Sunday 23 October 2016

प्रजातंत्र के तीन स्तम्भों की रखैल बनकर रह गया चौथा स्तम्भ-पत्रकारिता




अरूण जैन
भले ही प्रजातंत्र में और संविधान में तीन स्तम्भ परिभाषित किए गए हों और लाख तीनों स्तम्भ, पत्रकारिता को प्रजातंत्र का चौथा स्तम्भ कहते थकते नहीं हो, परन्तु वास्तविकता यह है कि सुख-सुविधाओं और आजादी का भरपूर उपभोग तीनों स्तम्भ सगी बहनों की तरह कर रहे हैं। चौथे स्तम्भ ‘पत्रकारिता’ को सभी ने ‘रखैल’ का दर्जा दे रखा है। उसके साथ बंधुआ मजदूर से भी गया-बीता व्यवहार किया जा रहा है। पत्रकारों को सुविधाएं देने के मामले में इन तीनों को ‘भयंकर पेट’ दर्द होता है। 
मध्यप्रदेश और देश में पत्रकारों और पत्रकारिता का जिस प्रकार शोषण हो रहा है उसे कमोबेश सभी जानते-समझते हैं। अपवाद छोड़ दिए जाएं तो तीनों महत्वपूर्ण स्तम्भ, पत्रकारिता का नाम आने पर नाक-भौंह सिकोड़ने लगते हैं। हमेशा कहा जाता है कि वीवीआयपी सुख पत्रकार उठा रहे हैं। हकीकत यह है कि शासन स्तर पर और समाचार पत्र मालिकों के स्तर पर पत्रकारों को शारीरिक-मानसिक स्तर पर बुरी तरह प्रताडि़त किया जा रहा है। 
अब मध्यप्रदेश में ही ले लीजिए। कुछ माह पहले सभी दलों के विधायकों ने संयुक्त रूप से मिलकर अपने वेतन-भत्ते असीमित रूप से बढ़ा लिए। इसके तुरन्त बाद माननीय मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने स्वयं के, स्पीकर के और मंत्रियों के वेतन-भत्ते बढ़ा लिए। न्यायपालिका के वेतन-भत्ते बढ़ाने की स्वीकृति प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में लिखित रूप में दे दी है। पिछले सप्ताह मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और कलेक्टरों समेत आयएएस/आयपीएस के वेतन भत्ते अप्रत्याशित रूप से बढ़ा दिए गए। एक नजर भी डाल लीजिए- विधायक 71 हजार रूपए से बढ़ाकर  1.10 लाख रूपए, राज्य मंत्री  1.20 लाख से बढ़ाकर1.50 लाख, काबीना मंत्री 1.20 लाख से 1.70 लाख, मुख्यमंत्री 1.43 लाख से सीधे 2 लाख,        स्पीकर 1.75 लाख, सीएस/डीजीपी को 2.25 लाख रूपए (45 हजार की वृद्धि), कलेक्टर-एसपी को 1.25 लाख (30 हजार वृद्धि)। राज्य कर्मचारियों को भी धड़ाधड़ नए वेतनमान दिए जा रहे हैं। मुख्यमंत्रीजी की विदेश यात्राएं देखे तो एक विदेश यात्रा पर 50 लाख से 2 करोड़ रूपए का व्यय मामूली बात है। बदले में मिला क्या, यह एक अलग बहस का विषय है। सत्ता सुख का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि पिछले वर्ष एक होटल में 10 लोगों को शिवराजसिंह ने आधे घंटे का भोज दिया, पूर्णतया मांसाहारी। इसका बिल था सवा तीन लाख रूपए। हेलीकाप्टर और वायुयान लेकर देश में ऐसे घूमते हैं जैसे सायकल से न्यू मार्केट से एमपी नगर जा रहे हों। 
इधर पत्रकारों की स्थिति भी देख लें-एक-डेढ़ वर्ष पूर्व राज्य सरकार ने 60$ आयु के राज्य अधिमान्य पत्रकारों के लिए 5 हजार रूपए प्रतिमाह सम्मान निधि शुरू की है। करीब 6 माह से भी अधिक समय से इंडियन फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट, एमपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन और अन्य पत्रकार संगठन प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष मुख्यमंत्री और जनसम्पर्क मंत्री से निवेदन कर रहे हैं कि सम्मान निधि की राशि 60$ के लिए 10 हजार, 70$ के लिए 15 हजार और 80$ के लिए 20 हजार रूपए प्रति माह की जाए। सारे खतरों से जूझते हुए, अपनी जान जोखिम में डालते हुए पत्रकार रिपोर्टिंग करते हैं। उनके लिए यह सुविधाएं मात्र सम्मान ही है, ऐश का साधन नही। पर मजाल है, शासन के कान पर जूं तक रेंगी हो। विधायिका और कार्यपालिका चुप्पी लगाकर बैठी हैं। न्यायपालिका इसलिए विवश है कि कोई पत्रकार संगठन उनके समक्ष गुहार लगाने नही पहुंचा। अब संज्ञान लें तो कैसे। शायद इससे अधिक दुर्गति चौथे स्तम्भ की और नही हो सकती। कुछ संगठनों ने प्रधानमंत्री के समक्ष मसला पहुंचाया है, देखे क्या होता हैं ?

Monday 10 October 2016

अमेरिका-भारत सम्बंध व्यक्तिगत सम्बंध महत्वपूर्ण या देश सुधार...?



सांता कलारा (केलीफोर्निया)। भारतीय पत्रकार अरूण जैन के साथ सांता कलारा शहर का भ्रमण किया, इस दौरान हम लोगों ने यह महसूस किया कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने अपनी विगत यात्रा अमेरिका यात्राओं के दौरान यहॉं के राष्ट्रपति के साथ व्यक्तिगत सम्बंधों की अभिवृद्धि के अलावा यदि यहां के प्रशासनिक सुधारो पर चिंतन-मनन कर उन्हे भारत में लागू करने पर बल दिया होता, तो उससे न सिर्फ प्रधानमंत्री को विदेशों के साथ भारत में भी लोकप्रियता में और वृद्धि होती, बल्कि देश आज कई दृष्टि से अनुशासित और कर्तव्यनिष्ठ हो गया होता।
    आज इस शहर की यात्रा के दौरान हमने जहां शनीवेल हिन्दू मंदिर में हिन्दूओं के सभी देवी-देवताओं को अर्चना के साथ गणेशोत्सव के दर्शन किए, वहीं पर्यूषण पर्व के दौरान जैन समाज का अपने आराध्य के प्रति निष्ठा और सेवा भाव के भी दर्शन किए। करीब पचास कि.मी. की इस कार यात्रा के दौरान लोग सबसे अधिक यहां के यातायात नियंत्रण और यातायात नियमों के प्रति यहां के आम आदमी के समर्पण भाव से प्रभावित हुए। इस यात्रा के दौरान हमें राष्ट्रीय व राजकीय मार्ग और गली-कूंचो में न तो पुलिस कर्मी नजर आया नजर आया और न ही कोई नियंत्रक, सब कुछ अनुशासन बद्ध टेªफिक जारी था।
    उसके बाद जब हमारी नजर यहॉं के मकानों, उनके द्वारा घेरी गई भूमि पर पड़ी तो देखा कि यहां न तो किसी ने अतिक्रमण किया है और न मकान के आसपास भारत जैसी कोई सुरक्षा दीवार या द्वार ही बनाया है, कहने का मतलब यह कि सब कुछ नियमों के दायरे में।
    अमेरिका प्रवास के दूसरे दिन तक हमें न तो एक भी झुग्गी-झोपडी नजर आई और न घरों में काम करने वाली बाई। ऐसा कतई नहीं है कि यहां बेरोजगारी या गरीबी नहीं है, वह तो ईश्वर की तरह ही हर कहीं व्याप्त है, किन्तु यहां गरीबी के साथ लाचारी कतई नहीं है।
    अपनी अभी तक की दो दिनी यात्रा में हमनें अवश्य महसूस किया कि यहां मोटर साईकिल या बाईक बहुत ही कम है, यहां बाईक को विलासिता की वस्तु माना जाता है और कार को आवश्यक आमजीवन यापन की वस्तु। इसीलिए यहां के सम्पन्न या करोड़पति-अरबपति मंहगी मोटर साईकलें चलाते है और सामान्य वर्ग कार चलाता है।
    इसके अतिरिक्त यहां शिक्षा के क्षेत्र में आई क्रांमि के भी दर्शन हुए, यहां सरकारी स्कूलों में सम्पन्न वर्ग के बच्चे पढ़ते है और निजी स्कूल गरीब बच्चों से भरे रहते है, यहां सरकारी स्कूलों में निःशुल्क शिक्षा है, जब कि निजी स्कूलों पर सरकार का सख्त नियंत्रण है।
    आम आदमी से जुड़ी कुछ ये अच्छाईयां हमें हमारी प्रारंभिक यात्रा के दौरान नजर आई, यदि मोदी जी व्यक्तिगत सम्बंधों की अपेक्षा इन पर ध्यान देकर भारत में ऐसी व्यवस्था लागू करते तो वह न सिर्फ मोदीजी की ‘कुर्सी’ को दीर्घजीवी भी बनाती बल्कि देश के हित में भी होती।
जापान ने सुभाषचन्द्र बोस की मौत की जानकारी पहले अमेरिका को क्यों दी ?


सांताक्लारा, (कैलिफोर्निया) (अरूण जैन)। कितनी अजीब बात है कि वर्ष 1945 में ताईवान मे विमान दुर्घटना में मारे गए नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के बारे में पूरी जानकारी जापान सरकार ने अमेरिका को कुछ ही हफ्तों बाद दे दी थी। परन्तु भारत सरकार को अंतिम रिपोर्ट की प्रस्तावना सन् 1956 (11 वर्ष बाद) में सौंपी गई। त्रासदी देखिए, न अमेरिकी सरकार ने सूचना दी और न भारत सरकार ने कुछ किया। यहां तक कि सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक न करते हुए रहस्य बनाए रखा।
इस ताजा जानकारी का श्रेय 91 वर्षीय गोविन्द तलवलकर को दिया गया है, जो अभी अमेरिका में रह रहे हैं। महाराष्ट्र टाइम्स के पूर्व मुख्य संपादक रह चुके श्री तलवलकर को ये दस्तावेज नेशनल डाइट पार्लियामेंट लायब्रेरी ऑफ जापान से मिले हैं। बोस फाइल्स डॉट इंफो पर बताया गया है कि 97-2 मॉडल की जापानी बमवर्षक विमान सुभाषचन्द्र को दोपहर एक बजे ताइहोकू (ताइपे का जापनी नाम) एयर फील्ड पर पहुंचा था। तेल भरने के बाद दोपहर दो बजे विमान ने फिर से उड़ान भरी और कुछ मीटर की उंचाई पर जाते ही तकनीकी गड़बड़ी के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया और नेताजी की मौत हो गई।
इस सारे रहस्योद्घाटन का एक और दिलचस्प पहलू यह भी है कि भारत सरकार को यह रिपोर्ट दक्षिण पूर्व एशिया में मित्र देशों की सेना के कमांडर लार्ड लुइस माउंटबेटन द्वारा जानकारी मांगने पर सन् 1956 में दी गई। लब्बोलुआब यह है कि भारत सरकार ने तब भी जानकारी नही मांगी थी। भारत सरकार का यह रवैया सभी की समझ से परे है, जबकि देश आजाद होने के बाद लम्बे समय तक कांग्रेस की सरकार सत्ता में रही। हालांकि भाजपा के माध्यम से सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ माह पूर्व बोस से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करने की घोषणा की है। पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने भी दस्तावेज सार्वजनिक करने की घोषणा की, पर राजनैतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह भी ‘वोट राजनीति’ है। क्योंकि नेताजी से जुड़ी 200 महत्वपूर्ण फाइलें अभी भी गोपनीय रखी गई है। कांग्रेस ने लम्बे समय तक इसे रहस्य के पर्दे में क्यों रखे रखा ? नरेन्द्र मोदी इसे क्यों उजागर करना चाहते है ? जापान ने भी इतने लम्बे समय से चुप्पी क्यों साध रखी है ? अब इस जानकारी को देने के पीछे क्या मंशा है? यह सब ऐसे अनुत्तरित प्रश्न है जिसका जवाब संभवतः कोई भी नही देना चाहेगा। परन्तु विश्लेषक यह कहने से नही चूक रहे कि नरेन्द्र मोदी कुछ समय पूर्व अपनी जापान यात्रा में वहां की सरकार को इस बात के लिए राजी करके आए हैं और इस घटना रिपोर्ट के माध्यम से वे एक बार फिर कांग्रेस को घेरे में लेना चाहते हैं।

तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रही है अमेरिका-रूस की लड़ाई


मिडिल ईस्ट में भयावह युद्ध का दौर चल रहा है… भारत-पाकिस्तान-चीन में तनातनी नॉर्मल से आगे की बढ़ चुकी है… रूस-अमेरिका के रिश्तों में और खटास आ चुकी है. तीसरे विश्व युद्ध की आशंकाओं के बादल अगर किसी समय सबसे ज़्यादा प्रबल होने के आसार हैं, तो वो ये समय है. जिन्होंने बाकी दो विश्व युद्धों को करीब से देखा और झेला है, उनके हिसाब से इस वक़्त जो स्थितियां बन रही हैं, वो किसी बड़े टकराव की ओर ही ले जा रही हैं. अगर हालिया घटनाओं पर नजऱ डालें, तो तीसरे विश्व युद्ध की कल्पना से इनकार नहीं किया जा सकता. इसका ताज़ा सबूत है रूस-अमेरिका के बीच बढ़ता तनाव. ये दोनों ही देश, वेसे तो कभी भी एक-दूसरे के फेवरेट नहीं रहे, लेकिन बातचीत की कोशिशें दोनों ने जारी रखी, जिस पर हाल ही में दोनों दशों ने विराम लगा दिया.
रूस की मिनिस्ट्री ऑफ़ डिफेन्स के देश भर में प्रसारित होने वाली टीवी सर्विस में बोला गया है कि अमेरिका मॉस्को के खिलाफ अपने परमाणु हथियार तैयार कर रहा है और हो सकता है कि ये बात आगे तक जाये. आगे का मतलब साफ़ तौर पर जंग से था. रूस के प्रेजिडेंट व्लादिमीर पुतिन ने भी अमेरिका के साथ हथियारों को लेकर किये गए अपने एक समझौते से हाथ खींच लिए, जिससे साफ ज़ाहिर होता है कि रूस अब अमेरिका के साथ किसी भी तरह की दोस्ती निभाने के मूड में तो नहीं है. सीरिया में सिविलियन्स के खिलाफ अपनी असंवेदनशील कार्यवाही के लिए रूस को पहले ही अमेरिका सहित बाकी देश लताड़ चुके हैं, लेकिन वो इससे पीछे नहीं हटा. ये सीरिया में रूस की नीति का अहम हिस्सा है.जनता को जारी किये गये सन्देश में मॉस्को में ऐसे अंडरग्राउंड शेल्टर्स की भी बात की गयी, जहां इमरजेंसी के समय मॉस्को शहर की पूरी पॉपुलेशन आ सकती है. वहीं अमेरिका में पेंटागन की तरफ से बयान आया है कि तीसरा विश्व युद्ध जल्द ही होगा और बहुत जल्दी ख़त्म हो जाएगा. दोनों देशों के स्टेटमेंट्स की तुलना की जाए, तो इनका इशारा एक परमाणु हमले की तरफ है. हालांकि परमाणु शक्ति से लैस, दुनिया का कोई भी देश ऐसे हमले की कल्पना नहीं करेगा, लेकिन इन दोनों देशों के प्रतिनिधिओं की बात से ये तो साफ़ है कि इनका इरादा शांति तो कतई नहीं है. हालांकि इस बात से नकारा नहीं जा सकता है कि ये दोनों देश खुद को युद्ध के लिए तैयार कर रहे हैं, वहीं ये सच्चाई ये भी है कि वॉर करना इतनी आसान चीज़ नहीं है. इसमें जान, माल की जो क्षति होगी, उसकी भरपाई सदियों में भी नहीं हो पाएगी, दुनिया का नक्शा बदल जाएगा.
हिरोशिमा पर हुए एटम बम अटैक के वक़्त जो लोग उस क्षेत्र के आस-पास भी कहीं थे, वो पल भर में गायब हो गए थे. ऐसे अटैक्स के कारण आने वाली कई जेनरेशन्स तक कई बीमारियों और अक्षमताओं के साथ पैदा होंगी. करोड़ों लोग एक बलास्ट में ख़त्म हो जाएंगे, बचेगा तो बस रेडियोएक्टिव एलिमेंट्स का धुआं, जो बची हुई चीज़ों को भी लील लेगा. हिरोशिमा के एटॉमिक हमले में जो भी इसकी चपेट में आये थे, वो पल भर में ऐसे गायब हुए थे कि उनकी राख तक नहीं मिली थी. आप सोच सकते हैं उसे कई गुना ज़्यादा शक्तिशाली परमाणु हमला क्या तबाही का सकता है? हम आशा करते हैं कि भारत-पाकिस्तान समेत सभी देश अपने मतभेदों का हल बातचीत से निकालें, क्योंकि अगर युद्ध हुआ, तो ये इस धरती का अंत होगा.

अमेरिका में लगातार चौथा राष्ट्रपति, चुनौती वही पुतिन


वाशिंगटन डीसी से अरूण जैन
अमेरिका में बीते डेढ़ दशक से राष्ट्रपति बदलते रहे हैं, लेकिन अमेरिकी विदेश नीति की एक चुनौती अपनी जगह कायम है. चुनौती है रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से निपटना.बात सीरिया संकट की हो, यूक्रेन की या फिर साइबर स्पेस में होने वाली गतिविधियों की, पुतिन का रूस खतरे उठाने और ताकत दिखाने के मामले में जोखिम उठाने के लिए अमेरिका से ज्यादा तत्पर दिखाई देता है. पुतिन ने 2000 में जब पहली बार बतौर राष्ट्रपति सत्ता संभाली थी, तो बिल क्लिंटन अमेरिका के राष्ट्रपति थे. उसके बाद जॉर्ज बुश और बराक ओबामा आए और अब फिर अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं.
बीते चार साल में रूसी राष्ट्रपति ने यूक्रेन के क्रीमिया को अपने देश में मिला लिया और सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद को सत्ता बाहर करने की अमेरिकी योजना को कामयाब नहीं होने दिया. इसके अलावा अमेरिका पर होने वाले साइबर हमले भी बढ़े हैं जिनके लिए अमेरिकी अधिकारी रूसी खुफिया एजेंसी के इशारों पर काम करने वाले हैकर्स को मानते हैं.
ताजा घटनाक्रम में पुतिन ने अमेरिका के साथ उस संधि को भी तोड़ दिया है जिसमें हथियारों में इस्तेमाल होने सकने वाले प्लूटोनियम को नष्ट करना है. हथियार कंट्रोल संघ के डेरिल किमबॉल कहते हैं, अगर उनके संबंध खराब होते हैं तो वे दोनों परमाणु हथियार नियंत्रित करने के क्षेत्र में अपना दबदबा कायम करने या ताकत दिखाने की कोशिश करेंगे.
अमेरिका के कुछ पूर्व और मौजूदा अधिकारी मानते हैं कि अमेरिका समझ ही नहीं पाया है कि जिस दशक में सोवियत संघ का पतन हुआ, उसे लेकर पुतिन के मन में कितनी कड़वाहट है. एक अमेरिकी अधिकारी का कहना है कि पुतिन अपने देश का खोया हुआ रसूख हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं जबकि इराक और अफगानिस्तान में युद्धों से सहमा अमेरिका जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं है.
नाम न जाहिर करने की शर्त पर इस अधिकारी ने कहा, प्रशासन कभी समझ नहीं पाया है कि पुतिन और बहुत सारे रूसी लोग 1990 के दशक को लेकर किस कदर भावुक हैं और उनके हिसाब से दुनिया में रूस का जो स्थान होना चाहिए, वो उसे हासिल करने के लिए कितने प्रतिबद्ध हैं और पुतिन वही हासिल करने में लगे हैं. वो तब तक आगे बढ़ते रहेंगे जब तक उन्हें किसी गंभीर प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा और अब तक उन्हें ऐसा कुछ झेलना नहीं पड़ा है.
सीरिया के मुद्दे पर रूस से वार्ता टूटने के बाद अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि व्हाइट हाउस को अभी तय करना बाकी है कि सीरिया में आगे क्या करना है, लेकिन ये उम्मीद कम ही लोगों को है कि अपने कार्यकाल के आखिरी महीनों में वो कोई बड़ा बदलाव करेंगे.

Wednesday 5 October 2016

चाइना सदर्न ने अमेरिकी उड़ानों पर भारतीय परम्परागत भोजन शुरू किया


सेन फ्रांसिस्को से अरूण जैन
आखिरकार ब्लूआईजन्यूज. कॉम की पहल रंग लाई और चाइना सदर्न एयरलाइन्स ने अपनी समस्त अमेरिकी उड़ानों पर आने-जाने वाले भारतीयों एवं अन्य यात्रियों को पूर्ण शाकाहारी भोजन देना शुरू कर दिया। इस भोजन में भी भारतीय परम्परागत भोजन यात्रियों को दिया जा रहा है। ब्लूआइजन्यूज ने पिछले माह इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था कि चाइना सदर्न एयरलाइन अमेरिका जाने वाले भारतीयों को ‘बीफ’ परोस रही है, नो वेज फूड।
यह समाचार प्रकाशित होने के बाद इस एयरलाइन के चीन स्थित संचालक हरकत में आए। पता लगाया गया कि ऐसा कैसे हुवा। जानकारी मिली कि चाइना सदर्न ‘वेज फूड’ के नाम पर कुछ भी नही रखती, यात्रा के दौरान। जबकि, इस एयरलाइन से प्रतिदिन बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक अमेरिका आते-जाते हैं। सेन फ्रांसिस्को जाते समय जब भारतीय पत्रकारों ने शाकाहारी भोजन मांगा तो वायुयान में एयर होस्टेस और केप्टेन ने आश्चर्य व्यक्त किया कि वे केवल ‘बीफ’ परोस सकते हैं। क्योंकि यात्रा में ‘वेज फूड’ रखा ही नही जाता। नाराजी जताने पर उन्होने कहा कि वेज फूड जैसी कोई व्यवस्था है ही नही। बड़ी जद्दोजहद के बाद अमेरिका जाते समय पत्रकारों को सेंवफल और कुछ अन्य फल खाने के लिए उपलब्ध कराए गए। सहज ही ब्लूआइजन्यूज. कॉम ने इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया। तब चीन से एयरलाइन संचालकों ने पत्रकारों को संदेश दिया कि लौटते समय से वे ध्यान रखेंगे कि सभी भारतीयों को ‘वेज फूड’, विशेष कर भारतीय परम्परागत भोजन मिले। उन्होने भारतीय दल के ‘आर्गेनाइजर’ को दूरभाष पर आश्वस्त करते हुए कहा कि वापसी यात्रा पर वे सेन फ्रांसिस्को में पत्रकारों से तस्दीक कर लेवें। उस समय सुखद आश्चर्य हुवा जब वापसी के लिए चाइना सदर्न में बठने के कुछ ही देर बाद एयर होस्टेस ने अरूण जैन और ओमप्रकाश मेहता से सीधे आकर पूछा कि सर! वेज फूड लेंगे। हां, कहने पर सबसे पहले दोनों को वेज फूड दिया गया। उसके बाद वायुयान में बैठे अन्य करीब 40-45 भारतीय यात्रियों को वेज फूड दिया गया। इसमें भी छोले, चांवल, पाव-भाजी, दही आदि प्रमुख थे। बताया गया कि टिकिट पर ‘वेज फूड’ दर्ज कराने पर एयरलाइन ने नामजद ‘वेज फूड’ मांग के अनुसार और अतिरिक्त रूप से प्रत्येक उड़ान पर रखना शुरू कर दिया है। एयर लाइन को पत्रकारों की ओर से धन्यवाद और साधुवाद।