Friday, 15 April 2016

मोदी के खिलाफ घृणात्मक अभियान अपने चरम पर 

डॉ. अरूण जैन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ घृणात्मक अभियान अपने चरम पर पहुंच चुका है। दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश में निर्वाचित प्रधानमंत्री के खिलाफ ऐसा घृणात्मक अभियान कभी नहीं चलाया गया होगा। कहा जा रहा है कि मोदी मुस्लिम विरोधी हैं, मोदी अनुसूचित जाति विरोधी हैं, मोदी पूंजीपतियों के समर्थक हैं, मोदी देश में असहिष्णुता बढ़ाने के दोषी हैं। मतलब यह कि देश में चाहे अराजकता बढ़ाने वाले तत्वों की सक्रियता हो या आर्थिक विकास को प्राकृतिक कारणों के साथ−साथ राजनीतिक असहयोग से बाधित करने का प्रयास, सबके लिए मोदी ही दोषी हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस से सम्बन्धित दस्तावेज सार्वजनिक करने की मांग को स्वीकार कर मोदी ने राजनीतिक चाल चली है क्योंकि उससे नेहरू का यह पत्र सार्वजनिक हो गया है जिसमें उन्होंने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को सूचित किया था कि नेताजी युद्ध अपराधी हैं। अतीत के कुकृत्यों पर परदा डालने के लिए मोदी विरोधी अभियान हथियार बन गया है और निहित स्वार्थी उसे दोनों हाथों से चला रहे हैं। जो स्वयं किसी कृत्य के लिए दोषी से आरोपित होने के कारण अदालत अथवा जांच एजेंसियों के घेरे में हैं उन सभी को लगता है कि नरेंद्र मोदी के प्रति घृणात्मक प्रचार ही उनके बचाव का एकमात्र उपाय है। आजकल कहीं कुछ भी हो उसके लिए नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराकर घृणा पैदा करना मुख्य मुद्दा बन गया है। असोसिएटेट जर्नलस की अपार सम्पत्ति पर कब्जे के प्रयास की अदालती समीक्षा की स्थिति हो या फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सचिव के ख्लिाफ आरोपों की सीबीआई की जांच या अरूणाचल में कांग्रेसी विधायकों का मुख्यमंत्री के प्रति विद्रोह या किसी छात्र का क्षुब्ध होकर आत्महत्या करना। सबका ठीकरा मोदी के सिर फोड़ा जा रहा है। इस आरोप को मढऩे के प्रयास में जिस निकृष्ट शब्दावली में अभिव्यक्ति हो रही है, वह अभिव्यक्तिकर्ता की विक्षिप्त मानसिकता का परिचय तो है ही साथ ही इस बात का सबूत भी कि देश को दिशा देने का दावा करने वाले किस मानसिकता से वशीभूत हैं। सत्ता से बाहर होना या बाहर होने का भय उनके भीतर सत्ता में रहने के दौरान किए गए कृत्यों से जेल जाने की नौबत के कारण हमला बचाव का सर्वोत्तम उपाय है की रणनीति अपनाने की प्रेरणा पैदा कर रहा है। यह अभियान अभी और तेज होाग और इसके लिए कुप्रचार के सभी हथकंडे अपनाए जाने वाले हैं। इस युद्ध में भारतीय जनता पार्टी को अपने सहयोगियों की लिप्सा के कारण भी अकेले जूझना पड़ेगा। आश्चर्य यह है कि किसानों और गरीबों के लिए अभूतपूर्व उपायों को अपनाने वाली भाजपा सरकार उनमें पैठ बनाने के लिए मुखरित नहीं है। वह बचाव की मुद्रा में ही है, जो उसके सद्प्रयासों के कारण भी प्रतिकूल के माहौल बनाने वालों को और अधिक हमलावर बना रही है।  नरेंद्र मोदी के खिलाफ घृणात्मक अभियान से दो सवाल खड़े हुए हैं। एक यह कि क्या मोदी सरकार जिसने भ्रष्टाचार से निदान और गुड गवर्नेंस का वादा किया है, उससे पीछे हटकर समझौता करेगी? क्या वह एक के बाद एक भ्रष्टाचार और सार्वजनिक सम्पत्ति की लूट करने वालों के खिलाफ स्वाभाविक रूप से चल रही कानूनी प्रक्रिया को ढील प्रदान करेगी या फिर सभी प्रकार के विरोधों के बावजूद अपने वादे पर कायम रहेगी। दूसरा यह कि क्या जो घृणात्मक अभियान चल रहा है उससे अवाम इतना प्रभावित होगा कि भारतीय जनता पार्टी की बिहार के समान ही आने वाले सभी चुनाव में पराजय होगी। कम से कम कांग्रेस का तो यही आकलन है कि उनके शीर्ष नेताओं और कई मुख्यमंत्रियों के खिलाफ जो वाद अदालत में हैं या जिनकी जांच चल रही है उसके सम्बन्ध में बदले की भावना की कार्यवाही का अभियान चलाकर, उसी प्रकार फिर सत्ता में लौट सकेंगे जैसे 1980 में इंदिरा गांधी लौटी थीं। उनके इस आकलन में दो खामी हैं, एक तो 1980 के समान केंद्र में जनता पार्टी की सरकार नहीं है जो अंतरकलह के कारण भीतर से खोखली हो गई थी और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के कारण प्रधानमंत्री बनने के लिए कांग्रेस के बिछाये जाल में फंस गई थी। इस समय केंद्र में एक पार्टी की सरकार है जो वैचारिक प्रतिबद्धता से युक्त है, उसके कार्यबाधित हो सकते हैं, लेकिन रूक नहीं सकते। साथ ही सरकार भ्रष्टाचार से न तो समझौता करेगी और न दबाव बर्दाश्त करेगी। नरेंद्र मोदी ने गुजरात में बाह्य और आंतरिक दोनों ओर से प्रबलतम दबावों का सामना करते हुए घृणात्मक अभियान की चरमता के बावजूद जनसमर्थन प्राप्त करने में जो सफलता प्राप्त की उससे यह बात स्पष्ट है। लेकिन सरकार को एक बात पर अवश्य विचार करना होगा कि क्या उसके खिलाफ जो घृणात्मक अभियान है अवाम अपने आप उसके निहितार्थ समझ जायेगा या फिर उसको समझाने के लिए कुछ करना भी चाहिए और यदि कुछ करना चाहिए तो वह क्या?

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