अगर हार्ट अटैक आया तो नीला क्यों पड़ गया था शास्त्री जी का शरीर!
डॉ. अरूण जैन
1965 का युद्ध खत्म होने के बाद 10 जनवरी 1966 को पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने पाकिस्तान के सैन्य शासक जनरल अयूब के साथ तत्कालीन सोवियत रूस के ताशकंद में शांति समझौता किया था। समझौते के बाद भी शास्त्री जी अपने कमरे में बेचैनी से टहलते हुए देखे गए थे। शास्त्री जी के साथ गए भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने भी महसूस किया था कि शास्त्री जी परेशान हैं। इस प्रतिनिधिमंडल में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर भी थे, जो उस वक्त शास्त्री जी के सूचना अधिकारी थे। कुलदीप नैय्यर उन चंद पहले लोगों में थे जिन्होंने शास्त्री जी की मौत के फौरन बाद उनके पार्थिव शरीर को देखा था। शास्त्री जी के सूचना अधिकारी कुलदीप नैय्यर बताते हैं कि उस रात मैं सो रहा था। तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया। एक कोई रूसी महिला थी। उसने कहा कि योर पीएम एज डाइंग, तो मैं जल्दी से पहुंचा। वहां कोसीगन थे। उन्होंने देखकर ऐसे हाथ हिलाया कि नो मोर। मैं कमरे में आया तो मैंने देखा कि वहां इतना बड़ा कमरा था। बड़े कमरे में बेड पर एक छोटा सा आदमी था। हमने नेशनल फ्लैग ओढ़ाया और फूल चढ़ा दिया। लाल बहादुर शास्त्री का देहांत 10 और 11 जनवरी 1966 की दरमियानी रात को करीब डेढ़ बजे हुआ था। आधी रात से करीब दो घंटे बाद एक विदेशी मुल्क में देश के प्रधानमंत्री की मौत से भारतीय प्रतिनिधि मंडल में मौजूद सभी लोग सन्नाटे में आ गए थे। जिस प्रधानमंत्री ने चंद घंटे पहले पड़ोसी मुल्क के साथ मशहूर ताशकंद समझौता किया था, उसकी अचानक मौत से पूरा देश सकते में आ गया। बाद में जो बातें सामने आईं, उसके मुताबिक आधी रात के बाद शास्त्री जी खुद चलकर अपने सेक्रेटरी जगन्नाथ के कमरे तक पहुंचे थे, क्योंकि उनके कमरे में न घंटी थी-ना टेलीफोन। शास्त्री जी ने दरवाजा खटखटा कर अपने सेक्रेटरी को उठाया। वो छटपटा रहे थे। उन्होंने डॉक्टर बुलाने को कहा। सेक्रेटरी ने उन्हें पानी पिलाया और बिस्तर पर लेटा दिया। ताशकंद से 20 किलोमीटर दूर बने गेस्ट हाउस में ठहराए गए शास्त्री जी को वक्त पर डॉक्टरी मदद नहीं मिली और वो फिर कभी नहीं उठे। सच ये भी है कि जिस रात शास्त्री जी की मौत हुई, उस रात खाना उनके घरेलू नौकर रामनाथ ने नहीं बनाया था। उस रात खाना सोवियत संघ में भारत के राजदूत टीएन कौल के रसोइए जान मोहम्मद ने बनाया था। शास्त्री जी ने आलू पालक और सब्जी खाई थी। फिर वो सोने चले गए थे। मौत के बाद उनका शरीर नीला पड़ गया था। लिहाजा सवाल ये भी है कि क्या शास्त्री जी को खाने में या किसी और तरीके से जहर दे दिया गया था। शास्त्री जी के पुत्र अनिल शास्त्री का कहना है कि उनकी मृत्यु प्राकृतिक नहीं थी। उनका चेहरा नीला पड़ गया था। यहां वहां चकत्ते पड़ गए थे। शास्त्री जी की मौत का सच फौरन सामने आ जाता, अगर उनका पोस्टमार्टम कराया गया होता। लेकिन ये ताज्जुब की बात है कि एक प्रधानमंत्री की रहस्यमय हालात में मौत हो गई और उनका पोस्टमार्टम नहीं कराया गया।
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