूर्व पांच दीप प्रज्जवलित कर चिता के चारों कोनों पर रख दिए गए थे। एक दीप मानव खोपड़ी के समक्ष प्रज्ज्वलित था। एक घंटे से अधिक समय तक जागृत चिता पर साधना चलती रही
रात्रि 8.30 बजे: आराधना पूरी कर बाबा ने जागृत चिता में, लाए हुए आलू भूनने के निर्देश दिए। चिता के अंगारो में आलू बूर दिए गए। फिर आटा गूंथने और टिक्कड़ बनाने के आदेश हुए। शिष्यों ने जैसे ही टिक्कड़ तैयार किए उन्हें जलती चिता पर सेंकने को कहा गया। आधे घंटे बाद आलू भुन चुके थे, टिक्कड सिक चुके थे। आलू छीलकर चूरा कर मसाला मिलाया गया और टिक्कड़ के साथ पूजा की थाल में रखकर मां काली का स्मरण करते हुए बाबा ने जागृत चिता में आहूति डाली। मां को भोग लगाने के बाद वही प्रसादी उपस्थित उन सैकड़ो भक्तों को भी दी गई जो पूजा आराधना देखने के लिए अब तक एकत्र हो चुके थे।
रात्रि 10.00 बजे: बाबा ने जागृत चिता के समक्ष स्वयं प्रसादी ग्रहण की। उसके बाद जागृत चिता की विधिवत परिक्रमा की गई और उसके समक्ष शीश नवाकर मां काली से सिंहस्थ में सुख-शांति की प्रार्थना की। आराधना पूरी होने पर बाबा ने अपने काले वस्त्र पुनः धारण किए और चक्रतीर्थ से वापस रवाना हो गए।

एक वो सिंहस्थ था, एक यह सिंहस्थ है

डॉ. अरूण जैन

वैसे तो देश के चार शहरों में प्रत्येक 12 वर्ष बाद कुंभ/सिंहस्थ होता है। लेकिन उज्जैन का यह अकेला महापर्व है जो सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है। यहां मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरू होने से (अप्रैल-मई) शिप्रा नदी पर कुंभ का योग बनता है। शेष तीनो स्थानों पर ये महापर्व कुंभ कहलाते हैं। हरिद्वार में मेष राशि में सूर्य और कुंभ राशि में गुरू आने पर (अप्रैल-मई) गंगा नदी तट पर कुंभ होता है। इलाहाबाद में मकर राशि में सूर्य और वृषभ राशि में गुरू (जनवरी-फरवरी) होने पर गंगा-जमुना-सरस्वती संगम पर कुंभ महापर्व होता है। नासिक में सिंह राशि में गुरू-चन्द्रमा और सूर्य (जुलाई-अगस्त) आने पर गोदावरी नदी तट पर कुंभ होता है। उज्जैन सिंहस्थ पर दस पुण्यप्रद योग भी बनते हैं, जो और कहीं नही बनते-अवंतिका नगरी, वैशाख मास, शुक्ल पक्ष, सिंह राशि में गुरू, मेष राशि में सूर्य, तुला राशि में चंद्र, स्वाति नक्षत्र, पूर्णिमा तिथि, व्यतिपात योग और सोमवार ।
प्राचीन उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार सन् 1732 में उज्जैन में पहला सिंहस्थ हुवा था, जब मराठों का मालवा क्षेत्र पर अधिपत्य था। प्रत्येक सिंहस्थ, कुंभों की तरह किसी न किसी कारण के लिए जाना जाता है। वैसे मुझे 1968 और 1969 के, दो वर्ष लगातार हुए सिंहस्थ से महापर्व का आंखो देखा ज्ञान है। ग्रह योग और तिथियों को लेकर शैव और वैष्णव अखाड़ो में विवाद की स्थिति बन गई थी। वैष्णव अखाड़ों ने सन् 1968 मंे सिंहस्थ मनाया। शैव अखाड़ो ने आने से इंकार कर दया। 1969 में शैव अखाड़ो में सिंहस्थ महापर्व मनाया। 1968 के महापर्व पर 48.50 लाख रूपए व्यय हुए और 69 के सिंहस्थ पर 20 लाख रूपए मंजूर हुए थे। सन् 1980 का सिंहस्थ कई मानों में उल्लेखनीय था। एक तो उज्जैन नया-नया संभागीय मुख्यालय बना था और संभागआयुक्त पद पर संतोष कुमार शर्मा जैसे आयएएस अधिकारी आये थे, जो प्रशासनिक कम, धार्मिक ज्यादा थे। उन्होने शहर में पौराणिक नामों की कई कॉलोनियां विकसित करवाई। उस सिंहस्थ में रिकांडो कंपनी द्वारा बनाई गई सड़के अगले दो सिहंस्थ तक याद की जाती रही, जिन पर पेट का पानी तक नहीं हिलता था। इस सिंहस्थ का सर्वाधिक काला पक्ष था मंगलनाथ क्षेत्र में संतों का आपसी विवाद। संतो ने अंकपात चौराहे पर प्रदर्शन किया। विवाद बढने पर पुलिस ने डंडे चलाए और बैरागी संतों को गिरफ्तार कर भेरूगढ़ जेल भेज दिया। आग की तरह खबर दिल्ली पहुंची और तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री ज्ञानी जेलसिंह आनन-फानन में विशेष वायुयान से उज्जैन पहुंचे। सभी संतों को छुड़वाया गया और ज्ञानीजी ने उनसे प्रत्यक्ष जाकर क्षमा याचना की, तब मामला शांत हुवा। इसके पहले और बाद में कभी सिंहस्थ में ऐसी स्थिति निर्मित नही हुई। तीन शाही स्नानों को लेकर शैव और वैष्णव अखाड़ों के मध्य एक और विवाद हुवा था, पर वरिष्ठ धर्माचार्यों ने उसे सुलझा लिया। इस महापर्व का उजला पक्ष था स्थायी प्रकृति के सर्वाधिक कार्य होना। 10 करोड़ में से 9 करोड़ रूपए इन कामों पर खर्च हुए जिसमें माधवनगर ओवरब्रिज का 12 फीट चौड़ीकरण, बड़नगर रपट का 10 फीट चौड़ीकरण, गंभीर जल प्रदाय योजना, जीवाजीगंज अस्पताल, रिकांडो की सड़के और खान नदी प्रदूषण पर नियंत्रण। सन् 1992 का सिंहस्थ शताब्दी का अंतिम सिंहस्थ था। मेला क्षेत्र दुगुना हो गया। 100 करोड़ रूपए से भी ज्यादा खर्चा सरकार ने किया। स्थायी प्रकृति के काफी काम हुए। भूमि आवण्टन, समतलीकरण और जन सुविधा केन्द्र व्यवस्थित न होने से विवाद हुए। अंतिम शाही स्नान के दूसरे ही दिन अखाड़ों के नलों में पानी बंद हो गया, शौचालय उखाड़े जाने लगे। दूध का वितरण बंद हो गया। अग्नि अखाड़े के पीठाधीश्वर प्रकाशानंद जी के शिविर में बम मिला, पर इन सब विवादों पर प्रशासन ने सूझबूझ से नियंत्रण कर लिया। इस महापर्व पर सबसे बड़ी भद्द सरकार की हुई, संत आसाराम को लेकर। ग्वालियर राज्य की महारानी रही श्रीमती विजयाराजे सिंधिया सिंहस्थ समिति की अध्यक्ष थी। समापन पर संतों के सम्मान में आसाराम को मंच पर बिठा दिया गया। सारे अखाड़े उन्हे संत मानने पर उखड़कर मंच से उतर गए। श्रीमती सिंधिया दौड़कर रोते हुए मंच से उतरी और संतों से हाथ जोड़कर माफी मांगी। आसाराम को मंच से उतारकर वापस भेजने के बाद संत शांत हुए। इस महापर्व में हुई दो आगजनी में ढाई करोड़ की संपत्ति नष्ट हो गई। सन् 2004 के सिंहस्थ की शुरूआती तैयारी कांग्रेस सरकार ने दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री रहते की, 217 करोड़ रूपए स्वीकृत हुए। आरोपित है कि उन्होने पूरे मेला क्षेत्र को लिंटरलेंड नामक बहुराष्ट्रीय कंपनी को 7 करोड़ रूपए में बेच दिया और एक पुस्तक लिखने का अनुबंध भी एक करोड़ रूपए में विदेशी प्रकाशक हेडन से कर लिया। लेकिन सिंहस्थ प्रारंभ होने के पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा अस्तित्व में आ गई और उमाश्री भारती ने मुख्यमंत्री बनकर महापर्व करवाया। सारे विदेशी अनुबंध निरस्त किए गए। उमाश्री भारती के शासन ने दो गंभीर चूकें कर दी। महापर्व के तीन माह पूर्व संड़क चौड़ीकरण का अध्याय खोल दिया गया। शहर धूल धूसरित हो गया। ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास और पद्मभूषण सूर्यनारायण व्यास के मकान के हिस्से भी तोड़े गए। दूसरे चामुंडा माता चौराहे की एक मस्जिद पुलिस और प्रशासन नही हटा पाया। विरोध प्रदर्शन और पत्थरबाजी में आईजी सरबजीतसिंह घायल हुए, शहर कर्फ्यू के आगोश में चला गया। पहली बार सिंहस्थ का राजनीतिकरण हुवा। संतों ने ही संतों को शिप्रा स्नान से वंचित कर दिया। मेला प्रशासन के कई आवण्टन अखाड़ा परिषद ने निरस्त कर दिए। मुख्यमंत्री भी परिषद की गोद में बैठ गई। 40 खालसाओं के पांच हजार संत शाही स्नान के एक दिन पूर्व उज्जैन छोड़ गए। इसके पूर्व कलेक्टर राजेश राजौरा की संतों द्वारा मारपीट की घटना भी हुई।

विदेशी पूंजी का स्वागत है, पर सतर्कता बरतना जरूरी

डॉ. अरूण जैन
विदेशी पूंजी के सीधे निवेश पर भारत सरकार ने बहुत साहसिक निर्णय किया है। स्वयं भाजपा जिन क्षेत्रों में विदेशी पूंजी का डटकर विरोध करती रही है, सरकार ने लगभग वे सारे क्षेत्र खोल दिए हैं। कई क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें विदेशी कंपनियां शत प्रतिशत पैसा लगा सकती हैं और उसके लिए उन्हें रिजर्व बैंक की अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि भारतीय कंपनियों का जो अरबों-खरबों रुपया विदेशी बैंकों में दबा पड़ा है, अब देश के काम आएगा। अभी स्थिति यह है कि देश में विदेशी पूंजी लगाने वालों को भी नौकरशाही जाल काटने में बड़ी ताकत लगानी पड़ती थी और ऊपर से रिश्वत अलग देनी पड़ती थी। विश्व-बैंक की रपट का कहना है कि इस समय चीन और अमेरिका से भी ज्यादा विदेशी पूंजी भारत में आने को तैयार बैठी है। 2015-16 में 55.5 बिलियन डालर का निवेश भारत में हो चुका है। यदि अगले दो-तीन वर्षों में 5 ट्रिलियन डालर तक की पूंजी भारत आ जाए तो भारत का नक्शा ही बदल जाएगा। हर क्षेत्र में लाखों छोटे-बड़े रोजगार पैदा हो जाएंगे। भारत में बनी चीजें सस्ती पड़ेंगी और वे एशिया-अफ्रीका ही नहीं, यूरोप और अमेरिका के बाजारों में भी छा जाएंगी। यदि आधुनिकतम हथियार भारत में बनने लगें तो भारत का निर्यात तो बढ़ेगा ही, भारत कई नई मौलिक तकनीकों का स्वामी भी बन जाएगा। लेकिन विदेशी पूंजी या बड़ी पूंजी अपने साथ कई बुराइयां भी ले आती है। हम जरा चीन से कुछ सीखें। पिछले 25 साल में विदेशी पूंजी ने चीन के चरित्र को ही बदल दिया। उसे एक उपभोक्तावादी समाज बना दिया। शांघाई और पेइचिंग की चमक-दमक लंदन और न्यूयार्क से ज्यादा हो गई है लेकिन लोग गांवों में भूखे मरते हैं, गंदगी के नरक में सड़ रहे हैं और अपराधों के मारे बड़े-बड़े शहर कांप रहे हैं। अब वहां विदेशी पूंजी भी ठिठक गई है। वह आपका भला करने नहीं अपना फायदा करने आती है। यदि हमारे नेता भी चीन की-सी चकाचौंध में फंस गए तो भारत का बेड़ा गर्क होने से कोई रोक नहीं सकता। विदेशी पूंजी का स्वागत करने वाली सरकार को 'दाम बांधोÓ नीति बनानी होगी, रोजगार नीति लागू करनी होगी, मुनाफे की सीमा बांधनी होगी और हथियार-निर्माण पर विशेष निगरानी रखनी होगी। भारतीय किसानों, मजदूरों और कारखानेदारों का विशेष ध्यान रखना होगा। यदि इन सब बातों का ध्यान नहीं रखा गया और हमारे पांव उखड़ गए तो भारतीय संस्कृति और जीवन-पद्धति की हानि काफी गहरी होगी।

 शिवराज सरकार के मंत्रीमंडल का विस्तार लगभग तय


डॉ. अरूण जैन
सुत्रो के हवाले से खबर 27 जुन को मप्र शिवराज सरकार के मंत्री मंडल का विस्तार लगभग तय , एंव सुत्रो को मिली जानकारी के अनुसार इन चार विधायको का तो मंत्री बनना लगभग तय अंतिम मुहर  लगना बाकी । एंव सुत्रो के मुताबिक इनके मंत्री पद भी लगभग तय । 1) मल्हारगढ विधानसभा से पुर्व मंत्री जगदिश देवडा , को गृहमंत्री बनाया जा सकता है  2)नारेला विधानसभा से विश्वास सांरग  को जैल मंत्री बनाया जा सकता है  3 ) इंदौर2 विधानसभा से रमेश मेंदौला को श्रम मंत्री बनाया जा सकता है  4) भोपाल से रामेश्वर शर्मा  को राज्यमंत्री बनाया जा सकता है । इन पर लग सकती है अंतिम मुहर । मध्यप्रदेश मंत्री मंडल विस्तार भ्रष्ट मंत्रियों के बदलेगे विभाग...मध्यप्रदेश मे मंत्री मंडल के विस्तार की चर्चाओं की पुष्टि होते ही जहां दावेदार की सक्रीयता बढ गई है।वही वर्षों से सरकार मे जमे कुछ मंत्रियों को हटाकर संघठन के काम मे लगाया जा सकता है। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे कुछ मंत्रियों के विभागों मे फेरबदल किए जाने के संकेत है। शिवराज सरकार के इस विस्तार को मंत्री मंडल का 2018 चुनाव तक का अंतिम विस्तार माना जा रहा है।वर्तमान मंत्री मंडल मे एक दशक से ज्यादा समय से सरकार मे शामिल रहे है उनकी बायोग्राफी प्रदेश का खूफिया तंत्र लिखने मे जुटा है।सूत्र बताते है कि एक मंत्री अपने विभागों को बचाने की जुगत लगाने मे जुटे है वे अपने को मुख्यमंत्री के पसंदीदा मंत्री मे गिनवा कर खुद ही सौशल मीडिया मे संक्रीय बार लिखवा भी रहे है अच्छे प्रोफारमेंस के कारण विभागों मे फेरबदल संभव है लगातार चौथी बार प्रदेश की सरकार बनाने के लिए भाजपा संघठन को सत्ता विरोधी लहर चिंता सता रही है।प्रदेश संघठन उन मंत्रियों को लेकर उहापोह की स्थिति मे है जो सरकार मे मठाधीश बन चुके है।एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार कुछ मंत्री अपना क्षेत्र सुरक्षित कर अपने जिले मे केवल हम जीते की बिसात बिछाने मे जुटे है।सूत्रों की माने तो चंबल क्षेत्र से नरोत्तम मिश्रा को संसदीय कार्य मे सफल माना जा रहा है वही स्वास्थ्य विभाग बदनामी झेल रहा है।मालवा मे दीपक जोशी का कद बढाया जा रहा है।बुन्देलखंड मे कुसुम मेहदेले,जयंत मलैया,गोपाल भार्गव,भूपेन्द्र सिंह बडे चेहरे है।इन मंत्रियों मे मलैया और भार्गव के पास भारी भरकम विभाग है।मलैया के विभाग का जनता से सीधा जुडाव नही है ऐसी स्थिति मे पंचायत, ग्रामीण विकास, सहकारिता, समाजिक न्याय यह विभाग संघठन और सरकार की नजरों मे प्रमुखता से है।पंचायत और सहकारिता विभाग मे हुए घौटालो की चर्चाए दिल्ली के गलियारों मे भी चर्चित है। 

मोदी की सफल अमेरिकी यात्रा से चीन को चिंतित होना ही था

डॉ. अरूण जैन
अमेरिका के लिए नए संबंधों की वर्णमाला नरेंद्र मोदी ने रची है। यह वर्णमाला है भारत के हित साधने के लिए अंतरराष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन जिसे देखकर चीन का चिन्तित होना स्वाभाविक ही था। अमेरिकी संसद में भारतीय प्रधानमंत्री का शानदार संबोधन और अमेरिकी सांसदों को उनके भाषण के हर मिनट पर जोरदार करतल ध्वनि से स्वागत हर भारतीय के लिए सुखद, गर्वीली अनुभूति का कारण होना चाहिए। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और विपक्षी तेवर के विरोधी पहलू ऐसे मौकों पर भूल जाने चाहिए। खाड़ी के देशों और सऊदी अरब के सुन्नी क्षेत्रों के बाद शिया इरान की सफल यात्रा के भारत के प्रतिद्वंद्वी देशों की नींद उड़ा दी है। वे मानते थे कि हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा को मानने वाले जब सत्ता में आएंगे तो उनका न तो स्वदेश के विविध मतावलम्बी समुदायों के साथ सामंजस्य बैठेगा और न ही अतिरेकी तथा तीव्र वैचारिक भिन्नताओं वाले देशों से पट पाएगी। मुस्लिम देश और नरेंद्र मोदी? तौबा ही मानिए। अमेरिकी तथा यूरोपीय देशों के साथ मोदी का तालमेल? कोई कारण ही नहीं कि दोनों साथ जम पाएं। लेकिन यह भारत का बदलता मिजाज और बढ़ती धमक का ही नतीजा है कि न केवल लाहौर अचानक मोदी के आने से हक्का-बक्का रह गया बल्कि सऊदी अरब में भारतीयों ने भारत माता की जय के नारे लगाकर यह अंदाज बता दिया। अब अमेरिकी संसद में यदि वहां के सांसद चालीस बार तालियों से भारत के प्रधानमंत्री का स्वागत करते हैं तो यह मामला भाजपा-सपा-जद-कांग्रेस का नहीं बल्कि हिंदुस्तान को हो जाता है। दिलचस्प रहा चीन का खीझाकर बयान देना और भारत-अमेरिकी मैत्री के नए आयामों पर नकारात्मक बयान देना। क्यों? क्योंकि यह वह सहन नहीं कर पाया कि दो बड़े लोकतांत्रिक देश परमाणु शक्ति के क्षेत्र में सहयोग के लिए वचनबद्ध होकर चीन की परमाणु क्षेत्र में बढ़त को कम कर रहे हैं। परमाणु आपूर्ति समूल (एनएसजी) की सदस्यता भारत को मिले और वह विश्व की जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में उभरे यह चीन कतई नहीं चाहता। इसके पहले लखवी और मसूद अजहर के मामलों में भी चीन ने भारत का साथ नहीं दिया गया था विश्व-कुख्यात आतंकवादियों को कूटनीतिक रक्षा कवच प्रदान किया। ईरान के चाबहार बंदरगाह को विकसित करने, अफगानिस्तान की संसद के नए भवन और सलमा बांध के पूरे होने पर किए गए शानदार उद्घाटन का भी चीन और पाकिस्तान में दर्द भरा असर हुआ। भारतीय उपमहाद्वीप, जिसे अब सार्क या दक्षेस कहा जाने लगा है। चीन और पाकिस्तान भारत का बढ़ते देखना ही नहीं चाहते। जबकि इस क्षेत्र के साथ-साथ पूर्वी एशिया, दक्षिणपूर्वी एशिया एवं सुदूर पूर्व में भारत एक मैत्रीपूर्ण नेतृत्व की स्थिति रखता है। इसे अमेरिका, आस्ट्रेलियां, जापान, सिंगापुर, फिलीपीन्स, वियतनाम जैसे देश पूरी तरह समर्थन देते हैं जबकि चीन की प्रसारवादी नीतियों से उन्हें सदा आशंका रहती है। पिछले पखवाड़े शंगरीला संवाद में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर के भाषण तथा वियतनाम को ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र देने की पेशकश ने पूर्वी देशों को भारत की बढ़ती समुद्रीय आकांक्षाओं से आश्वस्त किया है। इस सभी देशों के साथ भारत के सैकड़ों वर्ष पुराने सांस्कृतिक सभ्यतामूलक मैत्री संबंध रहे हैं और इस कारण वहां के नेतृत्व और समाज में भारत के प्रति एक सहज आत्मीयता का भाव देखने को मिलता है। कांग्रेस के दो प्रधानमंत्रियों श्री नरसिंहाराव तथा डा. मनमोहन सिंह ने इसी वातावरण का भारत का हित में उपयोग किया तथा लुक-ईस्ट पालिसी अर्थात पूर्वोन्मुखी नीति का श्रेय उनको ही देना होगा। यह विडंबना ही है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने के बावजूद न तो भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता और वीटो शक्ति संपन्न राष्ट्रसंघ में स्थिति मिली और न ही परमाणु आपूर्ति समूह की सदस्यता सरलता से मिलती दिख रही है। जबकि चीन, जो दुनिया में परमाणु बम के भय का विस्तार करने वाला सबसे कुख्यात परमाणु प्रसारक देश है- दोनों स्थितियों का प्रभुत्व प्राप्त आक्रामक विदेश नीति का देश बना है। उसने ही पाकिस्तान, ईरान, अरब जैसे देशों को परमाणु तकनीक दी। उत्तरी कोरिया जैसे देश के सर्वाधिक निकट चीन ही माना जाता है और एशिया में अपनी हमलावर कूटनीति से उसने ऐसा वातावरण बना दिया है कि विश्लेषक मानने लगे हैं कि मध्य एशिया के तनाव अब पूर्वी एशिया के दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में स्थानांतरित हो रहे हैं। इस परिदृश्य में भारत का क्षेत्रीय शक्ति की धुरी बनना अपने लिए ही नहीं बल्कि आसपास के विश्व के लिए जरूरी है। यह अनिवार्य है कि भारत के राजनीतिक दल देश की मजबूती का एजेंडा जाति और निजी स्वार्थों की पूर्ति से बड़ा बने। पारिवारिक तथा अहंकार की निजी नेतृत्व केंद्रित राजनीति ने देश को बीस साल पीछे धकेल दिया। हममें सीना होना चाहिए कि मोदी की सफल विदेश नीति का गौरव मानने के साथ-साथ शिवराज सिंह चौहान, नीतिश कुमार, ममता और महबूबा की भी अच्छी नीतियों की प्रशंसा करें। दल और उनका रंग कोई भी हो, तिरंगे का मान और सम्मान बढ़े तो उसमें हर दल की इज्जत ही बढ़ती है। मोदी की सफल नीतियों, अमेरिका में मिला उनको सम्मान देश के लिए अच्छा ही मानना चाहिए। यह कह कर किसी का रूतबा कम नहीं होगा। परमाणु आपूर्ति समूह की सदस्यता का भारत के अनेकविध क्षेत्रों में व्यापक असर पड़ेगा। दवाओं के अनुसंधान के लिए आवश्यक सामग्री और उपकरण रक्षा निर्माण एवं चिकित्सा और संचार क्षेत्र में नवीनतम उपकरणों के आयात से बंधन हट जाएंगे और सामान्य गरीब लोगों की चिकित्सा एवं युवाओं के लिए नये कॅरियर विकल्प खुल जाएंगे। इसी कारण चीन भारत की बढ़त और इस नयी संभावना से परेशान है। जबकि भारत से किसी भी प्रकार के खतरे की आशंका होनी ही चाहिए। खतरा तो चीन से भारत को है इसलिए श्री नरेन्द्र मोदी की सफल अमेरिका यात्रा कई अर्थों के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा बहुत सार्थक रही

डॉ. अरूण जैन
अमेरिका-यात्रा सबसे अधिक सार्थक रही। कोरी भाषणबाजी और नौटंकी तो पिछले दो साल से चलती रही है। हालांकि इस छवि-निर्माण का भी कम महत्व नहीं है लेकिन अमेरिका के साथ घनिष्टता के जो बीज अटलबिहारी वाजपेयी सरकार ने बोए थे और मनमोहन सरकार के दिनों में जो अंकुरित हुए थे, वे अब पुष्पित और फलित हो रहे हैं। इस प्रक्रिया में मोदी के नौटंकीपूर्ण व्यक्तित्व का भी कुछ न कुछ योगदान जरूर है। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के साथ उनके व्यक्तिगत समीकरणों और हमारे विदेश सचिव जयशंकर (अमेरिका में रहे हमारे पूर्व राजदूत) के व्यक्तिगत संबंधों ने अमेरिकी नीति-निर्माताओं को मजबूर किया कि वे भारत के बारे में खुली घोषणा कर दें। तभी ओबामा ने कह दिया कि परमाणु सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत की सदस्यता का अमेरिका डटकर समर्थन करेगा। इसके अलावा जो ठोस उपलब्धि हुई है, वह यह कि 'प्रक्षेपास्त्र तकनीक नियंत्रण संगठनÓ (एमटीसीआर) की सदस्यता भी भारत को मिल गई है। बस उसकी औपचारिक घोषणा बाकी है। भारत की सदस्यता पर कुछ देशों ने आपत्ति की थी। उस आपत्ति को जताने की अंतिम तिथि 6 जून को पूरी हो गई है। 34 में से एक भी देश भारत के विरुद्ध नहीं गया। अब भारत को सर्वश्रेष्ठ मिसाइल और तकनीकों को खरीदने और अपने सुपरसोनिक क्रूज और ब्राह्मोज़ मिसाइल बेचने की सुविधा मिल जाएगी। जाहिर है कि यह सुविधा अमेरिकी समर्थन के बिना नहीं मिल सकती थी। इसके साथ-साथ 2008 में हुआ भारत-अमेरिकी परमाणु-सौदा अधर में लटका हुआ था। अब उसके तहत आंध्र में छह परमाणु-भट्टियों पर काम शुरु हो जाएगा। जहां तक 'परमाणु सप्लायर्स ग्रुपÓ की सदस्यता का सवाल है, अब सिर्फ चीन का अड़ंगा बना रह सकता है लेकिन अब चीन ने भी मीठे-मीठे संकेत भेजने शुरू कर दिए हैं।  चीन को लगने लगा है कि ओबामा की प्रारंभिक चीनीपरस्त नीति का समापन भारतपरस्ती से होने वाला है। अब चीन भी एनएसजी में कितने दिन अडंगा लगाएगा? मोदी और ओबामा ने जलवायु संबंधी पेरिस समझौते पर सहमति व्यक्त की है। सैन्य-सुविधाओं के लिए सहयोग समझौता भी तैयार है। हमारे विदेश मंत्रालय के अफसरों ने सही ज़मीन तैयार की है। वे बधाई के पात्र हैं लेकिन मोदी नेता हैं। उन्हें बोलने का शौक है। उन्हें ध्यान रखना होगा कि वे अपने मुंह से कोई ऐसी बात न बोलें, जिससे चीन और पाकिस्तान के इन ताजा घावों पर नमक छिड़का जाए। वे तो पहले से ही परेशान हैं। यदि चीन हमें अब चीनी परोस रहा है तो मिश्री घोलने में हमारा क्या बिगड़ रहा है?

नवविवाहितों के घूमने के लिए ऊटी बढिय़ा जगह


डॉ. अरूण जैन
दक्षिण भारत में ऊटी से सुंदर कोई पर्यटन स्थल नहीं है। इस सुरम्य स्थल से बहुत सी ऐतिहासिक कथाएं भी जुड़ी हैं। ऊटी पहुंचने के लिए मेट्टावलयम से छोटी पहाड़ी रेल से जाना चाहिए जोकि पहाड़ों के बीच से होती हुई गुजरती है। यहां पहाड़ी क्षेत्रों में चलने वाली खिलौना गाड़ी दिखाई नहीं देगी। ऊटी भारत का एकमात्र मीटर गेज पहाड़ी रेल मार्ग है। मद्रास के तत्कालीन राज्यपाल लार्ड वैनलॉक की देखरेख में स्विस तकनीक द्वारा इस रेल मार्ग का निर्माण कराया गया था। ऊटी का वनस्पति उद्यान पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है। इस वनस्पति उद्यान की नींव क्यू गार्डन के श्री जॉनसन ने रखी थी। वह अपने साथ इंग्लैण्ड से नाव में जितनी भी किस्मों व जातियों के पेड़−पौधे ला सकते थे, लाये व इस उद्यान को हर प्रकार से विकसित किया। यहां की लाल मिट्टी अत्यंत समृद्ध है तभी तो यहां किसी भी किस्म या जाति का पौधा पनप जाता है साथ ही विभिन्न प्रकार के फल-फूल भी पैदा किए जा सकते हैं। बीते दिनों की यादें ऊटी क्लब में जीवंत हो उठती हैं। ऊटी क्लब में कदम रखना विक्टोरियन इंग्लैण्ड की टाइम मशीन में सवार होने की भांति है। ताश खेलने की मेजों से सजा रमी रूम, आखेट ट्राफियों से भरा बार, ऊटी के जंगलों में शिकार की तस्वीरों से सुसज्जित कक्ष और एकमात्र बिलिर्यड कक्ष जहां पर स्नूकर खेलने के नियम लिखे हुए हैं। यही नहीं यहां की गतिविधियों पर निगाह रखती सूलीवन की तस्वीर भी यहीं पर मौजूद है। दक्कन में दोड्डा-बेट्टा सबसे ऊंची चोटी है जिसकी ऊंचाई 8000 फुट है। यह स्थान शिकार के लिए आरंभ बिंदु है। किसी समय परी कथाओं की तरह यह स्थान वाइल्ड लाइफ सेन्चुरी था लेकिन शिकारियों की बढ़ती संख्या ने सब खत्म कर दिया। अब यहां कुछ भी नहीं है। दोड्डा-बेट्टा ऊटी से 10 किलोमीटर दूर है। नवविवाहितों के घूमने के लिए ऊटी बढिय़ा जगह है। यदि आप ऑफ सीजन अर्थात सर्दियों में पहाड़ पर जाना पसंद करते हैं तो भी यहां का प्राकृतिक सौंदर्य अलग ही सुरम्यता व आकर्षण लिए हुए दिखाई देगा। सर्दियों में यहां भीड़-भाड़, शोरगुल व पर्यटकों का आना भी कम होता है। दूसरे उस मौसम में प्रकृति का छिपा हुआ सौंदर्य वादियों में अलग ही छटा बिखेरता हुआ दिखाई देता है। चारों ओर हरीतिमा ही हरीतिमा और विभिन्न प्रकार के देशी−विदेशी पेड़-पौधे पर्यटकों को मुग्ध कर देते हैं और यदि आप यहां थोड़ी देर के लिए रुकेंगे तो हर झाड़ी, हर पेड़ में से पहाड़ी बुलबुल की मीठी−मीठी आवाज आपको सुनाई देगी। शायद ही ऐसा कोई पेड़ होगा जहां कि बुलबुल का जोड़ा न बैठा हो। ऊटी आने के लिए निकटतम हवाई अड्डा कोयम्बटूर है। यहां से बस, रेल और कार द्वारा ऊटी पहुंचा जा सकता है। ऊटी रेल मार्ग से भी आया जा सकता है यदि आप यहां बस से आना चाहें तो कोयम्बटूर, मैसूर, बैंगलोर और आसपास के दूसरे शहरों से बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं।

आस्ट्रेलियाई शहर गोल्ड कोस्ट में पर्यटकों के लिए बहुत कुछ

डॉ. अरूण जैन
आस्ट्रेलिया का गोल्ड कोस्ट शहर एक मायने में अन्य शहरों से अलग है क्योंकि यहां मनोरंजन, खरीदारी तथा खेलकूद के साधन अन्य जगहों की अपेक्षा अधिक हैं। आस्ट्रेलिया के अन्य शहरों के मुकाबले यहां पर होटलों तथा रेस्तराओं की संख्या भी ज्यादा है। गोल्ड कोस्ट की सैर के दौरान सबसे पहले आपको लिए चलते हैं सर्फर्स पैराडाइज पर। यह गोल्ड कोस्ट की सबसे प्रसिद्ध जगह है। यहां के समुद्र तट पर उठती विशालकाय लहरों पर सर्फिंग करते सैलानियों की संख्या को देखकर ही आप इस जगह की लोकप्रियता का अंदाजा लगा सकते हैं। गोल्ड कोस्ट उत्तर में साउथपोर्ट से लेकर दक्षिण में कूलंगाटा तक फैला हुआ एक विशाल समुद्रतट है जिसके किनारे-किनारे सैलानियों के मनोरंजन के लिए विभिन्न साधन जुटाए गए हैं। इस क्षेत्र में अवाकाडो बहुत होते हैं इसलिए इसे अवाकाडो लैंड भी कहा जाता है। यहां से 6 किलोमीटर दूर करुंबिन नामक खाड़ी है जहां का राष्ट्रीय उद्यान अपने वन्य जीवों के लिए जग प्रसिद्ध है। साउथपोर्ट पर्यटन के साथ ही व्यावसायिक केंद्र भी है। यह स्थान अपने वाटर पार्क तथा वाटर स्लाइड्स के लिए प्रसिद्ध है। साउथपोर्ट के उत्तर में 'सी वर्ल्डÓ स्थित है जोकि आस्ट्रेलिया का सबसे विशाल मैरीन पार्क है। यहां का डाल्फिन एवं सी लायन शो भी देखने लायक है। यहां स्थित बंदरगाह से आप नाव द्वारा ड्रीम वर्ल्ड व कोआला पार्क आदि मनोरंजक स्थानों पर जा सकते हैं। सर्फर्स पैराडाइज के ब्राड बीच नामक स्थान पर कई छोटी-बड़ी दुकानें तथा होटल हैं। यहां से आप मोनो रेल द्वारा जुपीटर्स पहुंच सकते हैं जो आस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा कैसिनो है। इसके पास ही एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ वार्नर ब्रदर्स का मूवी वर्ल्ड है जो देखने में अमेरिका के यूनिवर्सल स्टूडियो की एक अनुकृति जैसा ही लगता है। ड्रीम वर्ल्ड में दुनिया की सबसे ऊंची, खतरनाक तथा रोमांचक राइड बनाई गई है। एक ट्राली में बैठ कर आप 38 मंजिला इमारत को देख सकते हैं। 30 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह थीम पार्क डिजनीलैंड की तरह के विभिन्न आकर्षणों से भरा पड़ा है। सनशाइन कोस्ट भी दर्शनीय जगह है। अनेक सैलानी गोल्ड कोस्ट की बजाय सनशाइन कोस्ट में ही ठहरना पसंद करते हैं क्योंकि यहां पर भीड़भाड़ व शोरगुल कम है। नूसा यहां का प्रसिद्ध स्थल है यहां अब सर्फर्स पैराडाइज जैसे ऊंचे-ऊंचे होटलों का निर्माण हो रहा है। सनशाइन कोस्ट में प्रसिद्ध दैत्याकार अनानास भी हैं जिसे लोग दूर-दूर से देखने आते हैं। गोल्ड कोस्ट तथा सनशाइन कोस्ट दुनिया के उन गिने-चुने स्थानों में से हैं जहां पहुंच कर आप स्वयं को प्रकृति के बहुत निकट पाएंगे और यहां आकर निश्चय ही आप जमाने भर की भागदौड़ व शोरगुल को भूलकर प्रकृति के सौंदर्य का आनंद लेंगे।

तो क्या तुष्टीकरण की राजनीति इतिहास हो गई?


डॉ. अरूण जैन
भारतीय राजनीति में नये चाणक्य बन कर उभर रहे प्रशांत किशोर (पीके) साबित करना चाहते हैं कि वो किसी को भी चंद्रगुप्त बना सकते हैं। लोकसभा चुनाव में लुढ़क कर 44 सीटों के निचले स्तर पर पहुंची कांग्रेस, पांच राज्यों में चुनावी हार के बाद आजाद भारत में सबसे ज्यादा हताशा के दौर से गुजर रही है। उसी हताशा के वक्त, सोशल मीडीया पर कांग्रेस मुक्त भारत के हल्ला बोल ने उसे अंदर तक हिला रखा है। ऐसे में खुद को किसी विचारधारा में न बांधकर नए नए चंद्रगुप्त पैदा करने का दांव खेल रहे पीके यह साबित करना चाहते हैं कि वो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जिंदा कर फिर से उसका पुराना अतीत लौटा सकते हैं। कांग्रेस पीके के दो सुझाव, राहुल या प्रियंका की अगुआई में उत्तर प्रदेश का चुनाव लडऩे की बात तो सिरे से खारिज कर चुकी है। लेकिन मुलसमानों की राजनीति फिलहाल ठंढे बस्ते में डाल, ब्राह्मणवाद की राजनीति पर लोटने के पीके के सुझाव पर पार्टी में गहन चर्चा हो रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब मोदी का कद बढऩे लगा तो राजनेताओं के सिर से स्कल टोपी और इफ्तार पार्टी नदारद हो गए। पिछले दो साल में किसी नेता की ऐसी तस्वीर या इफ्तार पार्टी आपको नहीं दिखी होगी। मोदी के बाद, संघ मुक्त भारत की बात करने वाले नीतीश भी बनारस घाट पर तृपुंड के साथ फोटो सेशन करते देखे गए। यह सब भारतीय राजनीति में पहली बार हुआ। न कभी कोई प्रधानमंत्री इस रूप में दिखा न किसी राज्य का मुखिया या बड़ा नेता। भारतीय राजनीति में यह एक बड़ा बदलाव है। जो राजनीतिक दल खुलकर मुसलिम परस्त राजनीति कर रहे हैं मुसलमान लगातार चुनाव के समय उससे दूर भाग रहे हैं। दरअसल वो भाजपा को उम्मीद भरी नजर से देख रहे हैं। दूसरी ओर लोकसभा चुनाव से कुछ ही माह पहले प्राकृतिक संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक कहने वाली देश की सबसे पुरानी पार्टी किसी भी हालत में मुसलिम परस्त दिखना नहीं चाहती है।