Friday, 15 April 2016

सरकार के प्रदर्शन को लेकर प्रधानमंत्री भी हुए चिंतित 
डॉ. अरूण जैन
अब तक काफी आशान्वित नजर आते रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के माथे पर भी अब चिंता की लकीरें साफ नजर आने लगी हैं। सरकार की ओर से उठाए जा रहे कदमों और बनायी जा रही योजनाओं से भले वह खुश हों लेकिन उन पर अमल की गति और सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार की खराब स्थिति प्रधानमंत्री की चिंता का प्रमुख कारण है। प्रधानमंत्री को यह नजर आ रहा है कि देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार लाने के प्रयास रंग लाते नहीं दिख रहे हैं जोकि आने वाले चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सहित राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए नुकसानदायी सिद्ध हो सकता है। प्रधानमंत्री ने मंत्रिमंडल की हालिया बैठक में इन चिंताओं को मंत्रियों के समक्ष रखते हुए अपनी अपेक्षाओं को भी दोहराया और अब हर महीने के अंतिम बुधवार को मंत्रियों के साथ कामकाज की समीक्षा बैठक होना तय कर दिया है। प्रधानमंत्री सिर्फ मंत्रियों के भरोसे ही सब कुछ नहीं छोड़ देना चाहते इसलिए लगातार सभी मंत्रालयों के सचिवों से भी संपर्क बनाए रहते हैं और उनके साथ बैठकें भी करते हैं। मंत्रिमंडल बैठक में मंत्रियों द्वारा अपने कामकाज की प्रेजेन्टेशन से प्रधानमंत्री का संतुष्ट नहीं होना दर्शाता है कि प्रधानमंत्री निचले स्तर तक महसूस की जा रही उन भावनाओं को समझ रहे हैं कि आम आदमी राजग सरकार से धीरे धीरे निराश हो रहा है। दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों तथा विभिन्न उपचुनावों के परिणामों से भी यह बात सिद्ध होती है कि भाजपा की हार का कारण पार्टी की ओर से सिर्फ रणनीतिक खामी नहीं थी बल्कि जनता की केंद्र सरकार से बढ़ रही नाराजगी से भी पार्टी को नुकसान हुआ। प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि उनकी सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2015 में कोयला, बिजली, यूरिया फर्टिलाइजर और मोटर वाहन का सबसे ज्यादा उत्पादन हुआ है। यही नहीं वर्ष 2015 में गांवों में गरीबों को सबसे ज्यादा कुकिंग गैस कनेक्शन दिये गये, प्रतिदिन के हिसाब से राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने का औसत बढ़कर 30 किमी हो गया, मंदी के दौर में भी देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 39 प्रतिशत बढ़ गया। डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया-स्टैण्डअप इंडिया जैसी रोजगारपरक पहलें की गयीं। यकीनन यह सभी पहलें सराहनीय हैं लेकिन आम आदमी को तत्काल अपनी झोली में कुछ नजर नहीं आ रहा है। यही नहीं स्टार्टअप इंडिया जैसी पहलों से बड़े शहरों के युवा तो खुश हैं लेकिन किसान को अभी तक अपने लिए भी स्टार्टअप या स्टैण्डअप जैसी सरकारी पहलों का इंतजार है। प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम के जरिये अपनी बात लोगों तक तो पहुंचाई ही साथ ही सुझावों और शिकायतों के तौर पर उन्हें जो पत्र या ईमेल मिलते रहते हैं उसके जरिये उन तक भी यही बात पहुंच रही है कि चमकते भारत और अच्छे दिनों का जो ख्वाब लोकसभा चुनावों में दिखाया गया था वह अभी आम जनता के लिए दूर की कौड़ी बना हुआ है। प्रधानमंत्री मंत्रियों के भरोसे ही सब कुछ नहीं छोड़ देना चाहते इसलिए हाल ही में उन्होंने सभी विभागों के सचिवों की बैठक बुलाई जिसमें मंत्रिमंडल के कुछ वरिष्ठ सदस्य ही मौजूद थे। देर रात तक चली इस बैठक में प्रधानमंत्री ने शासन के विभिन्न क्षेत्रों में बदलाव करने के लिए सचिवों को सुझाव एवं विचार पेश करने को कहा और सचिवों के आठ समूहों का गठन किया। बैठक में सचिवों ने अपने मंत्रालय के कामकाज के बारे में प्रस्तुतिकरण के बारे में सवाल पूछे तथा कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए। प्रधानमंत्री ने बैठक में सचिवों को निर्देश दिये कि अयोग्य अधिकारियों या शिकायतों पर कार्रवाई नहीं करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। प्रधानमंत्री की चिंताओं को वाजिब ठहराता एक हालिया सर्वेक्षण बताता है कि राजग सरकार के कामकाज को एक रायशुमारी में ''औसत से ऊपरÓÓ माना गया है। हालांकि इस रायशुमारी के नतीजों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रेटिंग के मामले में अपनी सरकार से आगे हैं। एबीपी न्यूज नील्सन द्वारा कराई गई इस रायशुमारी में 46 फीसदी प्रत्युत्तरदाताओं ने सरकार को बहुत अच्छी या अच्छी बताया लेकिन मोदी को 54 फीसदी लोगों ने ''बहुत अच्छा या अच्छाÓÓ बताते हुए ऊंची रेटिंग दी। रायशुमारी के अनुसार, अगर अभी लोकसभा चुनाव कराए जाते हैं तो राजग को 38 फीसदी वोट मिल सकते हैं जिसका मतलब है कि पार्टी को वर्ष 2014 में मिली 339 सीटों की तुलना में 301 सीटें मिलेंगी। ''राष्ट्र का मिजाजÓÓ भांपने के लिए कराए गए इस सर्वेक्षण के अनुसार, 47 फीसदी प्रत्युत्तरदाताओं को लगता है कि मोदी की लोकप्रियता दिन प्रतिदिन घट रही है लेकिन 45 फीसदी प्रत्युत्तरदाताओं को ऐसा नहीं लगता। प्रधानमंत्री अब अपनी सरकार के प्रदर्शन पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रहे हैं यह बात इस खबर से भी जाहिर होती है जिसमें कहा गया कि इस वर्ष नरेंद्र मोदी विदेश दौरों पर कम और राज्यों के दौरों पर ज्यादा रहेंगे। प्रधानमंत्री इस बात से भी निराश हैं कि उनकी सरकार की योजनाओं के प्रचार पर खर्चा तो खूब हो रहा है लेकिन योजनाओं में निहित जनहित की बात आम लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है। हाल ही में सरकार की ओर से किसानों के लिए शुरू की गयी फसल बीमा योजना काफी लाभकारी है लेकिन किसानों के बीच इसका सही प्रचार प्रसार नहीं हो पाया। सरकार अब योजनाओं के प्रचार के लिए क्षेत्रीय मीडिया तक पहुंचने का प्रयास कर रही है। प्रेस सूचना ब्यूरो ने देश का पहला अखिल भारतीय क्षेत्रीय संपादक सम्मेलन एक और जयपुर में बुलाया है। सम्मेलन में 100 से भी ज्यादा संपादकों के हिस्सा लेने की संभावना है। सम्मेलन में केंद्र का पक्ष रखने और संपादकों से जनता के मन की बात जानने के लिए नौ केंद्रीय मंत्री पहुंच रहे हैं। ऐसा ही सम्मेलन देश के पश्चिमी और दक्षिणी भाग में भी आयोजित किया जायेगा। प्रधानमंत्री ने हाल ही में सभी मंत्रियों को निर्देश दिया था कि वह विभिन्न संसदीय क्षेत्रों का दौरा कर बजट के बारे में जनता की राय जानें और सरकार की उपलब्धियां उन्हें बताएं। प्रधानमंत्री ने सरकार की उपलब्धियों को जनता के बीच पहुंचाने के लिए पार्टी संगठन का भी पूरा सहयोग लेने की पहल की है। अमित शाह के दूसरी बार भाजपा अध्यक्ष पद संभालने के सप्ताह भर के अंदर ही दोनों प्रमुख नेताओं ने पार्टी के विभिन्न मोर्चों के पदाधिकारियों के साथ बैठक कर कामकाज की समीक्षा की। बहरहाल, संसद का बजट सत्र निकट है। यदि सरकार जीएसटी सहित अन्य महत्वपूर्ण विधेयकों पर आगे नहीं बढ़ पाई तो इसे सरकार की राजनीतिक नाकामी के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि जनता यह भले जानती है कि राज्यसभा में राजग के पास बहुमत नहीं है लेकिन उसने जो भाजपा को पूर्ण बहुमत दिया था उसका सही राजनीतिक उपयोग अभी तक नहीं हो पाया है। सरकार से अपेक्षा है कि वह विपक्ष से मेलजोल बढ़ाकर विधेयकों की राह में आ रही अड़चनों को दूर करे। कुछ समय पहले खबरें थीं कि प्रधानमंत्री वित्त मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और रेलवे मंत्रालय के कामकाज से नाखुश हैं और इन विभागों के मंत्रियों को बदला जा सकता है लेकिन अभी बजट सत्र के निकट आने को देखते हुए ऐसे किसी फेरबदल की संभावना कम ही है। अरुण जेटली के समक्ष देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने और निवेश आकर्षित करने की कठिन चुनौती है। हालांकि सरकार का कहना है कि राजग शासन में वैश्विक मंदी के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूती रही लेकिन भाजपा के ही कुछ किनारे कर दिये गये वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि यह सब आंकड़ों का हेरफेर है। जेटली संकेत दे चुके हैं कि इस बार लोकलुभावन बजट नहीं आएगा। देखना होगा कि सरकार विभिन्न राजनीतिक चुनौतियों से किस तरह निबटती है।

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