प्रजातंत्र के तीन स्तम्भों की रखैल बनकर रह गया चौथा स्तम्भ-पत्रकारिता
अरूण जैन
भले ही प्रजातंत्र में और संविधान में तीन स्तम्भ परिभाषित किए गए हों और लाख तीनों स्तम्भ, पत्रकारिता को प्रजातंत्र का चौथा स्तम्भ कहते थकते नहीं हो, परन्तु वास्तविकता यह है कि सुख-सुविधाओं और आजादी का भरपूर उपभोग तीनों स्तम्भ सगी बहनों की तरह कर रहे हैं। चौथे स्तम्भ ‘पत्रकारिता’ को सभी ने ‘रखैल’ का दर्जा दे रखा है। उसके साथ बंधुआ मजदूर से भी गया-बीता व्यवहार किया जा रहा है। पत्रकारों को सुविधाएं देने के मामले में इन तीनों को ‘भयंकर पेट’ दर्द होता है।
मध्यप्रदेश और देश में पत्रकारों और पत्रकारिता का जिस प्रकार शोषण हो रहा है उसे कमोबेश सभी जानते-समझते हैं। अपवाद छोड़ दिए जाएं तो तीनों महत्वपूर्ण स्तम्भ, पत्रकारिता का नाम आने पर नाक-भौंह सिकोड़ने लगते हैं। हमेशा कहा जाता है कि वीवीआयपी सुख पत्रकार उठा रहे हैं। हकीकत यह है कि शासन स्तर पर और समाचार पत्र मालिकों के स्तर पर पत्रकारों को शारीरिक-मानसिक स्तर पर बुरी तरह प्रताडि़त किया जा रहा है।
अब मध्यप्रदेश में ही ले लीजिए। कुछ माह पहले सभी दलों के विधायकों ने संयुक्त रूप से मिलकर अपने वेतन-भत्ते असीमित रूप से बढ़ा लिए। इसके तुरन्त बाद माननीय मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने स्वयं के, स्पीकर के और मंत्रियों के वेतन-भत्ते बढ़ा लिए। न्यायपालिका के वेतन-भत्ते बढ़ाने की स्वीकृति प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में लिखित रूप में दे दी है। पिछले सप्ताह मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और कलेक्टरों समेत आयएएस/आयपीएस के वेतन भत्ते अप्रत्याशित रूप से बढ़ा दिए गए। एक नजर भी डाल लीजिए- विधायक 71 हजार रूपए से बढ़ाकर 1.10 लाख रूपए, राज्य मंत्री 1.20 लाख से बढ़ाकर1.50 लाख, काबीना मंत्री 1.20 लाख से 1.70 लाख, मुख्यमंत्री 1.43 लाख से सीधे 2 लाख, स्पीकर 1.75 लाख, सीएस/डीजीपी को 2.25 लाख रूपए (45 हजार की वृद्धि), कलेक्टर-एसपी को 1.25 लाख (30 हजार वृद्धि)। राज्य कर्मचारियों को भी धड़ाधड़ नए वेतनमान दिए जा रहे हैं। मुख्यमंत्रीजी की विदेश यात्राएं देखे तो एक विदेश यात्रा पर 50 लाख से 2 करोड़ रूपए का व्यय मामूली बात है। बदले में मिला क्या, यह एक अलग बहस का विषय है। सत्ता सुख का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि पिछले वर्ष एक होटल में 10 लोगों को शिवराजसिंह ने आधे घंटे का भोज दिया, पूर्णतया मांसाहारी। इसका बिल था सवा तीन लाख रूपए। हेलीकाप्टर और वायुयान लेकर देश में ऐसे घूमते हैं जैसे सायकल से न्यू मार्केट से एमपी नगर जा रहे हों।
इधर पत्रकारों की स्थिति भी देख लें-एक-डेढ़ वर्ष पूर्व राज्य सरकार ने 60$ आयु के राज्य अधिमान्य पत्रकारों के लिए 5 हजार रूपए प्रतिमाह सम्मान निधि शुरू की है। करीब 6 माह से भी अधिक समय से इंडियन फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट, एमपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन और अन्य पत्रकार संगठन प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष मुख्यमंत्री और जनसम्पर्क मंत्री से निवेदन कर रहे हैं कि सम्मान निधि की राशि 60$ के लिए 10 हजार, 70$ के लिए 15 हजार और 80$ के लिए 20 हजार रूपए प्रति माह की जाए। सारे खतरों से जूझते हुए, अपनी जान जोखिम में डालते हुए पत्रकार रिपोर्टिंग करते हैं। उनके लिए यह सुविधाएं मात्र सम्मान ही है, ऐश का साधन नही। पर मजाल है, शासन के कान पर जूं तक रेंगी हो। विधायिका और कार्यपालिका चुप्पी लगाकर बैठी हैं। न्यायपालिका इसलिए विवश है कि कोई पत्रकार संगठन उनके समक्ष गुहार लगाने नही पहुंचा। अब संज्ञान लें तो कैसे। शायद इससे अधिक दुर्गति चौथे स्तम्भ की और नही हो सकती। कुछ संगठनों ने प्रधानमंत्री के समक्ष मसला पहुंचाया है, देखे क्या होता हैं ?