Tuesday, 18 April 2017

हॉलीडे मनाने लंदन जाएं तो याद रखें यह कुछ बातें 


डॉ. अरूण जैन
छुट्टियां मनाने के लिए लंदन एक आदर्श शहर है। इसे बसंत ऋतु में देखने का अपना ही मजा है क्योंकि तब नर्गिस खिलकर यहां के बगीचों की सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं। चूंकि यहां थियेटर−ऑपेरा वगैरह भी हैं इसलिए यहां समय कैसे कट जाता है पता ही नहीं चलता। लंदन शहर के मुख्यत: तीन भाग हैं− पुराना शहर, जहां पुरानी इमारतें जैसे वेस्ट मिन्स्टर जहां शाही परिवार के भवन और सरकारी कार्यालय हैं और वेस्ट एंड जहां खरीदारी के मुख्य तीन स्थान बॉन्ड स्ट्रीट, रीजेंट स्ट्रीट और ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट हैं। जब आप वायुयान द्वारा लंदन पहुंचेंगे तो वहां के तीन हवाई अड्डों− हीथ्रो, गेटविक और स्टैन्स्टेड में से किसी एक पर उतरेंगे। हीथ्रो हवाई अड्डे से भूमिगत रेल या एयर बस द्वारा सेंट्रल लंदन पहुंच सकते हैं। ये आपको लंदन के प्रमुख होटलों वाले क्षेत्रों से होते हुए ले जाएंगे। आप अपनी वांछित जगह पर 45 से 85 मिनट के बीच पहुंच सकते हैं। गेटविक हवाई अड्डे से बाहर जाने का बेहतर साधन रेल ही है। वहां दिन में हर 15 मिनट पर और रात में हर एक घंटे पर रेलगाड़ी मिल जाएगी। इसी तरह स्टैन्स्टेड हवाई अड्डे से भी नियमित रेल सेवाएं उपलब्ध हैं। लंदन में घूमने के लिए सबसे अच्छा साधन है ट्यूब रेलवे। इसकी रेलगाडिय़ां रविवार को सुबह 7.30 से रात 11.30 बजे तक और अन्य दिन सुबह 5.30 बजे से रात 12 बजे तक थोड़े−थोड़े अंतराल पर उपलब्ध होती हैं। लंदन घूमने आए हैं तो कम से कम आप यहां चार दिन अवश्य ठहरने का कार्यक्रम बनाएं।  लंदन के प्रमुख स्थलों में बकिंघम पैलेस, कॉमनवेल्थ इंस्टीट्यूट, गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस, टावर ऑफ लंदन, ज्वेल हाउस, मदाम तुसाओ संग्रहालय, लंदन संग्रहालय, विक्टोरिया संग्रहालय और सेंट पाल गिरजाघर प्रमुख हैं। बंकिघम पैलेस महारानी का शाही निवास है। यहां अप्रेल से अगस्त के बीच तक ठंड के मौसम में एक दिन के अंतराल पर सवेरे 11.30 बजे महारानी के अंगरक्षकों के दल का अदलाबदली समरोह देखने लायक होता है।  टेम्स नदी के तट पर बनी किलेनुमा इमारत टावर ऑफ लंदन कहलाता है। यहां पर सेन्ट जॉन का गिरजाघर भी है। टावर के पास ही ज्वेल हाउस भी है। यह वास्तव में सोना, हीरा व जवाहरात का भंडार है। विख्यात भारतीय हीरा कोहिनूर भी यहीं पर है। फरवरी माह में ज्वेल हाउस बंद रहता है। मदाम तुसाद का संग्रहालय पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यह अपनी तरह का एकमात्र संग्रहालय है। यहां विश्व के अनेक महान और विशिष्ट लोगों की मोम से बनाई मूर्तियां रखी गई हैं। इन मूर्तियों को बहुत ही सहेजकर रखा जाता है। इन्हें इतनी सफाई से बनाया जाता है कि आपको लगेगा कि यह मूर्ति अभी बोल पड़ेगी।  लंदन में स्थित सेन्ट पॉल गिरजाघर 33 सालों में बनकर तैयार हुआ था। ईसाई समुदाय के लोग रोम के सेन्ट पीटर गिरजाघर के बाद इसे संसार का दूसरा महत्वपूर्ण गिरजाघर मानते हैं। यहां सोने की अनेक मूर्तियां हैं। दीवारों पर की गई चित्रकारी में भी सोने का प्रयोग किया गया है। इनके अतिरिक्त यहां बारबिकन आर्ट सेंटर, पार्लियामेंट लंदन, डायमंड सेंटर, प्लेनिटॅरियम, टावर ब्रिज, ब्रिटिश म्यूजियम, कैबिनेट वार रूम्स, जियॉलाजिकल म्यूजियम आदि दर्शनीय स्थल भी हैं।

कुछ मुद्दों पर ठन भी सकती है मोदी-ट्रंप के बीच


डॉ. अरूण जैन
अमेरिका के नये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच अच्छा संवाद कायम हो गया है। वे दोनों दो बार फोन पर बात कर चुके हैं और अपने चुनाव-अभियान के दौरान हजारों प्रवासियों भारतीयों के बीच ट्रंप कह चुके हैं कि 'आई लव हिंदू एंड इंडियाÓ। इसके अलावा चार-पांच भारतीय मूल के लोगों को उन्होंने अपने प्रशासन में काफी जिम्मेदारी के पद भी दे दिए हैं। ट्रंप अपने मन की बात बिना लाग-लपेट के कहने के लिए विख्यात हो चुके हैं। उन्होंने कई देशों के बारे में काफी सख्त टिप्पणियां भी की हैं लेकिन भारत के विरुद्ध उन्होंने अभी तक एक शब्द भी नहीं बोला है। उनके चुनाव के दौरान भारतीय मूल के कई लोगों ने उनका डटकर समर्थन भी किया था। इन सब तथ्यों को देखते हुए ऐसा लगता है कि ट्रंप के अमेरिका के साथ भारत के संबंध ओबामा के अमेरिका से भी ज्यादा गहरे हो सकते हैं। गहरे का मतलब क्या? यही कि ओबामा के दौरान दोनों देशों के बीच जो समझौते हुए हैं (उनमें से ज्यादातर अभी तक अधर में लटके हुए हैं), उन्हें अमली जामा पहनाना। पिछले ढाई साल में ओबामा और मोदी की नौ मुलाकातें हो चुकी हैं, लगभग तीन दर्जन मुद्दों पर दोनों देशों का संवाद भी चल रहा है, भारत ने अमेरिका से 15-16 बिलियन डॉलर के शस्त्रास्त्र भी खरीद लिए हैं लेकिन परमाणु भ_ियां लगाने के महत्वपूर्ण समझौते पर कोई ठोस प्रगति नहीं हुई हैं। ट्रंप और मोदी, दोनों ही अपने-अपने देश की राष्ट्रीय राजनीति में अचानक उभरे हैं। दोनों को विदेश नीति के संचालन का अनुभव नहीं है लेकिन दोनों ही अपने संकल्प के धनी मालूम पड़ते हैं। दोनों का अतिवाद और बड़बोलापन आम जनता को उनकी तरफ खींचता है। इसीलिए आशंका होती है कि जब ट्रंप को अपनी भारत-नीति लागू करनी होगी तो वे कहीं पल्टा न खा जाएं जैसे कि मोदी की पाकिस्तान-नीति पिछले ढाई-साल में कई बार उलट-पलट चुकी है। कम से कम दो मुद्दे ऐसे हैं, जिन पर भारत से ट्रंप की ठन सकती है। पहला तो भारतीय नागरिकों को अमेरिका में काम करने के लिए वीजा का प्रश्न है। ट्रंप ने अपने पहले पद-ग्रहण में ही कह दिया है कि वे आप्रवासियों पर रोक लगाएंगे। क्या वे भारतीयों के मामले में ढील देंगे? इस समय अमेरिका की अर्थव्यवस्था में भारतीयों की भूमिका अद्वितीय है। अमेरिका के प्रवासी भारतीय सबसे अधिक समृद्ध, सबसे अधिक शिक्षित, सबसे अधिक खुशहाल और सबसे अधिक मर्यादित समुदाय है। यदि उनके आगमन पर ट्रंप रोक लगाएंगे और यदि उनसे रोजगार छीनेंगे तो भारत चुप कैसे बैठेगा? इसके अलावा वे अमेरिका की ही हानि करेंगे। यदि भारतीय लोग अमेरिका छोड़ दें तो ट्रंप इतने योग्य और अनुशासित अमेरिकियों को कहां से लाएंगे? ट्रंप ने अपने चुनाव-अभियान के दौरान भी इस रोक की रट लगा रखी थी। अब राष्ट्रपति बनते ही उन्होंने अपने अटपटे लगने वाले वादों को लागू करना शुरू कर दिया है, उससे यह संकेत मिलता है कि उक्त मुद्दा शीघ्र ही विवादास्पद बनने वाला है। ऐसे में दो देशों के नेताओं के बीच कायम किया गया दिखावटी सद्भाव कहां तक टिक पाएगा? अगर टिका रहे तो बहुत अच्छा हो! दूसरी बात भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। वह सिर्फ भारत के बारे में ही नहीं है। उसका संदर्भ बड़ा है। ट्रंप का कहना है कि अमेरिकी पूंजी का फायदा दुनिया के दूसरे देश उठा रहे हैं। अब ट्रंप-प्रशासन इस नीति पर पुनर्विचार करेगा। क्या भारत में लगी अमेरिकी पूंजी और उससे पैदा होने वाले रोजगारों पर भी ट्रंपजी की वक्र-दृष्टि होगी? वे स्वयं व्यवसायी रहे हैं। उन्हें पता होना चाहिए कि अब से कई दशक पहले अमेरिका के प्रसिद्ध विदेश मंत्री जॉन फॉस्टर डलेस ने बाहर जाने वाले अमेरिकी डॉलर के बारे में क्या कहा था। डलेस का कहना था कि सहायता या विनियोग के नाम पर बाहर जाने वाला एक डॉलर, तीन डॉलर बनकर वापस लौटता है। भारत-जैसे देशों में लगी अमेरिकी पूंजी हमेशा अमेरिका के लिए ही ज्यादा फायदे दुहती है। ट्रंप का यह कहना सही नहीं है कि 'हमने अन्य देशों को मालदार बना दिया हैÓ और हमारे देश की 'संपदा, शक्ति और आत्मविश्वास हवा में उड़ गए हैं।Ó आशा है कि ट्रंप प्रशासन के अफसर उन्हें जब अमेरिकी नीतियों के अंदरुनी रहस्य समझाएंगे तो उनके विचारों में कुछ बदलाव आएगा। तब शायद वे सिर्फ 'पहले अमेरिकाÓ कहने के साथ-साथ यह भी कह देंगे कि 'दूसरे भी साथ-साथ।Ó इन आशंकाओं के बावजूद अभी ऐसा लगता है कि ट्रंप के अमेरिका और मोदी के भारत में एक मुद्दे पर जबर्दस्त जुगलबंदी हो सकती है। वह है, आतंकवाद का! यों तो ओबामा भी आतंकवाद का विरोध करते रहे लेकिन ट्रंप ने आतंकवाद के उन्मूलन के लिए जैसा खांडा खड़काया है, पिछले 20 साल में किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति ने नहीं खड़काया। उन्होंने सात मुस्लिम राष्ट्रों के नागरिकों के अमेरिका आने पर भी रोक लगा दी है। पश्चिम एशिया के इन राष्ट्रों में आतंकवादियों का दबदबा है। भारत के लिए जरा आश्चर्य की बात है कि इन राष्ट्रों की सूची में पाकिस्तान और अफगानिस्तान का नाम नहीं है। भारत तो इन्हीं राष्ट्रों के आतंकवादियों का शिकार है। क्या ट्रंप भी अन्य राष्ट्रपतियों की तरह केवल उन्हीं आतंकी राष्ट्रों के खिलाफ होंगे, जो अमेरिकी हितों को चोट पहुंचाते हैं? यदि ऐसा होगा तो मानना पड़ेगा कि उन्होंने मोदी को सब्जबाग दिखा दिया है। चने के पेड़ पर चढ़ा दिया है। उन्हें जब नवाज शरीफ ने जीतने पर बधाई दी थी, तब उनकी लफ्फाजी देखने लायक थी। उन्होंने नवाज और पाकिस्तान को भी सिर पर बिठा लिया था। यदि ट्रंप अफगानिस्तान से पूरी तरह हाथ धोना चाहेंगे और पाकिस्तान को चीन के हाथों में सौंप देंगे तो अमेरिका की दक्षिण एशियाई नीति शीर्षासन की मुद्रा धारण कर लेगी। यद्यपि इस्राइल के प्रति मोदी और ट्रंप का भाव चाहे एक-जैसा हो लेकिन भारत इस्राइल की ट्रंप-नीति का पूर्ण समर्थन नहीं कर पाएगा। हमारे सुयोग्य विदेश सचिव जयशंकर पर निर्भर करता है कि ट्रंप की इस अल्हड़ नदी में वे भारत की नाव को किस तरह खेते रहेंगे।  ट्रंप ने अमेरिका को 12 राष्ट्रीय प्रशांत संगठन (टीपीटी) से भी मुक्त कर लिया है। इन राष्ट्रों पर चीन का दबदबा बढ़ेगा। वे 'नाटोÓ सैन्य संगठन को भी अप्रासंगिक कह चुके हैं। वे पुतिन के रूस को अमेरिका के बहुत निकट लाना चाहते हैं। वे मेक्सिको और अमेरिका के बीच दीवार खड़ी करने पर तुले हुए हैं। वे जलवायु संबंधी वैश्विक सर्वसम्मति के भी विरुद्ध हैं। उनका और उनकी नीतियों का अमेरिका में ही जमकर विरोध हो रहा है। वे किसी को नहीं बख्श रहे। उन्होंने अपनी पार्टी के असंतुष्ट नेताओं और अमेरिकी पत्रकारों की भी खूब खबर ली है। पिछले राष्ट्रपतियों और प्रशासनों पर भी रंदा चलाने में वे नहीं चूके हैं। ऐसी हालत में ट्रंप के साथ चलते वक्त भारत को अपने कदम फूंक-फूंककर रखने होंगे।

बांग्ला देश का बड़ा नुकसान कर रही हैं शेख हसीना


डॉ. अरूण जैन
यह समझ में आने लायक नहीं है कि जब बांग्ला देश आजादी के जश्न में लगा है तो हिंदुओं के मंदिर और उनकी संपत्ति को तहस-नहस क्यों किया जा रहा है। 45 साल पहले भारत, जहां की बहसुंख्यक आबादी हिंदु है, ने पूर्व पाकिस्तान के लोगों को सेना के बोलबाले वाले पश्चिमी पाकिस्तान के हाथों से आजादी छीनने में मदद की। दो हजार से ज्यादा भारतीय सैनिकों और अफसरों ने इस्लामाबाद के खिलाफ लड़ाई में जान दी। खास बात यह है कि शेख हसीना उन शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हैं जिन्होंने जनआंदोलन खड़ा किया और इस क्षेत्र को मुक्त कराया। धार्मिक ताकतों के खिलाफ लडऩे की उनकी पहचान पर संदेह नहीं किया जा सकता है। लेकिन यह अलग बात है कि उन्होंने कट्टरपंथियों के खिलाफ कार्रवाई का इस्तेमाल विपक्षी पार्टियों के खिलाफ लडऩे में किया है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की शिकायत है कि हसीना की नाराजगी उनके खिलाफ है क्योंकि वही एकमात्र विकल्प है। उनकी शिकायत है कि शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग उन्हें खत्म करने के लिए हर चाल चल रही है। यहां तक कि यह अफवाह भी फैला दी गई है कि वे भारत−विरोधी हैं ताकि खालिदा जिया की छवि खराब कर दी जाए। मुझे शेख मुजीबुर रहमान के साथ ढाका में हुई मुलाकात याद है जो आज बांग्लादेश कहे जाने वाले क्षेत्र की मुक्ति के तत्काल बाद हुई थी। मैंने उनसे शिकायत की थी कि बहुत ज्यादा भारत विरोधी भावना है। मैं ढाका प्रेस क्लब गया था और पत्रकारों को यह मजाक करते पाया कि हिलसा मछली कोलकाता के होटलों में मिलती है, लेकिन बांग्लादेश में नहीं। नई दिल्ली और कोलकाता की तीखी आलोचना की कि गई कि वे बांग्लादेश की मुक्ति का फायदा उठा रहे हैं। लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा, जिन्होंने भरतीय सेना का नेतृत्व किया था, का खास जिक्र किया गया कि उन्होंने पूर्व पाकिस्तान के साथ व्यापार करने वाले अमीर पश्चिमी पाकिस्तानियों को लूटा। शेख मुजीबुर रहमान ने मुझे कहा कि बंगाली एक गिलास पानी देने देने वाले का एहसान भी नहीं भूलता। आपके देश वालों ने क्षेत्र को मुक्त कराने के लिए मुक्ति वाहिनी की मदद की और अपनी जान दी है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में सेकलुरिज्म की गहरी जड़ें हैं और इसे किसी भी हालत में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। लेकिन हैरत की बात है कि बांग्लादेश की सेकुलर पहचान पर आज सवाल खड़े हो रहे हैं। जम्मातए इस्लामिया, जो एक समय जनरल एचएम एरशाद के सैनिक शासन के समय सरकार का हिस्सा थी, शासन करने के इस्लामिक तरीके को लेकप्रिय बनाने की भरपूर कोशिश कर रही है और दुनिया के एक इस्लामिक राज्य के साथ नजदीकी संबंध बनाना चाहती है। सौभाग्य से, बांग्ला देश में इसे व्यावहारिक रूप से कोई समर्थन नहीं है।  लेकिन शेख हसीना की बदनामी के कारण बांग्लादेशी न केवल भारत विरोधी बल्कि नरम रूप में इस्लामिक भी दिखाई देते हैं। वह मुख्य विपक्षी नेता खालिदा जिया के समर्थकों को मिटाने में व्यस्त हैं। इस लड़ाई में बेगम जिया के साथ के सेकुलर लोगों को भी सांप्रदायिक बताया जा रहा है और उन्हें खदेड़ा जा रहा है। अब शेख हसीना की चिंता जड़ जमाने की और सत्ता नहीं छोडऩे की है। विरोधी दल खुल कर कह रहे हैं कि वे शायद उन्हें हटा पाने में सफल नहीं होंगी क्योंकि वह कभी निष्पक्ष चुनाव नहीं होने देंगी। वह पहले से ही खानदानी शासन की चर्चा करने लगी हैं और अमेरिका में रहने वाले अपने बेटे के साथ सरकार के सभी मामलों को लेकर मशविरा कर रही हैं। इसी सोच के अनुसार, प्रधानमंत्री विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थानों में महत्वपूर्ण जगहों पर अपने समर्थकों की नियुक्त किर रही हैं, इसके बावजूद कि उनके पास योग्यता और डिग्री नहीं है। इस प्रक्रिया में, वह योग्यता पर आधारित शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद कर रही हैं। लेकिन उन्हें इसकी कोई फिक्र नहीं है क्योंकि उन्हें भरोसा है कि सेकुलरिजम के नाम पर वह अपने किसी भी समर्थक को ऊंचे पद पर बिठा सकती हैं। एक कानून बनाने पर विचार हो रहा है जिसमें उनके पिता या उनके शासन को चुनौती देने वाले को राष्ट्रद्रोही समझा जाएगा। निस्संदेह, लोकतांत्रिक परंपरा को देखने का यह अजीब तरीका है। लेकिन एक बार यह कानून बन जाता है तो बांग्लादेश में कोई भी आश्चर्य जनक बात हो सकती है। आने वाले दिनों में, विरोधी पार्टियां जो आज उनका खास निशाना हैं, की कोई आवाज नहीं उठेगी। माहौल ज्यादा निरंकुश और तानाशाही वाला हो जाएगा। और बहुत कम लोग रह जाएंगे जो सरकार से सवाल कर पाएंगे।  अपने सभी कामों में, शेख हसीना देश का कल्याण भूल चुकी हैं। जब वह अपना स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, बांग्लादेश इस समस्या का सामना कर रहा है कि आर्थिक विकास के जरिए लोगों को लाभ दिलाने में सरकार कितनी सफल हो रही है। दुर्भाग्य से, ऐसा नहीं है। प्रधानमंत्री अपनी उपलब्धि इसी में गिनती हैं कि उन्होंने अपने पक्के समर्थकों को कितने पद दिए हैं।

योगी का चाबुक अपने पराये में अंतर नहीं कर रहा


डॉ. अरूण जैन

21वीं सदी के शुरुआती वर्ष 2002 में विक्रम भट्ट निर्देशित हिन्दी फीचर फिल्म राज के एक गीत, यह शहर है अमन का, यहां की फिजा है निराली, यहां पर सब शांति-शांति है, यहां पर सब शांति-शांति है। ने खूब शोहरत बटोरी थी। यह गीत आजकल उत्तर प्रदेश पर काफी फिट बैठ रहा है। यूपी में सत्ता परिवर्तन होते ही एक गजब तरह की खामोशी ने पूरे राज्य को अपने आगोश में ले लिया है। इसका कारण है योगी सरकार का अपराधियों पर कसता शिकंजा, जिसके कारण यूपी में योगी सरकार का इकबाल बुलंद है। पूरे प्रदेश में जिस तेजी के साथ माहौल बदल रहा है, उसने प्रदेश की अमन प्रिय जनता काफी सुकून महसूस कर रही है। शहर की सड़कें और चौराहे इस बात के गवाह हैं। बात−बात पर मारपीट पर उतारू दबंग किस्म के लोग अब कहीं नहीं दिखाई देते हैं। बड़े-बड़े मॉल और पार्कों में अब शोहदे लफंगई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। बात ज्यादा पुरानी नहीं है जब छोटी-छोटी बात पर लोग अपना आपा खो बैठते थे, मरने-मारने तक की नौबत पहुंच जाती थी। न खाकी वर्दी का डर रह गया था, न कानून की चिंता। महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं समाज को अभिशप्त करती जा रही थीं। जिसकी बेटी या बहन के साथ छेड़छाड़ होती थी, वह अपना मुंह नहीं खोल सकता था। अगर खोलता तो जान के लाले पड़ जाते। उलटा उसी को किसी केस में फंसा दिया जाता। कदम−कदम पर सड़क पर दहशत का माहौल देखने को मिलता था। यह सब सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के नेताओं की शह में चल रहा था। जिनका समाजवाद से दूर-दूर का नाता नहीं है, वह भी सपा राज में सपाई चोला ओढ़कर कारनामे कर रहे थे। अवैध कब्जेदार, नकल और खनन माफिया, अवैध निर्माण, अवैध नर्सिंग होम, खाद्य पदार्थों में मिलावट, कालाबाजारी से लेकर कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रहा था। सरकारी पैसों की बंदरबांट, थानों की नीलामी, ठेकेदारों की मनमानी सब कुछ चल रहा था। ऐसा नहीं है कि योगी राज में अब सब कुछ खत्म हो गया हो या फिर बदल गया हो, लेकिन कम से कम कोई यह तो नहीं कह सकता है कि यूपी में कानून व्यवस्था की धज्जियां सरकारी संरक्षण में उड़ाई जा रही हैं। अपराधिक वारदातें आज भी घटित हो रही हैं, लेकिन अनुपात में कमी आई है। अब समाज विरोधी तत्व यह नहीं सोच सकते हैं कि उन्हें कहीं से संरक्षण मिल जायेगा, इसलिये अपराधी पकड़े भी जा रहे हैं ओर जेल की सलाखों के पीछे भी पहुंच रहे हैं। जिसके चलते ऐसा लगता है कि यूपी की बदनाम सड़कों पर खामोशी का पहरा बैठ गया हो। यह जरूर है कि सड़क पर अब पहले जैसा तांडव देखने को नहीं मिलता है, मगर चारदिवारी के भीतर होने वाले अपराधों पर अभी नियंत्रण नहीं हो पाया है। बहरहाल, समाज में आ रहे बदलाव को अगर सियासी चश्मा उतार कर देखा जाये तो काफी कुछ साफ नजर आने लगता है। अपराधिक प्रवृति के लोगों में सरकार और पुलिस का भय पनपने की वजह से ऐसा हुआ है। गुंडे माफियाओं को पता है कि अगर वह कानून को अपने हाथ लेंगे तो उनको कोई बचाने वाला नहीं मिलेगा यह दृश्य जगह-जगह देखने को भी मिल रहा है। लखनऊ में विधान भवन के समाने से अगर ट्रैफिक पुलिस का सब इंस्पेक्टर एक मंत्री की लालनीली बत्ती लगी पुलिस स्क्वॉड की गाड़ी को गलत पार्किंग के कारण क्रेन से उठाकर ले जा सकती है और यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से बीजेपी विधायक सुशील सिंह की हत्या आरोपियों को छुड़ाने की कोशिश को पुलिस नाकाम करके बीएसपी नेता की हत्या के आरोपियों को जेल भेज देती है तो इसका मतलब यही हुआ कि योगी सरकार की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है। उनका चाबूक अपने पराये में अंतर नहीं कर रहा है। सीएम योगी ने कानून व्यवस्था चुस्त−दुरूस्त करने के लिये पुलिस को खुली छूट दे रखी है, जिसकी वजह से ही अपराध का ग्राफ घटा है। पुलिस अब बेजा दबाव बीजेपी नेताओं और विधायकों का भी नहीं मान रही है। हाँ, इस बीच कई और तरह की समस्याओं ने जरूर जन्म लिया है, जिस कारण पुलिस को कानून व्यवस्था बनाये रखने में दिक्कत आ रही है। योगी के सत्ता संभालते ही आंदोलनों की बयार बहने लगी है। शराब बंदी के खिलाफ आंदोलन, प्राइवेट स्कूल मालिकों की मनमानी के खिलाफ आंदोलन, कट्टर हिन्दूवादी नेताओं की हठधर्मी के किस्से, अयोध्या में भगवान राम लला के मंदिर के निर्माण की मांग जोर पकडऩे जैसी समस्याएं जरूर योगी सरकार के लिये सिरदर्द बनी हुई हैं। लब्बोलुआब यह है कि योगी राज में उत्तर प्रदेश उम्मीदों का प्रदेश बन गया है। ऐसा लग रहा है पूर्ववर्ती सरकारों को लेकर प्रदेश की जनता में या तो विश्वास की कमी रही होगी अथवा जनता का मिजाज समझ पाने में यह सरकारें नाकाम रही होंगी। योगी को सत्ता संभाले चंद दिन बीते हैं, इन चंद दिनों में सरकार ने काफी अहम फैसले भी लिये हैं, जिसके चलते प्रदेश में अपराध के ग्राफ में कमी आई है। नौकरशाहों, अधिकारियों और कर्मचारियों के काम का तौर-तरीका बदल गया है। चाहें अवैध बूचडख़ाने हो या फिर अवैध निर्माण अथवा खनन, भू और नकल माफिया योगी, सरकार का हंटर सभी के खिलाफ तेजी के साथ चल रहा है।  योगी राज आते ही यूपी में सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई भी तेज हो गई है। चाहे तीन तलाक का मामला हो या फिर शराब जैसी बुराइयों के कारण बिगड़ता सामाजिक तानाबाना। महिलाओं से छेड़छाड़ का मसला हो अथवा उनको आगे बढऩे देने का मौका मिलने की बात। जनता को कम पैसे में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना, शिक्षा को व्यवसायीकरण से बचाना, सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार से लेकर सड़कों के गड्ढे, अतिक्रमण, सरकारी संपत्ति पर कब्जा करने वाले सभी पर योगी की नजरें जमी हैं।

आखिर मप्र में कैसे आए विकास की बहार आईएएस की कमी से सरकार बेहाल!

डॉ. अरूण जैन
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार अभी से मिशन 2018 के मूड में आ गई है। इसी को दृष्टिगत करते हुए मप्र सरकार ने बजट 2017-18 में बिना किसी को नाराज किए सभी वर्ग को साधने की कोशिश की है। जमीनी और मैदानी तैयारी के साथ सरकार प्रशासनिक स्तर पर भी चौसर बिछा रही है। लेकिन चौसर पर उसकी सारी कवायद आकर थम-सी गई है, क्योंकि मुख्यमंत्री जिन घोषणाओं के दम पर प्रदेश में लगातार चौथी बार सरकार बनाने का सपना देख रहे हैं उनमें से करीब 3,200 घोषणाओं को कद्रदान की तलाश है। लेकिन आईएएस अफसरों की कमी के कारण करीब 6,40,000 करोड़ की योजनाएं कागजों की शोभा बनी हुई हैं। कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय मामलों की संसदीय समिति ने भी अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि आईएएस अफसरों की कमी चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई है। दरअसल, पिछले 11 साल से अधिक समय के कार्यकाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी लगभग हर सभा और बैठक में किसी न किसी योजना की घोषणा की है। मुख्यमंत्री ने अपने तीसरे शासनकाल में ही अभी तक करीब 3300 घोषणाएं की हैं। इनमें 1500 से अधिक घोषणाएं लंबित हैं। जानकारी के अनुसार, 11 साल में मुख्यमंत्री ने करीब 13,000 घोषणाएं की है। सूत्र बताते हैं कि 11 साल के दौरान हुई कुल घोषणाओं में 3,200 से अधिक अभी तक लंबित हैं। मुख्यमंत्री, मंत्री और भाजपा संगठन सभी घोषणाओं को पूरा करने के लिए अफसरों पर दबाव बना रहे हैं। विभागों के प्रमुख समीक्षाएं कर रहे हैं जिसमें यह बात सामने आ रही है कि आईएएस अफसरों और बजट की कमी के कारण मुख्यमंत्री की घोषणाएं धरातल पर उतर नहीं पा रही हैं। प्रदेश के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि अगर सरकार बजट देने को तैयार भी हो जाए तो आईएएस अफसरों की कमी के कारण योजनाओं को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सकता। मप्र में 20 फीसदी आईएएस की कमी प्रशासनिक ढांचे को राज्य की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है। देश में सरकार भले ही जनता द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी जाती है, लेकिन सरकार का असली संचालन नौकरशाही द्वारा होती है। सरकार चलाने के लिए मंत्री अपने सचिवों पर निर्भर रहते हैं। सही मायनों में देखा जाए तो देश-प्रदेश और विदेशी नीतियों से लेकर विकास का दायित्व इन आईएएस अफसरों पर रहता है। लेकिन विसंगति यह देखिए कि केंद्र या राज्य सरकारें आईएएस की कमी को लेकर मौन हैं। सरकारों की योजनाएं बनाने, उन्हें लागू करवाने में इन अफसरों का अहम योगदान होता है। जनता के बीच सरकार के कामकाज की सराहना के पीछे इन्हीं अफसरों की दूरगामी नीतियां होती हैं। वास्तव में आईएएस अफसर देश को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन इन सबके बावजूद अकेले मप्र में 20 फीसदी आईएएस अफसरों की कमी है। केंद्र सरकार ने मप्र के लिए 417 आईएएस का कैडर मंजूर किया है, लेकिन वर्तमान में 334 अधिकारी की मप्र को मिले हैं। इनमें से 31 केंद्र में पदस्थ है। इस तरह प्रदेश में करीब 114 आईएएस की कमी है। ऐसे में घोषणाओंं को अमलीजामा कैसे पहनाया जा सकता है?

दुष्कर्मियों को मौत की सजा का कानून बनेगा


डॉ. अरूण जैन
उत्तर प्रदेश में नए मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने एंटी रोमियो स्क्वॉड बनाई तो यूपी में छेडख़ानी करने वाले मनचलों की शामत आ गई। एंटी रोमियो स्क्वॉड के बनए एक हफ्ते ही हुए और मनचले अपने घरों में दुबक गए। यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी की ये योजना पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी खूब पसंद आई है। यूपी में एंटी रोमियो स्क्वॉड के शुरू किए जाने के एक हफ्ते बाद मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी मनचलों पर इसी तरह की कार्रवाई किए जाने का ऐलान किया है। एक कदम आगे बढ़ते हुए शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि उनकी सरकार दुष्कर्म के दोषियों को फांसी की सजा देने का कानून भी लाएगी। दुष्कर्म के दोषियों को सीधे फांसी देने की मांग अक्सर उठती रहती है। यह तीसरी बार है जब शिवराज सिंह चौहान ने भी दुष्कर्म के दोषियों को मौत की सजा दिए जाने की बात कही है। हालांकि उन्होंने ये पहली बार कहा है कि एक तय वक्त में वो इस बारे में कानून को भी ला सकते हैं। शुक्रवार को भोपाल पुलिस अकादमी के पासिंग आउट परेड में पहुंचे शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हम इस मानसून सत्र में विधानसभा में बिल पेश करेंगे। अगर यह पारित हो जाता है तो इसे लागू करने के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। शिवराज ने कहा कि राज्य में मनचलों के खिलाफ एक अभियान चलाएंगे ताकि बहन-बेटियां सुरक्षित रहें। शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मनचलों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा। वो मानते हैं कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि अपराधियों में इस बात का खौफ रहे कि अपराध के लिए उन्हें सख्त सजा मिलेगी। दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध करने वालों को इस बात का खौफ रहे कि अगर वो ऐसा अपराध करते हैं तो खुद भी जिंदा नहीं रह पाएंगे। शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि विकास के लिए जरूरी है कि राज्य में अच्छी कानून व्यवस्था हो, जोकि पुलिस की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि दुष्कर्मियों को फांसी देने का कानून लाने के लिए भारतीय दंड संहिता (ढ्ढक्कष्ट) में संशोधन की जरूरत पड़ेगी, लेकिन इसके लिए अपनी तरफ से की जा सकने वाली कोशिशों से वो पीछे नहीं हटेंगे। शिवराज सिंह लगातार शराब के खिलाफ बोलते आए हैं और नर्मदा के आसपास खुली शराब की दुकानों को बंद करने की बात उठा चुके हैं। ऐसे में अब महिलाओं से अपराध करने वालों कड़ी सजा देने की बात कहकर वह राज्य की महिलाओं की नजर में और अच्छी छवि बना लेंगे। उन्हें इसका फायदा 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव में हो सकता है। शिवराज सिंह अच्छी तरह जानते हैं कि मध्य प्रदेश दुष्कर्म के मामले में सबसे ऊपर है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों ने इस मुद्दे पर देश भर में राज्य की छवि को नुकसान पहुंचाया है। मुख्यमंत्री चौहान इसी छवि से लड़ रहे हैं और इससे मुक्ति दिलाने के लिए प्रयासरत हैं। इसीलिए उन्होंने कहा कि विधानसभा के मानसून सत्र में विधेयक लाकर दुष्कर्मियों को मौत की सजा का कानून बनाया जाएगा।

अमेरिकी अधिकारियों से मिले डोभाल, सहयोग बढ़ाने पर चर्चा


डॉ. अरूण जैन
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत के. डोभाल की शीर्ष अमेरिकी अधिकारियों के साथ उच्च स्तरीय बैठकों के बाद यहां सूत्रों ने बताया कि ट्रंप प्रशासन आतंकवाद से निपटने के लिए भारत के साथ सहयोग बढ़ाना और मजबूत करना चाहता है। डोभाल ने इस सप्ताह अमेरिका की यात्रा के दौरान अमेरिका के रक्षा मंत्री जनरल (सेवानिवृत्त) जेम्स मैटिस, गृह सुरक्षा मंत्री जनरल (सेवानिवृत्त) जॉन केली और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल एचआर मैकमास्टर से मुलाकात की। इन सभी बैठकों में दक्षिण एशिया में आतंकवाद से पैदा हुई चुनौती से मिलकर निपटने के लिए भारत और अमेरिका के बीच सहयोग को गहरा करने और विस्तार देने की बात की गई।  उन्होंने शक्तिशाली सीनेट आर्म्ड सर्विसेस कमेटी के अध्यक्ष जॉन मैकेन और सीनेट सलेक्ट कमेटी ऑन इंटेलीजेंस के अध्यक्ष रिचर्ड बर से भी मुलाकात की। पेंटागन ने प्रवक्ता कैप्टन जेफ डेविस ने बैठक की जानकारी देते हुए कहा कि मैटिस और डोभाल ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों एवं सिद्धांतों को बरकरार रखने में सहयोग को लेकर अपनी भूमिका पर चर्चा की। उन्होंने कहा, ''मैटिस ने दक्षिण एशिया क्षेत्र में स्थिरता को प्रोत्साहित करने के भारत के प्रयासों की प्रशंसा की। दोनों नेताओं ने हालिया वर्षों में रक्षा सहयोग में की गई अहम प्रगति को आगे बढ़ाने की पुन: पुष्टि की।  डेविस ने कहा, ''रक्षा मंत्री मैटिस और एनएसए डोभाल ने समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद से निपटने समेत क्षेत्रीय सुरक्षा के कई मुद्दों पर सहयोग को लेकर चर्चा की। दोनों ने अपने देशों के बीच मजबूत रक्षा साझेदारी जारी रखने पर जोर दिया।ÓÓ ट्रंप प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि डोभाल और मैकमास्टर ने बृहस्पतिवार को व्हाइट हाउस में मुलाकात के दौरान आतंकवादी खतरों से ''पूरी तरह लडऩेÓÓ के लिए साझेदारों के तौर पर साथ मिलकर काम करने की ''प्रतिबद्धताÓÓ जतायी। साथ ही उन्होंने कहा कि दोनों बड़े लोकतांत्रिक देश आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक साथ खड़े हैं। वाशिंगटन में शुक्रवार को डोभाल की बैठकों का समापन होने के बाद भारतीय सूत्रों ने कहा, ''सभी बैठकें अच्छी, बहुत सकारात्मक और बहुत रचनात्मक रहीं। मुझे लगता है कि भारत को लेकर खुला नजरिया है।ÓÓ ट्रंप के नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद यह डोभाल की दूसरी अमेरिकी यात्रा है। दिसंबर में डोभाल ने मनोनीत एनएसए जनरल (सेवानिवृत) माइकल फ्लिन से मुलाकात की थी जिन्होंने कुछ सप्ताह बाद सत्ता हस्तांतरण और चुनाव अभियान के दौरान रूसी दूतों संबंधी विवाद के कारण इस्तीफा दे दिया था। फ्लिन का स्थान मैकमास्टर ने लिया और अधिकारियों के अनुसार उनका भारत के बारे में काफी सकारात्मक नजरिया है। वरिष्ठ अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर कहा, ''इन सभी बैठकों में भारत की आर्थिक योजनाओं, सुधारों और वृद्धि पर चर्चा की गयी। इनमें भारत-अमेरिकी संबंधों की मुख्य सुरक्षा चिंताओं, क्षेत्रीय चिंताओं, रक्षा और सुरक्षा के आयामों पर बात की गयी।ÓÓ बातचीत में विमुद्रीकरण और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसे मुद्दों को भी उठाया गया, जो भारत की आर्थिक वृद्धि में अमेरिका के हितों को दर्शाता है। पाकिस्तान पर कोई विशेष चर्चा नहीं की गयी लेकिन क्षेत्र में आतंकवाद के संदर्भ में उसका जिक्र किया गया। अधिकारी ने कहा कि ट्रंप प्रशासन के नेतृत्व में यह स्पष्ट है कि भारत का यह पड़ोसी आतंकवाद से किस प्रकार निकटता से जुड़ा हुआ है।

विकास ड्डसबका होगा, तुष्टीकरण किसी का नहीं: आदित्यनाथ

डॉ. अरूण जैन
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने कहा कि उनकी सरकार जाति, मजहब और लिंग के नाम पर किसी तरह का भेदभाव नहीं करेगी। राज्य सरकार सबका विकास करेगी और किसी का तुष्टिकरण नहीं होगा। योगी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर का पहला दौरा किया। उनके सम्मान में आयोजित समारोह में उन्होंने कहा, ''उत्तर प्रदेश आज केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की सरकार की राह पर 'सबका साथ और सबके विकासÓ की राह पर चलेगा। यहां पर किसी के साथ ना जाति, ना मत, ना मजहब और ना लिंग के नाम पर किसी प्रकार का भेदभाव किया जाएगा। विकास सबका होगा लेकिन तुष्टिकरण किसी का नहीं होगा। यही आश्वासन देने के लिए मैं आपके बीच उपस्थित हुआ हूं।ÓÓ मुख्यमंत्री ने कहा, ''एक बड़ी योजना के साथ हम कार्य प्रारंभ करने वाले हैं। उत्तर प्रदेश का कोई व्यक्ति चाहे वह किसी तबके या क्षेत्र का हो, कभी भी अपने को उपेक्षित महसूस नहीं करेगा।ÓÓ उन्होंने कहा कि सरकार निरंतर कार्य कर रही है। कुछ निर्णय लिये लेकिन हो सकता है कि तमाम लोग तमाम प्रकार की बातें कर रहे हों। ''सबको बताना चाहता हूं कि भाजपा के लोक कल्याण संकल्प पत्र में जो बातें कही हैं, हम अक्षरश: उनका अनुपालन करेंगे। सरकार उत्तर प्रदेश को देश के विकसित से विकसित प्रदेश के रूप में स्थापित करने में सफल होगी।ÓÓ योगी ने कहा कि प्रदेश में भ्रष्टाचार मुक्त शासन होगा। जनता के प्रति संवेदनशील प्रशासन होगा। गुंडाराज पूरी तरह समाप्त होगा। अराजकता का कोई स्थान नहीं होगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश में भाजपा की बड़ी विजय है लेकिन कहीं भी 'जोश में होश खोनेÓ की स्थिति नहीं आनी चाहिए। किसी को कानून हाथ में नहीं लेना चाहिए। आपके उत्साह में कहीं ऐसा ना हो उन अराजक तत्वों को अवसर मिले जो देश प्रदेश की शांति में खलल डालना चाहते हैं। आदित्यनाथ योगी ने कहा कि भाजपा सरकार कानून का राज स्थापित करने के लिए कृतसंकल्प है। युवाओं, नौजवानों, किसानों, मजदूरों, हर तबके के लिए हमारी योजना होगी। विकास के लिए मजबूती से कार्य करेंगे। लोक निर्माण विभाग के कामकाज की समीक्षा के दौरान निर्देश दिया गया है कि प्रदेश की सभी सड़कें 15 जून तक गड्ढा मुक्त हो जाएं। उन्होंने कहा, ''किसानों के बारे में भी योजना बना रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की एक टीम यह पता करने के लिए छत्तीसगढ़ भेजी है कि वहां हर व्यक्ति के लिए खाद्य सुरक्षा किस तरह लागू है। वहां का एक एक गरीब किस तरह शासन की योजनाओं से लाभान्वित है। वहां का सिस्टम ले रहे हैं। शत प्रतिशत गेहूं का क्रय करेंगे। समर्थन मूल्य किसान के खाते में डालेंगे।ÓÓ 5 योगी ने कहा कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण :एनजीटी: ने पिछले दो साल में कई बार कहा है कि प्रदेश में अवैध बूचडख़ानों को हटाओ। जो लोग मानक के अनुसार लाइसेंस लिये हैं, लाइसेंस नियमों का पालन कर रहे हैं, सरकार उन्हें नहीं छेड़ेगी लेकिन जिन्होंने एनजीटी के आदेशों का उल्लंघन किया है, अवैध रूप से गंदगी फैला रहे हैं और जन-स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, उन्हें हटाया जाएगा। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार बालिकाओं और माताओं की सुरक्षा के लिए कृतसंकल्प है। प्रशासन से कहा गया है कि ऐसे तत्वों पर कड़ाई करें जो मनचले और शोहदे किस्म के हैं। एंटी रोमियो स्क्वायड को सक्रिय कर दिया गया है। योगी ने कहा, ''प्रशासन से स्पष्ट करूंगा कि सहमति से साथ बैठे, बात करते या राह चलते युवक युवती को कतई ना छेड़ा जाए लेकिन अगर भीड़ वाले स्थानों पर या स्कूलों के बाहर कोई इस प्रकार की हरकत करता है, जिससे बालिका की सुरक्षा को खतरा पैदा हो तो ऐसी स्थिति नहीं होनी चाहिए।ÓÓ उन्होंने कहा कि जहां ऐसा होगा, वहां के अधिकारी उसके प्रति जवाबदेह होंगे। हमें ऐसी व्यवस्था देनी है कि रात्रि को दस या 11 बजे भी अगर कोई बालिका कहीं से आ रही है और अकेले सड़क पर चल रही है तो अपने आपको सुरक्षित महसूस कर सके। आदित्यनाथ योगी ने कहा कि कानून का राज स्थापित करने में, भ्रष्टाचार रहित शासन देने में, उत्तर प्रदेश में हर नागरिक को सुरक्षा की गारंटी देने में, न्याय की गारंटी तथा इस कार्य को मजबूती से करने में सबके सहयोग की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जहां भी जा रहे हैं, लोगों की समस्याएं हैं। किसानों, नौजवानों, माताओं, बहनों, व्यापारियों की समस्याएं हैं। ''सरकारें कैसे चलती हैं, उत्तर प्रदेश में भाजपा करके दिखाएगी। वास्तव में सरकार का स्वरूप क्या होना चाहिए। जनता के प्रति उसका लगाव कैसे होना चाहिए। संवाद कैसे होना चाहिए। हम इसके लिए कृतसंकल्प हैं। नौजवानों का पलायन रोकने के लिए, गांव, गरीब और किसान के लिए हम बड़ी मजबूती के साथ दिन रात एक कर पूरी तत्परता के साथ कार्य करने को संकल्पित हैं।ÓÓ मुख्यमंत्री ने कहा कि यह (मुख्यमंत्री) केवल एक पद नहीं है कि इसके माध्यम से अधिकारों की धौंस जमायी जाए। यह हमें कर्तव्यों का बोध कराता है। उत्तर प्रदेश की 22 करोड़ जनता के लिए हमारा क्या कर्तव्य होना चाहिए, यह हमें इसका बोध कराता है। उन्होंने कहा, ''आज हम विश्वास के साथ कह सकते हैं कि उत्तर प्रदेश की 22 करोड़ की जनता किसी भी प्रकार से अपने को उपेक्षित महसूस नहीं कर सकती है।ÓÓ

यूपी में भ्रष्ट नौकरशाहों का गैंग भाजपा राज में भी मलाई चाटने-चटाने के लिए तैयार


डॉ. अरूण जैन
उत्तर प्रदेश की नौकरशाही के भ्रष्ट चेहरे अपनी पसंद के मुख्यमंत्री व मंत्री बनवाने में लगे! उत्तर प्रदेश में कुछ नौकरशाहों की भ्रष्ट लेकिन धनाढ़्य गैंग (ष्ट्रष्टस्) की आज ये हिम्मत / हस्ती है कि दिल्ली से लेकर नागपुर तक अपने पसंद के मुख्यमंत्री व मंत्री बनवाने के किए पैरवी में लगे हैं.... पिछली दो सरकारों में जिस नौकरशाह गैंग की तूती बोलती थी वे पैसे व रसूक़ के बल पर मलाई चाटने व चटाने के लिए फिर से तैयार हैं... सम्भावित नामों में 1-2 चेहरे इसी गैंग की पसंद है.... इस गैंग के दो सदस्य उत्तर प्रदेश में शपथ ग्रहण समारोह की व्यवस्था में भी लगे व भाजपा नेताओं की चमचागिरी करते समारोह स्थल पर देखे गए... मित्रों, शायद आप में से कुछ लोग जिन्हें इस गैंग की ताक़त का अहसास नहीं है, मेरी बात पर विश्वास नहीं कर रहे.... विश्वास करें! मेरी जानकारी अत्यंत सटीक है ... उत्तर प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री का चयन नौकरशाही की चयन समिति ने किया.... नाम लगभग तय! उ0 प्र0 के मुख्यमंत्री के चयन में उत्तर प्रदेश के दिल्ली में तैनात 3 बड़े अधिकारियों की अहम भूमिका मानी जा रही है ...लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि का मतलब अब जनता की पसंद नहीं बल्कि जो नौकरशाही को पसंद हो, वही भविष्य में बनेगा उ.प्र. का मुख्यमंत्री....इन 3 नौकरशाहों में से दो के उ. प्र. की पूर्व की दो सरकारों (सपा व बसपा) में नॉएडा में तैनात रहे बड़े अधिकारियों (जिन्होंने भ्रष्ट इंजीनियर यादव सिंह को बचाया है) व उत्तर प्रदेश के पूर्व सरकार के महा बदनाम बड़े लंबे-2 से भ्रष्ट ढ्ढ्रस् से भी गरमा-गरम सम्बंध बताए जा रहे हैं.... इन नौकरशाहों की टोली ने ष्टरू पद के कई लोकप्रिय दावेदारों की छुट्टी करा दी..... तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा ....शायद इनमें से कई के साथ इन भ्रष्ट नौकरशाहों की दाल नहीं गलती.... अब ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उ0प्र0 का आने वाला मुख्यमंत्री क्कह्म्श&4 ष्टरू सिद्ध न हो.....

4 राज्यों में मोदी की जीत को विदेशी मीडिया ने बताया मध्यावधि बहुमत

डॉ. अरूण जैन
 उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिली शानदार जीत को मोदी के 2019 के चुनावों के परिणाम के रूप में देखा जा रहा है। विदेशी मीडिया ने इसे मोदी का मध्यावधि बहुमत बताया है। वर्ल्ड वन न्यूज ने इसे भाजपा और नरेंद्र मोदी सरकार का मध्यावधि बहुमत बताया है।वहीं हफपोस्ट ने लिखा कि भारत ने 2014 में नरेंद्र मोदी के विश्वास की पुष्टि की है। लगभग तीन साल सत्ता में रहने के वाले नरेंद्र मोदी ने भाजपा को सबसे अहम राज्य माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में बहुत बड़ी जीत दिलाई है। वहीं बीबीसी डॉट कॉम पर ने भी नरेंद्र मोदी की जीत को अपने विपक्षियों पर बड़ा हमला बताया है। बीबीसी ने लिखा कि कैसे नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में अपने विपक्षियों को नष्ट कर दिया।बिना मुख्यमंत्री चेहरे के बिना चुनाव में उतरी भाजपा के सबसे बड़ा चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही थे। सीएनएन ने भाजपा की जीत को 2017 में विश्व के सबसे बड़े चुनाव का विजेता बताया है। सीएनएन ने लिखा कि दुनिया की सबसे तेज गति से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था भारत में सत्ता पर काबिज पार्टी ने विकास के मुद्दे पर सबसे कठिन माने जाने वाले चुनाव में जीत हासिल की है। वहीं पाकिस्तान के प्रमुख समाचार पत्र द डॉन ने लिखा कि मोदी को चार राज्यों में मिला बहुमत। द डॉन ने भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह के बयान को प्रमुखता से प्रकाशित किया है।पाकिस्तान के एक अन्य समाचार पत्र द नेशन ने लिखा कि भाजपा की चार राज्यों में भारत में राजनीति को नई दिशा के ले जा रहा है। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में एतिहासिक जीत दर्ज की है।
तीन तलाक मुद्दे पर मुस्लिम देशों से सबक ले भारत

डॉ. अरूण जैन
हमारे समाज में एक सोच बहुत ज्यादा प्रभावशाली है और वो है बिना सोचे-समझे किसी प्रथा को जन्म दे देना। संपूर्ण ज्ञान ना होते हुए भी लोग परम्पराओं को मान देने लगते हैं फिर चाहे वे किसी अन्य के लिए दुखदायी ही क्यों ना हो। कुछ इसी प्रकार की सोच का परिणाम है वर्तमान में प्रचलित 'तीन तलाकÓ की परम्परा। तीन तलाक की परम्परा आज मुस्लिम समाज की महिलाओं के लिए एक अभिशाप बन गई है। इस परम्परा ने ना जाने कितनी ही महिलाओं के जीवन को नरक बना दिया और 'तीन तलाकÓ की प्रथा ने न जाने कितने अनगिनत घर-परिवारों को नष्ट किया। आज अब धर्म और परम्परा के नाम पर सुधार की जरूरत एवं आवश्यकता है। सर्वोच्च अदालत की पांच जजों की संविधान पीठ मुस्लिम समाज में प्रचलित 'तीन तलाकÓ, 'निकाह हलालाÓ और 'बहु विवाहÓ की प्रथा को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करके इनका फैसला करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने विवाद का मुद्दा बने तीन तलाक के मसले को संविधान पीठ को सौंपने का फैसला किया है। चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर, जस्टिस एनवी रमण और जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यों की खंडपीठ ने इन मामलों के विषय में संबंधित पक्षों की ओर से तैयार तीन तरह के मुद्दों को रिकार्ड पर लिया और कहा कि संविधान पीठ के विचार के लिए इन सवालों पर 30 मार्च 2017 को सुनवाई करेगी।  पीठ ने कहा है ये मुद्दे बहुत महत्वपूर्ण हैं और सभी संवैधानिक मुद्दों से संबंधित हैं और संविधान पीठ को ही इनकी सुनवाई करनी चाहिए। पीठ ने संबंधित पक्षों को अगली सुनवाई की तारीख पर सभी पक्षकारों को अधिकतम 15 पृष्ठ में अपना पक्ष पेश करने का निर्देश दिया। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संबंधित पक्षों के आप सभी वकील साथ बैठ कर उन मुद्दों को अंतिम रूप दें जिन पर हमें गौर करना है। पीठ ने संबंधित पक्षों को स्पष्ट कर दिया कि वह किसी खास मामले के तथ्यात्मक पहलुओं से नहीं निबटेगी, बल्कि वह इस कानूनी मुद्दे पर निर्णय करेगी।  जब एक महिला वकील ने प्रसिद्ध शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हश्र का जिक्र किया तब पीठ ने कहा कि किसी भी मामले के हमेशा दो पक्ष होते हैं। हम 40 सालों से मामलों में फैसला करते रहे हैं। हमें कानून के अनुसार जाना होगा, हम कानून से परे नहीं जाएंगे। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि वह इन मुद्दों को तय करने के लिए शनिवार और रविवार को भी बैठने के लिए तैयार है क्योंकि यह बहुत ही महत्वपूर्ण है।  कुरान का सहारा लेकर भी तीन तलाक प्रथा का बचाव नहीं किया जाना चाहिए। दरअसल, यह मामला पवित्र कुरान का नहीं, बल्कि उसकी अलग-अलग व्याख्याओं का है। यहां यह बताना जरूरी है कि इस्लाम धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथ कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है। लेकिन पुरुषवादी सोच के चलते मुस्लिम समाज में यह कुरीति प्रचलित है। सरल भाषा में कहें तो धर्म की आड़ में किसी भी नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन अवैध है। कई इस्लामी या मुस्लिम बहुल देशों ने निजी कानूनों में फेरबदल किए हैं और सब के सब प्रावधान एकदम एक जैसे नहीं हैं। इसलिए इस्लाम की दुहाई देना या आड़ लेना एक दुराग्रह ही है। जो महिलाएं इस प्रथा के खिलाफ आंदोलन चला रही हैं वे भी इस्लाम और कुरान में आस्था रखती हैं, पर वे कहती हैं कि इस्लाम या कुरान ने उनके अधिकार छीनने या कम करने को नहीं कहा है। मुस्लिम पर्सनल लॉ में संशोधन से न तो कुरान की पवित्रता पर कोई आंच आएगी, न इस्लाम का कोई नुकसान होगा। हां, केवल पुरुष को विवेक-संपन्न मानने के एकतरफा वर्चस्ववाद को जरूर धक्का लगेगा।  'तलाक, तलाक, तलाकÓ किसी भी शादीशुदा मुस्लिम महिला के लिए ये ऐसे शब्द हैं जो एक ही झटके में उसकी जिंदगी को जहन्नुम बनाने की कुव्वत रखते हैं। पिछले दिनों एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में देश की करीब 92 फीसदी महिलाओं ने मौखिक रूप से तीन बार तलाक बोलने से पति-पत्नी का रिश्ता खत्म होने के नियम को एकतरफा करार दिया है, जिस पर प्रतिबंध लगाने की मांग तक की गई। यही नहीं मुस्लिम समुदाय में स्काइप, ईमेल, मैसेज और वाट्सऐप के जरिये तीन बार तलाक बोलने की नई तकनीक ने महिलाओं की इन चिंताओं में इजाफा किया है। यह सर्वे मुस्लिम महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक, शादी की उम्र, परिवार की आय, भरण-पोषण तथा घरेलू हिंसा जैसे पहलुओं के आधार पर किया गया है। इस अध्ययन में यह तथ्य भी सामने आए कि महिला शरिया अदालत में विचाराधीन तलाक के मामलों में 80 फीसदी मामले मौखिक तलाक वाले शामिल हैं।  भारत में भले ही इसे खत्म करने पर बहस अब चल रही हो पर पड़ोसी पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और श्रीलंका समेत 22 देश इसे कब का खत्म कर चुके हैं। दूसरी ओर भारत में मुस्लिम संगठन शरीयत का हवाला देकर तीन तलाक को बनाए रखने के लिए हस्ताक्षर अभियान से लेकर अन्य जोड़-तोड़ में लग गए हैं। जबकि मुस्लिम देशों में महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति पहले ही मिल चुकी है।  अब सुप्रीम कोर्ट के पूछने पर केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि वो इस प्रथा का विरोध करती है और उसे जारी रखने देने के पक्ष में नहीं है। सरकार का दावा है कि उसका ये कदम देश में समानता और मुस्लिम महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकार दिलाने के लिए है। सरकार ये भी कह रही है कि ऐसी मांग खुद मुस्लिम समुदाय के भीतर से उठी है क्योंकि मुस्लिम महिलाएं लंबे समय से तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठाती आ रही हैं। कुल मिलाकर सरकार तलाक के मुद्दे पर खुद को मुस्लिम महिलाओं के मसीहा के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है। लेकिन क्या मामला इतना सीधा है?  इस पर ऑल इंडिया मुस्लिम वीमेंस पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर का साफ कहना था कि तीन तलाक के मामले पर केंद्र सरकार मुसलमानों और देश को गुमराह कर रही है। हमारी लड़ाई यह है कि लगातार तीन बार बोले गए तलाक को एक माना जाए। शाइस्ता कहती हैं कि हम तीन तलाक के मामले में बदलाव तो चाहते हैं, लेकिन वो बदलाव शरीयत के दायरे में हो, कोर्ट या किसी सरकार से नहीं। सरकार बेवजह तीन तलाक के मामले में दखल दे रही है। मजहब के मामले में हमें किसी की भी दखलंदाजी पसंद नहीं।

मप्र के हर नागरिक पर 14000 का कर्ज है


डॉ. अरूण जैन
आप कितने भी निश्चिंत हों कि आपने अपनी जिंदगी में कभी किसी से चवन्नी का कर्जा नहीं लिया फिर भी यदि आप मप्र के नागरिक हैं तो आपके सिर पर 14 हजार रुपए का कर्ज है और यह आपको चुकाना होगा। फर्क बस इतना है कि इसके लिए आपको ईएमआई नहीं भरनी पड़ेगी बल्कि शिवराज सिंह सरकार इंडायरेक्ट टैक्स बढ़ाकर आपसे वसूल लेगी। यह वसूली अभी भी जारी है। पेट्रोल/डीजल समेत कई चीजों पर लगा अतिरिक्त टैक्स, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए ही आम जनता को भरना पड़ रहा है। फिर भी कर्जा कम नहीं हुआ। बल्कि बढ़कर 13 हजार 853 रुपए प्रतिव्यक्ति हो गया।  वित्त मंत्री जयंत मलैया ने कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत को लिखित जवाब में बताया कि मार्च 2016 तक सरकार पर कर्ज 1 लाख 11 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा था। मार्च 2017 तक कर्ज बढ़कर डेढ़ लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो सकता है। लगातार बढ़ता जा रहा है कर्ज का बोझ प्रदेश के ऊपर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। 31 मार्च 2014 में सरकार के ऊपर 77 हजार 413 करोड़ रुपए से ज्यादा कर्ज था। ये 31 मार्च 2015 में बढ़कर 94 हजार 979 करोड़ रुपए हो गया। इसमें शिवराज सिंह से क्या वास्ता मप्र में जब शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने थे तब प्रदेश पर कर्जा ना के बराबर था परंतु प्रदेश भर में हुए तमाम उपचुनावों में सीएम शिवराज सिंह ने उनके इलाकों को अरबों रुपए के विशेष पैकेज जारी किए। थोड़े बहुत विकास कार्य हुए। फायदा ठेकेदारों को हुआ और कर्जा जनता के सिर चढ़ गया। मजेदार बात तो यह है कि बात बात पर जनता से सवाल पूछने वाले सीएम शिवराज सिंह ने कभी जनता से यह नहीं पूछा कि शहडोल का उपचुनाव जीतने के लिए मैं 200 करोड़ का कर्जा लेने जा रहा हूं, जो आपको टैक्स के माध्यम से चुकाना होगा, क्या मप्र की 6 करोड़ जनता को मंजूर है।
अब जल्द ही हर घर का होगा डिजिटल ऐड्रेस, आसानी  से ढ़ूढ लेंगे जीपीएस पर किसी भी घर की लोकेशन
डॉ. अरूण जैन
आधार कार्ड बनने के बाद देश मे सभी के पास एक यूआईडी नंबर है। ठीक इसी तरह अब सभी के घर का भी एक डिजिटल नंबर होगा। अब यूनिक डिजिटल नंबरिंग सिस्टम से सभी के घर का एक स्पेशल नंबर दिया जाएगा। जिससे जीपीएस पर हर घर की लोकेशन का पता चल जाएगा। इसे केंद्र सरकार के स्मार्ट सिटी मिशन प्रोजेक्ट के तहत लागू किया जाएगा। सबसे पहले इसके लिए बेंगलुरू को चुना गया है। शहर के हर घर को 8 अक्षर का एक कोड दिया जाएगा। इस स्टेंडर्डाइज्ड डिजिटल ऐड्रेस नंबर कहते हैं। इसे आधार कार्ड के माध्यम से आपके घर के पते से जोड़ा जाएगा। जिससे कि जीपीएस पर घर की बिल्कुल सही लोकेशन का पता लग जाए। बेंगलुरू में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के नोडल अधिकारी मुरलीधर तुरुवेकेरा ने टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार को बताया कि इसके बाद सभी ऐड्रेस को पब्लिक किया जाएगा। डिजिटल नंबरिंग सिस्टम लागू होने के बाद सभी ऐड्रेस जीपीएस पर अपने आप टैग हो जाएंगे। जिन्हें गूगल मैप पर आसानी से ट्रैस किया जा सकता है। नोडल अधिकारी ने बताया कि इसे लागू करने के लिए सबसे पहले बेगलुरू को चुना गया है। मुरलीधर ने बताया कि बाद में इस प्रोजेक्ट का दायरा और बढ़ाया जाएगा। इसके तहत खाली पड़ी जमीनों का भी नंबर दिया जाएगा ताकि उसके मालिक, टैक्स आदि का पता आसानी से लगाया जा सके। जोकि बृहद बेंगलुरू महानगर पालिका और बेंगलुरू डिवेलपमेंट अथॉरिटी के क्षेत्र में आती हैं। इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत पहले 2 लाख घरों पर इस प्रयोग को किया जाएगा। उसके बाद इसे दूसरे क्षेत्र में ले जाया जाएगा। इस प्रोजेक्ट के तहत सरकार 2 टायर सिटिज को कवर करना  चाहती है। इससे यहां होने वाली पावर सप्लाई, वॉटर सप्लाई के साथ साथ अन्य सुविधाओं की देखरेख करने वाली एजेंसीज को भी सहायता मिलेगी। मुरलीधर ने बाताया कि इससे उन लोगों का आसानी से पता लग जाएगा जो प्रोपर्टी टैक्स नहीं दे रहे हैं। उनके पर यदि कोई ट्रैफिक ड्यूज हैं तो उसका भी पता लग जाएगा। अगर बीबीएमपी को स्मार्ट सिटी मिशन के तहत इस प्रोजेक्ट की अप्रूवल मिलती है तो  इसके बाद यह 25 लाख घरों का सर्वे कराएगा और उनसे जुड़ी जरूरी जानकारी हासिल करेगा जो इस सिस्टम के लिए चाहिए। सभी घरों और गलियों को नंबर दिए जाएंगे ठीक वैसे ही जैसे गाडिय़ों के रजिस्ट्रेशन के वक्त गाडिय़ों को दिए जाते हैं और सभी को डिजिटल सिस्टम पर डाल दिया जाएगा।

इतिहास ही नहीं खूबसूरती में भी अलग स्थान है जेनेवा का

डॉ. अरूण जैन
स्विटजरलैंड को पृथ्वी का स्वर्ग भी कहा जाता है। विश्व में इस जैसे देश गिने−चुने ही हैं जो स्वास्थ्यप्रद जलवायु, प्रदूषणरहित परिवेश और व्यवस्थित शहरों से भरे हों। स्विटजरलैंड तीन तरफ से तीन देशों− फ्रांस, जर्मनी और इटली से घिरा हुआ है। स्विटजरलैंड में घूमने लायक कई जगहें हैं जिनमें जेनेवा, ल्यूसर्ने, ज्यूरिख आदि प्रमुख हैं लेकिन यदि आपको समय या पैसे को ध्यान में रखते हुए कोई एक शहर घूमना हो तो बेशक जेनेवा ही जाएं। जेनेवा एक समृद्धिशाली, वैभवपूर्ण, स्वच्छ और सुव्यवस्थित शहर होने के कारण पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है। यही कारण है कि विभिन्न प्रकार के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन यहां समय-समय पर आयोजित किए जाते रहते हैं। जेनेवा के प्रसिद्ध स्थलों में घड़ी संग्रहालय, प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय, कला व इतिहास संग्रहालय और झील एवं बगीचा शुमार हैं। घड़ी संग्रहालय पूरे संसार में अपनी तरह का अकेला संग्रहालय है। पिछले 500 सालों में अब तक जितनी तरह की कलाई, टेबल और दीवार घडिय़ां बनाई गई हैं, उन सबके नमूने यहां पर प्रदर्शित किए गए हैं। यहां पर एक अनोखी घड़ी भी है जो ठीक 12 बजे समय के प्रभाव को अनोखे ढंग से प्रदर्शित करती है।  लगभग 75 साल पहले विषेशज्ञों द्वारा तैयार किया गया पैलेस द नेस्यो भवन संयुक्त राष्ट्र के यूरोप संभाग का मुख्यालय है। संसार भर में महत्वपूर्ण माने जाने वाले इस 13 मंजिले भवन पर हर यूरोपीय देश की वास्तुकला की छाप है। सन् 1975 में बनाये गये अत्याधुनिक प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में अनेक दुर्लभ वस्तुओं के अलावा लगभग हर तरह के पशु-पक्षियों के मॉडल का संग्रह मौजूद है।  पुराने और नए जेनेवा शहर के बीच विभाजक रेखा माने जाने वाली झील और बगीचा नामक झील का अपना अलग सौंदर्य और आकर्षण है। इसका जल अत्यंत स्वच्छ रहने के कारण नीला मालूम पड़ता है। इस झील में नौका विहार किए बिना लौटने का अर्थ जेनेवा की अपनी यात्रा को अधूरी छोडऩे जैसा है।
संजय गुप्ता समेत पूरी जागरण टीम गिरफ्तार न  होने का मतलब चुनाव आयोग भी किसी दबाव में है!

डॉ. अरूण जैन


हेकड़ी, एक्जिट पोल और खानापूरी... चुनाव आयोग के स्पष्ट मनाही की जानकारी होने के बावजूद अगर दैनिक जागरण की आनलाइन साइट ने एक्जिट पोल छापने की हिमाकत की है तो यह सब अचानक या गलती से नहीं हुआ है, जैसा कि उसके स्वामी-संपादक संजय गुप्ता ने सफाई दी है। गुप्ता ने कहा कि यह ब्योरा विज्ञापन विभाग ने साइट पर डाल दिया। अपने बचाव में इससे ज्यादा कमजोर कोई दलील नहीं हो सकती। अखबार के बारे में थोड़ा -बहुत भी जानकारी रखने वाले जानते हैं कि समाचार संबंधी कोई भी सामग्री बिना संपादक की इजाजत के बगैर नहीं छप सकती। जागरण ने जो किया, सो किया। चुनाव आयोग भी केवल प्रभारी संपादक को गिरफ्तार करके अपनी खानापूरी कर रहा है। इसमें जब तक स्वामी-संपादक संजय गुप्ता समेत पूरी टीम को गिरफ्तार नहीं किया जाता, तब यही समझा जाएगा कि चुनाव आयोग भी किसी दबाव में है और बस ऊपरी तौर पर निष्पक्ष दिखने की कोशिश कर रहा है। वैसे भी चुनाव आयोग इस बार अपनी कोई छाप नहीं छोड़ पा रहा है। दैनिक जागरण का कारनामा पेड न्यूज जैसा भी लगता है, वर्ना विज्ञापन विभाग की इतनी मजाल नहीं है कि वह संपादकीय स्पेस पर कोई एकतरफा एक्जिट पोल छाप दे। असल में, जागरण की कार्य-संस्कृति ही न्यारी है। लंबे समय तक तो उसमें मालिक ही हर जगह संपादक होता था। मुख्य संपादक के तौर पर तो अब भी उसी का नाम जाता है। लेकिन, जब संस्करणों की संख्या बढ़ गई तो कुछ वैधानिक मजबूरियों की वजह से स्थानीय संपादकों के नाम दिए जाने लगे। उसमें भी संपादकीय विभाग के व्यक्ति का नाम कम ही दिया जाता था, तमाम जगहों पर मैनेजर टाइप के लोग ही संपादक भी होते रहे। बरेली-मुरादाबाद में तो चंद्रकांत त्रिपाठी नामक कथितरूप से एक अयोग्य और भ्रष्ट व्यक्ति लंबे समय तक संपादक बना रहा, जबकि उसी का नाम प्रबंधक के रूप में भी छपता था। उसकी कुल योग्यता मालिक को चि_ियां लिखने तक सीमित थीं। हो सकता है कि गिरफ्तार शेखर त्रिपाठी, भी उसी कुल-परंपरा के हों। जागरण में समस्या यह है कि कोई स्वतंत्रचेता व्यक्ति संपादक हो ही नहीं सकता। मालिकों को गुलाम, झुका हुआ और जी-हजूर चाहिए। लेकिन, एक मरा हुआ, मतिमंद और चाटुकार संपादक किसी न किसी दिन नैया डुबाता ही है। अगर आज दैनिक जागरण ने पूरे देश में हिंदी पत्रकारिता की नाक कटाई है और दुनिया-जहान के सामने हिंदी पत्रकारों को अपमानित किया है तो इसके बीज इस संस्थान की कार्य-संस्कृति में पहले से मौजूद थे। दुर्भाग्य यह है कि राजनीतिक दल भी ऐेसे लोगों को पोसते हैं। दैनिक जागरण के स्वामी-संपादक (स्वर्गीय) नरेंद्र मोहन को भाजपा ने राज्यसभा में भेजा तो उनके छोटे भाई महेंद्र मोहन को समाजवादी पार्टी ने। राजनीतिक दल अखबारों के मालिकों को अपने पोंछने की तरह इस्तेमाल करते हैं तो अखबार मालिक भी इससे कुछ फायदा चाहते हैं। जागरण पहला अखबार है, जिसने अभी मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशें लागू नहीं की हैं तो सिर्फ इसलिए की भाजपा से उसकी सांठगांठ है और वह जानता है कि प्रधानमंत्रीजी अंत में उसकी मदद करेंगे। भले ही वह कर्मचारियों का खून ही क्यों न चूसता हो? पूरी पत्रकारिता में दैनिक जागरण अकेला ऐसा अखबार है जो आज भी नियम-कायदों की सबसे कम परवाह करता है, लेकिन किसी सरकार ने आज तक उस पर कोई कारर्वाई नहीं की। लेकिन, इस बार तो जागरण ने जो किया है, वह हद ही है। कानून का डंडा मालिक-मुख्तार से लेकर सब पर चलना चाहिए। जागरण की हेकड़ी को तोड़ा जाना जरूरी है। गिरावट की सीमा यह भी रही कि इंडियन एक्सप्रेस समूह को छोड़कर इक्का-दुक्का अखबारों ने ही शेखर त्रिपाठी की गिरफ्तारी की खबर छापी, बाकी तमाम अखबार बिरादाराना हक ही निभाते रहे। सोचिए, हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कितने विराट स्वर्णिम युग में रह रहे हैं, जहां सबसे बड़ी पाबंदी अखबारवाले खुद ही अपने मुंह पर लगा कर बैठे हुए हैं। हद है। हर चीज की हद है।

उत्तर प्रदेश, पंजाब और गोवा में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं

डॉ. अरूण जैन
राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण साबित होने जा रहे पांच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले हुए एक ओपिनियन पोल में भाजपा, पंजाब छोड़ अन्य सभी राज्यों में बाकि पार्टियों से आगे निकलती दिखाई दे रही है। ओपिनियन पोल के मुताबिक उत्तर प्रदेश, पंजाब और गोवा में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलने के आसार नहीं हैं। इन तीनों राज्यों में त्रिशंकु विधानसभा होगी। द वीक-हंसा रिसर्च के ओपिनियन पोल के मुताबिक उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी, जबकि उत्तराखंड में भाजपा स्पष्ट बहुमत से सरकार में आ रही है। वहीं, पंजाब में कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें मिलेंगी। हालांकि इसके बावजूद भी कांग्रेस को पंजाब में सरकार बनाने के लिए जद्दोजहद करनी होगी। पांच राज्यों में से दो राज्यों, पंजाब और गोवा में चुनाव लड़ रही अरविंद केजरीवाल की पार्टी, आम आदमी पार्टी पंजाब में दूसरे स्थान पर रहेगी, जबकि गोवा में काफी कोशिशों के बाबजूद आम आदमी पार्टी को सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ सकता है। उत्तर प्रदेश में किस पार्टी को कितनी सीटें मिल रही हैं ओपिनियन पोल के मुताबिक उत्तर प्रदेश में त्रिशंकु विधानसभा रहने के आसार है। यहां भारतीय जनता पार्टी सबसे पार्टी बनकर उभरेगी। प्रदेश की 403 विधानसभा सीट में से भाजपा को 192 से 196 सीटें मिलने की उम्मीद है। हालांकि सपा और कांग्रेस गठबंधन भी ज्यादा पीछे नहीं दिखाई दे रही है। सपा-कांग्रेस गठबंधन को प्रदेश में 178 से 182 सीटें मिलने के आसार है। पोल के मुताबिक मायावती की पार्टी, बहुजन समाज पार्टी को इस चुनाव में बड़ा धक्का लग सकता है। बसपा को महज 20 से 24 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर संतोष करना होगा। वहीं अन्य पार्टियों को 5 से 9 सीट मिलने के आसार हैं। पंजाब में किस पार्टी को कितनी सीटें मिल रही हैं ओपिनियन पोल के मुताबिक पंजाब में कांग्रेस सबसे पड़ी पार्टी बनकर सामने आएगी। पंजाब की 117 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 49-51सीटो मिलेंगी। हालांकि फिर भी कांग्रेस बहुमत से दूर रहेगी। वहीं सत्ताधारी शिरोमणि अकाली दल और भाजपा गठबंधन को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ सकता है। शिरोमणि अकाली दल और भाजपा गठबंधन को 117 में सिर्फ 28 से 30 सीटों पर ही जीत मिलने के आसार है। वहीं पंजाब में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी पंजाब में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी। आम आदमी पार्टी को इस चुनाव में 30 से 35 सीटें मिलने के आसार हैं। वहीं अन्य पार्टियों को 3 से 5 सीटें मिल सकती हैं। उत्तराखंड में किस पार्टी को कितनी सीटें मिल रही हैं उत्तराखंड में भाजपा न सिर्फ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी बल्कि स्पष्ट बहुमत से सरकार भी बनाएगी। पोल के मुताबिक उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों में से भाजपा को 37-39 सीटें मिलेंगी। वहीं सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी को 27 से 29 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर संतोष करना होगा। बहुजन समाज पार्टी भी यहां 1 से 3 सीटों पर जीत दर्ज कर सकती हैं। वहीं अन्य पार्टियों को 1 से 3 सीटें मिलने की उम्मीद है। गोवा में किस पार्टी को कितनी सीटें मिल रही हैं गोवा में सत्ताधारी पार्टी, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरेगी। पोल के मुताबिक गोवा की 40 विधानसभा सीटों में से भाजपा को 17 से 19 सीटों पर जीत मिलेगी। वहीं कांग्रेस को 11 से 13 सीटें मिलेंगी और उसे दूसरे स्थान से संतोष करना होगा। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को गोवा में महज 2 से 4 सीटें मिलने के आसार हैं और उसे चौथे स्थान से संतोष करना होगा। वहीं महाराष्ट्र गोमांतक पार्टी को 3 से 5 सीटें मिलने की उम्मीद हैं। वहीं अन्य पार्टियों को 3 से 5 सीटें मिलने के आसार हैं। बता दें कि द वीक-हंसा रिसर्च की ओर से कराया गया यह ओपिनयन पोल कांग्रेस-समाजवादी पार्टी का गठबंधन होने के तुरंत बाद किया गया था। 

अध्यक्ष बदलने से बदल सकते हैं राजनैतिक समीकरण


डॉ. अरूण जैन
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा चल रही है। यदि कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाता है तो प्रदेश सहित जिले के राजनैतिक समीकरण में बदलाव हो सकता है। हालांकि कांग्रेस के कई नेता चाहते हैं कि कमलनाथ के बजाए सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी जानी चाहिए। कमलनाथ की गिनती प्रदेश के कद्दावर नेताओं में की जाती है और छिंदवाड़ा से कई बार सांसद निर्वाचित हो चुके हैं। पूर्व में केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे। पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा पूर्व में अटकलों में रही। सन 2018 में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसलिए कांग्रेस हाईकमान चाहता है कि मध्यप्रदेश की कमान ऐसे हाथों में सौंपी जाए जिससे होने वाले चुनाव में कांग्रेस का परचम लहरा सके। ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों का मानना है कि यदि सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी जाए तो युवा नेतृत्व का लाभ मिल सकता है। इधर दिग्गी समर्थकों का मानना है कि प्रदेश में कोई भी प्रदेश अध्यक्ष बने। लेकिन उसमें राजा साहब (दिग्गी) की सहमति जरुरी हैं, क्योंकि प्रदेश के 51 जिलों में राजा साहब का अभी भी प्रभाव बना हुआ है। चर्चा इस बात की है कि यदि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर कमलनाथ की ताजपोशी होती है तो प्रदेश के साथ जिलों में भी राजनैतिक समीकरण बदल सकते हैं। 

यह असंतोष देश की सुरक्षा और छवि के लिए ठीक नहीं

डॉ. अरूण जैन
सेना और अर्धसैनिक बलों के जवानों की ओर से सुविधाओं की माँग और अपनी समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से सोशल मीडिया का उपयोग करना चिंतनीय तो है लेकिन यहाँ यह सवाल भी खड़ा होता है कि ऐसी नौबत क्यों आन पड़ी? देश के बजट में सर्वाधिक हिस्सा रक्षा क्षेत्र के लिए होता है जोकि वैश्विक तथा क्षेत्रीय चुनौतियों को देखते हुए सही भी है। लेकिन ऐसे में भी यदि सेना या अर्धसैन्य बल से जुड़ा कोई जवान यह कहे कि वह कम गुणवत्ता वाला भोजन खाने को मजबूर है तो यह चौंकाने वाली बात है। हमारी सेना के जवान भूखे रहें, कम खाएं, खराब खाना खाएं, उन्हें या उनके परिवार को वांछित सुविधा नहीं मिले, सेना के पास आवश्यक उपकरण नहीं हों, ऐसी स्थिति किसी को भी स्वीकार नहीं होगी। उम्मीद है कि जो कुछ सामने लाया जा रहा है पूरी स्थिति वैसी नहीं है लेकिन फिर भी खामियों को अति शीघ्रता के साथ दुरुस्त करना बेहद आवश्यक है क्योंकि सुरक्षा बलों में असंतोष देश की सुरक्षा और देश की छवि के लिहाज से ठीक नहीं है। शीघ्र ही हम गणतंत्र दिवस पर हमारी सेना के और वीर जवानों की शौर्य गाथा के बारे में जानेंगे, उन्हें पुरस्कृत होते हुए देखेंगे, सेना तथा अर्धसैन्य बलों के जवानों के मार्च पास्ट और झांकियों के जरिये हमारी सामरिक ताकत से रूबरू होंगे। हमारे जवान सीना तान कर कदम से कदम मिलाते हुए देश को भरोसे का भाव देते दिखेंगे लेकिन क्या हमारा कर्तव्य नहीं बनता कि हम उनकी सभी परेशानियों का निदान खोजें? ऐसा नहीं है कि सेना तथा अर्धसैन्य बलों ने अपने जवानों की समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दिया है, सेना के जवानों को तनाव मुक्त कराने के अभ्यास से लेकर उनके लिए तमाम सुविधाओं के इंतजाम के लिए सरकार बजट देती है लेकिन लगता है कि जवानों के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं का ठीक तरह से क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। सेवा में रत जवान तो शिकायत कर ही रहे हैं पूर्व सैनिकों की समस्याओं का तो अंत ही नहीं है। रक्षा मंत्री के स्तर पर भी शिकायत निवारण के तमाम इंतजामों के बावजूद यदि हालात में ज्यादा बदलाव नहीं आ पा रहा है तो यह चिंतनीय विषय है। विभिन्न शहरों में सेना में होने वाली भर्ती रैलियों में युवाओं की भीड़ मात्र रोजगार पाने की ललक लिए ही नहीं उमड़ती बल्कि उनमें सेवा भाव का जज़्बा भी होता है। कोई बचपन से देश के लिए कुछ करने का सपना लेकर बड़ा होता है तो कोई देश की सुरक्षा करते आने की अपने पूर्वजों की परम्परा को आगे बढ़ाने आता है। यदि इस तरह के असंतोष की खबरें आती रहीं तो भर्ती रैलियों के प्रति आकर्षण कम होगा। वैसे सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने सही कदम उठाते हुए एक शिकायत पेटी रखवाने का प्रबन्ध किया है जिसमें आने वाले पत्रों को वह खुद देखेंगे। उन्होंने जवानों से कहा है कि वह अधिकारियों पर भरोसा रखें और सोशल मीडिया पर शिकायत करने की बजाय सीधे उन्हें पत्र भेजें। पत्र भेजे जाने वाले की पहचान गुप्त रखी जाएगी। जाहिर है सेनाध्यक्ष की इस पहल से जवानों का हौसला बढ़ेगा और जवानों से निजी काम कराने वाले अधिकारियों के मन में भी भय पैदा होगा। सेना के एक जवान ने अधिकारियों पर जवानों से घर के काम कराये जाने के जो आरोप लगाये हैं उन्हें पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। देश के किसी भी छावनी इलाके में यह दृश्य आम होता है जब सेना के जवान अधिकारियों के निजी कार्यों के उद्देश्य से बाजारों अथवा अन्य जगहों पर नजर आते हैं। यही नहीं जवानों में तनाव की समस्या का भी हल निकालना होगा। बिहार से खबर आई कि सीआईएसएफ के एक जवान ने छुट्टी मंजूर नहीं होने पर साथियों के तंज कसे जाने से परेशान होकर फायरिंग कर दी जिसमें चार जवानों की जान चली गयी। इस मामले में सीआईएसएफ का कहना है कि छुट्टी मुद्दा नहीं है क्योंकि वह पहले ही ढाई महीने से ज्यादा की छुट्टियां ले चुके हैं जोकि मंजूर छुट्टियों की संख्या से ज्यादा है। छुट्टी को लेकर इससे पहले भी जवानों की ओर से फायरिंग की घटनाएं सामने आई हैं। सेना में आत्महत्या के मामलों को भी कई बार छुट्टी नहीं मिलने की समस्या से जोड़ कर देख लिया जाता है। संप्रग-1 सरकार के कार्यकाल तक सेना में आत्महत्या की घटनाएं काफी थीं लेकिन बतौर रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने तमाम कार्यक्रमों और अभियानों के जरिये इस संख्या पर लगाम लगाने में सफलता पायी थी। दरअसल सीमा पर डटे जवान पर जिम्मेदारी का दोहरा बोझ होता है एक तो उसे अपने देश की रक्षा करनी है और दूसरे अपने परिवार के भविष्य की चिंता भी सता रही होती है। परिवार चाहता है जवान उसके साथ रहे लेकिन कार्यगत मजबूरी के चलते कई बार यह संभव नहीं होता। बात सिर्फ सेना तथा अर्धसैन्य बलों के जवानों की नहीं है आप ज्यादातर राज्यों में पुलिस के हालात भी कमोबेश खराब ही पाएंगे। काम के घंटों को लेकर पुलिस के जवान सदैव परेशान रहते हैं। पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने का तो उनके पास अकसर समय का अभाव होता है। सरकारों ने पुलिस कालोनियां, पुलिस स्कूल जैसी कई सुविधाएं बनायी हैं लेकिन उक्त संसाधन सीमित होने से इनका लाभ सभी पुलिस कर्मियों को नहीं मिल पाता है। आप थानों के अंदर के हालात जाकर देख लीजिए। खस्ताहाल पलंगों, चारपाइयों पर गंदी सी चादर उनके लिए बिछी रहती है जिस पर उन्हें कुछ देर आराम करने के बाद फिर काम के लिए निकलना होता है। पुलिस की कार्यशैली की आलोचना से इतर यदि उन्हें सरकारी तौर पर मिलने वाली सुविधाओं को देखेंगे तो आपको उनसे सहानुभूति होने लगेगी। बहरहाल, बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव और उनके बाद जिन अन्य जवानों ने जो आवाज उठाई है उस पर सरकार ने गंभीरता दिखाते हुए हालात सुधारने के निर्देश दिये हैं। उम्मीद है अब कोई जवान भविष्य में एक ही परांठा खाने के लिए मिलने और पानी वाली दाल से रोटी खाने की मजबूरी की बात नहीं कहेगा। अधिकारियों को भी चाहिए कि जवानों ने जो आवाज उठाई है उसके लिए उन पर कोई ऐसी कार्रवाई नहीं करें जिससे गलत संदेश जाये। जवानों को भी सोशल मीडिया पर अपनी परेशानी रखने की बजाय आंतरिक मंचों पर आवाज उठानी चाहिए। साथ ही मीडिया को भी किसी संवेदनशील मुद्दे को सनसनी बचाने से बचना चाहिए। इस बीच गृह मंत्रालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उसे बीएसएफ जवान की इस शिकायत में कोई दम नहीं नजर आया है कि सीमा पर तैनात सुरक्षाकर्मियों को घटिया राशन दिया जाता है और इस पर जोर दिया कि 'सुरक्षा बलों में खाने को लेकर कोई व्यापक असंतोष नहीं है। साथ ही मंत्रालय ने सभी अर्धसैनिक बलों को निर्देश दिया है कि जवानों की शिकायतों का तेजी से निवारण सुनिश्चित किया जाए।

वादी ही नहीं अवंतिपुर के मंदिरों के खंडहर भी देखें कश्मीर में

डॉ. अरूण जैन
कश्मीर वादी सिर्फ अपनी खूबसूरती या डल झील के लिए ही जानी जाती है, ऐसा सोचना गलत है क्योंकि खूबसूरती के अतिरिक्त 'धरती के स्वर्गÓ पर सैंकड़ों ऐसी वस्तुएं हैं जो अपना एक अलग ही आकर्षण रखती हैं और जिनको देखने के लिए विश्व भर से लोग आते रहते हैं। इन वस्तुओं में युगों पुराने स्मारक तथा कई अन्य महलों व मंदिरों के खंडहर भी शामिल हैं जिनका आकर्षण आज भी उतना ही है जितना पहले कभी था। जम्मू कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर से करीब 29 किमी की दूरी पर जब राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलते हैं अनंतनाग जिले की ओर तो अवंतिपुर गांव आता है। पहले कभी अवंतिपुरा के नाम से जाना जाता था यह कस्बा जो आज अवंतिपुर कहलाता है और दरिया जेहलम के किनारे बसा हुआ है। अगर इतिहास के झरोखे में झांकें तो मालूम पड़ता है कि अवंतिपुर की स्थापना महाराजा अवंतिवर्मा ने की थी जिन्होंने सन् 854 से लेकर 883 तक राज किया था कश्मीर पर। अवंतिपुर वैसे भी कश्मीर की प्राचीन राजधानियों में से एक गिनी जाती है लेकिन यह सबसे प्रसिद्ध राजधानी मानी जाती रही है। इस कस्बे के दो मुख्य आकर्षण, जो आज भी माने जाते हैं, बड़े-बड़े मंदिरों के खंडहर हैं जिन्हें कभी इनके संस्थापक ने सुशोभित किया था। अनंतनाग की ओर बढ़ते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग पर बाएं हाथ पर जो प्रथम खंडहर दिखते हैं वे शिवा-अवंतिस्वर के मंदिर के खंडहर हैं। इस मंदिर की बड़ी-बड़ी दीवारें अवंतिपुर से तीन मील दूर जुरबरोर गांव के बाहर हैं जो बिना आधार के रखी गई हैं तथा अति महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ विशालकाय भी हैं। यह मंदिर जो आज अंग-भंग हो चुका है एक विशाल बरामदे में स्थित था जिसके चारों ओर बड़े-बड़े पत्थरों से दीवार बनाई गई थी और पश्चिमी द्वार की ओर बांसुरी की तरह खम्बे तो थे लेकिन उनमें पीछे की ओर से कोई आला नहीं था। भीतर प्रवेश का रास्ता इसी दीवार के बीच था जिसे एक अन्य दीवार दो भागों में विभक्त करती है। इसकी दीवारों पर किसी प्रकार की कोई कलाकृतियां नहीं उकेरी गई हैं। इसके आले तथा चौखटें पूरी तरह से सादे हैं जिन पर कोई कलाकृति नजर नहीं आती। बरामदे के केंद्र में यह मंदिर स्थित है और जिस चबूतरे पर इस मंदिर की आधारशिला रख कर इसका निर्माण किया गया है वह करीब दस फुट ऊंचा है तथा 58 वर्ग फुट व्यास का है। इस चबूतरे के प्रत्येक कोने में 16 वर्ग फुट के अलग अलग चबूतरे जुड़े हुए हैं जो अपने आप में अलग अलग मंदिर, छोटे-छोटे रूप में, के खंडहर हैं। प्रत्येक तरफ से चबूतरे के ऊपर चढऩे का रास्ता है और ऊपर चढऩे के लिए सीढिय़ों का निर्माण किया गया है। ठीक उसी तरह जिस तरह पंडरेथन के मंदिर हैं। यह सीढिय़ां कोई छोटी-मोटी सीढिय़ां नहीं हैं बल्कि प्रत्येक सीढ़ी की चौड़ाई जहां साढ़े अठाईस फुट के करीब है वहीं इनको बाहरी दीवारों से सहारा दिया गया है। हालांकि अब तो यह मात्र खंडहर रह गया है लेकिन पत्थरों को देख कर यह कहना कठिन होता है कि कभी यहां मंदिर रहा होगा। इस मंदिर के जो चबूतरे हैं वे सिर्फ एक ही स्थान पर यही आभास देते हैं कि वे मंदिर की आधारशिला से जुड़े रहे होंगे जबकि अन्य स्थानों पर इन्हें संयुक्त दीवारों से जोड़ा गया है जो मंदिर के ऊपर से गिर पड़ी होंगी तथा कला का उत्कृष्ट नमूना पेश करती हैं जिन्हें देखने वाला ढंग रह जाता है। दक्षिणी-पूर्वी किनारे पर जो आधारशिला है वहां कला के उत्कृष्ट नमूने के भरपूर दर्शन होते हैं तथा यह नमूने उस काल की कला के बारे में भी जानकारी देते हैं। मंदिर के आधार पर जो एकमात्र बाहरी शोभा आज बची हुई है वह मंदिर की कला का नमूना तो है ही साथ ही में बड़े आकार के खम्भे के मस्तक भी हैं जो समकोण होने के साथ-साथ पूरी तरह से सादगी लिए हुए हैं। जबकि एक खम्बा ऊपर भी टंगा है आज भी। बरामदे के पिछले दो कोनों में कुल चार मंदिर किस्म के स्थान दिखते हैं जिनमे से दो छोटे तथा दो बड़े हैं। बरामदे में इसके अतिरिक्त खंडयुक्त मेहराबों का क्रम भी नजर आता है जो छितराए हुए तो हैं ही साथ ही में कला के उत्कृष्ट नमूने भी माने जाते हैं। और इनमें सबसे बढिय़ा कारीगरी के नमूनों में एक तो दक्षिणी सीढ़ी के सामने पड़ा एक खम्बा है मेहराब युक्त तो दूसरा फूलों से कारीगरी किया हुआ एक अन्य खम्बा जबकि इसके साथ ही एक अन्य खम्बा रखा गया जिसके आधार पर दो मेढ़े आमने-सामने बैठे हुए हैं और एक युवती डमरू पर नाच दिखा रही है जो दो शेरों की आकृति वाले सिंहासन पर बैठाया गया है। बीचोंबीच हाथी की आकृति भी उकेरी गई है। हालांकि यह खंडहर आठवीं सदी के हैं लेकिन आज भी यह उतने ही आकर्षित करते हैं आने-जाने वालों को जितना कभी पहले किया करते थे क्योंकि आतंकवाद ने इन पर तो कोई प्रभाव नहीं डाला मगर आने जाने वालों की संख्यां तो कम हुई ही, इनकी देखभाल भी अब नहीं हो पा रही है जिसके कारण किसी-किसी स्थान पर उगी घास-फूस इनका प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करती है कि आतंकवाद के चलते भू-सर्वेक्षण विभाग इनकी देखभाल कर पाने में अपने आप को सक्षम नहीं पा रहा है।

पहाड़ों के शहर गंगटोक में पर्यटकों के लिए है बहुत कुछ

डॉ. अरूण जैन
समुद्रतल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर बसे सिक्किम की राजधानी है गंगटोक। इसकी खूबसूरती इतनी मनमोहक है मानों हम किसी अलग ही दुनिया में आ गए हों। सिक्किम की खूबसूरती को निहारने के लिए आपको कई दिन लग सकते हैं। अगर आप चार-पांच दिन के टूर पर जा रहे हैं, तो ईस्ट सिक्किम घूम सकते हैं। सिक्किम चार हिस्सों में बंटा है- ईस्ट, वेस्ट, नार्थ और साउथ। ईस्ट सिक्किम में गंगटोक बेहद आकर्षक जगह है। गंगटोक को कश्मीर के बाद धरती का दूसरा स्वर्ग कहा जा सकता है। कंजनजंगा की पहाडिय़ों से घिरे इस शहर की खूबसूरती ऐसी है कि बस आंखें ठहर जाती हैं। गंगटोक में कई जगह बौद्ध मठ बने हैं, जिसके प्रति देश-विदेश के लोगों की आस्था जुड़ी है। बौद्ध मठ का यहां होना यहां के बौद्ध धर्म को दर्शाता है। गंगटोक देखकर ऐसा लगता है मानो हम किसी पहाड़ की चोटी पर हैं। वैसे तो गंगटोक की खूबसूरती इतनी है कि आप चाह कर भी यहां से फुर्सत नहीं पा सकते। गंगटोक जाएं, तो आस-पास की जगह देखना न भूलें। गंगटोक में घूमने लायक और भी जगह हैं। ताशी न्यू पॉइंट यहां से लगभग आठ किलोमीटर दूर है, जहां से पूरे गंगटोक का खूबसूरत नजारा दिखता है। यहां मन को तरोताजा कर देने वाली ठंडी हवाएं यादगार बन कर स्मृतियों में कैद हो जाती हैं। इसके अलावा सात किलोमीटर की दूरी पर गणेश जी का मंदिर है जिसे गणेश टोक कहते हैं। यहां से करीब तीन किलोमीटर दूर हनुमान जी का खूबसूरत मंदिर है। घने जंगलों के बीच रिसर्च इंस्टीटयूट आफ तिब्बतोलॉजी में तिब्बती साहित्य और संस्कृति के बारे में काफी जानकारी उपलब्ध है। गंगटोक को पहाड़ों का शहर भी कहा जाता है। अगर आप पहाड़ के ऊपर का नजारा देखना चाहते हैं तो यहां के मुख्य बाजार में रोप-वे की सुविधा उपलब्ध है। यहां पर ट्रेकिंग, माउनटेनियरिंग, रिवर राफ्टिंग और दूसरे खेलों का भी मजा लिया जा सकता है। गंगटोक में कई मोनेस्ट्रीज हैं, जहां बौद्ध धर्म के बारे में जानकारी मिल जाएगी। विश्व की तीसरी सबसे बड़ी चोटी कंजनजंगा का दृश्य गंगटोक से देखा जा सकता है। गंगटोक के घने जंगलों के कारण वहां का मौसम सुहावना हो जाता है। इन जंगलों में ओक, कानीफेरस, एलपाइन और बांस के बहुत सारे पेड़ देखे जा सकते हैं। अगर फूलों की बात करें, तो यहां आर्किड की बेहद खास वैरायटी देखने को मिलती है। नवंबर से दिसंबर तक यहां और भी फूलों का नजारा देख सकते हैं। जैसे सूरजमुखी, गेंदा और पॉइनसेटिया वगैरह। एमजीमार्ग गंगटोक का मुख्य आकर्षण केंद्र है। यहां गंगटोक का प्रसिद्ध मार्केट है, जहां से आप ढेर सारी शॉपिंग कर सकते हैं। तीस्ता नदी गंगटोक की जीवन रेखा है। यह नदी गंगटोक को सिलीगुड़ी से जोड़ती है। गंगटोक बाकी देशों से बेहतरीन तरीके से जुड़ा है। नजदीकी रेलवे स्टेशन सिलिगुडी और न्यूजलपाईगुड़ी हैं। आप हवाई यातायात का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। वहां का लोकल ट्रांसपोर्ट ट्रैक्सी है। गंगटोक का मौसम पूरे साल सुहावना होता है इसलिए वहां कभी भी जाया जा सकता है। लेकिन बेहतर समय फरवरी से मई और सितम्बर से दिसम्बर तक का है।