Thursday, 14 April 2016

राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी

डॉ. अरूण जैन
भारत में काला धन कितना है इसके बारे में अलग-अलग अनुमान हैं। जो उजागर हो न हो, उसके बारे में ठीक-ठीक आंकड़ा हो भी कैसे सकता है। पर सारे अनुमान यही बताते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था में काले धन का अनुपात बहुत व्यापक हो चुका है; कुछ अर्थशास्त्रियों का यहां तक कहना है कि इसने लगभग एक समांतर अर्थव्यवस्था का रूप ले लिया है। यह बहुत ही चिंताजनक स्थिति है। पर कोई भी सरकार काले धन को लेकर पर्याप्त गंभीर नहीं रही है। यह अलग बात है कि भाजपा ने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भी काले धन को बड़ा मुद््दा बनाया था और पिछले लोकसभा चुनाव में भी। मई 2014 के लोकसभा चुनाव में तो पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने यहां तक वादा किया कि अगर उनकी सरकार बनी तो सौ दिनों के भीतर विदेशों में रखा-छुपा काला धन लाया जाएगा और हर गरीब भारतीय के खाते में पंद्रह लाख रुपए जमा किए जाएंगे। पर इस वादे की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि खुद पार्टी अध्यक्ष ने बाद में इसे एक चुनावी जुमला करार दिया। बहरहाल, जो कदम उठाए जा सके हैं उनमें से एक है, काले धन की पड़ताल के लिए एसआईटी यानी विशेष जांच दल का गठन। एसआईटी मोदी सरकार आने के बाद भले गठित हुई हो, इसका श्रेय असल में सर्वोच्च न्यायालय को जाता है, जिसने इसके लिए एक समय-सीमा तय कर रखी थी। दूसरा कदम उठाया गया कि बाहर जमा काले धन की वापसी के लिए पिछले साल सरकार ने कुछ रियायतें देने का फैसला किया था। अब देश में काला धन रखने वालों को चेताते हुए सरकार ने अनुपालन खिड़की की घोषणा की है। यह खिड़की एक जून को खुलेगी। इसके तहत काले धन की घोषणा करने पर उस पर तीस फीसद की दर से कर और पंद्रह फीसद अधिभार तथा जुर्माना अदा करना होगा। ऐसा करने वाले मुकदमे से बच सकेंगे। इस खिड़की के बंद होने के बाद जुर्माना बढ़ कर साठ फीसद हो जाएगा और तीस फीसद का कर अदा करना होगा। पिछले दो साल में सरकार के अभियान से बीस हजार करोड़ रुपए का काला धन बाहर निकाला गया है, जो कि खास कामयाबी नहीं कही जा सकती। विदेशों में जमा काले धन की बाबत अनुपालन खिड़की के तहत सिर्फ चार हजार एक सौ सैंतालीस करोड़ रुपए की बेहिसाबी संपत्ति की घोषणा की गई। दोनों के आशानुरूप परिणाम न मिलने से यह सवाल उठ सकता है कि क्या नया कदम कारगर साबित होगा? दरअसल, काले धन के खिलाफ कोई भी मुहिम तभी प्रभावकारी हो सकती है जब उसका जोर काले धन के स्रोतों को बंद करने तथा इसके प्रवाह और प्रक्रिया पर रोक लगाने पर हो। एक समय रिश्वतखोरी और कर-चोरी ही काले धन का प्रमुख जरिया थे। पर अब काले धन के ढेरों तरीके हैं। शेयर बाजार में पहचान छिपा कर निवेश करने, फर्जी कंपनियां बनाने, हवाला के जरिए हेराफेरी से लेकर 'मारीशस रूटÓ से किए जाने वाले तथाकथित निवेश तक तमाम हथकंडे अपनाए जाते हैं। आय कर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय से लेकर सीबीआई तक, सब विभागों और एजेंसियों को इन तिकड़मों के बारे में पता है। फिर कसर कहां रह जाती है? क्या राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी रही है?

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