Monday, 6 July 2015

दुबई का मिरेकल गार्डन जैसे रेगिस्तान में नंदन-कानन 

डॉ. अरूण जैन
दुबई की यह मेरी पांचवीं यात्रा है। जब भी यहाँ आया हूँ कोई-न-कोई नयी बात या नयी चीज़ सुनने-देखने को मिली है। पिछली बार जब आया था तो 'बुर्ज खलीफाÓ चर्चा में था। 160 मंजिलों वाली तथा लगभग 828 मीटर ऊंची इस आकाश-छूती इमारत को देखकर सचमुच आश्चर्य हुआ था। उससे पहले दुबई स्थित उस होटल 'बुर्ज-अल-अरबÓ को देखा था, जिसके बारे में सुना था कि वह विश्व का सब से बड़ा सात-सितारा होटल है। प्रतिमान पर प्रतिमान स्थापित करना इस शान-शौकत और चमक-दमक वाले दुबई शहर की 'ललकÓ का एक तरह से पर्याय बन गया है। विश्व का सब से बड़ा मॉल 'दुबई मॉलÓ भी यहीं पर है। स्वचालित (बिना ड्राइवर के) मेट्रो भी यहां है। और भी बहुत कुछ है यहाँ देखने के लिए। इस बार उस पुष्प-उद्यान को देखने का मौका मिला जिसके बारे में अपने देश में सुन रखा था। यह पुष्प उद्यान यानी मिरेकल गार्डन विश्व-प्रसिद्ध है। लगता है जैसे समूचा नंदन-कानन सहरा में उतर कर आया हो। दुबई मिरेकल गार्डन का क्षेत्रफल लगभग सत्तर हज़ार वर्गमीटर है। विश्व का यह ऐसा पहला उपवन है जिसमें 60 रंगों के 4.5 करोड़ फूल हैं। इनमें से अनेक ऐसे हैं जिन्हें फारस की खाड़ी के इलाके में पहली बार लाया गया है। यह संसार का पहला ऐसा बाग़ है जो फूलों से बनी तीन मीटर ऊंची दीवार से घिरा हुआ है और इसमें एक दस मीटर ऊंचा पुष्प-पिरामिड भी है7 फूलों के गुच्छों, झुरमुटों और कियारियों को बड़े ही कलापूर्ण ढंग से तराशा/संवारा गया है। जहाँ तक भी नजर जाती है महकते फूलों का समुद्र ठाठें मारता दृष्टिगोचर होता है। रेगिस्तान में ऐसा दृश्य विरल ही नहीं, अकल्पनीय भी है। इस दिलकश गुलिस्तान के निर्माताओं का कहना है कि वे संसार को दिखाना चाहते थे कि सहरा को भी कैसे प्रदूषित जल का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग कर उसे हराभरा किया जा सकता है। दुनिया को वे यह भी बताना चाहते थे कि दुबई मात्र ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं (लोहा-सीमेंट-रेत) और मालों/होटलों का ही शहर नही है। अपितु प्रकृति-प्रेमी नगर भी है। एक बात और। दुबई की भावी योजनाओं में एक अत्यंत महत्वाकांक्षी परियोजना है 'फाल्कन सिटी ऑफ़ वंडर्स। इस परियोजना के तहत दुनिया भर से वास्तुकला के कई श्रेष्ठ नमूनों की प्रतिकृतियां बनाई जाएंगी जिनमें पिरामिड, हैंगिंग गार्डन, एफिल टावर, ताज महल, चीन की महान दीवार और पिसा की झूलती मीनार शामिल हैं। परियोजना दुबई के प्रतिमानों की श्रृंखला में एक और नई कहानी लिखेगी, ऐसा इसके प्रबंधकों का मानना है। दुबई के प्रशासकों (शेखों) को यह समझ में आने लगा है कि उनके तेल के जखीरे अब ज्यादा दिनों तक चलने वाले नहीं हैं और एक-न-एक दिन उनके ये तेल के कुंए तेल देना बंद कर देंगे। दरअसल, 1930 में उन्हें तेल की अकूत संपदा हाथ लगी थी, उससे पहले यहाँ के लोग मछली-पालन या समुद्र से मोती निकालने का काम करते थे, लगभग अस्सी वर्षों से सहरा इन्हें तेल से मालामाल कर रहा है। बुर्ज, होटल, चौड़ी सड़कें, चमक-दमक, वैभव, ठाठ-बाठ आदि सब तेल की वजह से है। मगर तेल निकलेगा भी तो कब तक? इसलिए विकल्प के तौर पर, समय रहते, यहाँ के शासक 'पर्यटनÓ उद्योग को बढ़ावा देने में जुटे हुए हैं। चिकित्सा और शिक्षा के क्षेत्रों में भी बड़ी-बड़ी महत्वाकांक्षी परियोजनाएं ये लोग ला रहे हैं।

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