Monday 8 February 2016

अखबारों से हटाये गये मीडिया कर्मिंयो का विवरण मांगा

डॉ. अरूण जैन
मजीठिया वेज बोर्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में अदालत ने अखबार मालिकों की गुंडई और दुस्साहस को संज्ञान लेते हुए वकीलों को निर्देश दिया कि वे वेज बोर्ड मांगने के कारण अखबारों से निकाले गए या ट्रांसफर किए गए या किसी रूप में प्रताडि़त किए गए मीडियाकर्मियों के डिटेल दाखिल करें. मीडियाकर्मियों के वकीलों के तर्क को अदालत ने गंभीरता से सुनने के बाद रजिस्ट्री को कहा कि राज्यों से जो रिपोर्ट मंगाई गई है उसे वकीलों को अधिकृत रूप से मुहैया कराया जाए ताकि वो अध्ययन करके रिपोर्ट अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकें और उसी पक्ष में मीडियाकर्मियों के साथ हो रहे नकारात्मक व्यवहार का उल्लेख करें.अदालत ने पूरे मामले की अगली सुनवाई के लिए छह हफ्ते बाद आने को कहा. इसके अलावा एक अन्य बड़ा डेवलपमेंट ये रहा कि मजीठिया मामले में जो केस नंबर एक है, दैनिक जागरण के कुछ कर्मियों से जुड़ा, उसके वकील अब परमानंद पांडेय नहीं होंगे. उनकी जगह कर्मियों ने कालिन गोंजाल्विस को वकील नियुक्त किया है. चर्चा है कि दैनिक जागरण के अन्य कर्मी भी परमानंद पांडेय को अपने वकील के रूप में न रखने को लेकर सक्रिय हैं और जल्द ही कोई बड़ा डेवलपमेंट हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट मे मजीठिया मामले की जब सुनवाई हुई तो सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रंजन गोगई ने देश भर के अखबारो में मजीठिया वेज बोर्ड लागू नहीं करने पर न सिर्फ नाराजगी जताई बल्कि पत्रकारों के दुखों को अदालत के संज्ञान में लाने के लिए वकीलों से कहा. वकीलों ने बहस के दौरान कोर्ट के बताया कि अदालत द्वारा दिए गए समय के भीतर कई राज्यों ने मजीठिया वेज बोर्ड के इंप्लीमेंटेशन पर स्टेटस रिपोर्ट पेश नहीं की है. इस कारण पूरा मामला टलता जा रहा है और मीडियाकर्मियों का उत्पीडऩ किया जा रहा है. जस्टिस गोगई ने पीडि़त पत्रकारों को दो सप्ताह में एडिशनल एफिडेविट पेश करने को कहा. साथ ही सभी राज्यों को भी आदेश दिया कि वो दो सप्ताह में रिपोर्ट पेश करें. मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी. [1/30, 21:50] क्चह्म्ड्डद्भ . क्कड्डह्म्द्वड्डह्म्: मजीठिया वेज बोर्ड मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में अदालत ने अखबार मालिकों की गुंडई और दुस्साहस को संज्ञान लेते हुए वकीलों को निर्देश दिया कि वे वेज बोर्ड मांगने के कारण अखबारों से निकाले गए या ट्रांसफर किए गए या किसी रूप में प्रताडि़त किए गए मीडियाकर्मियों के डिटेल दाखिल करें. मीडियाकर्मियों के वकीलों के तर्क को अदालत ने गंभीरता से सुनने के बाद रजिस्ट्री को कहा कि राज्यों से जो रिपोर्ट मंगाई गई है उसे वकीलों को अधिकृत रूप से मुहैया कराया जाए ताकि वो अध्ययन करके रिपोर्ट अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकें और उसी पक्ष में मीडियाकर्मियों के साथ हो रहे नकारात्मक व्यवहार का उल्लेख करें. अदालत ने पूरे मामले की अगली सुनवाई के लिए छह हफ्ते बाद आने को कहा. इसके अलावा एक अन्य बड़ा डेवलपमेंट ये रहा कि मजीठिया मामले में जो केस नंबर एक है, दैनिक जागरण के कुछ कर्मियों से जुड़ा, उसके वकील अब परमानंद पांडेय नहीं होंगे. उनकी जगह कर्मियों ने कालिन गोंजाल्विस को वकील नियुक्त किया है. चर्चा है कि दैनिक जागरण के अन्य कर्मी भी परमानंद पांडेय को अपने वकील के रूप में न रखने को लेकर सक्रिय हैं और जल्द ही कोई बड़ा डेवलपमेंट हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट मे मजीठिया मामले की जब सुनवाई हुई तो सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रंजन गोगई ने देश भर के अखबारो में मजीठिया वेज बोर्ड लागू नहीं करने पर न सिर्फ नाराजगी जताई बल्कि पत्रकारों के दुखों को अदालत के संज्ञान में लाने के लिए वकीलों से कहा. वकीलों ने बहस के दौरान कोर्ट के बताया कि अदालत द्वारा दिए गए समय के भीतर कई राज्यों ने मजीठिया वेज बोर्ड के इंप्लीमेंटेशन पर स्टेटस रिपोर्ट पेश नहीं की है. इस कारण पूरा मामला टलता जा रहा है और मीडियाकर्मियों का उत्पीडऩ किया जा रहा है. जस्टिस गोगई ने पीडि़त पत्रकारों को दो सप्ताह में एडिशनल एफिडेविट पेश करने को कहा. साथ ही सभी राज्यों को भी आदेश दिया कि वो दो सप्ताह में रिपोर्ट पेश करें. मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी.

इस सिंहस्थ के बाद क्या ?

डॉ. अरूण जैन
सिंहस्थ के साथ प्रदेश की सत्ता का अजब संयोग है। जिसकी अगुवाई में मेले का आयोजन होता है, उसकी सत्ता चली जाती है। संदर्भ तो यहीं संकेत देते है कि जिस वर्ष उज्जैन में मेला आयोजित हुआ, प्राय: उसी वर्ष में मध्यप्रदेश के सत्ता नेतृत्व में फेरबदल हो गया। कभी रातों-रात मुख्यमंत्री बदले तो कहीं चुनावी नतीजों के कारण पूरी सत्ता का ही परिवर्तन हो गया। कारण चाहे जो भी रहे हों लेकिन सिंहस्थ और सत्ता परिवर्तन के इस संयोग की चर्चा राजनीतिक गलियारों में भी है। आजादी के बाद दो बार साधु-संतों व विद्वानों के बीच विवाद के कारण ऐसा संयोग भी बना कि लगातार दो वर्षों तक दो बार सिंहस्थ आयोजित हुआ।  कब-किसकी कैसे बदली सत्ता ज्योतिषाचार्य एवम्  भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राजनीति का कारक ग्रह राहु तथा शनि को विशेष तौर पर माना गया है। जब भी गोचर काल में राहु-शनि का अन्य पाप ग्रहों से खडाष्टक अथवा दृष्टि संबंध या युति संबंध होता है तो राजनीति परिप्रेक्ष्य में परिवर्तन की स्थितियां बनती हैं। चूंकि बृहस्पति का गोचर काल सिंह राशि में बारह वर्ष बाद बनता है तब विपरीत स्थितियों में ग्रहों का दृष्टि संबंध शासन परिवर्तन करवाता है और प्राय: जब शनि, मंगल का भी गोचर काल वक्र गति से होता है तो वह परिवर्तन की स्थिति को बल प्रदान करता है। इस बार भी सिंहस्थ में इस प्रकार के योग बन रहे हैं, जो प्रदेश में सत्ता सहित बड़े स्तर पर शासकीय परिवर्तन की ओर  इशारा कर रहे हैं। अप्रैल-मई 2004 में सिंहस्थ हुआ। प्रदेश में पूर्ण बहुमत के साथ 8 दिसंबर 2003 को मुख्यमंत्री बनीं भाजपा नेता उमा भारती एक साल भी पद पर काबिज नहीं रह सकीं। 1994 में हुए हुबली दंगा मामले में कर्नाटक की कोर्ट से अरेस्ट वारंट जारी होने के कारण उन्हें 23 अगस्त 2004 को रातों-रात इस्तीफा देकर पद छोडऩा पड़ा और 23 अगस्त 2004 को ही बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने। अप्रैल-मई 1992 में सिंहस्थ हुआ। तब सुंदरलाल पटवा (5 मार्च 1990 से 15 दिसंबर 1992 तक) मुख्यमंत्री थे। बाबरी मस्जिद ढहने के कारण बीजेपी शासित प्रदेशों में 16 दिसंबर 1992 को रातों-रात सरकार बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। प्रदेश में 6 दिसंबर 1993 तक राष्ट्रपति शासन रहा। इसके बाद 7 दिसंबर 1993 को कांग्रेस के दिग्विजयसिंह मुख्यमंत्री बने। मार्च-अप्रैल 1980 में सिंहस्थ हुआ। जनता पार्टी की सरकार थी, वीरेंद्र सकलेचा 18 जनवरी 1978 से 19 जनवरी 1980 तक सीएम रहे। इनके बाद 20 जनवरी 80 से 17 फरवरी 80 तक सुंदरलाल पटवा सीएम रहे। इमरजेंसी के बाद प्रदेश में 18 फरवरी 1980 को राष्ट्रपति शासन लगा दिया। 8 जून 80 तक राष्ट्रपति शासन रहा। 9 जून 1980 को कांग्रेस के अर्जुन सिंह सीएम बने। अप्रैल-मई 1968 और अप्रैल-मई 1969 में सिंहस्थ हुआ। गोविंद नारायण सिंह (30 जुलाई 1967 से 12 मार्च 1969 तक) मुख्यमंत्री थे। इंदिरा और नेहरु कांग्रेस की उलझन के चलते 13 मार्च 1969 को राजा नरेशचंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। हालांकि वे भी केवल 25 मार्च 1969 तक ही सीएम रह सके। इनके बाद 26 मार्च 1969 को श्यामाचरण शुक्ल मुख्यमंत्री बने। अप्रैल-मई 1956 और अप्रैल-मई 1957 में सिंहस्थ हुआ। 1 नवंबर 1956 को मप्र की स्थापना हुई, तब रविशंकर शुक्ल मुख्यमंत्री थे। 31 दिसंबर 1956 को उनके निधन के बाद भगवंत राव मंडलोई को 1 जनवरी 1957 को सीएम बनाया। वे भी 30 जनवरी 57 तक मात्र एक महीने मुख्यमंत्री रह सके। इनके बाद 31 जनवरी 1957 को कैलाशनाथ काटजू मुख्यमंत्री बने।

शिप्रा में नहीं मिलेगा खान का पानी

डॉ. अरूण जैन

सिंहस्थ-2016 के दौरान क्षिप्रा नदी में शुद्ध जल से स्नान हो सके, इसके लिये राज्य शासन द्वारा खान नदी डायवर्शन योजना पर काम किया जा रहा है। 19 किलो मीटर लम्बाई में ग्राम पिपल्याराघौ से निकालकर खान नदी को पाइप लाइन के जरिये कालियादेह महल के आगे क्षिप्रा नदी से जोड़ा जायेगा। इस तरह त्रिवेणी के आगे से भूखी माता, रामघाट और मंगलनाथ क्षेत्र के सभी घाटों पर क्षिप्रा नदी का शुद्ध जल प्रवाहित होगा। सम्पूर्ण योजना के लिये राज्य शासन द्वारा 90 करोड रूपये की राशि स्वीकृत की गई है। निर्माण कार्य पूर्ण गति के साथ चलाया जा रहा है और अनुमान है फरवरी-2016 तक यह कार्य पूर्ण हो जायेगा। योजना अन्तर्गत अब तक 1.8 किलो मीटर लम्बाई में पाइप लाइन बिछाने का कार्य पूर्ण हो चुका है।  साथ ही इस पर 14 करोड रूपये का व्यय करते हुए भुगतान कॉन्ट्रेक्टर मेसर्स के.के.स्पन पाइप को किया गया है। योजना के रास्ते में आने वाले रेलवे एवं सडक मार्गों के नीचे पुशिंग पद्धति से पाइप लाइन नीचे सरकाकर बिना सडक को नुकसान किये कार्य किया जा रहा है। खान डायवर्शन में सीमेन्ट-कांक्रीट के 2.6 मीटर व्यास के पाइप डाले जा रहे हैं। पाइप का आकार इतना बड़ा है कि छोटी कार इसमें से होकर गुजर सकती है। पाइप लाइन डालने के लिये मिट्टी की खुदाई का कार्य भी तेजी से जारी है। सम्पूर्ण योजना के लिये 15 लाख घनमीटर मिट्टी की खुदाई करना है। पिपल्याराघौ से लेकर कालियादेह महल तक अलग-अलग गहराई में पाइप लाइन के लिये खुदाई हो गई है। 7.75 मिलीयन गैलन (एमजीडी) के 2 जलशोधन प्लांट सिंहस्थ-2016 के लिये गऊघाट पर छह मिलीयन गैलन (एमजीडी) जलशोधन का प्लांट छह करोड़ 17 लाख रूपये की लागत से तैयार हो रहा है। इसी तरह साहिबखेड़ी पर पाँच करोड़ 90 लाख रूपये से 1.75 एमजीडी का, इस तरह दो जलशोधन प्लांट तैयार हो रहे हैं। गऊघाट के जलशोधन प्लांट से नर्मदा-क्षिप्रा लिंक से प्राप्त होने वाले पानी का शोधन कर पीने योग्य बनायेगा तथा साहिबखेडी जलशोधन प्लांट साहिबखेडी के जल को शुद्ध करेगा। वर्तमान में इस तरह के चार प्लांट पूर्व से ही कार्यरत् हैं। सिंहस्थ में उक्त प्लांट से 35 मिलीयन लीटर प्रतिदिन अतिरिक्त जल प्राप्त हो सकेगा। सिंहस्थ के लिये विकसित की जा रही इस सुविधा का लाभ आने वाले समय में उज्जैन की जनता को निरन्तर मिलता रहेगा। सिंहस्थ में शाही स्नान के दिन लोक स्वास्थ  यांत्रिकी विभाग द्वारा 162 एम.एल.डी. जल प्रदाय होगा। इसी के अनुरुप  सम्पूर्ण मेला अवधि की कार्ययोजना बनाई गई है।
सिंहस्थ-2016 में मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम 300 स्वीस कॉटेज का निर्माण करेगा। इन्हीं कॉटेजों में से कुछ में वीआईपी के रूकने की व्यवस्था भी की जायेगी। अस्थायी टेन्टों का यह नगर सांवराखेडी क्षेत्र में प्रस्तावित किया गया है। यहां पर पार्किंग एरिया, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट सहित अन्य उच्चस्तरीय व्यवस्थाएं की जायेंगी। इन कॉटेजेस का प्रबंधन पर्यटन विकास निगम द्वारा होटल की तरह किया जायेगा। कॉटेज के इस नगर को पाँच सेक्टर में बांटा गया है। पर्यटन विकास निगम को सिंहस्थ में 16 करोड 12 लाख रूपये आवंटित किये गये हैं, जबकि गत सिंहस्थ में 46 लाख रूपये पर्यटन विकास निगम को आवंटित किये थे। 
नन्दी हॉल का विस्तार महाकालेश्वर मन्दिर में आने वाले लाखों श्रध्दालुओं व दर्शनार्थियों की सुविधा के मद्देनजर नन्दी हॉल का विस्तार किया गया है। इस विस्तार से अधिक श्रध्दालु भस्मार्ती दर्शन का लाभ ले सकेंगे। नन्दी हॉल की क्षमता दो करोड़ 56 लाख रूपये व्यय कर 700 से दो हजार कर दी गई है।
धर्मशाला विस्तार व अन्य कार्य श्री महाकालेश्वर धर्मशाला में विस्तार किया गया है। यहां पर 68 लाख 90 हजार रूपये की लागत से 12 एसी और 12 नॉनएसी कमरे बनाये गये हैं तथा भूमिगत पार्किंग की व्यवस्था की गई है। इसी तरह हरसिध्दि मन्दिर स्थित अतिथि गृह में आठ कमरे 55 लाख रूपये की लागत से बनाये गये हैं। इसी तरह महाकाल प्रवचन हॉल में इको ट्रीटमेंट एवं एयर कूलिंग सिस्टम लगाया गया है। श्री महाकालेश्वर मन्दिर के बाहरी एवं आन्तरिक परिसर में दर्शनार्थियों की सुविधा हेतु एलईडी लाईट भी लगाये गये हैं।
प्रमुख मन्दिरों का सौंदर्यीकरण सिंहस्थ-2016 में आने वाले श्रध्दालुओं की सुविधा हेतु उज्जैन में प्रमुख मन्दिरों का जीर्णोध्दार व कायाकल्प देवस्थान मद से किया जा रहा है। प्रमुख रूप से मंगलनाथ मन्दिर परिसर, सान्दीपनि आश्रम में गोमती कुंड का जीर्णोध्दार व परिसर का सौंदर्यीकरण, चिन्तामन गणेश मन्दिर परिसर का सौंदर्यीकरण, भर्तृहरि गुफा व काल भैरव मन्दिर परिसर को आकर्षक व सुन्दर बनाकर वहां विजिटर्स फेसिलिटी विकसित की जा रही है।
सिंहस्थ में ट्राफिक कंट्रोल एवं सुरक्षा व्यवस्था पुलिस अधीक्षक के अनुसार सिंहस्थ के लिये पुलिस द्वारा ट्रैफिक कंट्रोल की डायनामिक व्यवस्था की गई है। प्रमुख तीन शाही स्नानों 22 अप्रैल, 9 मई तथा 21 मई 2016 में पार्किंग की अलग व्यवस्था रहेगी। मेला अवधि में अन्य सामान्य दिनों में अलग व्यवस्था रहेगी।
छह सेटेलाइट टाउन सिंहस्थ अवधि में छह सेटेलाइट टाउन बनाये जा रहे हैं, जहां पर वाहन पार्किंग, यात्रियों के लिये पानी, शौचालय व छाया की व्यवस्था की जा रही है। सभी सेटेलाइट टाउनों के लिये कुल 393 हेक्टेयर भूमि आरक्षित की गई है। सेटेलाइट टाउन इंजीनियरिंग कॉलेज, सांवराखेड़ी, सोयाबीन प्लांट देवास रोड, पंवासा मक्सी रोड, उन्हेल रोड, आगर रोड व बड़नगर रोड पर बनाये जायेंगे। शाही स्नानों के दिन इन्हीं स्थानों पर पार्किंग करवाई जायेगी। आम दिनों में पार्किंग स्थल शाही स्नान की तिथियों को छोडकर (मेला अवधि 22 अप्रैल से 21 मई 2016) आम दिनों में सांवराखेड़ी, लालपुल, भूखीमाता बायपास, जूना सोमवारिया, रणजीत हनुमान, कालभैरव, मंगलनाथ तथा वीर सांवरकर चौराहा पर पार्किंग की सुविधा रहेगी। यात्री बसें यहां तक जायेंगी सिंहस्थ के दौरान उज्जैन शहर में आने वाली यात्री बसों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिये विभिन्न बस स्टेण्ड निर्धारित किये गये हैं वे इस प्रकार हैं मक्सी, देवास और इन्दौर रोड से आने वाली बसें नानाखेडा बस स्टेण्ड तक आयेंगी। बडनगर रोड की बसें बड़नगर रोड सेटेलाइट टाउन तक आयेंगी। उन्हेल रोड से आने वाली बसें उन्हेल रोड सेटेलाइट टाउन तक आयेंगी। आगर रोड से आने वाली बसें आगर रोड सेटेलाइट टाउन तक आयेंगी। शहर में सडक पर खडे रहने वाले वाहन एक मार्च से पार्किंग पर शहर में सडकों पर खडे रहने वाले वाहनों को एक मार्च 2016 से नजदीक के पार्किंग स्थल पर खडा करने के निर्देश प्रसारित किये जायेंगे। इस हेतु वाहनों का सर्वेक्षण किया जा रहा है।
1000 मैजिक व 400 मिनी बसें लोक परिवहन के लिये 28 रूट तय किये गये हैं। इन पर एक हजार मैजिक व चार सौ मिनी बसों का संचालन श्रद्धालुओं को लाने-ले जाने के लिये किया जायेगा। नि:शक्तजनों के लिये ई-रिक्शा महाकाल व रामघाट तक चलेंगे। चाक-चौबन्द सुरक्षा व्यवस्था सिंहस्थ में पुलिस द्वारा चाक-चौबन्द सुरक्षा व्यवस्था की जायेगी। सभी प्रवेश-द्वारों पर सशस्त्र नाका चैकिंग लगाई जायेगी। सिंहस्थ क्षेत्र में प्रवेश पर वाहनों व व्यक्तियों की गणना तथा चेकिंग होगी। रेलवे स्टेशनों, हवाई पट्टी पर भी चेकिंग होगी। प्रमुख मन्दिरों की सुरक्षा, स्नान घाटों पर प्रवेश मार्गों पर तथा कोर एरिया में सशस्त्र गार्डों द्वारा निगरानी होगी। इसी के साथ अन्य धार्मिक स्थलों की सुरक्षा, एंटी टेरेरिस्ट स्क्वाड की तैनाती, घाटों व जुलूस मार्ग की ऊंचे भवनों से बायनाकुलर से निगरानी की जायेगी। इसी के साथ होटल, लॉज, ढाबों व धर्मस्थलों की जांच की जायेगी।

शरीफ को सहारे की जरूरत

डॉ. अरूण जैन
इस समय दुनिया में अगर किसी राजनेता को सर्वाधिक सहानुभूति और नैतिक सहारे की जरूरत है, तो वह हैं पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम नवाज शरीफ। शरीफ को अपने ही मुल्क में तमाम मोर्चों पर लडऩा पड़ रहा है। अगर वह सफल रहे, तो दुनिया में उनका दर्जा कमाल अतातुर्क जैसा हो जाएगा। असफल होने पर उन्हें मिखाइल गोर्बाचेव की तरह कलंकित होना पड़ सकता है, क्योंकि पाकिस्तान पर विखंडन का खतरा भी मंडरा रहा है। भारत में जो लोग यह सोचकर खुश होते हैं कि पाकिस्तान अपनी लगाई आग में झुलस रहा है, वे आत्मघाती हैं। अशांत और विखंडित पड़ोसी खतरनाक साबित होता है। अपनी सीमाओं पर बसे देशों से भारत के सर्द-गरम रिश्तों पर नजर डाल देखें, सब समझ में आ जाएगा। चीन को हम शत्रु मानते आए हैं। आज उसकी गिनती दुनिया के अमीर मुल्कों में होती है, इसीलिए उसकी सरजमीं से आतंकवादियों का निर्यात नहीं होता। उसके हुक्मरां सीमा विवाद पर बात करने की बजाय व्यापार की बढ़ोतरी पर बल देते हैं। इसके उलट पाकिस्तान की सत्ता और सेना हमारे सीमाई सूबों में आग लगाती रही हैं। अगर पाकिस्तान में भी खुशहाली की बयार बहने लगे, तो वे इधर-उधर उलझने की बजाय अपना घर संवारने में जुट जाएंगे। यह हो कैसे? पहले वहां के अंदरूनी हालात पर नजर डालते हैं। पाकिस्तान एक इस्लामी राष्ट्र है। पाकिस्तान की स्थापना के पीछे अवधारणा थी कि मुसलमानों को ऐसा राज्य चाहिए, जहां वे अपनी धार्मिक परंपराओं के अनुरूप फल-फूल सकें। मोहनदास करमचंद गांधी के आभा मंडल के सामने अपनी प्रतिष्ठा का दीप बुझता देख मोहम्मद अली जिन्ना ने यह ‘मीठी गोली’ अखंड भारत के मुसलमानों को दी थी। वे अलग देश बनाकर भी नाकामयाब रहे। अपने उदय के साथ पाकिस्तान तमाम विरोधाभासों से घिर गया। धर्म भले एक था, पर इस देश में बहुलतावाद के इतने कारक मौजूद थे कि उन पर सिर्फ मजहब से फतह नहीं पाई जा सकती थी। यही वजह है कि आज के पाकिस्तान में पठानों, बलूचों और अल्पसंख्यकों की सत्ता में भागीदारी लगभग न के बराबर है। जिस पाकिस्तान का गठन इस्लाम के नाम पर हुआ था, वहां के लोगों की हालत अन्य इस्लामी देशों के मुकाबले बेहद खराब है। संसार की सबसे बड़ी मुसलमान आबादी इंडोनेशिया में है। वहां के लोगों की तुलना पाकिस्तानियों से करने पर हम अचरज से भर जाते हैं। इंडोनेशिया की प्रति व्यक्ति सालाना आय 2015 में तकरीबन 11,135 अमेरिकी डॉलर थी। पाकिस्तान में प्रति व्यक्ति आय इसकी आधी से भी कम 4,902 डॉलर है। पिछली गरमियों में पाक में बिजली की इतनी भयंकर कटौती हुई कि 1,200 से ज्यादा लोग लू और ताप से मर गए। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता पर गुरुवार को हुए आईएस के हमले ने इस्लामाबाद को भी साफ संदेश दिया है। इंडोनेशिया कभी पाकिस्तान की तरह आतंकवाद की ‘प्रयोगशाला’ नहीं रहा। अल बगदादी वहां कयामत बरपाने में जुटा है। पाकिस्तान में तो ओसामा तक शरण पाता रहा है। दहशत के कारोबारी जब जकार्ता को नहीं बख्श रहे, तो भला पाक को क्यों छोड़ेंगे?आतंकवादियों को पालने-पोसने की सजा हमारे पड़ोसी को शिद्दत से मिल रही है। साल 2004 से 2014 के बीच पाकिस्तान में हुए ‘दोस्त’ अमेरिका के ड्रोन हमलों में 2,414 लोग मारे गए और मुल्क में खून-खराबे की वजह से 18 लाख लोगों को दर-बदर होना पड़ा। वहां आपसी मार-काट कितनी भयंकर है, इसका उदाहरण पेशावर के सैनिक स्कूल पर हुआ हमला है। 16 दिसंबर, 2014 को हुई इस घिनौनी आतंकवादी हरकत में 132 बच्चों को मौत के घाट उतार दिया गया था। इसके बाद से पाकिस्तान में बहस तेज हो गई है कि दहशतगर्दी से हमें क्या मिला? नवाज शरीफ और पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल राहील शरीफ के पास उनसे जूझने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। सैकड़ों आतंकवादियों को पकडक़र सैनिक अदालतों के हवाले कर दिया गया और दर्जनों लोगों को सूली पर लटका दिया गया। इन कठोरतम फैसलों में भी दोमुंहापन झलक रहा था। अलगाववादियों से तो वहां की हुकूमत निपट रही थी, पर भारत विद्वेषियों को तब भी पनाह दी जा रही थी। यह गलत फैसला था। हाफिज सईद, जकीउर्रहमान लखवी, दाऊद इब्राहिम, मसूद अजहर और इन जैसे दहशतगर्दों ने पाकिस्तानी सत्ता और समाज पर इतनी पकड़ बना ली है कि वे अब इस्लामाबाद के हुक्मरानों को आंखें दिखाने लगे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मसूद अजहर का ताजा बयान है। हिरासत में लिए जाते ही जैश की साइट पर पोस्ट किए गए उसके खत में भारत-पाकिस्तान, दोनों को धमकाया गया है। उसने मुशर्रफ पर हुए हमले का भी जिक्र किया है। मतलब, मौलाना अप्रत्यक्ष तौर पर शरीफ को जान से मारने की धमकी दे रहा है। यही नहीं, मुंबई हमलों के ‘मास्टर माइंड’ हाफिज सईद ने जुम्मे की तकरीर में मोदी के साथ नवाज शरीफ को भी कोसा। साफ है। सेना और सत्ता को मिलकर ऐसे तत्वों का सफाया करना होगा, जो परेशानियों से घिरे पाक को नई मुसीबतों में डाल रहे हैं। पाकिस्तान को अब अपनी रीत-नीत में आमूल परिवर्तन करना होगा। आतंकवादियों ने उसे अपनी मिल्कियत समझ लिया है। वे वहां अपनी कारगुजारियों को मालिकाना अंदाज में अंजाम देते हैं। मसूद अजहर की नजरबंदी से उम्मीद जगी है कि आईएसआई, सेना और वहां की अन्य एजेंसियां शांति के इन शत्रुओं को भविष्य में आस और आसरा नहीं देंगी। ऐसे लोगों को सैनिक अदालत के हवाले कर इंसाफ के दरवाजे तक पहुंचाया जाएगा। इसके लिए जरूरी है कि नई दिल्ली, वाशिंगटन और बीजिंग के सत्तानायक मिलकर आतंकवादियों के स्वर्ग (बकौल बराक ओबामा) पाकिस्तान के मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान को यह नैतिक बल प्रदान करें कि वह ऐसे तत्वों की गर्दन मरोड़ सके। इस संबंध में गृह मंत्री राजनाथ सिंह का बयान गौरतलब है कि फिलहाल वहां के हुक्मरानों की नीयत पर शक करने का कोई कारण नहीं है। पाकिस्तान को अपनी नेकनीयती साबित करने के लिए थोड़ा वक्त देना चाहिए। यही वजह है कि पठानकोट हमले के बावजूद नई दिल्ली के सत्तानायकों ने संयमित भाषा का इस्तेमाल किया। परिणाम सामने है। जैश के लोगों की गिरफ्तारी के शुरुआती संकेत शुभ हैं। आप दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों के प्रवक्ताओं की भाषा पर गौर करें। ऐसा लगता है, जैसे स्क्रिप्ट साथ बैठकर लिखी गई है। दोनों को मौलाना मसूद की गिरफ्तारी की खबर नहीं, दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकार लगातार संपर्क में हैं, दोनों विदेश सचिवों ने विचार-विनिमय के बाद 15 जनवरी को प्रस्तावित बातचीत को टाला आदि-इत्यादि। और तो और, पाकिस्तान के जांच दल को पठानकोट आने की अनुमति देने को भारत तैयार है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। उम्मीद है, शरीफ और मोदी उन निष्कर्षों पर भी पहुंचेंगे, जिनकी पहले महज कल्पना की गई थी। यहां यह भी गौरतलब है कि राहील शरीफ ने पाकिस्तानी अवाम से वायदा किया है कि 2016 में वह पाक को आतंकवाद से मुक्त करके रहेंगे। उनका यह संकल्प भारत के साथ सुलह किए बिना कैसे पूरा हो सकता है?

यादगार पल सहेजने देना होगी यादगार दक्षिणा

डॉ. अरूण जैन
एक साधु महाराज ने जनसम्पर्क विभाग के बड़े साहब की टेबल पर एक रुक्का धर दिया। अनुशन्सा प्रदेश के मुखिया की और डिमांड दस लाख रुपए के विज्ञापन आरओ की थी। मौका था महाराज की किसी स्मारिका के प्रकाशन का। साहब ने नियम दिखाए, कायदे समझाए, इतना विज्ञापन न दे पाने के दस कारण गिनाए। महाराज ने फिर मुखिया जी का फोन नंबर डायल कर मोबाइल साहब की तरफ सरकाने की प्रक्रिया की। मरता, क्या न करता, साहब को वह करना पड़ा, जो वह करने की मन्शा नहीं रखते थे। इस आरओ को जारी न करने के पीछे साहब दर्द नियमों का अनदेखापन नहीं था, बल्कि बिना दक्षिणा हाथ से फिसलते बड़े आरओ ने उन्हें आहत कर दिया था। हजारों सन्स्थान, एनजीओ और तरह-तरह की दुकानें मौजूद हैं। साल में एक बार स्मारिका के नाम पर 25 से 35 हजार रुपये देने का सरकारी प्रावधान। इससे ज्यादा पाने के लिए पचासों तरह के हथकन्डे। रजिस्टर्ड सन्स्था का जनक भले भूल जाए, लेकिन जनसम्पर्क का एक अमला विशेष इसे नहीं भूलता। शहरभर (या प्रदेशभर कहना भी अतिशयोक्ति भरा नहीं होगा) में फैले गोरखधंधा विशेषज्ञों के अय्यार चुन चुनकर सन्स्थाए जनसम्पर्क की झोली में डाल देते हैं। सन्स्थान सन्चालक(?) के हिस्से आता है जारी विज्ञापन राशि का 30 से 35 फीसदी, 10-15 प्रतिशत बकरा लाने वाले अय्यार की झोली में और बची रकम साहब तथा साहब के कारिन्दो के जेब में। सिलसिला सालों का है, आगे भी जारी रहने की प्रबल संभावना हैं। दस-बीस पेज की मुड़ी तुड़ी मैग्जिन में छपे एक सरकारी विज्ञापन से सरकार की किसी योजना का प्रचार प्रसार की उम्मीद नहीं की जा सकती। सरकार की मन्शा भी इन संस्थाओं को आर्थिक मदद पहुंचाने भर की ही होती है। लेकिन मदद की इस मद से कौन मदमस्त हो रहा है, सब जानते हैं। पुछल्ला एक बड़े साहब, एक उनसे भी बड़े साहब। छोटे छोटे साहबों की भी भरमार। छोटे बाबू, बड़े बाबुओं की फौज से फारिग होते चतुर्थ श्रेणी अधिकारियों की सीरीज कहाँ शुरु हो जाती है, पता ही नहीं लगता। कोई काम लेकर पहुंचे तो मिले किससे? चक्रव्यूह को भेदने की महारत सिर्फ एक ही अभिमन्यु जानता है, वह हैं के अधिकारियों के मुह लगे दलाल।

मध्यप्रदेश में बड़ा चैनल घोटाला ,जीरो टीआरपी वाली चैनल्स पर मेहरबान हुआ जनसम्पर्क विभाग

डॉ. अरूण जैन
मध्यप्रदेश में इन दिनों बड़ा चैनल घोटाला चर्चा में है जिसकी अंतर्कथा व्यापम से जोडक़र देखी जा रही है।  खबर यह है की वर्ष 2012 से उन  चैनलस पर मेहरबानी की  जो अधिकांश जीरो टीआरपी पर हैं या बंद पड़ी हैं जबकि बड़ी चैनल्स अपने प्राइम टाइम के समाचरों के विज्ञापन के लिए  तरस रहीं हैं यहाँ तक की प्रधानमंत्री मोदी की पसंद दूरदर्शन को छ अंकों की राशि में भी शामिल नहीं किया गया है ,कुल 100 करोड़ के इस घोटाले में उन चैनल मालिकों की पौ बारह हो गयी है जो या तो जेल में बंद हैं या उन पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं. दरअसल मध्यप्रदेश विधानसभा में 8 दिसम्बर 2015 को कांग्रेस के विधायक बालबच्चन  ने ताराकित प्रश्न क्रमांक 288 के माध्यम से सरकार से यह जानकारी मांगी तब से मध्यप्रदेश के राजनैतिक और प्रशासनिक हलकों में मीडिया मैनेजमेंट और चैनल घोटाले के चर्चों को पर लग गए हैं मध्यप्रेश शासन के जनसम्पर्क विभाग के प्रमुख सचिव् एस के मिश्रा ने आज मंत्रालय  में इस घोटाले की जाँच के आदेश दिए हैं दूसरी और कांग्रेस इस मुद्दे को व्यापम से जोडक़र भुनाने चाहती है कांग्रेस के नेताओं ने इसे मीडिया मैनजमेंट में जनधन लुटाने का आरोप लगते हुए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को खरीदने का सीधा सीधा आरोप सरकार पर लगाया है. मध्य्रपदेश के सहारा समय को 12 करोड पचास लाख रुपये की राशि दी गयी है वहीँ ई टीवी मध्यप्रदेश को 13 करोड़ और ई टी वी उर्दू को लगभग 1 करोड़ की राशि दी गए है, मध्यप्रदेश के स्थानीय चैनल बंसल न्यूज़ को 11 करोड़ 57 लाख , साधना न्यूज़ मध्यप्रदेश को 8 करोड 78 लाख रुपये की राशि विज्ञापनों के नाम पर बाँट दी गयी है. जबकि देश के प्रधानमंत्री की सर्वाधिक पसंद और शासकीय समाचारों की अधिकृत चैनल दूरदर्शन को  मात्र 8 लाख में संतोष करना पड़ा है। लोकल चैनल आपरेटर हाथ वे इंदौर को 50 लाख ,सुदर्शन न्यूज़ को 14 लाख ,सिटी केबल को 84 लाख ,टाइम्स नाउ को 1 करोड़ 39 लाख , एबीपी न्यूज़ को 12 करोड 76 लाख , ज़ी मीडिया को 6 करोड़ 10 लाख, सी एन बी सी आवाज को 6 करोड़ 50 लाख , इंडिया न्यूज़ को 8 करोड 68 लाख , एन डी टी वी को 12 लाख 84 हजार, न्यूज़ वर्ल्ड को 1 करोड 28 लाख रुपये , भास्कर मल्टिनेट के मालिक सुधीर अग्रवाल को 6 लाख 95 हजार , सेंट्रल इंडिया डिजिटल नेटवर्क प्राइवेट लिमिटेड को 1 करोड़ 41 लाख की राशि लुटाए गयी है. अपराधिक छवि वाले संचालकों पर कृपा सरकार का जनसम्पर्क महकमा मध्यप्रदेश की जनता का पैसा लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है ,जिन चैनल्स को विज्ञापनों के नाम पर करोड़ों रुपये दिए गए हैं उनमें से अधिकांश चैनल के मालिक जेलों में बंद हैं या उनके विरुद्ध वारंट निकले हुए हैं मसलन पी 7 के संचालक केसर सिंह पर आर्थिक अपराध के कई मामले चल रहे हैं उनकी बंद पड़ी चैनल को सरकारी खजाने से 76 लाख रुपये की राशि दी गई हैं. चिटफंड कंपनी साईं प्रसाद मीडिया लिमिटेड के चैनल को 23 करोड़ 33 लाख रुपये दिए गए हैं जिसमें कंपनी ने दो बार कंपनी और चैनल का नाम बदला , सूत्र बताते हैं  की चैनल के मालिक भापकर मुंबई जेल में बंद हैं।  खबर भारती , भारत समाचार और स्टेट न्यूज़ को क्रमश 9 करोड़, 45 लाख और 1 करोड़ से नवाजा गया है जबकि जो चैनल गर्भ में ही हैं दबंग डी लाइव को  1 लाख अग्रिम रूप से दे दिए गए हैं , बात यहीं खत्म नहीं होती प्रोडक्शन हाउस निकिता फिल्म्स को चैनल की आड़ में 61 लाख रुपये की रेवाड़ी बांटी  गयी है।  कई नेशनल चैनल्स के स्टेट ब्यूरो भी इस घोटाले की आड़ में भरी भरकम राशि ले कर उपकृत हुए हैं , इस घोटाले की सूची बहुत लम्बी है किन्तु स्थानाभाव के कारन चुनिंदा नाम ही यहाँ दिए गए हैं। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा ने पूरे मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए कहा है कि देश की आजादी में लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ यानि मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी लेकिन लोकतंत्र के मूल्यों को भभ्रष्टाचार से बचाने  का प्रतिबिम्ब मीडिया भी शिवराज सिंह चौहान के बदनाम चेहरे को बचाने  में इस्तेमाल हो गया है.  मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने पहले डम्पर कांड फिर व्यापम घोटाल के कलंक को धोने के लिए लोकतंत्र के महत्वपूर्ण आधार स्तम्भ की प्रतिमा और प्रतिभा को खंडित करने का दुस्साहसास सरकारी खजाने से धन लूटा कर किया है. मध्यप्रदेश शासन के जनसम्पर्क विभाग के प्रमुख सचिव एस  के मिश्रा ने राज्य में हुए चैनल घोटाले के उजागर होने का बाद अब जाकर संपूर्ण मामले की जाँच करवाने के आदेश दिए हैं। कुल मिलाकर  मध्यप्रदेश की राजनीती में एक बार फिर व्यापम घोटाले को मैनेज करने के लिए चैनल घोटाला सुर्खियां बटोर रहा है ऐसे में सरकार की छवि बनाने वाले विभाग जनसम्पर्क और राज्य के मुखिया मुख्यमंत्री की परेशानी बढ़ गई  है देखना यह है की इस संकट की घडी में शिवराज किस मीडिया के सहारे पार लगते हैं।

सिंहस्थ में खलल डाल सकते हैं खंडवा से फरार हुए सिमी आतंकवादी , रेलवे को सतर्क रहने के निर्देश

डॉ. अरूण जैन
सिंहस्थ के चलते रेलवे ने सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद करने की तैयारी कर ली है।   खुफिया विभाग के अनुसार करीब दो साल पहले खंडवा जेल से भागे सिमी के गुर्गे उज्जैन सिंहस्थ में खलल डाल सकते हैं। इसके चलते एटीएस के एक वरिष्ठ अधिकारी को उज्जैन का प्रभार देकर भेजा गया है।  खुफिया विभाग ने सूचना दी है कि यह फरार आतंकी यहां गड़बड़ी कर सकते हैं। इसलिए इन पर विशेष नजर रखने की जरूरत है।  इसके चलते विभाग ने आरपीएफ व जीआरपी से इस मामले में सहयोग मांगा है। रेलवे अधिकारियों को शंका है कि यह लोग उज्जैन पहुंचने के लिए रतलाम से ट्रेन, सडक़ मार्ग के अलावा अन्य किसी भी रास्ते का उपयोग कर सकते हैं। इसी को लेकर सुरक्षा व्यवस्था दुरूस्त की गई है। इसको लेकर स्टेशनों पर मेटल डिटेक्टर, बम निरोधन दस्ता, खोजी श्वान की मदद ली जाएगी।  2013 में सिमी के यह गुर्गे खंडवा जेल से फरार हुए थे। इनमें से कुछ पकड़े गए तो कुछ तेलंगाना में मुठभेड़ के दौरान आमने-सामने की लड़ाई में मारे गए। इनके अलावा अब भी चार गुर्गे फरार हैं। जिनकी तलाश में अलग अलग संगठन लगे हैं। महाराष्ट्र एटीएस ने इनके ऊपर 5 लाख रुपए का तो एनआईए ने 10 लाख रुपए का इनाम रखा है। पुलिस व एटीएस को मेहबूब गुड्डू, जाकिर, अमजद व सलीख की तलाश है। यह चारों बिजनौर उत्तर प्रदेश में ब्लास्ट के बाद से फरार चल रहे हैं।हालांकि खुफिया विभाग को इनके बीच में राजस्थान व महाराष्ट्र बार्डर होने की सूचना मिली थी, लेकिन इसमें अधिक नहीं हो पाया।              सिमी के गुर्गे कुछ कर न पाएं, इसके लिए विशेष जागरुकता की जरुरत है। रेलवे को इसके लिए अतिरिक्त चौकसी के लिए कहा है।  महेंद्र खत्री, सिंहस्थ प्रभारी, पुलिसविभाग आतंकी पकड़ में आएं इसके लिए हमारा विभाग जागरुक है। चौकसी को बढ़ाया गया है। इसके अलावा यात्रियों से भी अपील है कि कुछ संदिग्ध दिखे तो तुरंत 138 या 182 पर सूचना दें। एस सुधाकर, मंडल सुरक्षा आयुक्त, रतलाम रेल मंडल

पीएम के औचक-भौंचक दौरे 

डॉ. अरूण जैन
  प्रधानमंत्री का अचानक पाकिस्तान पंहुच जाना क्या था? इसे कोई भी बता नहीं पा रहा है। ऐन वक्त पर औचक-भौंचक दौरे का पता लगने के बाद खुद भाजपा के प्रवक्ताओं को भी तैयार होने में ढाई घंटे से ज्यादा लग गए। वो भी तब जब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भाजपा प्रवक्ताओं की बाकायदा क्लास लगाकर उन्हें पढ़ाया कि क्या बोलना है। इस बीच टीवी पर भी अफरातफरी मची रही। टीवी चैनल तो इतने बेखबर थे कि उन्हें पाकिस्तान के पत्रकारों से पूछ-पूछकर अपने दर्शकों को बताना पड़ा कि हमारे प्रधानमंत्री इस समय कहां हैं? कब लाहौर पहुंचेगे? पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से बातचीत का उनका क्या कार्यक्रम है? कुल मिलाकर भारतीय टीवी चैनलों और उनके बहसिया कार्यक्रमों में बैठने वाले विशेषज्ञों को इतना भौंचक इससे पहले कभी नहीं देखा गया था। पाकिस्तान के मीडिया में अचानक जान पड़ी-ऐसे मौकों पर अक्सर पाकिस्तानी टीवी चैनलों को दबा दबा से देखा जाता था, लेकिन प्रधानमंत्री के इस औचक-भौंचक दौरे से पाकिस्तान के मीडिया में अचानक जान सी आ गई। हमारे अपने टीवी पत्रकारों को हर क्षण उनसे ही पूछना पड़ रहा था कि वहां आगे क्या होने वाला है। जबकि ऐसा हो नहीं सकता कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भारतीय पत्रकारों का दल न हो, लेकिन इस सनसनीखेज कार्यक्रम की उन्हें भनक तक नहीं लगी। सिर्फ शुरू या बीच में ही नहीं बल्कि आखिर तक। किसी को कुछ नहीं पता था कि इस समय पाकिस्तान में क्या हो रहा है और आगे क्या होने वाला है।  टूट टाट गया नयाचार- दो देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच चाहे औपचारिक बात होनी हो या अनौवचारिक, उसके कायदे यानी प्रोटोकॉल यानी नयाचार तय होते हैं। इस दौरे से यह नयाचार गायब हो गया। बारह घंटे हो गए, लेकिन अब तक रहस्य बना हुआ है कि हमारे प्रधानमंत्री का पाकिस्तान में रुकने का फैसला कब हुआ था? किस मकसद से हुआ? और इसके राजदार कौन कौन थे? हद तो तब हो गई जब अफगानिस्तान से लाहौर के बीच के घंटे भर के सफर के बीच ही भारत में अफरातफरी और अटकलों का ऐसा दौर चल पड़ा कि सुनने वालों का सिर चकरा गया। किसी ने कहा कि यह चकराने वाला कार्यक्रम देश के भीतर की परेशानियों की बातों से ध्यान हटाने के लिए था। किसी ने कहा कि ये सब दुनिया की बड़ी ताकतों के दबाव का नतीजा था। कोई कह रहा था कि पाकिस्तान से बातचीत शुरू करने का यह अच्छा तरीका साबित होगा। नए नयाचार का नाम देने की कोशिश- भाजपा प्रवक्ताओं ने इस औचक दौरे को अपारंपरिक नयाचार यानी अनकन्वेंशनल प्रोटोकॉल का नाम देने की कोशिश की। लेकिन इस अजीब और नई चीज का यह नाम जंचता नहीं है। जरा हटके वाला जुमला हम हर कहीं नहीं लगा सकते। और अगर भौंचक दौरों को आगे भी चलाना हो, तो कई नए रट्टे पैदा हो सकते हैं। मसलन राष्ट्राध्यक्षों की सुरक्षा इतना बड़ा मसला है कि बिना तारीख और समय तय किए या गुपचुप तरीके से राष्ट्राध्यक्षों के दौरे तय करने का चलन नई जटिलताएं पैदा कर देगा। दो देशों के बीच संबंधों खासतौर पर पाकिस्तान के मामले में भारत की विदेश नीति कोई आकस्मिक या तात्कालिक रूप से निर्धारित नहीं की जा सकती। पिछली घटनाएं, दुर्घटनाएं, संधियां, समझौते देखने ही पड़ते हैं। अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं से भी हम सब बंधे हुए हैं। लिहाजा तदर्थ और औचक हलचल किसी बड़े पचड़े में डाल सकती है। नए प्रयोग की शुरुआत पाकिस्तान से क्यों?- पाकिस्तान से अपने रिश्तों की मुश्किल से पूरी दुनिया वाकिफ है। किसी भी तरह की बातचीत से पहले आतंकवाद और कश्मीर का पच्चर फंस जाता है। देश के भीतर सांप्रदायिक रंग की बातों और आंतरिक राजनीति में पाकिस्तान की बातों के बिना हम अपना राजनीतिक गुजारा नहीं कर पा रहे हैं। जिस तरह किसी कथा या उपन्यास में खलनायक जरूरी है उसी तरह घरेलू और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक खलनायक बनाए रखने का चलन है। क्या यह सच नहीं है कि दोनों देशों के राजनीतिक दलों ने अपनी सियासी जरूरतों के लिहाज से अपनी अपनी जनता के मन में अपने पड़ोसी के प्रति उसी तरह के खलनायक की छवि बनाए रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। कमोबेश दोनों तरफ से। लिहाजा अब भाजपा के सत्ता में आने के बाद अचानक पाकिस्तान के प्रति अपने रुझान को बदलने का आधार क्या बताया जा सकता है। और फिर भाजपा के सहयोगी दल और भाजपा के कार्यकर्ता इस मामले में इतनी जल्दी पुराने रुख को छोडक़र उस पड़ोसी से अचानक अपनापा दिखाने के लिए आसानी से तैयार कैसे हो पाएंगे? और किस बिना पर? इसीलिए पिछले एक दशक से सत्ता में रही यूपीए के नेता को नरेंद्र मोदी के अचानक पाकिस्तान दौरे को लेकर सवाल उठाते रहे। वे पूछते रहे कि पिछले दो साल में पाकिस्तान की तरफ से ऐसा कौन सा संकेत मिला है जिसके आधार पर कहा जा सके कि पाकिस्तान से बातचीत लायक माहौल बन गया है। फर्ज कीजिए मनमोहन सिंह ने ऐसा किया होता-यूपीए सरकार गए अभी दो साल भी नहीं हुए हैं। आतंकवाद के खिलाफ और उस बहाने पाकिस्तान के खिलाफ माहौल बनाए रखने के लिए तब विपक्ष में रही भाजपा के रुख को इतनी जल्दी भुलाया नहीं जा सकता। सोचकर देखें कि अगर मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान से बातचीत का ऐसा रुख दिखाया होता, तो भाजपा का क्या रवैया होता? इस काल्पनिक स्थिति को यह कहते हुए भी खारिज नहीं किया जा सकता कि तब स्थितियां भिन्न थीं। क्योंकि पाकिस्तान की तरफ से हाल फिलहाल कोई भी संकेत नहीं आया है कि हालात बदले हैं। यानी आज प्रधानमंत्री का औचक दौरा माहौल बदलने के मकसद से साबित किया जाए, तो आज से दो साल पहले के माहौल में भी साबित हो सकता था। लेकिन तब विपक्ष में रही भाजपा का रुख पाकिस्तान के प्रति शुक्रवार जैसा उदार नहीं था। यानी वह मनमोहन के दौरे के खिलाफ आसमान सिर पर उठा लेती।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ को एक दूसरे से जोडऩे वाले का नाम है सज्जन जिंदल
प्रधानमंत्री नरेगमोदी अचानक पहली बार पाकिस्तान पहुंचे और अगले वर्ष फिर से वह सार्क सम्मेलन में हिस्सा लेने पाकिस्तान जाएंगे। पीएम मोदी के इस अचानक कुछ घंटे के पाकिस्‍तान दौरे से हर कोई हैरान है। वहीं एक नाम जो बार-बार हर किसी के जेहन में आ रहा है वह जिंदल स्टील्स के सज्जन जिंदल का। सज्न पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ के करीबी हैं और वह भी आज ही लाहौर पहुंचे हैं। सज्जन कांग्रेस के पूर्व सांसद नवीन जिंदल के भाई भी हैं। नवाज शरीफ और मोदी की नेपाल के काठमांडू में सार्क सम्‍मेलन के दौरान हुई मुलाकात हर किसी को याद है। साथ ही यह भी कोई नहीं भूला है कि दोनों नेता सम्मेलन की शुरुआत में एक दूसरे की ओर देख भी नहीं रहे थे। लेकिन इसी सम्मेलन में दोनों नेताओं के बीच एक घंटे की एक सीक्रेट मीटिंग भी हुई थी। सार्क सम्मेलन से अलग हुई इस सीक्रेट मीटिंग पीछे सज्‍जन जिंदल की कोशिशों को श्रेय दिया जा रहा था। सीनियर जर्नलिस्‍ट बरखा दत्त ने हाल ही में अपनी किताब में इस बात का खुलासा किया है। बरखा ने अपनी किताब में लिखा है कि सबके सामने एक-दूसरे से मुंह चुराने वाले पीएम शरीफ और पीएम मोदी को एक व्यक्ति ऐसा मिला जो चीजों के कठिन होने के बावजूद उन्हें एक साथ जोडक़र रख सकता है। दत्त ने अपनी किताब में जिंदल को दोनों नेताओं के बीच एक तरह के अप्रत्यक्ष पुल के तौर पर परिभाषित किया है।

सिंहस्थ की ब्रांडिंग पर विदेशों में 58 करोड़ खर्च होंगे

डॉ. अरूण जैन
 सिंहस्थ 2016 की ब्रांडिंग अब विदेशों में भी होगी। अकेले जनसंपर्क विभाग इस पर करीब 58 करोड़ रूपए खर्च करने जा रहा है। युएसए और यूके में भी सिंहस्थ महाकुंभ के पोस्टर लगाए गए है। वहीं फ्लाईट मैगजिन, विदेशी समाचार पत्रों में भी विज्ञापन देने की योजना बनाई गई है।

अकाल के कारण 1897 में सिंहस्थ महिदपुर में हुआ था...

डॉ. अरूण जैन
   आपको यह जानकर थोड़ा आश्चर्य होगा कि वर्ष 1897 में उज्जैन नगरी में होने वाला सिंहस्थ आयोजित नहीं किया गया था। मगर यह सत्य है कि सिंहस्थ का आयोजन उज्जैन के स्थान पर अन्यत्र महिदपुर में आयोजित किया गया था। आज से 118 वर्ष पूर्व 1897 में उज्जैन भीषण अकाल की चपेट में था। उस समय भीषण अकाल के कारण लोग अन्न और जल के लिये तरस गये थे। सिंहस्थ के साल लोग पलायन करने लगे। ऐसे में शिप्रा नदी में पानी सूख गया था। शिप्रा में स्नान की समस्या उठ खड़ी हुई। साधुओं के लिये अन्न-जल के प्रबंध की समस्या भी सामने ही थी। तत्कालीन सिंहस्थ रियासत सिंहस्थ की व्यवस्था करने में असहाय महसूस करने लगी। सिन्धिया शासन ने इन्दौर के होल्कर राजा के माध्यम से साधुओं को यह सन्देश दिया कि अकाल के कारण उनके लिये उज्जैन में सिंहस्थ का आयोजन करना असंभव है। अत; वे उज्जैन न आयें। सिन्धिया रियासत ने आपातकालीन व्यवस्था न कर पाने के साथ सख्ती के भी संकेत दिये। उस समय इन्दौर से होकर उन्हेल होते हुए महिदपुर का रास्ता था। महिदपुर में होल्कर रियासत का राज था। शिप्रा की एक उगाल अर्थात् पानी का एक बड़ा हिस्सा महिदपुर के गंगवाड़ी क्षेत्र में भी था। होल्कर नरेश ने साधुओं के सिंहस्थ स्नान की व्यवस्था गंगवाड़ी में की और यहां आने वाली जमातों की व्यवस्था भी की गई। इस कार्य से साधुओं के गंगवाड़ी पहुंचने पर महिदपुर में सिंहस्थ मेला भरा और साधुओं को गंगवाड़ी में स्थित शिप्रा नदी की उगाल में ही स्नान कर संतोष करना पड़ा। उस समय सिंहस्थ के इतिहास में यह पहली घटना थी, जब सिंहस्थ के दौरान रामघाट और समूचा स्थान सूना रहा और सिंहस्थ यहां से 60 किलो मीटर दूर महिदपुर के गंगवाड़ी में आयोजित हुआ। इसके बाद सन् 1919 में पुन: अगला सिंहस्थ परम्परागत रूप से पुन: उज्जैन में ही होना शुरू हुआप गौरव नारायण उपाध्याय अकाल के कारण 1897 में सिंहस्थ उज्जैन की जगह महिदपुर में हुआ था

धूल भरे गुबार में होगा क्या सिंहस्थ !

अरूण जैन
सिर पटक- पटक कर मर जाओ, पर अधिकारी सिस्टेमेटिक काम नही करेंगे। काम हो रहे हैं, पर उनका लाभ इसलिए नही मिल रहा क्योंकि जुड़े हुए छोटे-छोटे काम पूरे नहीं हो रहे है। सिंहस्थ को किस प्रकार से करना चाहते हैं यह शायद सरकार में बैठे किसी भी जनप्रतिनिधि को नही समझ आ रहा! आखिर कौन जिम्मेदारी लेगा व्यवस्थित कामकाज की ?
बड़े-बड़े कामों पर ही नजर डालें तो जीरो पाइंट ओवरब्रिज के पहुंच मार्ग काम मंथर गति से चल रहा है। यह सिंहस्थ का सबसे जरूरी ओवरब्रिज है। जयसिंहपुरा सड़क मार्ग देखें तो यह महत्वपूर्ण पड़ाव स्थल है, पर इसके उबड़-खाबड़ पन का भगवान मालिक है। कई जगह तो इतना उॅंचा-नीचा और गढ्ढे हैं कि दुर्घटनाएं अवश्यम्भावी है। कुछ सड़क मार्ग अभी भी अधूरा है। वाकणकर ब्रिज और शांतिपैलेस के समीप के ओवरब्रिज के पहुंच मार्ग के छोटे-छोटे टुकड़े बचे हुए है। कोई उन्हें पूरे करने नहीं जा रहा ।
मंगलनाथ-सिद्धवट और आयुर्वेद कालेज वाली सड़के भी धूल चाट रही है। ये सभी जरूरी पड़ाव स्थल हैं । पड़ाव स्थलो पर शौचालय निर्माण, समतलीकरण बहुत सुस्त स्थिति में चल रहा है। निम्नस्तरीय भी है। मानकर चलिए यह पैसा तो पानी में बहाया जा रहा है । मेरा मानना है कि अधिकारियों को अभय दान देने की बातें करना फिजूल हैं। एक केन्द्रीय व्यक्ति सिलसिलेवार काम देखें प्रतिदिन और उन्हे क्रम से पूरे करवाए अन्यथा धूल के गुबार भरा सिंहस्थ ही होगा ।

कामों से असन्तुष्ट संतो के अखाड़े कर सकते है सिंहस्थ का बहिष्कार


डॉ. अरूण जैन
संतों का कहना है कि सरकार सिहंस्थ के आयोजन में तीन हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है, जिसका सदुपयोग नहीं हुआ है. इसकी जगह इतने बड़ी राशि का थोड़ा सा भी हिस्सा अखाड़ों पर खर्च कर दिया जाता तो उनका कायाकल्प हो जाता. अखाड़ों का कहना है कि अगर यही हाल रहा तो उनके जरिए मेले का बहिष्कार करने का निर्णय भी लिया जा सकता है ।
अखाड़ों ने कहा -कर सकते हैं मेले का बहिष्कार उज्जैन सिंहस्थ को तीन महीने से भी कम समय बचा है लेकिन उसकी तैयारियां अभी भी पूरी नहीं हो सकी है. इससे नाराज संत -अखाड़ों ने अब प्रशासन पर सवाल खड़े करना शुरू कर दिया है. गुरु दत्तात्रेय अखाड़े के प्रमुख पीर महंत परमानंद पुरीजी महाराज ने नवनियुक्त सिंहस्थ केंद्रीय समिति के अध्यक्ष माखनसिंह चौहान से सिंहस्थ की तैयारी को लेकर बड़े ही तल्ख लहजे में सवाल किए. उन्होंने चौहान से सीधे पूछा कि जो काम पिछले तीन साल से सरकार पूरा नहीं कर पाई है वहीं काम महज पांच महीने में भला वो कैसे पूरा कर पाएंगे. इस पर चौहान ने संत से उनका आशीर्वाद मांग काम अच्छे से और समय पर पूरा करने की बात कही. सभी अखाड़े हैं नाराज सिहंस्थ-2016 की तैयारी को लेकर सभी अखाड़ों में भारी असंतोष है.अभी तक की व्यवस्था से कोई भी अखाड़ा संतुष्ट नजर नहीं आ रहा है.