अकाल के कारण 1897 में सिंहस्थ महिदपुर में हुआ था...
डॉ. अरूण जैनआपको यह जानकर थोड़ा आश्चर्य होगा कि वर्ष 1897 में उज्जैन नगरी में होने वाला सिंहस्थ आयोजित नहीं किया गया था। मगर यह सत्य है कि सिंहस्थ का आयोजन उज्जैन के स्थान पर अन्यत्र महिदपुर में आयोजित किया गया था। आज से 118 वर्ष पूर्व 1897 में उज्जैन भीषण अकाल की चपेट में था। उस समय भीषण अकाल के कारण लोग अन्न और जल के लिये तरस गये थे। सिंहस्थ के साल लोग पलायन करने लगे। ऐसे में शिप्रा नदी में पानी सूख गया था। शिप्रा में स्नान की समस्या उठ खड़ी हुई। साधुओं के लिये अन्न-जल के प्रबंध की समस्या भी सामने ही थी। तत्कालीन सिंहस्थ रियासत सिंहस्थ की व्यवस्था करने में असहाय महसूस करने लगी। सिन्धिया शासन ने इन्दौर के होल्कर राजा के माध्यम से साधुओं को यह सन्देश दिया कि अकाल के कारण उनके लिये उज्जैन में सिंहस्थ का आयोजन करना असंभव है। अत; वे उज्जैन न आयें। सिन्धिया रियासत ने आपातकालीन व्यवस्था न कर पाने के साथ सख्ती के भी संकेत दिये। उस समय इन्दौर से होकर उन्हेल होते हुए महिदपुर का रास्ता था। महिदपुर में होल्कर रियासत का राज था। शिप्रा की एक उगाल अर्थात् पानी का एक बड़ा हिस्सा महिदपुर के गंगवाड़ी क्षेत्र में भी था। होल्कर नरेश ने साधुओं के सिंहस्थ स्नान की व्यवस्था गंगवाड़ी में की और यहां आने वाली जमातों की व्यवस्था भी की गई। इस कार्य से साधुओं के गंगवाड़ी पहुंचने पर महिदपुर में सिंहस्थ मेला भरा और साधुओं को गंगवाड़ी में स्थित शिप्रा नदी की उगाल में ही स्नान कर संतोष करना पड़ा। उस समय सिंहस्थ के इतिहास में यह पहली घटना थी, जब सिंहस्थ के दौरान रामघाट और समूचा स्थान सूना रहा और सिंहस्थ यहां से 60 किलो मीटर दूर महिदपुर के गंगवाड़ी में आयोजित हुआ। इसके बाद सन् 1919 में पुन: अगला सिंहस्थ परम्परागत रूप से पुन: उज्जैन में ही होना शुरू हुआप गौरव नारायण उपाध्याय अकाल के कारण 1897 में सिंहस्थ उज्जैन की जगह महिदपुर में हुआ था
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