बाबा लोग कम, धर्मालु ज्यादा भुगतेंगे
डॉ. अरूण जैन
सिंहस्थ कैसा होगा, उस समय क्या समस्याएं होगी, श्रद्धालु कितने परेशान होंगे इस सबसे किसी को कोई लेना-देना नहीं है। केवल पुलिस विभाग को छोड़कर अन्य किसी को धर्मालुओं के बारे में चिन्ता नहीं है और यह विभाग हरसंभव प्रयास कर रहा है कि सामान्य जन को स्नान के लिए कम से कम पैदल चलना पड़े।
अब दोखिए ना! सिंहस्थ की पूर्व व्यवस्थाओं में सबसे अहम भूमिका निर्माण विभागों की है, फिर चाहे वह नगरनिगम हो, लोक निर्माण विभाग हो, सेतु निगम हो, जल संसाधन विभाग हो अथवा उज्जैन विकासस प्राधिकरण, नियम से इन सभी विभागों को सिंहस्थ तैयारियों के लिए 4 से 5 वर्ष पूर्व जाग जाना चाहिए था। ताकि स्थायी प्रकृति के कार्य कम से कम तीन वर्ष पूर्व शुरू हो जाते। लेकिन बुजुर्गों ने कहा है कि ऐसा नियम से करोगे तो दो नंबर का पैसा कैसे मिलेगा। उपर से लेकर नीचे तक ‘रेवड़ी’ बंटना है तो समय से काम शुरू होना ही नही थे । वही हुवा। 56 करोड़ की सड़के जो अभी ऐन समय पर बनाई गई है, वे अभी से खराब हो गई हैं। सिंहस्थ में उबड़-खाबड़ मिलना है। उस समय रिपेरिंग हुई भी तो 10 रूपये के 1000 रूपए खर्च होंगे। प्रदेश के मुखिया ईमानदार नजर आते हैं। पर एक अकेला क्या करेगा। उन्होंने 15 करोड़ रूपए की डाक्यूमेंट्री बनाने का प्रस्ताव निरस्त कर दिया। और भी गैर जरूरी अथवा काली गंध वाले प्रस्ताव खारिज कर दिए।
आखिर 2400 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। तो ज्यादा खर्चा तो होना ही चाहिए। वरना फिर केन्द्र सरकार से राशि की मांग कैसे करेंगे। ग्यारह पुल बनने हैं, पर अब तक केवल दो पूरे हो पाए हैं। हरिफाटक ओवरब्रिज की एक लेन पूरी तरह बंद कर दी गई है। उसकी अब तक डिजाइन ही मंजूर नही हुई है। लगता नहीं कि सिंहस्थ में वह सिरा खुलेगा। पार्किंग की जमीन का अधिग्रहण ही नहीं हुवा है और किसानों ने फसल बो दी है। पुलिस की यातायात व्यवस्था तभी सफल हो सकेगी जब पुल तैयार हों, सड़के ठीक हों, पार्किंग अप-टू-डेट हों। वरना सारी तैयारियां धरी रह जाएंगी और सर्वाधिक परेशानी पुलिस को ही झेलना पड़ेगी। अब इस पर कौन पहल करेंगा। बाबाओं का आगमन शुरू हो गया है। तो प्रशासन का सारा ध्यान अब उन पर केन्द्रित है।
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