इस सिंहस्थ के बाद क्या ?
डॉ. अरूण जैन
सिंहस्थ के साथ प्रदेश की सत्ता का अजब संयोग है। जिसकी अगुवाई में मेले का आयोजन होता है, उसकी सत्ता चली जाती है। संदर्भ तो यहीं संकेत देते है कि जिस वर्ष उज्जैन में मेला आयोजित हुआ, प्राय: उसी वर्ष में मध्यप्रदेश के सत्ता नेतृत्व में फेरबदल हो गया। कभी रातों-रात मुख्यमंत्री बदले तो कहीं चुनावी नतीजों के कारण पूरी सत्ता का ही परिवर्तन हो गया। कारण चाहे जो भी रहे हों लेकिन सिंहस्थ और सत्ता परिवर्तन के इस संयोग की चर्चा राजनीतिक गलियारों में भी है। आजादी के बाद दो बार साधु-संतों व विद्वानों के बीच विवाद के कारण ऐसा संयोग भी बना कि लगातार दो वर्षों तक दो बार सिंहस्थ आयोजित हुआ। कब-किसकी कैसे बदली सत्ता ज्योतिषाचार्य एवम् भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राजनीति का कारक ग्रह राहु तथा शनि को विशेष तौर पर माना गया है। जब भी गोचर काल में राहु-शनि का अन्य पाप ग्रहों से खडाष्टक अथवा दृष्टि संबंध या युति संबंध होता है तो राजनीति परिप्रेक्ष्य में परिवर्तन की स्थितियां बनती हैं। चूंकि बृहस्पति का गोचर काल सिंह राशि में बारह वर्ष बाद बनता है तब विपरीत स्थितियों में ग्रहों का दृष्टि संबंध शासन परिवर्तन करवाता है और प्राय: जब शनि, मंगल का भी गोचर काल वक्र गति से होता है तो वह परिवर्तन की स्थिति को बल प्रदान करता है। इस बार भी सिंहस्थ में इस प्रकार के योग बन रहे हैं, जो प्रदेश में सत्ता सहित बड़े स्तर पर शासकीय परिवर्तन की ओर इशारा कर रहे हैं। अप्रैल-मई 2004 में सिंहस्थ हुआ। प्रदेश में पूर्ण बहुमत के साथ 8 दिसंबर 2003 को मुख्यमंत्री बनीं भाजपा नेता उमा भारती एक साल भी पद पर काबिज नहीं रह सकीं। 1994 में हुए हुबली दंगा मामले में कर्नाटक की कोर्ट से अरेस्ट वारंट जारी होने के कारण उन्हें 23 अगस्त 2004 को रातों-रात इस्तीफा देकर पद छोडऩा पड़ा और 23 अगस्त 2004 को ही बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने। अप्रैल-मई 1992 में सिंहस्थ हुआ। तब सुंदरलाल पटवा (5 मार्च 1990 से 15 दिसंबर 1992 तक) मुख्यमंत्री थे। बाबरी मस्जिद ढहने के कारण बीजेपी शासित प्रदेशों में 16 दिसंबर 1992 को रातों-रात सरकार बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। प्रदेश में 6 दिसंबर 1993 तक राष्ट्रपति शासन रहा। इसके बाद 7 दिसंबर 1993 को कांग्रेस के दिग्विजयसिंह मुख्यमंत्री बने। मार्च-अप्रैल 1980 में सिंहस्थ हुआ। जनता पार्टी की सरकार थी, वीरेंद्र सकलेचा 18 जनवरी 1978 से 19 जनवरी 1980 तक सीएम रहे। इनके बाद 20 जनवरी 80 से 17 फरवरी 80 तक सुंदरलाल पटवा सीएम रहे। इमरजेंसी के बाद प्रदेश में 18 फरवरी 1980 को राष्ट्रपति शासन लगा दिया। 8 जून 80 तक राष्ट्रपति शासन रहा। 9 जून 1980 को कांग्रेस के अर्जुन सिंह सीएम बने। अप्रैल-मई 1968 और अप्रैल-मई 1969 में सिंहस्थ हुआ। गोविंद नारायण सिंह (30 जुलाई 1967 से 12 मार्च 1969 तक) मुख्यमंत्री थे। इंदिरा और नेहरु कांग्रेस की उलझन के चलते 13 मार्च 1969 को राजा नरेशचंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। हालांकि वे भी केवल 25 मार्च 1969 तक ही सीएम रह सके। इनके बाद 26 मार्च 1969 को श्यामाचरण शुक्ल मुख्यमंत्री बने। अप्रैल-मई 1956 और अप्रैल-मई 1957 में सिंहस्थ हुआ। 1 नवंबर 1956 को मप्र की स्थापना हुई, तब रविशंकर शुक्ल मुख्यमंत्री थे। 31 दिसंबर 1956 को उनके निधन के बाद भगवंत राव मंडलोई को 1 जनवरी 1957 को सीएम बनाया। वे भी 30 जनवरी 57 तक मात्र एक महीने मुख्यमंत्री रह सके। इनके बाद 31 जनवरी 1957 को कैलाशनाथ काटजू मुख्यमंत्री बने।
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