Thursday 24 September 2015

नेहरू की विरासत को त्यागने की यह बेताबी किसलिए? 


डॉ. अरूण जैन
नई दिल्ली में त्रिमूर्ति पर बने जवाहर लाल नेहरू म्यूजियम को आधुनिक बनाने के भारतीय जनता पार्टी सरकार के फैसले से लोग में डर की भावना दिखाई दे रही है। भाजपा के प्रवक्ता ने सफाई दी है कि वर्तमान म्यूजियम (संग्रहालय) राष्ट्रीय आंदोलन का सिर्फ नेहरू वाला पक्ष सामने लाता है, उसकी पूरी कहानी नहीं। विडंबना है कि आधुनिक बनाने की मांग उन लोगों ने की है जिन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में जरा योगदान नहीं किया है। अगर उनकी कोई भूमिका थी भी तो यहीं कि उन्होंने ब्रिटिश शासकों की मदद की। संस्थानों के भगवाकरण के पीछे भाजपा के मन में क्या है। पार्टी ने इसी तरह का प्रयास उस समय किया था जब अटल बिहारी वाजपेयी सत्ता में थे। लेकिन उन्होंने इतिहास की दोबारा व्याख्या करने के इस प्रयास की मजबूती से विरोध किया था। वह आजादी हासिल करने में नेहरू के योगदान को मानते थे और उन्होंने इस का पूरा श्रेय नेहरू को दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अलग तरह के आदमी हैं। वह खुलकर उस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मार्गदर्शन लेते हैं जो राष्ट्रीय संघर्ष की आलोचना करता है क्योंकि उसने इसमें भाग नहीं लिया था। मोदी के शासन में नेहरू म्यूजियम को नया रूप देने का मतलब है इतिहास में पुराने पड़ गए विचारों को घुसाना। नेहरू ने आजादी के बाद राष्ट्र को गढऩे का काम किया और उसे एक वैज्ञानिक मिजाज दी। नेहरू का सबसे बड़ा योगदान सेकुलरिज्म का सोच है। बंटवारे के बाद जब पाकिस्तान ने इस्लामिक राज्य बनाने का निर्णय लिया, उन्होंने भारत को सेकुलर बनाया। शायद भाजपा इसी चीज को पसंद नहीं करती है और म्यूजियम का चरित्र बदलना चाहती है। क्यों नहीं, भाजपा एक अलग म्यूजियम बनाती है जहां वह इतिहास को उस रूप में रखे जिस तरह से वह इसे रखना चाहती है। मैं कुछ दिनों पहले पुणे गया था और यह देख कर बैचेन हुआ कि उस आगा खां पैलेस को एक पर्यावरण पार्क में बदल दिया गया है जहां ब्रिटिश शासकों ने आजादी के आंदोलन की प्रेरक हस्तियों, महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल और मौलाना अबुल कलाम आजाद को कैद में रखा था। मुझे पार्कों से कोई शिकायत नहीं है। लेकिन राष्ट्र के खून से पवित्र बन गए स्थानों को उसी रूप में बनाए रखना चाहिए जैसा वे थे ताकि नई पीढ़ी उसे अपने वास्तविक रूप में देख सके। कितनी भी ईमानदारी से सजावट हुई हो, यह असली भावना को बुझा देती है। इसके विपरीत, अमृतसर से जालियांवाला बाग को उसी रूप में सुरक्षित रखा गया है जैसा वह था। यह शहादत का माहौल मौजूद है और अभी भी कुएं का स्थान मुख्य बना हुआ है। इसे देखकर कोई भी यह कल्पना कर सकता है कि किस तरह ब्रिटिशों के नेतृत्व वाली फौज की ओर से की जा रही लगातार फायरिंग से बचने के लिए लोग कुएं में कूद गए होंगे। लोगों को इसलिए दंडित किया गया था कि एक ब्रिटिश महिला का अपमान हुआ था जिसे बाजार से गुजरते समय सिटकारी की आवाज सुनाई पड़ी थी। विरोध करने वाले लोग जालियांवाला बाग में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सिर्फ जमा हुए थे। उनका संघर्ष के आजादी के लिए था। दुख की बात है कि सैंकड़ों लोगों की हत्या के बाद भी एक ब्रिटिश सैनिक ने अफसोस जाहिर किया था कि उनके पास और गोलियां नहीं थी। निश्चित तौर पर जालियांवाला बाग जैसे स्थान असली मंदिर है। वे हमें राष्ट्रीय संघर्ष के दर्द और उसकी आवाज और इस लड़ाई में सब कुछ न्योछावर करने वालों की याद दिलाते हैं। वे स्थान उन पवित्र ग्रंथों से कम महत्व की नहीं हैं जिनकी हम पूजा करते हैं। दुर्भाग्य से, मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारों की संख्या बढ़ती जा रही है और उनकी सजावट भी भद्दी होती जा रही हैं। धर्म का पालन करने वालों को यह गलत विश्वास हो गया है कि संगमरमर या सोना पूजा करने वालों के लिए जगह को और भी प्यारा बना देता है। दुर्भाग्य से, जिन भवनों ने आजादी के लड़ाई में कोई भूमिका नहीं निभाई है, उन्हें महत्व का स्थान मिला हुआ है। उससे भी ज्यादा बुरा है अनेकतावादी संस्कृति की जगह सीमित सोच स्थापित करने का प्रयास। यह तो कोई सोच भी नहीं सकता कि कोई पार्टी या व्यक्ति महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे का स्मारक बनाने की मांग भी कर सकता है। हिंदुत्व की भावना फैलाने वाली भारतीय जनता पार्टी को उस भावना को समझना चाहिए जिसने मुसलमानों को गलत दिशा दिखाई थी। अगर यह मान भी लिया जाता है कि मुसलमान जानबूझ कर पाकिस्तान की मांग के समर्थन में जुट गए थे। तो उसके लिए भारतीय मुसलमान किस तरह जिम्मेदार हैं जो सत्तर बरस पहले हुआ है? जब हम उनलोगों को कोई दोष नहीं दे रहे हैं जिन्होंने ब्रिटिशों का समर्थन किया तो उन मुसलमानों को क्यों पकड़ें जिनके पूर्वजों ने पाकिस्तान बनाने में मदद की? एक औसत हिंदू ने भारत के बंटवारे के लिए मुसलमानों को माफ नहीं किया है। पाकिस्तान के साथ तनाव के समय कई हिंदू मुसलमानों पर संदेह करते। दूसरी तरह से भी, हिंदू मुसलमानों से दूरी बनाए रखत

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