अमेरिका में लगातार चौथा राष्ट्रपति, चुनौती वही पुतिन
वाशिंगटन डीसी से अरूण जैन
अमेरिका में बीते डेढ़ दशक से राष्ट्रपति बदलते रहे हैं, लेकिन अमेरिकी विदेश नीति की एक चुनौती अपनी जगह कायम है. चुनौती है रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से निपटना.बात सीरिया संकट की हो, यूक्रेन की या फिर साइबर स्पेस में होने वाली गतिविधियों की, पुतिन का रूस खतरे उठाने और ताकत दिखाने के मामले में जोखिम उठाने के लिए अमेरिका से ज्यादा तत्पर दिखाई देता है. पुतिन ने 2000 में जब पहली बार बतौर राष्ट्रपति सत्ता संभाली थी, तो बिल क्लिंटन अमेरिका के राष्ट्रपति थे. उसके बाद जॉर्ज बुश और बराक ओबामा आए और अब फिर अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं.
बीते चार साल में रूसी राष्ट्रपति ने यूक्रेन के क्रीमिया को अपने देश में मिला लिया और सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद को सत्ता बाहर करने की अमेरिकी योजना को कामयाब नहीं होने दिया. इसके अलावा अमेरिका पर होने वाले साइबर हमले भी बढ़े हैं जिनके लिए अमेरिकी अधिकारी रूसी खुफिया एजेंसी के इशारों पर काम करने वाले हैकर्स को मानते हैं.
ताजा घटनाक्रम में पुतिन ने अमेरिका के साथ उस संधि को भी तोड़ दिया है जिसमें हथियारों में इस्तेमाल होने सकने वाले प्लूटोनियम को नष्ट करना है. हथियार कंट्रोल संघ के डेरिल किमबॉल कहते हैं, अगर उनके संबंध खराब होते हैं तो वे दोनों परमाणु हथियार नियंत्रित करने के क्षेत्र में अपना दबदबा कायम करने या ताकत दिखाने की कोशिश करेंगे.
अमेरिका के कुछ पूर्व और मौजूदा अधिकारी मानते हैं कि अमेरिका समझ ही नहीं पाया है कि जिस दशक में सोवियत संघ का पतन हुआ, उसे लेकर पुतिन के मन में कितनी कड़वाहट है. एक अमेरिकी अधिकारी का कहना है कि पुतिन अपने देश का खोया हुआ रसूख हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं जबकि इराक और अफगानिस्तान में युद्धों से सहमा अमेरिका जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं है.
नाम न जाहिर करने की शर्त पर इस अधिकारी ने कहा, प्रशासन कभी समझ नहीं पाया है कि पुतिन और बहुत सारे रूसी लोग 1990 के दशक को लेकर किस कदर भावुक हैं और उनके हिसाब से दुनिया में रूस का जो स्थान होना चाहिए, वो उसे हासिल करने के लिए कितने प्रतिबद्ध हैं और पुतिन वही हासिल करने में लगे हैं. वो तब तक आगे बढ़ते रहेंगे जब तक उन्हें किसी गंभीर प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा और अब तक उन्हें ऐसा कुछ झेलना नहीं पड़ा है.
सीरिया के मुद्दे पर रूस से वार्ता टूटने के बाद अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि व्हाइट हाउस को अभी तय करना बाकी है कि सीरिया में आगे क्या करना है, लेकिन ये उम्मीद कम ही लोगों को है कि अपने कार्यकाल के आखिरी महीनों में वो कोई बड़ा बदलाव करेंगे.
अमेरिका में बीते डेढ़ दशक से राष्ट्रपति बदलते रहे हैं, लेकिन अमेरिकी विदेश नीति की एक चुनौती अपनी जगह कायम है. चुनौती है रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से निपटना.बात सीरिया संकट की हो, यूक्रेन की या फिर साइबर स्पेस में होने वाली गतिविधियों की, पुतिन का रूस खतरे उठाने और ताकत दिखाने के मामले में जोखिम उठाने के लिए अमेरिका से ज्यादा तत्पर दिखाई देता है. पुतिन ने 2000 में जब पहली बार बतौर राष्ट्रपति सत्ता संभाली थी, तो बिल क्लिंटन अमेरिका के राष्ट्रपति थे. उसके बाद जॉर्ज बुश और बराक ओबामा आए और अब फिर अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं.
बीते चार साल में रूसी राष्ट्रपति ने यूक्रेन के क्रीमिया को अपने देश में मिला लिया और सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद को सत्ता बाहर करने की अमेरिकी योजना को कामयाब नहीं होने दिया. इसके अलावा अमेरिका पर होने वाले साइबर हमले भी बढ़े हैं जिनके लिए अमेरिकी अधिकारी रूसी खुफिया एजेंसी के इशारों पर काम करने वाले हैकर्स को मानते हैं.
ताजा घटनाक्रम में पुतिन ने अमेरिका के साथ उस संधि को भी तोड़ दिया है जिसमें हथियारों में इस्तेमाल होने सकने वाले प्लूटोनियम को नष्ट करना है. हथियार कंट्रोल संघ के डेरिल किमबॉल कहते हैं, अगर उनके संबंध खराब होते हैं तो वे दोनों परमाणु हथियार नियंत्रित करने के क्षेत्र में अपना दबदबा कायम करने या ताकत दिखाने की कोशिश करेंगे.
अमेरिका के कुछ पूर्व और मौजूदा अधिकारी मानते हैं कि अमेरिका समझ ही नहीं पाया है कि जिस दशक में सोवियत संघ का पतन हुआ, उसे लेकर पुतिन के मन में कितनी कड़वाहट है. एक अमेरिकी अधिकारी का कहना है कि पुतिन अपने देश का खोया हुआ रसूख हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं जबकि इराक और अफगानिस्तान में युद्धों से सहमा अमेरिका जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं है.
नाम न जाहिर करने की शर्त पर इस अधिकारी ने कहा, प्रशासन कभी समझ नहीं पाया है कि पुतिन और बहुत सारे रूसी लोग 1990 के दशक को लेकर किस कदर भावुक हैं और उनके हिसाब से दुनिया में रूस का जो स्थान होना चाहिए, वो उसे हासिल करने के लिए कितने प्रतिबद्ध हैं और पुतिन वही हासिल करने में लगे हैं. वो तब तक आगे बढ़ते रहेंगे जब तक उन्हें किसी गंभीर प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा और अब तक उन्हें ऐसा कुछ झेलना नहीं पड़ा है.
सीरिया के मुद्दे पर रूस से वार्ता टूटने के बाद अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि व्हाइट हाउस को अभी तय करना बाकी है कि सीरिया में आगे क्या करना है, लेकिन ये उम्मीद कम ही लोगों को है कि अपने कार्यकाल के आखिरी महीनों में वो कोई बड़ा बदलाव करेंगे.
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