Tuesday 15 August 2017

उत्तर प्रदेश में छुट्टियों की छुट्टी करने का फैसला ऐतिहासिक

डॉ. अरूण जैन
देश के सबसे बड़े व राजनीति के लिहाज से विशेष दर्जा रखने वाले राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गत दिनों पूरे देश को एक सार्थक बहस का मुद्दा दे दिया। महापुरुषों के नाम पर होने वाली छुट्टियों को निरर्थक बताते हुए उन्होंने सुझाव दिया उनकी जयंती या पुण्यतिथि पर विद्यालयों में घंटे−दो घंटे का आयोजन कर छात्रों को उन विभूतियों के व्यक्तित्व और कृतित्व से अवगत कराना कहीं बेहतर होगा। योगी जी ने डॉ. आंबेडकर की जयंती के एक आयोजन में उक्त बात कहकर बर्र के छत्ते में पत्थर मारने का जो दुस्साहस किया उसकी पूरे देश में सकारात्मक प्रतिक्रिया देखी गई। सोशल मीडिया सहित टीवी चैनलों ने भी देश भर में होने वाली छुट्टियों का चि_ा पेश कर ये उजागर किया कि सरकारी दफ्तर और शिक्षण संस्थाओं में अवकाश संस्कृति के चलते न तो पूरा काम हो पाता है और न ही अध्यापन।  उत्तर प्रदेश से छुट्टियों को लेकर जो जानकारी सामने आई उसके मुताबिक वहां महापुरुषों के नाम पर 42 छुट्टियां हर वर्ष होती हैं। 52 रविवार के साथ दूसरे और तीसरे शनिवार की छुट्टी के 24 दिन और हो जाते हैं। फिर सरकारी कर्मचारी को मिलने वाली तमाम छुट्टियां भी तकरीबन 50 दिन तो होती ही हैं। कुल मिलाकर सालभर में आधे से ज्यादा समय वहां के सरकारी कर्मचारी छुट्टी मनाते हैं जिसका असर सीधा कामकाज पर पड़ता है और जनता हलकान होती है। इसी तरह शिक्षण संस्थाओं में भी कुल मिलाकर आधे दिन भी पढ़ाई हो जाए तो बड़ी बात है। जो जानकारी आई है उसमें उ.प्र. की पिछली सरकारों ने विभिन्न जातियों की प्रसिद्ध हस्तियों की याद में इसलिए छुट्टी रखवाई जिससे सजातीय मतदाता संतुष्ट हों। मसलन कर्पूरी ठाकुर नाई जाति के थे और रहने वाले बिहार के। फिर भी उ.प्र. में उनके नाम पर अवकाश होता है। आचार्य नरेन्द्र देव, भगवान परशुराम, निषादराज और ऐसे ही अन्य अवकाश जातिगत समीकरणों को ध्यान रखते हुए दे दिये गये। अन्य राज्य इस मामले में हालांकि उ.प्र. से पीछे हैं परन्तु महापुरुषों के नाम पर छुट्टी दिये जाने का चलन सभी जगह है।  उत्तर प्रदेश की पूर्व समाजवादी पार्टी ने जातीय राजनीति साधने के लिये छुट्टियों का दांव खूब खेला। समाजवादी महापुरुषों के जन्मदिन पर छुट्टियों का ऐलान करके सपा समाजवादी राजनीति के साथ−साथ जातियों की राजनीति भी साधती रही। सबसे पहले सरकार ने किसान नेता चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन पर छुट्टी की घोषणा की। इससे जाट राजनीति में कुछ फायदा होने की उम्मीद थी। फिर सपा सरकार ने 24 जनवरी को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत कर्पूरी ठाकुर के जन्मदिन पर छुट्टी कर दी और 17 अप्रैल को पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर के जन्मदिन पर सरकारी अवकाश की घोषणा हुई। अति पिछड़ा और राजपूत वोट साधने की राजनीति के तहत यह छुट्टियां की गयीं। असल में समाजवादी पार्टी की सरकार पिछड़ा, अति पिछड़ा, मुस्लिम, जाट और राजपूत वोट का समीकरण बनाना चाहती थी। वो अलग बात है कि सपा की सारी जुगत और जातियों की राजनीति भाजपा की आंधी में उड़ गयी।  देशभर में औसतन सरकारी कर्मचारियों को वर्ष के 365 दिनों में से सरकारी कार्यालयों में 5 दिवसीय कार्य सप्ताह होता है। इसका तात्पर्य है कि साल में 104 सप्ताहांत छुट्टियां होती हैं। इसके अलावा 3 राष्ट्रीय अवकाश, 14 राजपत्रित अवकाश और 2 प्रतिबंधित अवकाश सरकारी कर्मचारियों को मिलते हैं। प्रतिबंधित अवकाश छोटे धार्मिक समूहों की सुविधा के लिए दिए गए थे किंतु अब ये सभी के लिए 2 अतिरिक्त छुट्टियां बन गए हैं।  इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों को 12 दिन का आकस्मिक अवकाश, 20 दिन का अर्द्ध वेतन अवकाश, 30 दिन का अर्जित अवकाश और 56 दिन का चिकित्सा अवकाश मिलता है। कुल मिलाकर साल में इन्हें 249 छुट्टियां मिलती हैं और केवल 116 दिन वे कार्य करते हैं। महिलाओं को 6 माह का मातृत्व अवकाश और 2 वर्ष का चाइल्ड केयर अवकाश भी मिलता है। सरकारी बाबू इतने से ही खुश नहीं होते हैं। सामान्य कार्य दिवस 8 घंटे का होता है जिसमें 1 घंटे का भोजनावकाश भी होता है, किंतु सरकारी कर्मचारी के कार्यालय में घुसते ही उसका चाय का समय शुरू हो जाता है और यह दिन भर चलता रहता है। फिर भी उसके लिए ओवर टाइम की कोई कमी नहीं है।  हमारे संसद सदस्य राष्ट्रीय और राजपत्रित अवकाशों के अलावा 36 दिन के प्रतिबंधित अवकाश के हकदार भी हैं। किंतु वे इतने से भी संतुष्ट नहीं हैं, वे बीच−बीच में संसद सत्र की भी छुट्टी करवा देते हैं। होली और रामनवमी को भी ऐसा ही होता है। हमारे जनसेवकों ने स्वयं को सप्ताह में दो दिन की छुट्टी का हकदार बना दिया है, चाहे इससे करदाताओं का करोड़ों रुपया बर्बाद क्यों न हो जाए। न्यायपालिका में लाखों मामले लम्बित हैं, फिर भी उच्चतम न्यायालय साल में 193 दिन, उच्च न्यायालय 210 दिन और निचली अदालतें 245 दिन कार्य करती हैं। अमरीकी उच्चतम न्यायालय में सालाना छुट्टियां नहीं होती हैं जबकि वहां के उच्चतम न्यायालय में केवल 9 न्यायाधीश हैं, फिर भी वह सभी मामलों का निपटान कर देता है, जबकि हमारे यहां 27 न्यायाधीश हैं और मामले कई दशकों से लंबित पड़े हुए हैं। हम नहीं चाहते कि हमारे न्यायाधीशों को छुट्टियां न मिलें, किंतु यदि वे कम छुट्टियां करें और अधिक न्याय दें तो इससे लोगों को न्याय मिलने में सहायता मिलेगी। खुशी की बात यह है कि मुख्य न्यायमूर्मि जेएस खेहर ने घोषणा की है कि इस वर्ष ग्रीष्मावकाश के दौरान 3 पीठें कार्य करेंगी। 

No comments:

Post a Comment