Monday 6 April 2015

उजबेकिस्तान यात्रा . 2

ताशकंद-भूकम्प से नष्ट हुवा, खड़ा हुवा अनुशासन-सुरक्षा का अनुठा उदाहरण

डाॅ. अरूण जैन

वैसे तो प्राकृतिक आपदा से दो बार ध्वस्त हुए और फिर से अपने पैरों पर उठ खड़े होने के लिए जापान को विश्व भर में जाना जाता है । परन्तु उजबेकिस्तान की राजधानी और देश का सबसे बड़ा शहर ताशकंद ऐसा बिरला शहर है, जो भूकम्प से लगभग ध्वस्त होने के बाद न केवल नए सिरे से खड़ा हो गया वरन अनुशासन और सुरक्षा की दृष्टि से भी अन्य देशों के लिए एक उदाहरण बन गया है ।
भारतीय पत्रकारों के दल ने ताशकंद भ्रमण और विभिन्न मुलाकातों में महसूस किया कि ताशकंद, यूरोपीय और एशियाई देशों के लिए कई मुद्दों में महत्वपूर्ण है । चर्चाओं में रहवासी बताते हैं कि सन् 1966 में सुबह सवा पांच बजे के लगभग 8.8 तीव्रता का भूकम्प ताशकंद में आया था । अधिकांश जनसंख्या नींद के आगोश में थी । लगभग पूरा शहर नष्ट हो गया । करीब 6 लाख लोग इस प्राकृतिक आपदा में मारे गए थे । तीन वर्षों की मेहनत के बाद ताशकंद शहर का पुनर्निर्माण हो पाया । इस कार्य में विश्व के 15 देशों ने भी मदद की और 1970 में यह शहर नए स्वरूप में खड़ा हो गया । ‘‘इनडिपेन्डेन्स स्क्वायर’’ वाले मार्ग पर सड़क के बाईं और प्रयोग के तौर पर भूकम्प रोधी मकान बनाए गए । सड़क के दायीं ओर वाले हिस्से को निर्माण से रिक्त रखा गया । इसी ओर बने ‘‘इनडिपेन्डेन्स स्क्वायर’’ के एक खुले हाल में बड़े डायरीनुमा पीतल के कई पन्नों में उन 6 लाख दिवंगत लोगों के ‘नाम-स्थान’ स्थायी रूप से उकेरे गए हैं । इसे एक आकर्षक उद्यान का स्वरूप दिया गया है । इसी स्क्वायर के समीप संसद भवन बना हुवा है, जिस पर उजबेकिस्तान का ‘सिम्बल’ लगा है । 
तीन करोड़ से अधिक की जनसंख्या वाले इस देश में 18 वर्ष की आयु वाले प्रत्येक युवक के लिए एक वर्ष की मिलिट्री टेªनिंग अनिवार्य की गई है । इस अवधि के बाद युवक चाहे तो नौकरी निरन्तर रख सकता है अथवा मिलिट्री छोड़ सकता है । परन्तु छोड़ने वाले युवक को मिलिट्री को एक राशि पेनल्टी के तौर पर सरकार को भुगतान करना पड़ती है । शायद इस ट्रेनिंग का ही असर है कि देश के नागरिको में कड़ा अनुशासन है । न तो कोई थूकता मिलेगा, न ही कचरा फेंकता । ट्रेफिक सिगनल का सख्ती से पालन सभी चार पहिया वाहन चालक करते हैं । नागरिक सड़को को केवल ‘जेब्रा क्राॅसिंग से ही पार करते हैं । बीच में और कहीं से नहीं । एक स्थान पर हम पत्रकारों के दल ने भारतीय मानसिकता के वशीभूत कहीं से भी सड़क पार करने की जल्दी दिखाई तो साथ चल रहे मार्गदर्शक ने हमें तुरन्त रोक कर वापस किया और कुछ दूरी पर स्थित जेब्रा क्राॅसिंग पर ले जाकर वहां से सड़क पार करवाई । सिंगनल नही होंने पर भी यदि नागरिक ‘जेब्रा’ से सड़क पार करते हैं तो आने-जाने वाले समस्त वाहन लाइन से कुछ दूरी पर स्वतः खड़े हो जाते हैं । नागरिक पार जाने के बाद ही वाहन पुनः आने-जाने लगते हैं । वैसे सभी सड़कों को पार करने के लिए अन्डरब्रिज बने हुए है, जिन से होकर रहवासी सड़क पार करते है । स्थानीय यातायात के साधनों में निजी चैपहिया वाहनों के अलावा पब्लिक ट्रांॅसपोर्ट के नाम पर सिटी बसे,  विद्युत चलित सिटी बसें और मेट्रो ट्रेन के अलावा सीमित संख्या में टेक्सियां भी हैं । परन्तु दुपहिया और तीन पहिया वाहन कहीं नही दिखे । उत्सुकतावंश पूछने पर मार्गदर्शक ने बताया कि सन् 1992 में शहर में आतंकवादियों ने एक बम विस्फोट की घटना को अंजाम दिया था, जिसमें सायकल का उपयोग हुवा था । घटना के बाद नकाबपोश आतंकवादी एक मोटर सायकल पर भाग निकला । बस, तभी से सरकार ने सभी दुपहिया और तीन पहिया वाहनों पर देश भर में स्थायी प्रतिबंध लगा दिया । निश्चित रूप से यह मुस्लिम बहुल देश है । स्वाभाविक रूप से बड़ी संख्या में मस्जिदें हैं । जहां अजान नियमित पढ़ी जाती है । लेकिन हमें किसी मस्जिद के आसपास अजान की गूंज सुनाई नहीं दी । इसके विपरीत हमारे देश में मस्जिदों के बाहर और उपर लाऊड स्पीकर लगाकर पूरे शहरवासियों को अजान सुनाई जाती है । यह गंभीर चिन्तन और मनन का विषय है । सड़कों, भवनों आदि की सफाई पौ फटते ही शुरू हो जाती है जो शाम तक सतत जारी रहती है । सभी सड़के, बगीचे, भवन इतने साफ-सुथरे हैं कि कचरे का एक टुकड़ा बमुश्किल नजर आएगा । यूरोप की तरंह कहीं भी चैपहिया वाहनों के हाॅर्न बजते नहीं सुनाई दिए । सुरक्षा का जायजा भी लीजिए । रेलवे स्टेशनों पर स्टेशन परिसर के करीब 100 मीटर बाहर से ही केवल टिकिटधारी व्यक्ति को उसके सामान के साथ प्रवेश की अनुमति है । पुलिस, जो कि हरी यूनिफार्म में रहती है, स्टेशन परिसर से अंदर ट्रेन में चढ़ने तक सभी स्थानों पर मौजूद है । गैर टिकिटधारी को परिसर तक में प्रवेश की अनुमति नहीं है । यात्री का सारा सामान एक्सरे मशीनों से होकर रेल स्टेशन भवन में जाता है । वहीं टिकिटधारी की भी सुरक्षा जांच होती है । ट्रेन टिकिट उतनी ही जारी होती है जितनी ट्रेन की बैठक क्षमता है । एयरपोर्ट की सरुक्षा जांच तो अत्यन्त सख्त है । परिसर प्रवेश तो टिकिटधारी तक सीमित है ही । परन्तु सुरक्षा जांच की सख्ती ऐसी है कि आपकी जेबों से मोबाइल, केमरा, चश्मा और अन्य सभी सामान  तो डलिया में रखकर एक्सरे मशीन से निकाले जाते हैं, पर व्यक्ति से कोट, जर्किन, यहां तक की जूते भी अतरवा कर डलिया में रख एक्सरे मशीन से निकलते हैं । नंगे पैर, खाली जेब, पेंट-शर्ट में फिर व्यक्ति की सख्त चेकिंग होती है । कैमरे, मोबाइल खोलकर और चलाकर देखे जाते हैं । यहां तक कि खींचे गए फोटो भी देखे जाते हैं । यह सब नियमित और प्रतिदिन की जांच है । होटलों में भी सुरक्षा उपकरण लगे हैं, जिससे होकर सभी को गुजरना होता है । पुलिस हेडक्वार्टर भवन, वर्दीधारी पुलिस, मेट्रों ट्रेन, बुलेट ट्रेन के चित्र खींचना भी प्रतिबंधित है । सभी जगहों पर तैनात पुलिस स्वचालित हथियारों से सज्जित है हालांकि यह उजबेकिस्तान की सामान्य दिनचर्या है ।

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