Wednesday, 14 October 2015

बिहार चुनाव- शख्सियतों के टकराव में स्थानीय मुद्दे गुम 

अरूण जैन
बिहार चुनाव दो शख्सियतों के टकराव में बदल गया है और यह बात तब उजागर होती है जब अक्सर मतदाता अपनी पसंद मोदी या नीतीश की शक्ल में पेश करते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान सिर पर है और ऐसे वक्त में शख्सियतों के इस टक्कर में उम्मीदवारों का चुनाव और चुनाव क्षेत्रों को पेश मुद्दे जैसी दीगर चीजें नेपथ्य में ही दिख रही हैं। जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा नीत राजग की कमान संभाल रखी है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मतदाताओं को यह यकीन दिलाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं कि बिहार के नेतृत्व के लिए उनसे बेहतर कोई नेता नहीं है। मुंगेर विधानसभा क्षेत्र में जब दूकानदार भूमिका प्रसाद से मुख्यमंत्री पद के लिए उसकी पसंद के बारे में पूछा गया तो उन्होंने ठेठ बिहारी लहजे में कहा, ''नीतीशे हैं (नीतीश ही हैं)।ÓÓ प्रसाद की दलील थी कि बिहार के मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश से अच्छा कोई नेता नहीं है। जब उससे मोदी के विकास के नारे के बारे में पूछा गया तो उसका जवाब था, ''मोदी जी बिहार नहीं ना चलाएंगे।ÓÓ एक साल पहले, 2014 में लोकसभा चुनाव में मोदी और नीतीश के टकराव में जदयू नेता को धक्का लगा था और उनकी पार्टी राज्य में तीसरे स्थान पर चली गई थी। अब, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ गठबंधन कर नीतीश विधानसभा चुनाव में नए तेवर के साथ आए हैं। उधर, भाजपा ने अपने राज्यस्तरीय नेताओं को उच्च स्तरीय चुनाव प्रचार से अलग रखा है और वोटों की दौड़ में भगवा पार्टी नीतीश-लालू महागठबंधन से राजग को आगे निकालने के लिए मोदी के अग्निबाणों पर भरोसा किए है। भाजपा प्रमुख अमित शाह एकमात्र पार्टी नेता हैं जिन्हें भगवा पार्टी के बड़े बड़े होर्डिंग में मोदी के साथ जगह मिल रही है। इन होर्डिंग में दोनों कमल पर वोट डाल कर बिहार को विकास की राह पर लाने का आह्वान कर रहे हैं। बिहार के विभिन्न हिस्सों में लोगों के एक हिस्से से बातचीत में यह दिखता है कि मोदी के प्रति बड़ा आकर्षण बना हुआ है, लेकिन नीतीश के पास लोगों के बीच साख है, खास तौर पर गरीबों के बीच। कालेज शिक्षक रमाकांत पाठक कहते हैं, ''मोदी जी जितनी बड़ी भीड़ आकर्षित कर रहे हैं, वैसी भीड़ लंबे अरसे से किसी राष्ट्रीय नेता ने आकर्षित नहीं की है। उनकी अपनी शैली है। लोग नीतीश जी के किए काम की भी तारीफ करते हैं।ÓÓ आधिकारिक उम्मीदवार के सवाल पर भाजपा नीत राजग खेमे में असंतोष है और यह कई जगहों पर, मसलन, चकई और भागलपुर में उनकी जीत की संभावना को प्रभावित कर सकता है। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि जहां किसी भी गठबंधन के पक्ष में कोई स्पष्ट लहर नहीं है, सिर्फ मोदी की अपील जैसे कारक उन्हें जीतने में मदद कर सकते हैं। यही कारण है कि मोदी सघन चुनाव प्रचार अभियान चला रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि अपनी तकरीबन दो दर्जन चुनावी रैलियों से वह चुनावी पासा पलट सकते हैं। नीतीश के चुनाव प्रचार को ले कर बहुत हो-हल्ला नहीं है, लेकिन वह अपने ही अंदाज में इस चुनाव को मुख्यमंत्री के रूप में अपने काम-काज पर जनमतसंग्रह में बदल रहे हैं। इस तरह, वह अपने सहयोगी लालू प्रसाद के जातीय मुद्दे से अलग हैं और राजद के 15 साल के शासन को ले कर कथित नकारात्मकता से भी खुद को अलग रखे हुए हैं। नीतीश अपनी रैलियों में नारा दे रहे हैं कि ''बिहार बिहारी चलाएगा बाहरी नहीं।ÓÓ इस तरह, वह जता रहे हैं कि अगर राजग जीता तो मोदी बिहार का शासन नहीं चलाएंगे, बल्कि कोई स्थानीय ही चलाएगा लेकिन उनसे अच्छा कोई बिहारी नेता नहीं है। पहले चरण के चुनाव में बिहार के 243 विधानसभा क्षेत्रों में से 49 में मतदान होगा। इस दौरान भागलपुर, मुंगेर, समस्तीपुर, बेगुसराय, खगडिय़ा, नवादा और जमुई में मतदान होगा।

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