आखिर मप्र में कैसे आए विकास की बहार आईएएस की कमी से सरकार बेहाल!
डॉ. अरूण जैन
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार अभी से मिशन 2018 के मूड में आ गई है। इसी को दृष्टिगत करते हुए मप्र सरकार ने बजट 2017-18 में बिना किसी को नाराज किए सभी वर्ग को साधने की कोशिश की है। जमीनी और मैदानी तैयारी के साथ सरकार प्रशासनिक स्तर पर भी चौसर बिछा रही है। लेकिन चौसर पर उसकी सारी कवायद आकर थम-सी गई है, क्योंकि मुख्यमंत्री जिन घोषणाओं के दम पर प्रदेश में लगातार चौथी बार सरकार बनाने का सपना देख रहे हैं उनमें से करीब 3,200 घोषणाओं को कद्रदान की तलाश है। लेकिन आईएएस अफसरों की कमी के कारण करीब 6,40,000 करोड़ की योजनाएं कागजों की शोभा बनी हुई हैं। कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय मामलों की संसदीय समिति ने भी अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि आईएएस अफसरों की कमी चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई है। दरअसल, पिछले 11 साल से अधिक समय के कार्यकाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी लगभग हर सभा और बैठक में किसी न किसी योजना की घोषणा की है। मुख्यमंत्री ने अपने तीसरे शासनकाल में ही अभी तक करीब 3300 घोषणाएं की हैं। इनमें 1500 से अधिक घोषणाएं लंबित हैं। जानकारी के अनुसार, 11 साल में मुख्यमंत्री ने करीब 13,000 घोषणाएं की है। सूत्र बताते हैं कि 11 साल के दौरान हुई कुल घोषणाओं में 3,200 से अधिक अभी तक लंबित हैं। मुख्यमंत्री, मंत्री और भाजपा संगठन सभी घोषणाओं को पूरा करने के लिए अफसरों पर दबाव बना रहे हैं। विभागों के प्रमुख समीक्षाएं कर रहे हैं जिसमें यह बात सामने आ रही है कि आईएएस अफसरों और बजट की कमी के कारण मुख्यमंत्री की घोषणाएं धरातल पर उतर नहीं पा रही हैं। प्रदेश के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि अगर सरकार बजट देने को तैयार भी हो जाए तो आईएएस अफसरों की कमी के कारण योजनाओं को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सकता। मप्र में 20 फीसदी आईएएस की कमी प्रशासनिक ढांचे को राज्य की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है। देश में सरकार भले ही जनता द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी जाती है, लेकिन सरकार का असली संचालन नौकरशाही द्वारा होती है। सरकार चलाने के लिए मंत्री अपने सचिवों पर निर्भर रहते हैं। सही मायनों में देखा जाए तो देश-प्रदेश और विदेशी नीतियों से लेकर विकास का दायित्व इन आईएएस अफसरों पर रहता है। लेकिन विसंगति यह देखिए कि केंद्र या राज्य सरकारें आईएएस की कमी को लेकर मौन हैं। सरकारों की योजनाएं बनाने, उन्हें लागू करवाने में इन अफसरों का अहम योगदान होता है। जनता के बीच सरकार के कामकाज की सराहना के पीछे इन्हीं अफसरों की दूरगामी नीतियां होती हैं। वास्तव में आईएएस अफसर देश को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन इन सबके बावजूद अकेले मप्र में 20 फीसदी आईएएस अफसरों की कमी है। केंद्र सरकार ने मप्र के लिए 417 आईएएस का कैडर मंजूर किया है, लेकिन वर्तमान में 334 अधिकारी की मप्र को मिले हैं। इनमें से 31 केंद्र में पदस्थ है। इस तरह प्रदेश में करीब 114 आईएएस की कमी है। ऐसे में घोषणाओंं को अमलीजामा कैसे पहनाया जा सकता है?
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