Tuesday 15 August 2017

देश के सभी बड़े न्यूज चैनलों में अंबानी का पैसा लगा है!

डॉ. अरूण जैन
एनडीटीवी वाले मामले से और कुछ हुआ हो या न हो, मगर यह जरूर पता चल गया कि देश के टॉप टेन चैनलों में से शायद ही कोई बचा हो जिसमें अम्बानी का ठीक ठाक पैसा न लगा हो (हृष्ठञ्जङ्क में भी प्रणव-राधिका के तमाम शेयर अंबानी के पास गिरवी हैं)। इस हिसाब से राष्ट्रवादी हो, बहुराष्ट्रवादी हो या साम्यवादी हो। तकरीबन हर न्यूज़ चैनल अंतत: अम्बानी न्यूज़ ही है। फर्क सिर्फ इतना है कि कोई चीख कर बातें करता है तो कोई मृदुल स्वर में। कोई राष्ट्रवादियों को शेयरिंग कंटेंट उपलब्ध कराता है तो कोई उदारवादियों को। इस लिहाज से अखबार अभी बचे हुए हैं। दो चार बड़े अखबार ही होंगे जिनमें अम्बानी का पैसा लगा होगा। बाकी अंबानी के विज्ञापन के लिए ही मुंह जोहते रहते हैं। अखबार वाले विज्ञापन पर बिकते हैं, जबकि ह्ल1 वाले परमानेंटली बिके हुए हैं, किसी रोज अंबानी इन पर कब्जा कर सकता है। अगर विज्ञापन न मिले तो अखबार वाले किसी भी रोज राजस्थान पत्रिका की तरह सीना तानकर खड़े हो सकते हैं। मगर ह्ल1 वालों को छापे के दिन का इंतजार करना पड़ता है। और हां, ये सरकार के खिलाफ तो खड़े हो सकते हैं मगर अंबानी के खिलाफ खड़ा होना मुश्किल होता है। रस्मी खबरें चला देना अलग बात है। हां, बीबीसी और स्क्रॉल डॉट इन की बात अलग है। इन दो मीडिया हाउस को आमदनी से कोई लेना देना नहीं है। इन्हें सिर्फ खर्च करना है। और खर्च करने के लिये इनके पास इफरात पैसा है। लिहाजा इनको न अम्बानी की गरज है और न ही स्रड्ड1श्च-श्चह्म्स्रड्ड की। क्रांति करने के लिए ऐसी आदर्श स्थिति तो चाहिए ही होती है। बीबीसी का पैसा कहां से आता है, यह तो मालूम है। बस स्क्रॉल का सोर्स ऑफ इनकम नहीं मालूम। लगता है कोई जादुई चिराग है इनके पास।

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