Monday 6 July 2015

दीव में दिखता है पुर्तगाली सभ्यता का प्रभाव 


डॉ. अरूण जैन
यह स्थान वर्ष 1961 से पहले पुर्तगाली शासन के अधीन था तथा गोवा और दमन के साथ ही इसे स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। ठंडी समुद्री हवा के झोकों तथा प्रदूषण रहित वातावरण के कारण यहां आकर सैलानियों को काफी राहत महसूस होती है। लंबे विदेशी शासन के कारण दीव के भवनों, किलों, भाषा व संस्कृति तथा जीवनशैली पर पुर्तगाली सभ्यता का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। यहां गुजराती, हिन्दी, अंग्रेजी तथा पुर्तगाली भाषाएं बोली व समझी जाती हैं। यहां के निवासियों को फूलों से बेहद लगाव है इसलिए लगभग हर मकान में फूलों के पौधे आपको अवश्य देखने को मिलेंगे। दीव का प्रमुख आकर्षण यहां का किला है जोकि लगभग 5.7 हेक्टेयर क्षेत्र में बना हुआ है और सागर के अंदर समाया हुआ प्रतीत होता है। इस किले का निर्माण वर्ष 1535−41 के बीच में गुजरात के सुलतान बहादुरशाह व पुर्तगालियों द्वारा किया गया था। किले के बीच में पुर्तगाली योद्धा डाम नूनो डी कुन्हा की कांसे की मूर्ति भी बनी हुई है। यहां एक प्रकाश स्तंभ भी बना हुआ है जहां से पूरे दीव का नजारा दिखता है। प्रकाश स्तंभ से आवाज देने पर उसकी प्रतिध्वनि भी सुनाई देती है। पानीकोट का दुर्ग पत्थर की विशाल शिलाओं से बना हुआ है। यह दुर्ग एक समुद्री जहाज के आकार का नजर आता है। इस सुंदर दुर्ग तक पहुंचने के लिए नाव अथवा मोटरबोट की सहायता लेनी पड़ती है क्योंकि यह खाड़ी के मुहाने पर तट से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दुर्ग के बीचोंबीच एक गिरजाघर व प्रकाश स्तंभ भी है। आप सेंट पाल चर्च भी देखने जा सकते हैं। वर्ष 1610 में बनी यह चर्च धार्मिक और ऐतिहासिक, दोनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण है। आप दीव घूमने आए ही हैं तो नगोआ बीच जरूर जाएं। इस बीच को भारत के सुंदरतम तटों में से एक माना जाता है। इसका आकार घोड़े की नाल के समान है, जिस पर सुनहरी रेत बिखरी हुई है। इसकी लंबाई दो किलोमीटर है तथा रहने के लिए यहां तंबू लगाने की सुविधा भी है। सनसेट प्वाइंट सागर तट की गरजती लहरों के बीच एक पहाड़ी पर स्थित है। यहां पर एक उद्यान और ओपन एअर थियेटर बनाया गया है तथा स्नान के बाद कपड़े बदलने के लिए कमरों की भी व्यवस्था है। दीव के अन्य दर्शनीय स्थलों की बात करें तो केवड़ी में स्थित संगीत फुहारे, सेंट थामस चर्च, नवलखा पार्श्वनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर, जामा मस्जिद, दीव संग्रहालय, गोमती माता सागर तट, घोघला सागर तट व मांडवी नगर आदि प्रमुख हैं। दीव में एक विचित्र आकार का ताड़ का पेड़ होता है जिसमें ऊपर एक के स्थान पर दो तने होते हैं, यह पेड़ अंग्रेजी के वाई आकार का दिखता है, इसको होक्का ताड़ भी कहते हैं। दीव के हवाई अड्डे पर जेट एअर की मुंबई से प्रतिदिन की उड़ाने हैं। यदि यहां रेल मार्ग से आना चाहें तो आपको निकटतम रेलवे स्टेशन वेरावल पड़ेगा। जहां से आपको दीव तक के लिए बस सेवा उपलब्ध हो जाएगी।


मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार डाॅ. अरूण जैन राष्ट्रीय भारत एक्सीलेंस अवार्ड और गोल्ड मेडल से सम्मानित


उज्जैन/मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार डाॅ. अरूण जैन (उज्जैन) को नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के खचाखच जनसमूह से भरे सी.डी. देशमुख मेमोरियल आडिटोरियम में राष्ट्रीय भारत एक्सीलेंस अवार्ड और गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया । सम्मानित करने वाली प्रमुख हस्तियां थी जनता दल यूनाइटेड की वूमन सेल की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती लक्ष्मी  गोस्वामी, प्रख्यात नृत्यांगना पद्मश्री श्रीमती गीता चंद्रन, वेगमेन्स इंडस्ट्रीज समूह के चेयरमेन डाॅ. एस.के. गुप्ता, पूर्व राष्ट्रीय निर्वाचन आयुक्त डाॅ. जीवीजी कृष्णमूर्ति और मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री और सांसद रहे श्री रामकृष्ण कुसुमारिया ।
फ्रेंडशिप फोरम आॅफ इंडिया के इस प्रतिष्ठित आयोजन में देश भर की प्रमुख हस्तियों को अपने-अपने क्षेत्र की सतत और समर्पित सेवाओं के लिए सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया गया । सम्मानित होने वालों में मणिपुर, त्रिपुरा, असम, पश्चिमी बंगाल, बिहार-झाारखंड, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, दक्षिण भारत की विशेषज्ञ हस्तियां शामिल थी ।
समारोह को संबोधित करते हुए श्रीमती लक्ष्मी गोस्वामी ने कहा कि सरकारी सम्मान हों अथवा सामाजिक सम्मान, ये सम्मान आसानी से नहीं मिलते। वर्षों अपने क्षेत्र में सतत और अच्छे काम ही इस सम्मान का आधार बनते हैं । यह मत सोचिए कि देश ने हमें क्या दिया । बल्कि यह सोचने की जरूरत है कि हमने देश को क्या दिया। आज की युवा पीढ़ी को राष्ट्रीय एकता-समन्वय का महत्व बताने की सख्त आवश्यकता है । देश की समृद्धि के लिए राष्ट्रीय एकता जरूरी है । मीडिया, फिल्म, टेलीविजन की इस दिशा में महत्वपूर्णं भूमिका है ।
डाॅ. एस.के. गुप्ता ने सम्मानित हस्तियों को बधाई देते हुए कहा कि जो लोग अपने क्षेत्रों में अच्छा काम करते हैं उन्हे सार्वजनिक सम्मान देकर प्रोत्साहित करें तो स्वतः अच्छे कार्य करने की प्रेरणा मिलती है । ऐेसे समारोहों से अच्छा काम करने वालों की संख्या निश्चित रूप से बढ़ेगी। मेरी मान्यता है कि समाज में 99 प्रतिशत अच्छे लोग हैं । आपने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके कामों की प्रशंसा करते हुए कहा कि न्यायालयीन, पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य स्थितियां और वातावरण सुधरा है ।
पद्मश्री श्रीमती गीता चंद्रन ने व्यथित होते हुए कहा कि बालीवुड और चिकन टिक्का आज की पसंद हो गई है । यह ठीक नही है। जरूरत कम्युनिटी और सोसायटी को समृद्ध करने की है । हर क्षेत्र में युवा पीढ़ी को आगे लाया जाना चाहिए । उन्हे राष्ट्रीय संस्कृति, महापुरूषों के जीवन चरित्र की समझाइश दी जाना चाहिए ।
जीवीजी कृष्णमूर्ति ने कहा कि हर क्षेत्र में काम करने वालों की संख्या बहुत है । पर सार्वजनिक सम्मान बिरलों को ही मिलता है, जो आसान नही है । नेताजी सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल और महात्मा गांधी का स्मरण करते हुए आपने अपने व्यक्तिगत अनुभव सुनाए । आपने कहा कि अनुभव, ज्ञान से भी बड़ा है । हमारा देश सभी धर्मों, भाषाओं संस्कृतियों और राज्यों की फूल माला है । इसे बनाए रखने के लिए हर प्रयास करें । क्योंकि देश रहेगा तो हम रहेंगे ।
रामकृष्ण कुसुमारिया ने कहा कि हमारे देश की विशेषता अनेकता में एकता है। हमारे देश का संविधान विश्व का सबसे मजबूत संविधान है। आपने कहा कि 10वीं तक की शिक्षा अनिवार्य तो हो पर अच्छी भी होना चाहिए । इसके लिए व्यवस्थाएं सुधारना होगी । शिक्षा, आर्थिक विकास और समग्र विकास का एक जरूरी भाग है ।

गर्मियों में सुकून देती है बर्फ से लदी ये खूबसूरत वादियां


डॉ. अरूण जैन
उत्तर भारत में ऐसे कई हिल स्टेशन हैं, जहां आप गर्मी से राहत पा सकते हैं और परिवार व दोस्तों के साथ फुर्सत के दो पल बिता सकते हैं। तो आइए आपको भी ऐसी कुछ जगहों पर ले चलते हैं, जो गर्मियों में पर्यटन क लिए मशहूर हैं। कश्मीर- पृथ्वी का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर हैं। हिमालय और पीर पंजाब पर्वत श्रृंखला के बीच बसा कश्मीर उत्तर भारत के मुख्य हिल स्टेशनों में से एक हैं। यहां का डल झील बेहतरीन पर्यटक स्थलों में से है। साथ ही इसके किनारे बसा हजरत-बल-मस्जिद दर्शनीय है। झेलम के किनारे बसा भवानी का मंदिर, शंकराचार्य मंदिर, मार्तडय सूर्य मंदिर और शालीमार गार्डन बेहतरीन पर्यटक स्थलों में से एक है। केदारनाथ- उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में बसे केदारनाथ की यात्रा अपने आप में पावन हैं। 3,584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चारों धामों में से यह हिंदुओं का सबसे पवित्रधाम है। बारह ज्योर्तिलिंग में सबसे पवित्र ज्योर्तिलिंग यहीं देखने को मिलता है। मंदिर के पास मंदाकिनी नदी का कल-कल बहता पानी मन को शांति देता हैं। भगवान शिव के दर्शन के लिए दूर-दूर से पर्यटक यहां आते हैं। मनाली- समुद्रतल से 1950 मीटर की ऊंचाई पर बसा हैं हिमाचल प्रदेश का मनाली। यहां के खूबसूरत पहाड़ पर्यटकों की पहली पसंद है। हिमाचल की राजधानी शिमला से 250 किलोमीटर दूर कुल्लू-मनाली के सुंदर दृश्य, गार्डन, पहाड़ों और सेब के बाग पर्यटकों की अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। हिमालय नेशनल पार्क, हिडिंबा मंदिर, सोलांग घाटी, रोहतांग पास, रघुनाथ मंदिर और जगन्नाथी देवी मंदिर दर्शनीय है। श्रीनगर- कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी है श्रीनगर। इस खूबसूरत शहर में पर्यटन के लिहाज से देखने के लिए बहुत कुछ है। खूबसूरत झील, ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल और पुरातत्व से धनी है श्रीनगर। पर्यटकों में यहां का शालीमार बाग, शाही चश्मा, और परी महल बेहद खास है। शिमला- 2202 मीटर की ऊंचाई पर बसे इस खूबसूरत इलाके को पहाड़ों की रानी कहा जाता है। शिमला में सबसे बेहतरीन आइस स्केटिंग का मजा लिया जा सकता है। हर सर्दियों में होने वाली बर्फबारी इसे और भी खूबसूरत बना देती हैं। हर तरफ फैली बर्फ की सफेद चादर इस शहर को प्राकृतिक खूबसूरती देती हैं। शिमला ट्रेकिंग के लिए भी प्रसिद्ध है। लेह- हिमालय के बीच स्थित हैं लेह। यहां की प्राकृतिक सुंदरता कुदरत का वरदान है। यहां बौद्ध धर्म और मस्जिद के अनेक स्मारक हैं। बर्फ से ढ़की हिमालय की चोटियां लेह को और भी खूबसूरत बनाती हैं। लेह की सुंदरता देखने के साथ-साथ यहां पर्यटक ट्रेकिंग का आनंद भी ले सकते हैं। मसूरी- 2500 मीटर की ऊंचाई पर बसा मसूरी प्राकृतिक दृश्यों का धनी हैं। 1820 में ब्रिटिश की अंग्रेजी सेना यहां की बेहतरीन खूबसूरती से प्रभावित थी। उसने यहां अपने लिए आवास बनाए। यहां का यात्रा उन लोगों के लिए सुखद हैं जो दिल्ली और दूसरे स्थानों की गर्मी से राहत पाना चाहते हैं। प्रकृति ने मसूरी को खूबसूरती वरदान में दिया है। नैनीताल- उत्तराखंड के कुमाऊं के निचली पहाड़ी क्षेत्र में बसा है नैनीताल। नैनी झील के लिए मशहूर नैनीताल को झीलों का जिला कहा जाता है। नैनीताल की कई घाटियों में नाशपाती के आकार की झील देखने को मिलती है। यह झील चारों तरफ से पहाड़ों से घिरी हैं और पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र भी है। नैनीताल का नाम यहां की प्रसिद्ध देवी नैना के नाम पर पड़ा है। मुख्य पर्यटक स्थल में टिफिन टॉप, नैनी लेक, नैना पीक वगैरह हैं। उत्तर भारत में इसके अलावा और भी कई ऐसे पर्वतीय क्षेत्र हैं, जहां आप सुकून के कुछ पल बिता सकते हैं। गर्मियों की चिलचिलाती गर्मी से कुछ आराम चाहिए तो कर आइए इन हिल स्टेशनों की सैर।

कूटनीति या व्यापार


डॉ. अरूण जैन
ऐसी क्या जल्दी थी कि चीनियों के लिए मोदीजी इ-वीजा की घोषणा कर आए? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यात्रा में भी गीत-संगीत, डांस-ड्रामा था। बौद्ध धर्म था। मानसरोवर यात्रा का मार्ग था। ताइची और योग का समागम था, और साथ में चौबीस समझौते थे। लेकिन जो नहीं था, उसे लेकर अरुणाचल और कश्मीर के लाखों पासपोर्ट धारक निराश हैं, क्योंकि अब भी चीन ने नत्थी वीजा जारी किए जाने के निर्णय में कोई बदलाव नहीं किया है। पासपोर्ट पर स्टेपल वीजा देने का निहितार्थ यही है कि चीन अब भी कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश को विवादित हिस्सा मानता है। चीन के लिए पाक अधिकृत कश्मीर, विवादित हिस्सा नहीं है! उस पार के कश्मीरी बाकायदा स्टांप लगे वीजा के साथ चीन का भ्रमण करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में 'सिल्क रूटÓ बनाने से लेकर विभिन्न परियोजनाओं में चीन द्वारा चालीस अरब डॉलर लगाने पर जो चिंता व्यक्त की है, उससे क्या फर्क पड़ा है? बेजिंग इससे पीछे नहीं हटने वाला। ऐसा लगता है, मानो मोदी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चीनी सड़कें, अधोसंरचना पर चिंता व्यक्त कर विरोध की औपचारिकता पूरी कर आए हैं। विरोध और चिंता में बहुत बड़ा फर्क होता है। बीस फरवरी को मोदी जब अरुणाचल दौरे पर थे, तब चीन विरोध प्रकट कर रहा था। नृत्य-संगीत से मोदीजी का स्वागत करने वाले चीन ने इतना भी नहीं कहा कि आगे से अरुणाचल में नई दिल्ली से शिखर नेताओं के जाने पर आपत्ति नहीं करेंगे। इन चौबीस समझौतों में खटकने वाली बात यह है कि आतंकवाद समाप्त करने के बारे में चीन ने कोई समझौता नहीं किया है। क्यों? इसकी वजह पाकिस्तान है। क्योंकि जब भी आतंकवाद के विरुद्ध प्रस्ताव लाने की बात होती, उसकी जद में पाकिस्तान आता ही। यों, शिन्चियांग के उईगुर आतंकियों से चीन त्रस्त है, जो फर्जी पाकिस्तानी पासपोर्ट के साथ तुर्की में राजनीतिक शरण ले रहे हैं। चीन आधिकारिक तौर पर तुर्की के विरुद्ध बयान दे चुका है। लेकिन पाकिस्तान के कबीलाई इलाकों की आतंक-फैक्ट्रियों में उईगुर अतिवादियों का आना रुका नहीं है। बावजूद इसके राष्ट्रपति शी, प्रधानमंत्री मोदी के साथ आतंकवाद के विरोध में कदमताल नहीं करना चाहते। पाकिस्तान के बरास्ते जिस महत्त्वाकांक्षा के साथ चीन यूरेशिया के लिए नए सिल्क रूट बनाने के सपने साकार कर रहा है, उसके टूटने का जोखिम चीन नहीं उठा सकता। बेजिंग के शिन्हुआ विश्वविद्यालय में मोदी ने बार-बार इसकी याद दिलाई कि आतंकवाद के कारण विकास, सहयोग और निवेश में अवरोध पैदा होता है। लेकिन चीनी नेतृत्व का व्यवहार इस सवाल पर चिकने घड़े जैसा ही था। मोदी ने दो-तीन अवसरों पर यह स्पष्ट कर लेना चाहा कि सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के वास्ते भारत की दावेदारी को चीन कितना समर्थन करता है। चीन ने सिर्फ इतना कहा, संयुक्त राष्ट्र में भारत की बड़ी भूमिका का चीन समर्थन करेगा। इस 'बड़ी भूमिकाÓ का मतलब क्या है? यह संशय की स्थिति कब खत्म होगी कि चीन ऐसे प्रस्ताव के विरुद्ध वीटो का इस्तेमाल नहीं करेगा?सितंबर 2014 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आए थे, तब पांच वर्षों में बीस अरब डॉलर के निवेश का वादा हुआ था। लेकिन नौ महीनों में नौ कदम भी आगे नहीं बढ़े हैं। सच तो यह है कि चीन और भारत के बीच कूटनीति का यह दौर विश्वास बहाली का है। इस 'कॉन्फिडेंस बिल्डिंग डिप्लोमेसीÓ का एक ही मंत्र है, पहले इस्तेमाल करो, फिर विश्वास करो। इसलिए जिन चौबीस आयामों पर चीन-भारत के बीच समझौते हुए हैं, उनमें ज्यादातर सांस्कृतिक आदान-प्रदान, खनन और व्यापार वाले समझौते हैं। लेकिन यह सारा कुछ तब बिखर जाता है, जब लद््दाख से लेकर अरुणाचल की सीमा पर घुसपैठ होती है। ऐसी घटनाएं क्यों बासठ की याद बार-बार दिलाती हैं? भारत के 'प्रधान सेवकÓ को याद रखना चाहिए कि लद््दाख से लेकर सिक्किम और अरुणाचल की सीमाओं पर जो चीनी सैनिक तैनात हैं, वे 'शिआन टेराकोटा वारियर म्यूजियमÓ में मिट्टी के बने सैनिक नहीं हैं। वे सचमुच के सैनिक हैं, जिन्हें सिखाया गया है कि सीमा पार घुसपैठ कर भारत पर दबाव बनाए रखो। भारत-चीन के नेताओं ने एक बार फिर से अहद किया है कि सीमा विवाद जल्द सुलझा लेंगे। दिसंबर 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन गए थे, तब भी संकल्प किया गया था कि सीमा विवाद जल्द सुलझा लेंगे। इसके आठ साल बाद तब के चीनी राष्ट्रपति चियांग ज़ेमिन नवंबर 1996 में नई दिल्ली आए, और घोषणा की कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर विश्वास बहाल करेंगे, साथ ही सीमा विवाद शीघ्र सुलझा लेंगे। पिछले साल 10 से 14 फरवरी के बीच भारत के तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन और चीन के स्टेट कौंसिलर यांग चीशी ने पंद्रहवें दौर की सीमा संबंधी बातचीत की थी। फिर पिछले साल सितंबर और नवंबर में दो दौर की और बैठकें हुई थीं। उसके पांच माह बाद यांग चीशी इस साल तेईस मार्च को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से अठारहवें दौर की बैठक नई दिल्ली में कर गए थे। सीमा विवाद पर दोनों देशों के नेताओं और नौकरशाहों की बैठकों को देख कर लगता है, मानो इसे हनुमानजी की पूंछ बना दिया गया हो। इन बैठकों के बाद बयान जारी होता है, 'विवाद जल्द सुलझा लेंगे!Ó ऐसे 'कॉपी-पेस्टÓ बयान से जनता पक चुकी है। हिमालय से प्रशांत महासागर तक, चीन के लगभग बीस देशों से सीमा विवाद हैं। इससे यही संदेश जाता है कि चीन, दुनिया का सबसे पंगेबाज देश है। विश्व-नेता बनने के लिए एक बारी में तीन देशों की यात्रा की नई परंपरा एशिया में शुरू हुई है। ऐसा अक्सर अमेरिकी राष्ट्रपति किया करते थे। 2015 में चीनी राष्ट्रपति शी और प्रधानमंत्री मोदी के बीच इस तरह की प्रतिस्पर्धा हम सब देख सकते हैं। शी और मोदी जिन विषयों पर प्रतिस्पर्घा नहीं कर, एक-दूसरे से इत्तिफाक रख रहे हैं, उनमें बौद्ध धर्म पर हो रही कूटनीति है। म्यांमा समेत पूर्वी एशिया के देशों और श्रीलंका में बौद्ध धर्म, घरेलू राजनीति को प्रभावित करता दिखता है। लेकिन जिस बौद्ध धर्म की बिसात पर चीन गोटियां चल रहा है, उसके नतीजे बड़े खतरनाक निकलेंगे। इसके बूते चीन, दलाई लामा को हाशिये पर लाने का कुचक्र चल रहा है। नेपाल में बीस हजार तिब्बती, शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं, उनकी हिम्मत नहीं है कि चीन के खिलाफ चूं बोल दें। लगभग यही स्थिति भारत में बनने लगी है। दो मई को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह धर्मशाला जाकर दलाई लामा से मिलने वाले थे। लेकिन चीन का इतना खौफ था कि सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष ने अपनी यात्रा ही स्थगित कर दी। इसलिए मोदीजी जब चीनी मठों में सरकारी बौद्ध लामाओं से अभ्यंतर हो रहे थे, उससे धर्मशाला में माहौल असहज सा हो रहा था। कूटनीति पर व्यापार का नशा इतना हावी हो चुका है कि हम हर फैसले पर चीन की खुशी-नाखुशी का ध्यान रखने लगे हैं। सितंबर-अक्तूबर में बंगाल की खाड़ी में उन्नीसवें दौर के मालाबार नौसैनिक अभ्यास में अमेरिका के साथ जापान को बुलाएं या नहीं, ऐसी ऊहापोह की स्थिति प्रधानमंत्री कार्यालय में बनी हुई है। यह कमजोर नेतृत्व का नतीजा है। चीन ने बंगाल की खाड़ी में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, सिंगापुर और भारत के संयुक्त नौसैनिक अभ्यास का विरोध 2007 में किया था। 2009 और 2014 में यूपीए का दौर था, जब मालाबार अभ्यास के लिए जापान का आना टाल दिया गया था। चीन पूरी ढिठाई से अरब सागर में पाकिस्तान के साथ नौसैनिक अभ्यास करता रहा है, तब भारत को क्यों नहीं आपत्ति होनी चाहिए थी? चीन ने यूक्रेन से खरीदे लियोनिंग नामक पोत पर पाक नौसैनिकों को प्रशिक्षित किया था। सवाल यह है कि चीन से मोदीजी ने जो चौबीस समझौते किए हैं, उससे क्या हमारा सालाना व्यापार घाटा पूरा हो जाएगा? 2014 तक चीन-भारत का उभयपक्षीय व्यापार 70.65 अरब डॉलर का था। तब चीन भारत को 54.42 अरब डॉलर का माल भेज रहा था, जबकि चीन के लिए भारत का कुल निर्यात 16.41 अरब डॉलर का था। अर्थात चीन से व्यापार में भारत को 2014 में 37.8 अरब डॉलर के घाटे में था। यह इतनी बड़ी खाई है कि उसे पाटने का रास्ता चौबीस सूत्री समझौतों में कहीं से नजर नहीं आता। इससे अलहदा चीन ने भारत के प्रोजेक्ट निर्यात बाजार पर जबर्दस्त तरीके से कब्जा किया हुआ है। इस साल कोई साठ अरब डॉलर के चीनी प्रोजेक्ट निर्यात को निष्पादित होना है। जिस चीनी निवेश को भारत लाने के लिए हम बावले हो रहे हैं, उससे पहले अफ्रीका में हमें झांक लेना चाहिए कि वहां चीन ने क्या किया है। अंगोला, जांबिया, जिम्बाब्वे, दक्षिण अफ्रीका के कोयला, लौह और तांबा खनन, तेल दोहन, अधोसंरचना के ठेके पर चीनियों का कब्जा है। सबसे ज्यादा शोषण श्रम बाजार में है, जिसकी वजह से चीनियों का व्यापक विरोध हो रहा है। इन इलाकों के बाजार को नियंत्रित करने वाले ढाई लाख चीनी 'येलो मास्टर्सÓ के नाम से जाने जाते हैं। ये येलो मास्टर्स वहीं के कामगारों से जो माल बनाते हैं, उसे 'जिंग-जौंगÓ कहा जाता है, जिसकी कोई गारंटी नहीं होती। तंजानिया के खनन व्यवसाय पर येलो मास्टर्स हावी हैं। वहां से लौह अयस्क निकालने के वास्ते एक चीनी कंपनी ने 2011 में तीन अरब डॉलर का निवेश किया था। कई दूसरी चीनी कंपनियां तंजानिया से जवाहरात, सोना, मैग्नेशियम, कोबाल्ट निकालने के लिए आगे आर्इं। मगर भ्रष्टाचार इतना हुआ कि लोग सरकार के विरुद्ध हो गए। दक्षिण-पूर्वी तंजानिया के बंदरगाह-शहर मतवारा से दार-ए-सलाम तक गैस पाइपलाइन लगाने में जमकर घोटाला हुआ, और आम जनता चीनियों के विरुद्ध सड़कों पर उतर आई। गृहयुद्ध जैसे हालात को दबाने के लिए सरकार को सेना की मदद लेनी पड़ी। सब-सहारा अफ्रीका में कोई दो हजार चीनी कंपनियां कारोबार कर रही हैं। इन्हें देखने के लिए कोई दस लाख चीनी इस इलाके में जम चुके हैं। वाशिंगटन स्थित 'सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंटÓ की रिपोर्ट थी कि 2000 से 2011 तक चीन ने अफ्रीका की सोलह सौ तिहत्तर परियोजनाओं में पचहत्तर अरब डॉलर लगा दिए थे। 2012 में पता चला कि अफ्रीका से चीन दो सौ अरब डॉलर से अधिक का 'ट्रेड वॉल्यूमÓ बढ़ा चुका है, और फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका चीन से काफी पीछे जा चुके थे। लेकिन क्या इससे अफ्रीका के हालात सुधरे? अफ्रीका में कितने बुलेट ट्रेन ट्रैक और स्मार्ट सिटी चीन ने बना दिए? चीन वहां के श्रम बाजार की मिट्टी पलीद कर चुका है। अश्वेत कामगार जबर्दस्त शोषण के शिकार हुए हैं। क्या इससे भारत को सबक लेने की जरूरत नहीं है?

दुबई का मिरेकल गार्डन जैसे रेगिस्तान में नंदन-कानन 

डॉ. अरूण जैन
दुबई की यह मेरी पांचवीं यात्रा है। जब भी यहाँ आया हूँ कोई-न-कोई नयी बात या नयी चीज़ सुनने-देखने को मिली है। पिछली बार जब आया था तो 'बुर्ज खलीफाÓ चर्चा में था। 160 मंजिलों वाली तथा लगभग 828 मीटर ऊंची इस आकाश-छूती इमारत को देखकर सचमुच आश्चर्य हुआ था। उससे पहले दुबई स्थित उस होटल 'बुर्ज-अल-अरबÓ को देखा था, जिसके बारे में सुना था कि वह विश्व का सब से बड़ा सात-सितारा होटल है। प्रतिमान पर प्रतिमान स्थापित करना इस शान-शौकत और चमक-दमक वाले दुबई शहर की 'ललकÓ का एक तरह से पर्याय बन गया है। विश्व का सब से बड़ा मॉल 'दुबई मॉलÓ भी यहीं पर है। स्वचालित (बिना ड्राइवर के) मेट्रो भी यहां है। और भी बहुत कुछ है यहाँ देखने के लिए। इस बार उस पुष्प-उद्यान को देखने का मौका मिला जिसके बारे में अपने देश में सुन रखा था। यह पुष्प उद्यान यानी मिरेकल गार्डन विश्व-प्रसिद्ध है। लगता है जैसे समूचा नंदन-कानन सहरा में उतर कर आया हो। दुबई मिरेकल गार्डन का क्षेत्रफल लगभग सत्तर हज़ार वर्गमीटर है। विश्व का यह ऐसा पहला उपवन है जिसमें 60 रंगों के 4.5 करोड़ फूल हैं। इनमें से अनेक ऐसे हैं जिन्हें फारस की खाड़ी के इलाके में पहली बार लाया गया है। यह संसार का पहला ऐसा बाग़ है जो फूलों से बनी तीन मीटर ऊंची दीवार से घिरा हुआ है और इसमें एक दस मीटर ऊंचा पुष्प-पिरामिड भी है7 फूलों के गुच्छों, झुरमुटों और कियारियों को बड़े ही कलापूर्ण ढंग से तराशा/संवारा गया है। जहाँ तक भी नजर जाती है महकते फूलों का समुद्र ठाठें मारता दृष्टिगोचर होता है। रेगिस्तान में ऐसा दृश्य विरल ही नहीं, अकल्पनीय भी है। इस दिलकश गुलिस्तान के निर्माताओं का कहना है कि वे संसार को दिखाना चाहते थे कि सहरा को भी कैसे प्रदूषित जल का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग कर उसे हराभरा किया जा सकता है। दुनिया को वे यह भी बताना चाहते थे कि दुबई मात्र ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं (लोहा-सीमेंट-रेत) और मालों/होटलों का ही शहर नही है। अपितु प्रकृति-प्रेमी नगर भी है। एक बात और। दुबई की भावी योजनाओं में एक अत्यंत महत्वाकांक्षी परियोजना है 'फाल्कन सिटी ऑफ़ वंडर्स। इस परियोजना के तहत दुनिया भर से वास्तुकला के कई श्रेष्ठ नमूनों की प्रतिकृतियां बनाई जाएंगी जिनमें पिरामिड, हैंगिंग गार्डन, एफिल टावर, ताज महल, चीन की महान दीवार और पिसा की झूलती मीनार शामिल हैं। परियोजना दुबई के प्रतिमानों की श्रृंखला में एक और नई कहानी लिखेगी, ऐसा इसके प्रबंधकों का मानना है। दुबई के प्रशासकों (शेखों) को यह समझ में आने लगा है कि उनके तेल के जखीरे अब ज्यादा दिनों तक चलने वाले नहीं हैं और एक-न-एक दिन उनके ये तेल के कुंए तेल देना बंद कर देंगे। दरअसल, 1930 में उन्हें तेल की अकूत संपदा हाथ लगी थी, उससे पहले यहाँ के लोग मछली-पालन या समुद्र से मोती निकालने का काम करते थे, लगभग अस्सी वर्षों से सहरा इन्हें तेल से मालामाल कर रहा है। बुर्ज, होटल, चौड़ी सड़कें, चमक-दमक, वैभव, ठाठ-बाठ आदि सब तेल की वजह से है। मगर तेल निकलेगा भी तो कब तक? इसलिए विकल्प के तौर पर, समय रहते, यहाँ के शासक 'पर्यटनÓ उद्योग को बढ़ावा देने में जुटे हुए हैं। चिकित्सा और शिक्षा के क्षेत्रों में भी बड़ी-बड़ी महत्वाकांक्षी परियोजनाएं ये लोग ला रहे हैं।

भारत को समुद्री इलाके में घेरना संभव नहीं;चीन


डॉ. अरूण जैन
चीन के लिए भारत को समुद्री इलाके से घेरना संभव नहीं है, जैसा कि कुछ विशेषज्ञ कहते आए हैं। यह बात पीएलए के एक शीर्ष नौसेना अधिकारी ने कही। शंघाई नेवल गैरिसन के चीफ ऑफ स्टाफ वरिष्ठ कैप्टन वी जियाओ डोंग ने कहा कि भारत के चिंतित होने की कोई वजह नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत को चीनी नौसेना के पोत या पनडुब्बी का पाकिस्तान जैसे देशों का दौरा करने पर भी फिक्रमंद नहीं होना चाहिए।वी ने चीन का दौरा कर रहे भारतीय पत्रकारों से कहा, चीन का आधिपत्य या फिर क्षेत्र में सैन्य ताकत बनने की नीति नहीं रही है। हमारी नीति रक्षात्मक रही है। उन्होंने कहा कि पोत का पाकिस्तान जैसे देशों का दौरा करना सामान्य नहीं होता। वी ने कहा, मैं 1987 से ही नौसेना में हूं और हिंद महासागर में कभी युद्ध पोत लेकर नहीं गया। वी ने इस बात पर जोर दिया कि चीन के लिए भारत को समुद्री क्षेत्र से घेरना संभव नहीं होगा। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान दौरा भारत में चिंता का विषय माना जाता है, लेकिन चीन ने भारत के साथ भी सहयोग बढ़ाया है। वी ने कहा, इसे दूसरे तरीके से देखिए, क्या हमें पाकिस्तान का दौरा कम कर भारत का दौरा बढ़ाना चाहिए। ऐसी स्थिति में क्या पाकिस्तान भी हमारे भारत के दौरे पर चिंतित होगा?उन्होंने कहा कि दोनों के साथ संबंध सिर्फ द्विपक्षीय स्तर पर हैं। वी ने कहा कि शंघाई में उन्होंने अधिकारियों से आतंकवाद-रोधी बल के रूप में काम करने और शांति तथा सौहार्द बनाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि वे किसी आतंकवाद संबंधी हमले का शिकार नहीं हुए हैं, लेकिन उन्होंने ऐसी घटना पर प्रतिक्रिया देने के लिए विश्वभर से जानकारियां इक_ी की हैं। वह उस सवाल का जवाब दे रहे थे, जिसमें पूछा गया था कि क्या जिस तरह वर्ष 2008 में आतंकवादी कराची से नाव पर सवार होकर मुंबई में घुस आए थे, उन्हें चीन के लिए ऐसा खतरा महसूस होता है।

संघ के समर्थन के साथ बरकरार रहेगी वसुंधरा की कुर्सी


डॉ. अरूण जैन
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की कुर्सी पर ललित मोदी विवाद की वजह से खतरा टलता दिख रहा है। ऐसी रिपोर्ट है कि बीजेपी के वैचारिक गुरु माने जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने पार्टी को वसुंधरा को मुख्यमंत्री पद से न हटाने की चेतावनी दी है क्योंकि इससे राज्य सरकार अस्थिर हो सकती है। पार्टी के सूत्रों ने बताया कि परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने वसुंधरा और बीजेपी के बीच सुलह कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गडकरी के पार्टी अध्यक्ष रहने के समय से वसुंधरा के उनके साथ अच्छे संबंध हैं। 
गडकरी की आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व के साथ नजदीकी से भी वसुंधरा को मदद मिली है। इसी वजह से सोमवार को जयपुर में वसुंधरा से मिलने के बाद गडकरी ने कहा, पूरी पार्टी वसुंधरा के साथ है और उन्होंने कुछ भी गैर कानूनी नहीं किया है। अभी तक पार्टी ने इस मामले में वसुंधरा से दूरी बनाई हुई थी। गडकरी के इस बयान से पहली बार यह संकेत मिला है कि वसुंधरा की कुर्सी को अभी कोई खतरा नहीं है।  गडकरी का कहना था, उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोप आधारहीन हैं। मैंने उन्हें आश्वासन दिया है कि सरकार और बीजेपी उनके साथ खड़े हैं। पिछले सप्ताह ललित मोदी विवाद का खुलासा होने के बाद से वसुंधरा ने किसी आधिकारिक कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिया था और सोमवार को वह इस तरह के पहले कार्यक्रम में गडकरी के साथ नैशनल हाईवे 114 पर जोधपुर-पोखरण प्रोजेक्ट का उद्घाटन करने जोधपुर पहुंची। इसके साथ ही उन्होंने राज्य में कुछ अन्य रोड प्रॉजेक्ट्स का भी उद्घाटन किया।  सूत्रों का दावा है कि वसुंधरा कभी भी आरएसएस की पसंद नहीं रही हैं और संघ के नेता वसुंधरा के तड़क-भड़क वाले लाइफस्टाइल से नाखुश रहे हैं। लेकिन इस बार संघ ने उनका समर्थन करने का फैसला किया। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने ईटी को बताया, राजस्थान सरकार की स्थिरता एक चीज है। राज्य में वसुंधरा की लोकप्रियता को लेकर कोई संदेह नहीं है और उनके खिलाफ किसी भी कार्रवाई से राज्य में पार्टी की यूनिट बिखर जाती। संघ को यह भी चिंता थी कि राजे को हटाने से विवादों का पिटारा खुल सकता है, जिससे बीजेपी की मुश्किलें और बढऩे की आशंका थी। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने इससे पूर्व वसुंधरा से मिलने से इनकार कर दिया था। ऐसा बताया जाता है कि वसुंधरा ने शाह से फोन पर बात कर अपनी स्थिति स्पष्ट की थी। पार्टी के एक अन्य नेता ने कहा, अध्यक्षजी ने उनसे पूछा था कि क्या ललित मोदी से जुड़े ऐसे डॉक्युमेंट्स या सबूत हैं जिनके सामने आने पर उन्हें और पार्टी को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ सकता है। वसुंधरा ने उन्हें आश्वासन दिया था कि ऐसा कुछ नहीं है। इसके बाद शाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्थिति से अवगत कराया था। सूत्रों ने कहा कि आरएसएस को यह भी चिंता थी कि वसुंधरा के खिलाफ कदम उठाने से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को व्यापम घोटाले को लेकर पद से हटाने की विपक्ष की मांग को बल मिल सकता है।

पत्नी साधना सिंह को खदान आवंटन कर फंसे सीएम शिवराज!


डॉ. अरूण जैन
व्यापमं घोटाले के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब पत्नी के नाम मैगनीज खदान आवंटन को लेकर गंभीर आरोपों के घेरे में हैं। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पर पद और अधिकारों का दुरुपयोग कर पत्नी साधना सिंह की कंपनी को मैगनीज खदान आवंटित करने का आरोप लगाया है। हालांकि, सरकार ने कांग्रेस के इन आरोपों को खारिज कर दिया। कांग्रेस के आरोपों के बाद मुख्यमंत्री के बचाव में दो मंत्री सामने आ गए। दरअसल, कांग्रेस के प्रमुख प्रवक्ता केके मिश्रा ने खदान आवंटन के दस्तावेज जारी करके आरोप लगाया कि बालाघाट में मैगनीज की एक खदान एसएस मिनरल्स नामक फर्म को आवंटित की गई, जिसके प्रोपराइटर में श्रीमती एसएस सिंह लिखा हुआ है। आवंटन के बाद हुए एग्रीमेंट में श्रीमती एसएस सिंह पत्नी शिवराज सिंह, भोपाल लिखा हुआ है। कांग्रेस ने जो दस्तावेज जारी किए है, वह दस्तावेज हिंदी में है। सरकार की ओर से उच्च शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता और परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह बचाव में सामने आए। सरकार की तरफ से भी दस्तावेज पेश कर कांग्रेस के आरोपों को खारिज कर दिया गया। उन्होंने बालाघाट जिले में आवंटित की गई खदानों के 1991 से 2014 तक के दस्तावेज जारी करते हुए कहा कि कांग्रेस ने जिस गांव का जिक्र किया है, वहां मैगनीज खदान ही नहीं है। साथ ही जो खसरा नंबर बताया गया है वह जगनटोला में है और वह खदान लीला भलावी के नाम आवंटित है। उस खदान पर उनके बेटे अशजक उईके का आधिपत्य है। कांग्रेस के दस्तावेज हिंदी में जबकि सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई सूची अंग्रेजी में है। केके मिश्रा ने कहा कि भोपाल की फर्म मेसर्स एस एस मिनरल्स को बालाघाट जिले के ग्राम-पौनिया में 17.9एकड़ भूमि 10 वर्ष की लीज पर मैग्नीज खदान के लिए आवंटित की गई। मेसर्स एस एस मिनरल्स की प्रोपराईटर साधना सिंह हैं, लेकिन कंपनी के प्रोपराईटर के रुप में साधना सिंह का नाम बदलकर श्रीमती एस एस चौहान पत्नी शिवराज सिंह अंकित है। 11 जनवरी 2007 से 21 जनवरी 2017 तक के लिए आवंटित खदान का खसरा नंबर हैं 83,85/2 ,125/1,125/ 2,125,128, 129,84,85/ 1,80/2, 81/1-2। सरकार यह भी तर्क दे रही है कि जिस गांव का जिक्र किया गया वहां मैगजीन खदान नहीं है। दो सूची, दो भाषा, दो नंबर। कांग्रेस के दावे और सरकार के तर्क के बीच एक दिलचस्प तरीके का विरोधाभास सामने आया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के दस्तावेजों में पत्र क्रमांक एक ही है। बस फर्क इतना है कि कांग्रेस के दस्तावेज हिंदी में है, जबकि सरकार ने सफाई देते हुए खदान आवंटन की जो सूची पेश की है वह अंग्रेजी में है। कांग्रेस की सूची में 79 नंबर पर एसएस मिनरल्स दर्ज है। सरकार के दस्तावेज 65वें नंबर पर लीला भलावी के नाम आवंटन दर्ज है।

न क़त्ल हुए मौक पर सवाल, न मौतों पर जवाब


डॉ. अरूण जैन
          मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल घोटाले में कितने लोगों की जानें अब तक ज्ञात अथवा रहस्यमय परिस्थितियों में जा चुकी हैं इसकी सही-सही जानकारी उपलब्ध नहीं है. ऐसा संभव हो उसकी ज्यादा उम्मीद भी हाल-फिलहाल नहीं है। एक ताज़ा अनुमान के अनुसार, घोटाले में कथित रूप से सम्बद्ध कोई 32 लोगों की जानें जांच प्रारम्भ होने के बाद से अब तक जा चुकी हैं। विधानसभा में विपक्ष के नेता सत्यदेव कटारे इस तरह की मौतों का आंकड़ा सौ के ऊपर बताते हैं । जो आंकड़े आधिकारिक रूप से उपलब्ध हैं उनमें फर्ज़ीवाड़े के सिलसिले में अब तक गिरफ्तार किए जा चुके लोगों और एसआईटी (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) द्वारा खोजे जाने वाले फरार लोगों की संख्या की जानकारी ही शामिल है. जेलों में बंद लोगों में कई बड़े-बड़े नाम शामिल हैं. शिक्षा के क्षेत्र के अब तक के इस सबसे कुख्यात घोटाले का अंत कब और कैसे होगा कुछ भी नहीं कहा जा सकता. मीडिया में चर्चा
जेलों में बंद लोगों और उनके परिवारजनों की मानसिक और शारीरिक स्थितियों को लेकर किसी भी स्तर पर कोई चिंता या पहल व्यक्त नहीं हो रही है. मीडिया में भी व्यापमं घोटाले को लेकर बहुत ज्यादा हो-हल्ला नहीं है और न ही सामान्य जनता के स्तर पर ही कुछ नया जानने की उत्सुकता है । पर फर्ज़ीवाड़े की गंभीरता का अंदाजा केवल इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि अकेले ग्वालियर क्षेत्र में ही अब तक साढ़े तीन सौ लोगों की गिरफ्तारियां हो चुकी हैं, लगभग अस्सी लोग और पकड़े जाने हैं. पकड़े गए लोगों में फर्ज़ी छात्र, सॉल्वर्स, दलाल, रैकेटियर्स और अभिभावक शामिल हैं। न्यायालय के समक्ष पेश की गई रिपोर्ट में जिन 32 लोगों की मौतों का जिक्र किया गया है उनमें अधिकांश चम्बल क्षेत्र के बताए जाते हैं. फर्ज़ीवाड़े की जांच एसटीएफ कर रही है और उसकी मदद के लिए ग्वालियर, इंदौर, जबलपुर, सागर, रीवां और भोपाल में एसआईटी गठित की गई है। एसआईटी के मामलों की अलग से सुनवाई के लिए अकेले ग्वालियर में ही चार विशेष कोर्ट स्थापित की गई हैं । शेष पांच जिलों में एक-एक विशेष कोर्ट हैं । जांच पर सवालइसी बीच जांच प्रक्रिया को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं । आरोप है कि जिन लोगों ने अपनी जगह दूसरे व्यक्ति को बैठा कर परीक्षा पास की उनके खिलाफ अगर अग्रिम जांच करवाई जाती तो फर्ज़ीवाड़े में शामिल अन्य आरोपियों के नामों का भी खुलासा हो सकता था। जिन व्हिसिल ब्लोअर्स ने व्यापमं के फर्ज़ीवाड़े को लेकर समय-समय पर आवाज़ उठाई वे भी अपनी सुरक्षा को लेकर अब सवाल उठा रहे हैं। फर्ज़ीवाड़े का एक दुखद पहलू यह भी है कि इससे जुड़ा मानवीय पक्ष नजरअंदाज हो रहा है और समूचे प्रकरण का इस्तेमाल राजनीतिक लड़ाई लडऩे के लिए किया जा रहा है । मध्य प्रदेश के राज्यपाल राम नरेश यादव के पुत्र शैलेश की जिन परिस्थियों में मौत हुई थी उससे फर्ज़ीवाड़े को लेकर उजागर होने वाले नामों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े हो गए थे। फर्ज़ीवाड़े को लेकर होने वाली रहस्यमय मौतों के नए-नए किस्से तो उजागर हो रहे हैं पर राजनीतिक स्तर पर जिस तरह की संवेदनशील प्रतिक्रिया की अपेक्षा की जाती है वह अभी किसी भी स्तर पर व्यक्त नहीं हो रही है । पूर्व शिक्षा मंत्री जेल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि व्यापमं फर्ज़ीवाड़े का पर्दाफ़ाश उनकी सरकार ने ही किया है और कि इसकी जांच भी पूरी तरह से निष्पक्ष तरीके से की जा रही है. तमाम दोषियों को सजा भी दिलवाई जाएगी । सवाल यह है कि इस तरह का रैकेट प्रदेश में शासन-प्रशासन की ठीक नाक के नीचे इतने वर्षों से कैसे चल रहा था?व्यापमं की निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए नियुक्त जिम्मेदार लोग भी फर्ज़ीवाड़े में शामिल पाए गए और वे अब जेलों में बंद हैं। सत्तापक्ष से जुड़े कतिपय राजनेताओं की भूमिका भी संदेहों के घेरों में आ गई। शिवराज सिंह मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री रहे लक्ष्मीकांत शर्मा और उनके विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी (ओएसडी) भी इस समय अन्य लोगों के साथ जेल में बंद हैं। व्यापमं फर्ज़ीवाड़े के जरिए वर्षों तक हजारों योग्य एवं होनहार छात्रों के भविष्य के साथ क्यों खिलवाड़ होता रहा इसका जवाब कभी भी नहीं मिलने वाला ।