पीएम के औचक-भौंचक दौरे
डॉ. अरूण जैन
प्रधानमंत्री का अचानक पाकिस्तान पंहुच जाना क्या था? इसे कोई भी बता नहीं पा रहा है। ऐन वक्त पर औचक-भौंचक दौरे का पता लगने के बाद खुद भाजपा के प्रवक्ताओं को भी तैयार होने में ढाई घंटे से ज्यादा लग गए। वो भी तब जब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भाजपा प्रवक्ताओं की बाकायदा क्लास लगाकर उन्हें पढ़ाया कि क्या बोलना है। इस बीच टीवी पर भी अफरातफरी मची रही। टीवी चैनल तो इतने बेखबर थे कि उन्हें पाकिस्तान के पत्रकारों से पूछ-पूछकर अपने दर्शकों को बताना पड़ा कि हमारे प्रधानमंत्री इस समय कहां हैं? कब लाहौर पहुंचेगे? पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से बातचीत का उनका क्या कार्यक्रम है? कुल मिलाकर भारतीय टीवी चैनलों और उनके बहसिया कार्यक्रमों में बैठने वाले विशेषज्ञों को इतना भौंचक इससे पहले कभी नहीं देखा गया था। पाकिस्तान के मीडिया में अचानक जान पड़ी-ऐसे मौकों पर अक्सर पाकिस्तानी टीवी चैनलों को दबा दबा से देखा जाता था, लेकिन प्रधानमंत्री के इस औचक-भौंचक दौरे से पाकिस्तान के मीडिया में अचानक जान सी आ गई। हमारे अपने टीवी पत्रकारों को हर क्षण उनसे ही पूछना पड़ रहा था कि वहां आगे क्या होने वाला है। जबकि ऐसा हो नहीं सकता कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भारतीय पत्रकारों का दल न हो, लेकिन इस सनसनीखेज कार्यक्रम की उन्हें भनक तक नहीं लगी। सिर्फ शुरू या बीच में ही नहीं बल्कि आखिर तक। किसी को कुछ नहीं पता था कि इस समय पाकिस्तान में क्या हो रहा है और आगे क्या होने वाला है। टूट टाट गया नयाचार- दो देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच चाहे औपचारिक बात होनी हो या अनौवचारिक, उसके कायदे यानी प्रोटोकॉल यानी नयाचार तय होते हैं। इस दौरे से यह नयाचार गायब हो गया। बारह घंटे हो गए, लेकिन अब तक रहस्य बना हुआ है कि हमारे प्रधानमंत्री का पाकिस्तान में रुकने का फैसला कब हुआ था? किस मकसद से हुआ? और इसके राजदार कौन कौन थे? हद तो तब हो गई जब अफगानिस्तान से लाहौर के बीच के घंटे भर के सफर के बीच ही भारत में अफरातफरी और अटकलों का ऐसा दौर चल पड़ा कि सुनने वालों का सिर चकरा गया। किसी ने कहा कि यह चकराने वाला कार्यक्रम देश के भीतर की परेशानियों की बातों से ध्यान हटाने के लिए था। किसी ने कहा कि ये सब दुनिया की बड़ी ताकतों के दबाव का नतीजा था। कोई कह रहा था कि पाकिस्तान से बातचीत शुरू करने का यह अच्छा तरीका साबित होगा। नए नयाचार का नाम देने की कोशिश- भाजपा प्रवक्ताओं ने इस औचक दौरे को अपारंपरिक नयाचार यानी अनकन्वेंशनल प्रोटोकॉल का नाम देने की कोशिश की। लेकिन इस अजीब और नई चीज का यह नाम जंचता नहीं है। जरा हटके वाला जुमला हम हर कहीं नहीं लगा सकते। और अगर भौंचक दौरों को आगे भी चलाना हो, तो कई नए रट्टे पैदा हो सकते हैं। मसलन राष्ट्राध्यक्षों की सुरक्षा इतना बड़ा मसला है कि बिना तारीख और समय तय किए या गुपचुप तरीके से राष्ट्राध्यक्षों के दौरे तय करने का चलन नई जटिलताएं पैदा कर देगा। दो देशों के बीच संबंधों खासतौर पर पाकिस्तान के मामले में भारत की विदेश नीति कोई आकस्मिक या तात्कालिक रूप से निर्धारित नहीं की जा सकती। पिछली घटनाएं, दुर्घटनाएं, संधियां, समझौते देखने ही पड़ते हैं। अंतरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं से भी हम सब बंधे हुए हैं। लिहाजा तदर्थ और औचक हलचल किसी बड़े पचड़े में डाल सकती है। नए प्रयोग की शुरुआत पाकिस्तान से क्यों?- पाकिस्तान से अपने रिश्तों की मुश्किल से पूरी दुनिया वाकिफ है। किसी भी तरह की बातचीत से पहले आतंकवाद और कश्मीर का पच्चर फंस जाता है। देश के भीतर सांप्रदायिक रंग की बातों और आंतरिक राजनीति में पाकिस्तान की बातों के बिना हम अपना राजनीतिक गुजारा नहीं कर पा रहे हैं। जिस तरह किसी कथा या उपन्यास में खलनायक जरूरी है उसी तरह घरेलू और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक खलनायक बनाए रखने का चलन है। क्या यह सच नहीं है कि दोनों देशों के राजनीतिक दलों ने अपनी सियासी जरूरतों के लिहाज से अपनी अपनी जनता के मन में अपने पड़ोसी के प्रति उसी तरह के खलनायक की छवि बनाए रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। कमोबेश दोनों तरफ से। लिहाजा अब भाजपा के सत्ता में आने के बाद अचानक पाकिस्तान के प्रति अपने रुझान को बदलने का आधार क्या बताया जा सकता है। और फिर भाजपा के सहयोगी दल और भाजपा के कार्यकर्ता इस मामले में इतनी जल्दी पुराने रुख को छोडक़र उस पड़ोसी से अचानक अपनापा दिखाने के लिए आसानी से तैयार कैसे हो पाएंगे? और किस बिना पर? इसीलिए पिछले एक दशक से सत्ता में रही यूपीए के नेता को नरेंद्र मोदी के अचानक पाकिस्तान दौरे को लेकर सवाल उठाते रहे। वे पूछते रहे कि पिछले दो साल में पाकिस्तान की तरफ से ऐसा कौन सा संकेत मिला है जिसके आधार पर कहा जा सके कि पाकिस्तान से बातचीत लायक माहौल बन गया है। फर्ज कीजिए मनमोहन सिंह ने ऐसा किया होता-यूपीए सरकार गए अभी दो साल भी नहीं हुए हैं। आतंकवाद के खिलाफ और उस बहाने पाकिस्तान के खिलाफ माहौल बनाए रखने के लिए तब विपक्ष में रही भाजपा के रुख को इतनी जल्दी भुलाया नहीं जा सकता। सोचकर देखें कि अगर मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान से बातचीत का ऐसा रुख दिखाया होता, तो भाजपा का क्या रवैया होता? इस काल्पनिक स्थिति को यह कहते हुए भी खारिज नहीं किया जा सकता कि तब स्थितियां भिन्न थीं। क्योंकि पाकिस्तान की तरफ से हाल फिलहाल कोई भी संकेत नहीं आया है कि हालात बदले हैं। यानी आज प्रधानमंत्री का औचक दौरा माहौल बदलने के मकसद से साबित किया जाए, तो आज से दो साल पहले के माहौल में भी साबित हो सकता था। लेकिन तब विपक्ष में रही भाजपा का रुख पाकिस्तान के प्रति शुक्रवार जैसा उदार नहीं था। यानी वह मनमोहन के दौरे के खिलाफ आसमान सिर पर उठा लेती।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ को एक दूसरे से जोडऩे वाले का नाम है सज्जन जिंदल
प्रधानमंत्री नरेगमोदी अचानक पहली बार पाकिस्तान पहुंचे और अगले वर्ष फिर से वह सार्क सम्मेलन में हिस्सा लेने पाकिस्तान जाएंगे। पीएम मोदी के इस अचानक कुछ घंटे के पाकिस्तान दौरे से हर कोई हैरान है। वहीं एक नाम जो बार-बार हर किसी के जेहन में आ रहा है वह जिंदल स्टील्स के सज्जन जिंदल का। सज्न पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ के करीबी हैं और वह भी आज ही लाहौर पहुंचे हैं। सज्जन कांग्रेस के पूर्व सांसद नवीन जिंदल के भाई भी हैं। नवाज शरीफ और मोदी की नेपाल के काठमांडू में सार्क सम्मेलन के दौरान हुई मुलाकात हर किसी को याद है। साथ ही यह भी कोई नहीं भूला है कि दोनों नेता सम्मेलन की शुरुआत में एक दूसरे की ओर देख भी नहीं रहे थे। लेकिन इसी सम्मेलन में दोनों नेताओं के बीच एक घंटे की एक सीक्रेट मीटिंग भी हुई थी। सार्क सम्मेलन से अलग हुई इस सीक्रेट मीटिंग पीछे सज्जन जिंदल की कोशिशों को श्रेय दिया जा रहा था। सीनियर जर्नलिस्ट बरखा दत्त ने हाल ही में अपनी किताब में इस बात का खुलासा किया है। बरखा ने अपनी किताब में लिखा है कि सबके सामने एक-दूसरे से मुंह चुराने वाले पीएम शरीफ और पीएम मोदी को एक व्यक्ति ऐसा मिला जो चीजों के कठिन होने के बावजूद उन्हें एक साथ जोडक़र रख सकता है। दत्त ने अपनी किताब में जिंदल को दोनों नेताओं के बीच एक तरह के अप्रत्यक्ष पुल के तौर पर परिभाषित किया है।
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