Wednesday, 23 May 2018

नाम चलता है लेकिन टैलेंट के बगैर काम नहीं चलता ; कविता पौडवाल

अरूण जैन
महेश भट्ट की फिल्म जुनून से महज 13 साल की उम्र में गायकी की दुनिया में कदम रखने वाली अनुराधा पौडवाल की बेटी कविता पौडवाल कई बॉलीवुड गानों और भक्ति गीतों में अपनी आवाज दे चुकी हैं। हाल ही में उन्होंने मोह मोह के धागे का एक कवर वर्जन रिलीज किया। पेश है कविता से हुई बातचीत के कुछ अंश। अपने इस सॉन्ग के बारे में आप क्या कहना चाहेंगी?कोई शक नहीं कि यह एक बहुत ही खूबसूरत गीत है। बॉलीवुड में पुराने गानों को नया बनाने का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है और मुझे लगता है कि इसमें कोई बुराई नहीं है। मोह मोह के धागे के बोल दिल को छू जाते हैं। मैंने इसे अपने स्टाइल में गाया है। यह गीत मेरे दिल के बेहद करीब है। मैं 90 के दशक के गानें सुनकर बड़ी हुई हूं और इस गीत में उसी दौर का आकर्षण झलकता है। मुझे उम्मीद है कि यह मेरे प्रशंसकों को पसंद आएगा। क्या आप मानती हैं कि आपको अपनी मां की बदौलत बॉलीवुड में आसानी से ब्रेक मिल गया? मैं आपकी इस बात से सहमत हूं क्योंकि अगर मैं बोलूंगी कि नहीं ऐसा कुछ नहीं है तो सबको लगेगा कि मैं झूठ बोल रही हूं। मेरे माता-पिता ही मेरी प्रेरणा हैं। वह शुरुआत से ही मुझे और मेरे भाई को गाइड करते आए हैं लेकिन यह भी सच है कि आपके गॉडफादर या गॉडमदर आपको रास्ता तो दिखा सकते हैं लेकिन उस रास्ते पर चलना कैसे करना है, यह आप खुद तय करते हैं। कहने का मतलब ये है कि प्रतिभा के बगैर कुछ नहीं होता। आदमी अपने टैलेंट के बल पर दुनिया जीत सकता है लेकिन अगर उसके पास नाम है और टैलेंट नहीं तो चाहे फिर वह किसी भी पेशे में चले जाएं, उसे कोई नहीं पूछने वाला। मैं मानती हूं कि मेरी मां एक बहुत बड़ी सिंगर हैं। मुझे उनके जैसा स्टारडम हासिल करने में अभी बहुत वक्त लगेगा। भला कौन दौलत-शोहरत हासिल नहीं करना चाहता। मैं भी चाहती हूं कि मुझे बॉलीवुड के बड़े म्यूजिक डायरेक्टर्स और सितारों के साथ काम करने का मौका मिले लेकिन मेरे चाहने या न चाहने से कुछ नहीं होता। मैं तो अपनी तरफ से पूरी मेहनत कर रही हूं। सब्र का फल मीठा होता है। मैं बहुत पॉजिटिव हूं और मुझे उम्मीद है कि एक दिन देश भर में मेरा भी नाम बोलेगा। आप बॉलीवुड के किस एक्टर और एक्ट्रेस की फिल्म में अपनी आवाज देना चाहती हैं ?मैं शाहरुख खान और प्रियंका चोपड़ा के काम की बहुत बड़ी प्रशंसक हूं। इन दोनों सितारों के अभिनय में एक वास्तविकता नजर आती है। शाहरुख को ऐसे ही बॉलीवुड का बादशाह नहीं कहा जाता। उनकी फिल्मों की बात ही अलग है। किंग खान की बराबरी कोई नहीं कर सकता। मेरा सपना है कि मैं उनकी फिल्म के किसी गाने पर सुर लगाऊं। वहीं, प्रियंका के अलावा मैं दीपिका पादुकोण के अभिनय की भी कायल हूं। इन तीनों सितारों के साथ काम करना मेरी विश लिस्ट में शामिल है।अब बॉलीवुड के कई सितारे सिंगर बन गए हैं। आप क्या कहेंगी?  आज के दिन एक ही आदमी कई काम कर रहा है क्योंकि प्लेटफॉर्म बहुत हैं। जरूरी नहीं कि एक एक्टर एक्टिंग ही करे या कोई सिंगर है तो वह गाना ही गाए। ऐसे में अगर सितारे गायकी की दुनिया में अपने हाथ आजमा रहे हैं तो यह गलत नहीं है। मुझे लगता है कि ऐसा वे सिर्फ अपने शौक के चलते करते हैं। पेशा तो असल में उनका एक्टिंग ही है। उन्हें सिंगर की उपाधि नहीं दी जा सकती। आप ही बताइए कि अगर किसी फिल्म फेस्टिवल में एक्टर्स की जगह पेंटर्स चले जाएं तो क्या यह किसी को अखरेगा नहीं, इसलिए मेरे हिसाब से तो जो जिस काम में अव्वल होता है, उसे वही काम करना चाहिए। 

पाॅंच दिग्गजों को मध्यप्रदेश भेजा जायेगा ?

अरूण जैन
गुजरात चुनाव नतीजों के पक्ष में आने के बाद अब भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश के लिए कमर कस रही है। एक तरफ जहां प्रदेश नेतृत्व शिवराज सिंह चौहान को चौथी बार मुख्यमंत्री बनाने की पुरजोर कोशिश करेगा वहीं केन्द्रीय संगठन भी एक प्रमुख राज्य में अपनी सरकार को फिर से बनाने की जद्दोजहद करेगा। लेकिन इस बीच संगठन से जुड़े कई बदलाव भी देखने को मिल सकते हैं। माना जा रहा है कि गुजरात चुनाव के नतीजों के बाद पार्टी के मध्य प्रदेश के नेताओं को अब और बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। आपको बता दें कि ग्वालियर से बीजेपी सांसद और केन्द्रीय मंत्री गुजरात में पार्टी के चुनाव प्रभारी नियुक्त किए गए थे वहीं मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा को भी चुनाव प्रचार के दौरान सौराष्ट्र की 26 सीटों की जिम्मेदारी दी गई थी। हाल ही में हुए इन चुनावों में जीत के बाद से ही मध्य प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में सियासी मयाने निकाले जाने शुरू हो चुके हैं। वैसे जाहिर तौर पर ये माना जा रहा है कि गुजरात और हिमाचल की जीत के बाद अब मध्य प्रदेश के पार्टी नेताओं का कद बढऩा तय ही है। क्योंकि मध्य प्रदेश के नेताओं को जो जिम्मेदारी इन चुनावों के लिए दी गई थी उसे उन्होंने न सिर्फ बखूबी निभाया बल्कि केन्द्रीय नेतृत्व की उम्मीदों पर भी खरे उतरे, लिहाजा अब उन्हें किसी बड़ी जिम्मेदारी से नवाजा जा सकता है, वो भी मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले। क्यों लग रही है ऐसी संभावना ऐसा इसलिए माना जा रहा है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी इस समय देश में सबसे ज्यादा राज्यों में सरकार बना चुकी है। देश भर से पार्टी के राज्यों के नेता अब केन्द्रीय राजनीति की ओर बढ़ रहे हैं ऐसे में पार्टी अपनी सेकेंड लाइन तैयार करने और केन्द्रीय संगठन को और मजबूती देने की कोशिश में हैं। मध्य प्रदेश से अच्छी परफॉर्मेंस वाले नेताओं को भी पार्टी इसीलिए तवज्जो दे सकती है। वैसे इस तरीके से प्रदेश में भी पार्टी के नए नेताओं को मौका मिलेगा, जिससे कि यहां पर भी अगली पंक्ति को मजबूती मिलेगी। सक्रिय होंगे ये पांच चेहरे वैसे इस बारे में पार्टी की ओर से होने वाली गतिविधियां भी दिखाई देने लगी हैं। केंद्र में सक्रिय और मध्य प्रदेश से दूर हो चुके 5 दिग्गज नेताओँ को पार्टी फिर प्रदेश में सक्रिय करेगी। चुनावी साल में प्रदेश के दो केंद्रीय मंत्री, दो केंद्रीय पदाधिकारी और एक सांसद को भाजपा अहम भूमिका में मध्य प्रदेश भेजने की तैयारी कर चुकी है। इन नेताओं के नाम हैं नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, थावरचंद गेहलोत, प्रहलाद पटेल और प्रभात झा। इऩ पांचों नेताओं को मध्य प्रदेश में सक्रिय करके भारतीय जनता पार्टी क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, दलित व पिछड़ा वर्ग में कम होती पैठ को बढ़ाने की कोशिश करेगी। नरेंद्र सिहं तोमर और प्रभात झा प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके समय पार्टी का सक्सेस ग्राफ अच्छा था। वही कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल और थावरचंद गेहलोत की पकड़ अच्छी है।

स्मृति ईरानी और प्रकाश जावडेकर ने एडमिशन के लिए अपने कोटा से 25 गुना ज़्यादा सिफ़ारिश किया

अरूण जैन
   अबकी बार सिफ़ारिश सरकार! मानव संसाधन मंत्री रहते हुए स्मृति ईरानी और उनके बाद प्रकाश जावडेकर ने अपने कोटा से 25 गुना ज़्यादा एडमिशन के लिए सिफ़ारिश किया है। 25 गुना। केंद्रीय विद्यालयों में मंत्रालय एक साल में 450 एडमिशन की सिफ़ारिश कर सकता है। मगर स्मृति ईरानी ने 2015-16 में 15,065 सिफ़ारिशें कीं और प्रकाश जी ने 2017-18 के लिए 15,492। पैरवी की दुकान खुली है क्या जी। इनकी सिफ़ारिश पर विद्यालय संगठन बोर्ड हर साल 8000 एडमिशन ही कर सका। कपिल सिब्बल ने मंत्रालय का कोटा सरेंडर कर दिया था ताकि मेरिट को मौका मिले। सिब्ब्ल ने सिफ़ारिश की दुकान बंद कर दी थी। उनके बाद मंत्री बने पल्लम राजू ने भी कोटा बहाल नहीं किया। स्मृति ईरानी बनी और कोटा राज आ गया। कहा कि साल में 450 कोटा होगा। पारदर्शिता का दावा करने वाले प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रियों का यह रिकार्ड आपके सामने हैं। मूल रिपोर्ट आप दि प्रिंट पर पढ़ सकते हैं। अनुभूति विश्नोई ने यह रिपोर्ट की है। अंग्रेज़ी और हिन्दी चैनलों के थर्ड क्लास होने और इनके यहाँ रिपोर्टिंग बंद होने के बाद ख़बरों की कुछ वेबसाइट से आप जिज्ञासा पूरी कर सकते हैं। चैनलों के न्यूज़ वेबसाइट भी कबाड़ हैं। दरअसल आप ठीक से तय नहीं करते कि किसी वेबसाइट को क्यों फोलो करते हैं और उनसे प्रधानमंत्री की मुलाक़ातें और ट्रक-ट्राली की टक्कर टाइप की ख़बरों से ज़्यादा क्या मिलता है। एक्सप्रेस के पूर्व संपादक शेखर गुप्ता ने एक अच्छी न्यूज़ वेबसाइट बनाई है जिसका नाम है दि प्रिंट। इस वेबसाइट से कुछ अच्छे रिपोर्टर जुड़े हैं जो रक्षा और शिक्षा जैसे मंत्रालयों की ख़बरें देते हैं। मनु पबी ने राफ़ेल जहाज़ की खऱीद को लेकर अच्छी रिपोर्टिग पेश की है। कुमार केतकर भी यहाँ जमकर लिख रहे हैं। प्रिंट धीरे धीरे मंत्रालयों की अच्छी ख़बर दे रहा है।  दि वायर, स्क्रोल की कड़ी में प्रिंट का आना सुखद है। सबके हिन्दी हैं और वहाँ अच्छा काम हो रहा है। मगर हिन्दी की मुख्यधारा मीडिया वालों का अपना एक भी सॉलिड न्यूज़ वेबसाइट नहीं है। हिन्दी के पत्रकारों की ट्रेनिंग मंत्रालयों में पकड़ बनाने की कम होती जा रही है। कुछ ही हैं मगर उनके अख़बार के मालिकों को मंत्रियों से उन्हीं के ज़रिए मिलना भी होता है। आप कूड़ा अख़बार लेना बंद कीजिए। ख़बरों की खोज में निकलिए।

रेस-3 की स्टारकास्ट लिस्ट में शामिल हुआ झक्कास एक्टर

अरूण जैन
सलमान खान की अगली आने वाली फिल्म रेस 3 के कलाकारों की सूची में शामिल होने वाला नया चेहरा उनके दोस्त और सहयोगी अनिल कपूर हैं। सलमान खान ने सोशल मीडिया पर अनिल कपूर का स्टारकास्ट में स्वागत किया। सलमान और अनिल कई सालों से एक स्नेह भरा बंधन साझा करते हुए आए है। बी-टाउन की इस जोड़ी ने कई फिल्मों में एकसाथ अभिनय किया है। रेस 3 अनिल कपूर की रेस फ्रेंचाइज़ी में वापसी के रूप में चिह्नित होगी, क्योंकि इससे पहले अभिनेता ने रेस की पिछली किस्त में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।रेस और रेस 2 की पिछली किस्त में अनिल कपूर को एक नम्र हृदय वाले पुलिस की भूमिका में देखा गया था जिसे फि़ल्म की कहानी के अनुसार अपराधों को सुलझाने के लिए भेजा गया था। अनिल कपूर को एकबार फिर रेस की फ्रेंचाइज़ी में देखना दिलचस्प होगा, जहां इस बार अभिनेता सुपरस्टार सलमान खान के साथ स्क्रीन स्पेस साझा करते हुए नजऱ आएंगे। सुपरस्टार सलमान खान ने पोस्ट करते हुए लिखा कि इनके आने से रेस 3 का कास्ट और हो गया झक्कास। अभिनेता सलमान खान के साथ, निर्माता रमेश तौरानी ने भी एक तस्वीर साझा करते हुए कहा कि पिक्चर अगर रेस हो, तो ये कैसे ना हो अनिल कपूर। वो फिर से रेस में वापस आ रहे हैं। फ्रैंचाइजी की अगली किस्त के निर्देशक रेमो डिसूजा ने रमेश के ट्वीट को फिर से ट्वीट करते हुए कहा कि रेस पर वापस आ रहे हैं। इससे पहले सलमान खान ने अनिल कपूर के साथ बीवी नंबर 1, नो एंट्री, युवराज, सलाम ए-इश्क़ जैसी फिल्मों में एक साथ अभिनय किया है।

मोदी ही नहीं अमित शाह के लिए भी कड़ी परीक्षा है गुजरात चुनाव

अरूण जैन
यूपी नगर निकाय चुनाव बीजेपी के लिए अच्छी खबर लेकर आया है। यहां पार्टी ने विधानसभा चुनाव की जीत की लय बरकरार रखी है। इसे राज्य की योगी सरकार का भी टेस्ट माना जा रहा था। समाजवादी पार्टी व कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया है क्योंकि किसी भी जगह इन पार्टियों के उम्मीदवार चेयरमैन पद नहीं जीत सके। हां, बहन मायावती की पार्टी बसपा के लिए यह संतोषजनक है कि उसके तीन उम्मीदवार चेयरमैन पद जीतने में सफल रहे। अगर बात योगी सरकार की की जाए तो नतीजों के आलोक में वह भी पास हो गई है। इस जीत का कुछ न कुछ लाभ गुजरात चुनाव में भी पार्टी को मिलना सुनिश्चित हो गया है। बहरहाल, गुजरात में पिछले पांच विधानसभा चुनावों में बीजेपी ही जीत का परचम लहराती आ रही है। इसलिए गुजरात में बीजेपी के लिए यह साख का सवाल हैढ्ढ प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह दोनों ही अच्छी तरह जानते हैं कि राज्य में पिछले तीन विधानसभा चुनाव से ये चुनाव अलग हैं। पिछले तीनों विधानसभा चुनाव बीजेपी नरेंद्र मोदी को पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरे के तौर पर आगे करके लड़ी और हर बार जीत दर्ज की। इस बार बीजेपी के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि मोदी देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं और राज्य में उनके जैसा कोई कद्दावर चेहरा भाजपा के पास नहीं है। ऐसे में नाक का सवाल बने गुजरात चुनाव जीतने के लिए पूरी पार्टी एड़ी चोटी का जोर लगाये हुए है। सबसे बड़ी चुनौती है कि इस बार पार्टी का सीएम चेहरा मोदी नहीं विजय रूपाणी हैंढ्ढ आनंदीबेन पटेल को हटा कर बीजेपी हाई कमान ने रूपाणी को गुजरात के मुख्यमंत्री की गद्दी पर बिठाया थाढ्ढ प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का गृह राज्य होने के कारण गुजरात चुनाव पर देश दुनिया की निगाहें लगी हुई हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को कुशल कूटनीतिज्ञ कहा जाता है। इसका सबूत वो पिछले कई चुनावों में दे भी चुके हैं। सबसे ताजा मिसाल यूपी की है। वहां अमित शाह ने बीजेपी के लिए इस तरह की फील्डिंग सेट की थी कि उसके सामने अखिलेश-राहुल गांधी जैसे 'यूपी के लड़कोंÓ का गठबंधन हो या 'बहनजीÓ मायावती का सांगठनिक कौशल, सब चारों खाने चित नजर आए। बावजूद इसके गुजरात विधानसभा चुनाव जीतना बेहद जरूरी है वर्ना पूरी सरकार का वजूद संकट में पड़ जाएगा। यही कारण है कि भाजपा के चाणक्य अमित शाह गुजरात में सांगठनिक मोर्चे पर कहीं कोई चूक नहीं होने देना चाहते। चुनाव से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात पर अमित शाह खुद पैनी नजर रखे हुए हैं। साथ ही उन्होंने गुजरात में अपने भरोसेमंद लोगों को उनकी दक्षता के हिसाब से खास जिम्मेदारी सौंप रखी है। पन्ना प्रमुखों और बूथ इंचार्ज की भूमिका को बहुत अहम मानने वाले भाजपा ने गुजरात की सभी 182 विधानसभा सीटों के लिए दस लाख से ज्यादा पन्ना प्रमुखों और 58 हजार बूथ इंचार्ज से फीडबैक लेने की जिम्मेदारी 182 विधानसभा इंचार्जों को दी हुई है। सभी जगह से मिले फीडबैक के आधार पर जरूरत के अनुसार अमित शाह और उनकी टीम रणनीति की दशा और दिशा तय करती है। इसमें सोशल मीडिया की चुनावी रणनीति भी शामिल है। पूरे दिन चुनावी प्रचार की भागदौड़ के बाद अमित शाह देर रात को मुख्यमंत्री विजय रुपाणी, उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल, बीजेपी महासचिव संगठन रामलाल, गुजरात बीजेपी इंचार्ज और महासचिव भूपेन्द्र यादव, बीजेपी महासचिव अनिल जैन और संगठन मंत्री गुजरात भिखुभाई दलसानिया के साथ बैठक करते हैं और पूरे दिन का फ़ीड बैक लेते हैं। अगर कोई अन्य वरिष्ठ मंत्री प्रचार में रहता है तो वह भी बैठक में मौजूद रहता है। इसी बैठक में पार्टी की अगले दिन की रणनीति का खाका तैयार किया जाता है। दीवार पर लिखी इबारत साफ है कि पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी गुजरात चुनाव में पार्टी की ओर से कहीं कोई चूक होने नहीं देना चाहती। यही वजह है कि सबसे भरोसे के सिपहसालारों को चुन-चुन कर चुनाव के खास मोर्चों पर तैनात किया गया है। देखना दिलचस्प होगा कि जीएसटी को लेकर अपने बेस वोट व्यापारी वर्ग का विरोध झेल रही भाजपा इससे कैसे पार पाती है। यह चुनाव जहां पीएम मोदी की नीतियों पर जनता की मुहर होगी वहीं भाजपा के चाणक्य अमित शाह की भी अग्निपरीक्षा है।

12 साल में स्वर्ग बनाने की खुशफहमी

अरूण जैन
अजीब सा माहौल है, मध्यप्रदेश में सरकार अपनी पीठ ठोंक रही है, कि मध्यप्रदेश को 12 साल में  उसने स्वर्ग बना दिया विधान सभा में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर हंगामे हो रहे है खाद के लिए भटकते किसान दम तोड़ रहे है भोपाल के सरकारी  मेडिकल कालेज में पढने वाली छात्राएं उन शोहदों से परेशान है जो कालेज आते जाते समय उनके निजी अंगों को छूते है राजधानी में गैंगरेप हो जाता है पुलिस मुख्यालय में तैनात पुलिस का अत्तिरिक्त पुलिस अधीक्षक महिला सिपाही से अनुचित मांग के मामले में गिरफ्तार होता है सचिवालय में काम कम ठकुरसुहाती में लगे अफसर सेवानिवृति के बाद भी कृपा से डटे हैं इसे क्या कहें, सब देख रहे हैं, न जाने क्यों चुप हैं ?  और किसान पुत्र और बच्चियों के स्वंयभू मामा अपनी पीठ ठोंकते हैं कि 12 साल में उन्होंने मध्यप्रदेश को स्वर्ग बना दिया प्रतिपक्ष के नेता आरोप लगाते हैं, अवमानना के मुकदमे भुगतते हैं, सजा पाते हैं  एक सामान्य सी  बात है कहीं आग तो होगी, जिसका धुआं दिख रहा है यह भी सही है कि सौजन्य की पट्टी प्रदेश के प्रतिपक्ष के कुछ नेताओं की आँख भी नहीं खुलने दे रही है एन सी आर बी अर्थात राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े ही चुल्लू भर पानी तलाश कर की कहावत कह रहे है फिर भी खम ठोंक रहे है कि हमने बीमारू राज्य को स्वर्ग बना दिया हकीकत यह है कि किसान, जवान, बेटे बेटी सब परेशान है व्यापम के मगर मच्छ ने प्रदेश की प्रतिभा के भाल पर कालिख पोत दी स्वर्ग बनाने के दावे करने वालों को यह भी देखना चाहिए,  व्यापम घोटाले के समय चिकित्सा शिक्षा विभाग में सरकारी खजाने से तनख्वाह पाने वाला कौन सा वजीर निगहबानी को मुकर्रर था ? क्लीनचिट की आड़ में बचने से निगहबानी न करने हिमाकत छिप नहीं सकती एन सी आर बी के आंकड़े किसानोंकी आत्म हत्या  और महिलाओं के साथ हो रहे अपराध का जो दृश्य खीच रहे है, वह सबसे अलग और संस्कारवान  राजनीतिक दल कहने वाली सरकार के नहीं हैं फिर भी भाजपा के एक  कप्तान जिनकी कप्तानी अब कहीं और है प्रमाण पत्र दे गये है की 12 साल से काबिज आदमी का कुर्सी पर फिर से अधिकार हो जाता है यह सब भ्रम है, प्रदेश को इससे निकलना होगा 12 साल में भारी संख्या में किसानों ने आत्म हत्या की है 7 30 दिन बाद समाप्त हो रहे इस साल में में भी यह आंकड़ा 100 को छू रहा है  एक कहावत है, जनाब ! 12 साल में तो घूरे के दिन बदलते हैं फिर ये तो मध्यप्रदेश है खुशफहमी बुरी होती है, तब और भी जब आसपास हरित चित्र दिखानेवाले ही शेष बचे  ऐसे में बचना मुश्किल होता है,थोडा इतिहास में झांके उदाहरण के लिए ज्यादा दूर नही जाना होगा 

पहले से और फिट हुईं करीना, बैकलेस ड्रेस में दिखा ऐसा ॥शह्ल अवतार

अरूण जैन
हाल ही में करीना कपूर खान केनिया की राजधानी नारोबी के फैशन शो में नजर आई थीं। जहां उनका रॉयल लुक देखने को मिला। इस दौरान करीना ने अपने न्यूड मेकप और सोबर लुक से सबका दिल जीत लिया। उन्होंने सफेद सीक्वंस वर्क का शोल्डर लेस लहंगा पहना हुआ था। जिसमें करीना बेहद सेक्सी और पहले से कही ज्यादा फिट लग रही थीं। करीना यहां फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा के लिए रैम्प पर उतरीं और सभी का दिल जीत लिया। इस शो की कुछ फोटोज और वीडियोज मनीष ने अपने इंस्टा अकाउंट पर शेयर की है। जिसमें आप बेबो का नया बोल्ड अवतार साफ देख सकते हैं। इसके साथ ही करीना के फैन क्लब और उनके स्टाइलिस्ट ने भी बैकस्टेज की फोटो पोस्ट की है। जो अब वायरल हो रहे हैं। जी हां, इस रैंपवॉक में सभी ने ये बात नोटिस कि, की बेबो का वजन पहले से और कम हो गया है। बेटे तैमूर के जन्म के बाद से वो लगातार वेट लॉस करने में लगी हुई हैं। ताकि दोबारा अपने बॉलीवुड प्रोजेक्ट्स शुरू कर सके। वो जल्द ही सोनम कपूर के साथ फिल्म वीरे दी वेडिंग में नजर आने वाली हैं। बीते रोज करीना कपूर खान अपने लाडले बेटे तैमूर के साथ मुंबई के बांद्रा इलाके में स्पॉट हुईं। इस दौरान उनकी गोद में तैमूर आराम से बैठे हुए थे और कैमरा मैन्स को देखकर अलग-अलग रिएक्शन दे रहे थे। लेकिन हर कोई उस वक्त हैरान रह गया जब तैमूर पास खड़ी कार की तरफ देखकर एकदम से उछल पड़े और खिलखिलाकर हंसने लगे। लेकिन अगर आप ये सोच रहे हैं कि तैमूर किसी खास शख्स को देखकर हंस रहे थे तो हम आपको बता दें कि ऐसा बिल्कुल नहीं है। क्योंकि, वो तो खुद पर ही हंस रहे थे। जब कार में देखी अपनी परछाई... जी हां, तैमूर कार में अपनी परछाई को देखकर हंस रहे थे। जैसा कि बच्चे अक्सर करते हैं। खुद को कार के शीशे में देखकर तैमूर लगातार खिलखिलाते रहे। उनका ये क्यूट अंदाज देखकर वहां मौजूद हर शख्स मुस्कुराने लगा। कैमरा पर्सन्स को दिखाई जीभ... इस दौरान तैमूर कभी अंगूठा चूसते दिखे तो कभी जीभ निकालते नजर आए। करीना यहां चैक शर्ट, डेनिम और बूट्स में काफी सेक्सी लग रही थीं। वहीं तैमूर ने ग्रे और व्हाइट रंग के कपड़े पहने रखे थे। बता दें कि तैमूर अगले महीने एक साल का हो जाएंगे। पटौदी खानदान के सबसे छोटे नवाब तैमूर अपने जन्म से ही सुर्खियों में बने हुए हैं। शुरुआत में उनके नाम को लेकर खूब विवाद हुआ, लेकिन अब वह सिर्फ और सिर्फ अपनी क्यूटनेस के लिए मशहूर हैं। 

सर्दियों में फिर गर्म हुआ व्यापमं घोटाला ; 1 गुर्गा गिरफ्तार, 4 अरबपति कारोबारी फरार

अरूण जैन
व्यापमं घोटाले में सीबीआई ने पहला दमदार एक्शन किया है। इंदौर से सुरेश भदौरिया के खास अरुण अरोरा को गिरफ्तार कर लिया गया है। इस गिरफ्तारी के साथ ही पीपुल्स के चेयरमैन सुरेश विजयवर्गीय, चिरायु के मालिक अजय गोयनका समेत सभी चारों अरबपति कारोबारी फरार हो गए हैं। सीबीआई जांच में पाया गया कि इन सभी ने मेडिकल सीटें बेचकर करोड़ों का कालधन कमाया। कोर्ट ने सभी के खिलाफ वारंट जारी कर दिए हैं। कौन कौन हुए अंडरग्राउंड एलएन मेडिकल कॉलेज ; चेयरमैन जयनारायण चौकसे, कॉलेज के एडमिशन इंचार्ज डीके सतपथी, डीन डॉक्टर स्वर्णा बिसारिया गुप्ता। चिरायु मेडिकल कॉलेज : चेयरमैन डॉक्टर अजय गोयनका, डीन वी मोहन, कॉलेज लेवल एडमिशन कमेटी के डॉक्टर रवि सक्सेना, एसएन सक्सेना, वीएच भावगार, एके जैन, विनोद नारखेड़े, हर्ष सालनकर। इंडेक्स मेडिकल कॉलेज चेयरमैन सुरेश सिंह भदौरिया कॉलेज लेवल एडमिशन कमेटी के मेंबर केके सक्सेना, पवन भारवानी, नितिन गोठवाल, जगत रॉवल। पीपुल्स मेडिकल कॉलेज: चेयरमैन सुरेश एन. विजयवर्गीय उनके दामाद कैप्टन अंबरीश शर्मा, डीन वीके पांडे, मेंबर कॉलेज लेवल कमेटी एएन माशके, सीपी शर्मा, वीके रमन, पीडी महंत, एसके सरवटे, अतुल अहीर। भदौरिया का सबसे खास है अरोरा सीबीआई की गिरफ्त में आया अरुण अरोरा जबलपुर का रहने वाला है। वह इंडेक्स ग्रुप के चेयरमैन सुरेश सिंह भदौरिया का बेहद खास माना जाता है। पहले वह इंदौर के होटल अमलतास में मैनेजर था। बाद में उसे मेडिकल कॉलेज का जिम्मा दे दिया गया। मेडिकल कॉलेज की एडमिशन कमेटी में रहते हुए अरोरा ने मुंहमांगे दामों पर सीटें बेचीं। संडे से शुरू हुई सीबीआई की छापामारी, जारी सीबीआई ने आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए रविवार को भोपाल-इंदौर में कई जगह छापे मारे। इंदौर से इंडेक्स मेडिकल कॉलेज की एडमिशन कमेटी के चेयरमैन अरुण अरोरा को विजय नगर स्थित घर से गिरफ्तार कर लिया। सूत्रों के अनुसार सीबीआई ने भोपाल में तीनों प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों से जुड़े आरोपियों की तलाश में छापे मारे लेकिन सारे रसूखदार आरोपी नदारद मिले। सबके फोन आधी रात तक बंद थे। एक अफसर के अनुसार सभी को चेतावनी दी गई है कि भागने से किसी को कोई फायदा नहीं होने वाला। बेहतर है कि वे कानून का सम्मान करें। नींद में था अरोरा, सामने सीबीआई रविवार सुबह 6 बजे सीबीआई जब इंदौर में अरुण अरोरा के घर पहुंची तब वे नींद में थे। दरवाजे की बेल बजी तो नींद खुली। बाहर सीबीआई के अफसर खड़े थे। जांच एजेंसी ने उन्हें तैयार होने का मौका दिया और अपने साथ चलने को कहा। सीबीआई अरोरा को भोपाल लेकर आई। शाम सवा चार बजे सीबीआई ने अरोरा को न्यायाधीश सुलेखा मिश्रा की अदालत में पेश किया। सीबीआई के विशेष लोक अभियोजक सतीश दिनकर ने कोर्ट को अरोरा की गिरफ्तारी के संबंध में जानकारी दी और जेल रिमांड मांगा। वहीं अरोरा के वकील ने कोर्ट में मेडिकल दस्तावेज पेश कर कहा कि अरोरा बीमार है, उन्हें जेल में मेडिकल सुविधा दी जाए। अदालत ने दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद अरोरा को जेल भेज दिया। सीबीआई अधिकारियों ने बताया कि अरोरा के खिलाफ विशेष न्यायाधीश डीपी मिश्रा ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया था, इसके बाद गिरफ्तारी की गई। क्या गुनाह किया है अरोरा ने बिचौलिए और रैकेटियर से बातचीत करने और सीटों का सौदा करने का जिम्मा अरोरा का होता था। उसने मेडिकल एजुकेशन के अफसरों को गलत जानकारी दी। एडमिशन सूची में बोगस नाम लिखकर भेजे। चार्जशीट में जिक्र है कि 2012 में इंडेक्स कॉलेज को स्टेट कोटे से 95 सीट आवंटित हुई थी। अरोरा ने डीएमई को सूचना दी कि 80 सीट पर 21 सितंबर 2012 को प्रवेश दे दिया गया है। 24 सितंबर को 2 सीट अपग्रेड हुई। दूसरी काउंसलिंग 17 सीट पर की गई। 18 स्कोरर यानी इंजन को एडमिशन देना बताया। इनमें से कुछ पहले से एमबीबीएस के छात्र थे। कॉलेज प्रबंधन खाली सीटों पर प्रवेश के लिए विज्ञापन नहीं दिया। डीएमई और कॉलेज की सूची में काफी अंतर था। 76 छात्रों को राज्य कोटा में प्रवेश दिखाया गया, जबकि ये योग्य नहीं थे। 

जयपुर में एक लड़की के प्यार में इस कदर डूब गए थे

अरूण जैन
अभिनेता इरफान खान का कहना है कि उन्हें पहली बार 16 साल की उम्र में प्यार हुआ और उस समय वह खुद को बॉलीवुड के किसी हीरो से कम नहीं मानते थे। पेश है इरफान से हुई बातचीत के अंश। या कभी आपकी जिंदगी में कोई ऐसा इंसान आया, जिससे आपको अनोखा प्यार हुआ हो?हां, जयपुर में एक लड़की पर मेरा दिल आया था। उस वक्त मैं करीब 16 साल का था। वह हमारे दूध वाले की बेटी थी और उसके कारण मैं रोज सुबह उठकर दूध लेने जाता था, ताकि उसकी झलक देखने को मिल जाए। वह भी मुझे देखकर मुस्कराया करती थी। एक दिन उसने मुझे अपने कमरे में बुलाया। मुझे लगा कि आज कुछ होने वाला है लेकिन उसने मुझे कॉपी में रखकर एक चि_ी दी और हमारे ही बाजू में रहने वाले एक लड़के को देने के लिए कहा। उस वक्त मुझे समझ नहीं आया कि क्या करूं लेकिन मैं भी खुद को हीरो समझकर अपने प्यार की कुर्बानी देकर उसे उसका प्यार दिलवाने में लग गया। वह मेरे घर आती और हम दोनों छुपम-छुपाई खेलते। वह पल मेरे लिए जन्नत जैसे होते थे लेकिन एक दिन मेरे चाचा के बेटे ने मुझसे कहा कि आज उसने भी उसके साथ छुपम-छुपाई खेली। बस मेरा दिल टूट गया। मुझे लगा कि उसने मुझे धोखा दिया है और मैंने बिना उससे कुछ कहे अपने मन में उससे ब्रेकअप कर लिया। मुझे याद है कि उस दौरान मैंने दर्द में डूबे हुए हीरो की तरह दो या तीन हफ्तों तक लगातार मुकेश के दर्द भरे गाने सुने थे। कई दिनों तक वह मुझसे बात करने की कोशिश करती रही पर मैं नहीं माना। तो क्या आज भी आप सुख या दुख में उसी तरह बॉलीवुड के गाने सुनते हैं? हां, आज भी मेरे साथ ऐसा ही होता है। मैं जब भी कोई गाना सुनता हूं तो लगता है कि वह मेरे लिए बना है। खासकर जब रेडियो पर कोई पुराना गाना बजता है तो जिंदगी से जुड़े वो सभी लोग याद आते हैं, जो किसी जमाने में मेरे करीब हुआ करते थे। मैं बहुत ही फिल्मी टाइप का इंसान हूं। मैं जब भी कोई फिल्म देखता हूं तो उस हीरो से न जाने क्यों अपनी तुलना करने लगता हूं। मुझे लगता है कि वह सब मेरे साथ भी हो चुका है। फिल्मों से फ्री होकर आप क्या करते हैं। कैसे अपनी छुट्टियों को एंजॉय करते हैं?मुझे जब भी समय मिलता है , मैं घूमने निकल पड़ता हूं। मैं बहुत ही ज्यादा घुमक्कड़ी हूं। अगर छुट्टी कम दिन की होती है तो मैं हरिद्वार या फिर ऋषिकेश निकल जाता हूं। वहां पर न जाने क्यों मुझे अजीब सी शांति मिलती है। मुझे लगता है कि एक कलाकार के लिए एक किरदार या फिर एक जोन से निकलने के लिए दूसरे जोन में जाने के लिए समय चाहिए होता है और एक ऐसा स्थान चाहिए होता है जहां पर वह खुद को समय दे सके, इसलिए मैं भी कोशिश करता हूं कि खुद को समय दूं और जिंदगी को अपनी मर्जी से जी लूं। आपने अपने अभी तक के सफर में बहुत कुछ सहा है। कुछ ऐसी बातें, जो आपको आज भी याद हों या तो आपके शुरुआती दौर से जुड़ी हुई हों?हर किसी की जिंदगी में एक सपना होता है, जिसे वह सच करना चाहता है। उसे लगता है कि अगर ये सपना पूरा नहीं हुआ तो उसकी जिंदगी बेकार है तो इसी की वजह से मैं यहां पर आया। मेरा नेगेटिव प्वॉइंट ये था कि मैं हमेशा से ही बहुत शर्मीला रहा हूं और मुंबई में आने के बाद मुझे लोगों से ये कहने में शर्म आती थी कि मैं एक्टर हूं। मुझे काम चाहिए। कई बार मुझे बहुत शर्मिदंगी भी उठानी पड़ी। मुझे लगता है कि जिंदगी ने मुझे बहुत टेस्ट करने के बाद ही सबकुछ दिया है। मुझे कुछ भी आसानी से नहीं मिला। मुझे लगता था कि एनएसडी से कोर्स करने के बाद सब कुछ आसान हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं है। यहां किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। मैंने टीवी पर काम किया फिर फिल्में करने का शौक था तो फिल्मों में आया। काफी इंतजार करना पड़ा लेकिन भगवान की दया से मुझे हमेशा काम मिलता रहा।

2019 चुनाव में राम मंदिर कार्ड खेलेगी भाजपा

अरूण जैन
राम मंदिर मुद्दे पर मोदी की गंभीरता को समझने में भारी भूल कर रहा मीडिया!  2014 में मोदी सरकार बनने के बाद से मीडिया में राम मंदिर पर चर्चा होती रही है। यूपी में बीजेपी की भारी जीत के बाद ये चर्चा आम हो गई है। अक्सर टीवी स्टूडियो में बैठे एंकर, पत्रकार, मुस्लिम धर्मगुरू, बुद्धिजीवी जब खुले तौर पर  मंदिर कब बनेगा या निर्माण की तारीख बताने जैसे असहज सवालों पर सरकार के प्रवक्ताओ को घेरने की कोशिश करते हैं तो शायद इन सभी महानुभावों को ये समझ मे नहीं आता कि अगर वाकई में इन्हें तारीख बता दी गयी तो इन्हें न्यूज़रूम से सीधे आईसीयू में भर्ती कराना पड़ेगा। जो नेता  नोटबन्दी, सर्जिकल स्ट्राइक जैसे दुस्साहसी निर्णय लेने की हिम्मत रखता है और उसे सफलतापूर्वक कार्यान्वित कर सकता हो तो उसे  मंदिर बनाने में क्या दिक्कत हो सकती है। नोटबन्दी के नकारात्मक परिणामों को लेकर विपक्ष 8 नवम्बर से  आज तक मोदी को कभी घेर नहीं पाया क्योंकि देश की जनता मोदी के लिए ढाल बनकर खड़ी थी। मोदी को इस बात का आकलन जरूर था कि नोटबन्दी जैसे फैसले अपनी लोकप्रियता के चरम पर ही लिए जा सकते हैं अन्यथा इसके परिणाम वेनेजुएला या इमरजेंसी जैसे हो सकते थे। वर्तमान परिस्थितियों में इस मुद्दे पर मोदी बहुत सावधानी से एक-एक कदम बढ़ा रहे है। केंद्र राज्य दोनों में ही उनकी सरकार होने से उन पर मंदिर निर्माण के वादे का भारी दबाव है इसलिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बेसब्री से इंतजार है। एक ठोस आधार के जरिये वे 2019 चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश करेंगे कि अगर उन्हें अगला कार्यकाल मिलता है तो मंदिर निर्माण के वादे को वो अंजाम तक पहुचाएंगे। सभी को विदित है कि सुप्रीमकोर्ट के फैसले को भी एक पक्ष या दोनों ही पक्ष कभी स्वीकार नहीं करेंगे। यानी इस मुद्दे को लंबे समय तक लटकाने की कवायद आगे भी जारी करने का भरपूर प्रयास होगा। लेकिन अगर सरकार मुखर एवं प्रतिबद्ध हो तो इस मामले को लटकाना बिल्कुल आसान नहीं होगा। देश का मीडिया मोदी के 3 साल के कार्यकाल के बाद भी उनके निर्णयों को समझने में नाकाम रहा है। उनके निर्णय लगातार मीडिया के आकलन के बिल्कुल उलट साबित होते रहते हैं। शायद 2019 चुनाव तक मीडिया का सिर चकरा जाए। मोदी का योगी आदित्यनाथ को यूपी का मुख्यमंत्री बनाने के पीछे उनके गूढ़ निहितार्थ है। वे गुजरात की तरह यूपी को भी हिंदुत्व की प्रयोगशाला के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। उनके कार्यकाल में अगर अनेक बाधाओं के बाद भी अगर राम मंदिर का निर्माण कार्य प्रशस्त होता  है तो वे सीधे-सीधे देश के 80त्न हिन्दू जनमानस के दिलों पर स्थायी तौर पर राज करेंगे। बंगाल, केरल जैसे मुस्लिम बहुल राज्यों में जहाँ लम्बे समय से बीजेपी सत्ता पाने का ख्वाब देख रही है, वहाँ उसका आधार बनाना  बेहद आसान होगा। बेरोजगारी, महंगाई, गिरती विकास दर जैसे अनेक मुद्दों पर घिरी सरकार अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए 2019 चुनाव में 2014 की तरह ध्रुवीकरण के लिए  हिंदुत्व के मुद्दे को धार देने के लिए राम मंदिर का मुद्दा सबसे  उपयुक्त मानती है।

रिश्तेदारों के भरोसे चल रही टीवी की इस मशहूर अभिनेत्री की गाड़ी

अरूण जैन
 डॉक्टर सिमरन से मशहूर हुई निकी वालिया शादी के बाद अमेरिका मे जाकर रहने लगी थीं लेकिन हाल ही में जब उन्हें धारावाहिक दिल संभल जा जरा  का प्रस्ताव मिला तो वह भारत लौट आईं। यहां निकी होटल में रुकने के बजाय अपने रिश्तेदारों के घर रुकी हुई हैं। पेश है उनसे की गई बातचीत के कुछ अंश। आप दिल संभल जा जरा में लैला रायचंद का किरदार निभा रही हैं। असल मायने में लैला कैसी है?लैला रायचंद एक धनी, मौकापरस्त महिला है और अहाना एवं सलोनी रायचंद की मां भी है। समाज में उसका रुतबा काफी बड़ा है और इसे कायम रखने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है। वह एक मजबूत इरादों वाली महिला है। उसे हार कतई मंजूर नहीं है। उसके और अहाना के बीच विचारों का अंतर होने के बावजूद वह अपनी जिंदगी के मुताबिक अपनी बेटी के फैसलों को प्रभावित करने में कोई कसर नहीं छोड़ती है। क्या आप यहां पर होटल में रुकी हुई हैं या फिर आपने कोई किराए का घर लिया है?आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इतने दिनों से न तो मैं होटल में रह रही हूं और न ही मैंने अपने लिए कोई किराए का घर लिया है। यहां मेरे रिश्तेदार हैं और मैं बारी-बारी से उनके घर में रह रही हूं। मेरे पति नहीं चाहते कि मैं होटल में रहूं, इसलिए मुझे रिश्तेदारों के भरोसे काम चलाना पड़ रहा है। हालांकि वे सभी बहुत अच्छे हैं और मुझे प्यार से रखते हैं। अमेरिका में सेटल होने के बाद आपने इस शो के जरिए वापसी करने का फैसला क्यों लिया?
मैं टेलीविजन पर वापसी करने के मौके तलाश रही थी। वैसे भी विक्रम भट्ट के साथ काम करने का मौका मैं कैसे छोड़ सकती थी। टीवी पर जिस तरह के शोज आ रहे थे, मैं उन्हें देख रही थी और ये शो अनूठा होने के बावजूद काफी वास्तविक लगता है। आजकल हम शहरों में जिस तरह के रिश्ते देखते हैं, यह शो आज के समय की कहानी कहता है। इसकी कहानी को विक्रम ने जिस तरह इसे पेश किया, इसने मुझे टीवी पर वापसी करने के लिए प्रेरित किया। यह टेलीविजन पर दिखाई जाने वाली आम रोमांटिक कहानी जैसी नहीं है और इसलिए मैंने इस मौके को हाथ से नहीं जाने दिया। साथ ही ये भूमिका 'अस्तित्वÓ में डॉक्टर सिमरन के किरदार से निश्चित रूप से काफी अलग है। विक्रम भट्ट के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?मैं हमेशा से ही विक्रम के काम की कायल रही हूं। वह ऐसे इंसान हैं, जो अलग हटकर सोचते हैं और वह एक बेहतरीन कहानीकार हैं। उन्होंने लैला के किरदार को मेरे सामने इतनी खूबसूरती से बयां किया कि मुझे उससे फौरन प्यार हो गया। वह अक्सर सेट पर आते हैं। हमारे बीच काफी अच्छी बॉन्डिंग है। आपने 'शानदारÓ में संजय कपूर के साथ काम किया था, इस शो में आपकी केमिस्ट्री कैसी है?एक कलाकार और एक इंसान के रूप में मैं संजय की बहुत इज्जत करती हूं। मुझे यह जानकर बेहद खुशी महसूस हुई कि हम एक बार फिर साथ काम करने वाले हैं। उनका स्वभाव इतना अच्छा है कि काम की थकान के दौरान उनसे बात कर वाकई बहुत मदद मिलती है। संजय कभी भी नहीं जताते कि वह कौन हैं और किस परिवार से हैं। हमेशा वह कोशिश करते हैं कि माहौल को हल्का-फुल्का बनाए रखें, जिससे कि बाकी लोगों को काम करने में आसानी हो। 

तो इसलिए आलिया ने बाहुबली को दिखाया था ठेंगा

अरूण जैन
आलिया भट्ट की पिछली फिल्म बद्रीनाथ की दुल्हनिया बॉक्स ऑफिस पर साफल साबित हुई। फिलहाल आलिया अपनी फिल्मों और किरदारों के साथ नए-नए प्रयोग करना चाहती हैं। जैसे उन्होंने उड़ता पंजाब में किया और उनके अभिनय की जमकर सराहना हुई। आलिया अपने कॅरियर के इस दौर में ऐसी किसी फिल्म में काम नहीं करना चाहतीं, जहां उनकी भूमिका हीरो से छोटी हो। तभी तो उन्होंने प्रभास स्टारर फिल्म साहो का हिस्सा बनने से साफ मना कर दिया था। एक ओर साउथ के स्टार प्रभास के साथ काम करने के लिए अभिनेत्रियां तरस रही हैं। वहीं, जब आलिया भट्ट को बाहुबली के साथ काम करने का मौका मिला तो उन्होंने फौरन उनके साथ स्क्रीन शेयर करने से मना कर दिया। यह बात शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि प्रभास की फिल्म 'साहोÓ का ऑफर श्रद्धा कपूर से पहले आलिया भट्ट को मिला था और प्रभास खुद आलिया के साथ काम करने के लिए बेहद उत्साहित थे लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। यूं तो आलिया को भी प्रभास के साथ काम करने में कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन उन्होंने यह कहकर फिल्म का हिस्सा बनने से मना कर दिया कि उनका रोल बहुत छोटा है। दअरसल, आलिया अपने कॅरियर के एक बहुत अच्छे दौर से गुजर रही हैं। 'शानदारÓ को छोड़ उनकी सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल रही हैं। फिल्म 'डियर जिंदगीÓ में भी उनके काम को काफी सराहना मिली थी। यही वजह है कि आलिया ऐसी किसी फिल्म में काम नहीं करना चाहतीं, जहां उनसे ज्यादा तवज्जो किसी और कलाकार को मिले। वह ऐसे प्रोजेक्ट से जुडऩा चाहती हैं, जिसके जरिए उन्हें अपनी परफॉर्मेंस दिखाने का पूरा मौका मिले। आलिया जानती थीं कि बाहुबली के बाद फैंस एक बार फिर प्रभास को पर्दे पर देखने के लिए बेकरार हैं। अगर वह उनके साथ काम करतीं तो फिल्म की सारी लाइमलाइट प्रभास ही बटोर लेते। लिहाजा आलिया ने फिल्म से पीछे हटना ही मुनासिब समझा और जब उनके साथ बात नहीं बन पाई तो यह फिल्म श्रद्धा कपूर की झोली में जा गिरी। वैसे 'साहोÓ की पहली पसंद तो अनुष्का शेट्टी थीं लेकिन बाद में किसी वजह से उन्हें यह फिल्म छोडऩी पड़ी। लाइमलाइट का लालच आलिया अपना एक-एक कदम फूंक-फूंककर आगे बढ़ा रही हैं। वह जोखिम भरी और चुनौतीपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं लेकिन उन्हें किसी भी फिल्म में नाममात्र की भूमिका नहीं निभानी। कुछ दिनों पहले एक इंटरव्यू में खुद आलिया ने कहा था कि वह चाहती हैं कि उनका किरदार दर्शकों की यादों में बस जाए। वह ऐसा कोई किरदार नहीं निभाना चाहतीं, जिसमें वह एक ग्लैम डॉल बनकर रह जाएं। उनके लिए फिल्म की कहानी तो मायने रखती ही है लेकिन इससे भी ज्यादा अहमियत वह अपनी भूमिका को देती हैं। तभी तो जब उनसे हॉलीवुड की ओर रुख करने के लिए पूछा गया तो उन्होंने कहा कि फिलहाल उनके पास ऐसा कोई ऑफर नहीं आया है, जिसे करने के लिए वह फौरन हामी भर दें। अगर भविष्य में किसी विदेशी फिल्म में उन्हें दमदार भूमिका निभाने का मौका मिला तो बेशक वह उस पर विचार करेंगी। वैसे भी यह तो आलिया खुद ही स्वीकारती हैं कि उन्हें रियल लाइफ में भी लाइमलाइट में रहना पसंद है। वह चाहती हैं कि लोग रोजाना उनकी चर्चा करें। आलिया हमेशा मीडिया में बने रहना चाहती हैं और रील लाइफ में भी उनका मकसद यही है कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा स्क्रीन टाइमिंग मिले ताकि वह दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सकें।

ये हैं दुनिया के ऐसे खूबसूरत देश जहां नहीं लगता कोई वीजा

अरूण जैन
विदेश घूमने के शौकीन लोगों के लिए सबसे बड़ा झंझट किसी भी देश का वीजा लेना होता है। कई बार वीजा लेने के चक्कर में घूमने का पूरा प्लान ही बिगड़ जाता है क्योंकि अलग अलग देशों के अपने अपने नियम और कानून होते हैं, उनकी औपचारिकताएं इतनी होती हैं कि घूम कर रिलेक्स होने का प्लान आपका सिरदर्द बन जाता है। लेकिन हम आपको आज दुनिया के ऐसे देशों के बारे में बताते हैं जहां वीजा नाम के इस झंझट का कोई नामोनिशां नहीं है तो चलिए, जानते हैं ऐसे देशों के बारे में कहां हैं ये...  जमैका ग्रेटर एंटीलिज पर स्थित एक द्वीप राष्ट्र है जमैका। 234 किमी लंबाई और 80 किमी चौड़ाई वाले इस द्वीप राष्ट्र का कुल विस्तार 19,100 वर्ग किमी है। कैरेबियन सागर में स्थित यह देश क्यूबा से 145 किमी दक्षिण और हैती से 190 किमी पश्चिम में स्थित है। खूबसूरती की बात करें तो इस शब्द के नए मायनों से परिचित कराएगी आपको ये जगह, वो भी बिना वीजा।  ईक्वाडोर ; वास्तविक रूप पर गौर करें तो ईक्वाडोर गणराज्य, दक्षिण अमेरिका में स्थित एक प्रतिनिधि लोकतांत्रिक गणराज्य है। जानकारी है कि देश के उत्तर में कोलंबिया, पूर्व और दक्षिण में पेरू और पश्चिम की ओर प्रशांत महासागर स्थित है और सभी खूबसूरत हैं। आइए, फिर यहां घूमिए बिना वीजा। फिजी; आधिकारिक रूप से गौर करें तो फिज़ी द्वीप समूह को गणराज्य के नाम से जाना जाता है। बता दें कि यह दक्षिण प्रशांत महासागर के मेलानेशिया में एक द्वीप देश है। यह न्यूज़ीलैंड के नॉर्थ आईलैंड से करीब 2000 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है। बेहतरीन प्राकृतिक नजारों के नजरिए से ये देश काफी धनी है। बड़ी और अच्छी बात ये है कि यहां पर घूमने के लिए आपको वीजा जैसे झंझटों की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। डोमिनिका ; डोमिनिका उत्तर अमेरिका महाद्वीप में केरिबियन क्षेत्र में बसा एक देश है। इस देश की खासियत है इसकी खूबसूरती। यहां की खूबसूरती में आप जरूर खो जाएंगे, वह भी बिना की वीजा के।  ग्रेनाडा ; ग्रेनाडा की बात करें तो यह दक्षिण पूर्वी कैरेबियन सागर में ग्रेनेडियन्स के दक्षिणी छोर पर स्थित है। यह एक संप्रभु द्वीप देश है, जो ग्रेनाडा द्वीप व छह छोटे द्वीपों से मिलकर बना है। यहां की खूबसूरती काबिल-ए-तारीफ है, जो भारतीय पर्यटकों को बिना वीजा के घूमने की इजाजत देती है।  एल साल्वाडोर ; एल साल्वाडोर मध्य अमेरिका में स्थित सबसे छोटा और सबसे सघन आबादी वाला देश है। ग्वाटेमाला और हॉण्डुरास के बीच इसकी सीमाएं प्रशांत महासागर से मिलती हैं। यह फोंसेका खाड़ी पर स्थित है, जिस तरह निकारागुआ दक्षिण की ओर मिलती है। यहां आप बिना वीजा के प्राकृतिक खूबसूरती का आनंद ले सकते हैं।  नेपाल ; नेपाल, एक दक्षिण एशियाई भूपरिवेष्ठित हिमालयी राष्ट्र है। नेपाल के उत्तर में चीन का स्वायत्तशासी प्रदेश तिब्बत है और दक्षिण, पूर्व व पश्चिम में भारत है। जानना जरूरी होगा कि नेपाल के 81 प्रतिशत नागरिक हिन्दू हैं। यहां भी आप बिना वीजा के घूम सकते हैं।  भूटान ; भूटान का राजतंत्र हिमालय पर बसा दक्षिण एशिया का एक छोटा और महत्वपूर्ण देश है। यह देश चीन और भारत के बीच स्थित है। इस देश का स्थानीय नाम द्रुक यू है।

सोनिया ने दूसरा विकल्प सोचा भी नहीं, सीधे राहुल को कुर्सी थमा दी

अरूण जैन
इसमें अचरज की कोई बात नहीं। यह सभी को मालूम था कि कांग्रेस बुरी तरह नेहरू−गांधी परिवार पर निर्भर है। राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष पद पर पहुंचना उम्मीद के मुताबिक ही था। लेकिन कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने इस घटना को एक अलग आयाम दे दिया है। उन्होंने राहुल गांधी के विरासत संभालने की तुलना मुगल खानदान से की है। उन्होंने कहा कि राजा का बेटा ही राजा बनता था। पार्टी की घोषणा कुछ भी हो, यह खानदान के शो के अलावा कुछ नहीं है। भारत के प्रधानमंत्री जवाहराल नेहरू ने अपनी बेटी को इस पद के लिए तैयार किया था। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष यूएन ढेबर ने इंदिरा गांधी के नाम का प्रस्ताव किया तो गृह मंत्री जीबी पंत ने कहा कि उसे परेशान नहीं करना चिहिए क्योंकि उसका स्वास्थ्य अच्छा नहीं है। नेहरू ने उनकी टिप्पणी पर आपत्ति जताई और कहा कि इंदिरा का स्वास्थ्य उनसे और पंत से बेहतर है। उसके बाद इंदिरा को कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दूसरे विकल्प की चर्चा भी नहीं की। अपने बेटे राहुल गांधी को सीधे कुर्सी पर बिठा दिया। एक अफवाह थी कि वह अपनी बेटी प्रियंका गांधी को मनोनीत करेंगी क्योंकि राहुल गांधी चल नहीं पा रहे हैं। लेकिन भारतीयों की तरह इटली वाले भी बेटी के मुकाबले बेटे को उत्तराधिकार देना पसंद करते हैं। राहुल गांधी की तरक्की को सही बताने के लिए कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि यह एक नए युग की शुरूआत है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि जमीनी कांग्रेस कार्यकर्ता चाहते थे कि यह पदोन्नति हो। आमतौर पर जमीनी कार्यकर्ताओं की यही भावना थी, उन्होंने कहा। लेकिन दिग्विजय सिंह के चेहरे पर मायूसी साफ दिखाई दे रही थी। वास्तव में, अब पार्टी 10 जनपथ से उसी तरह चलाई जाएगी जिस तरह नेहरू और इंदिरा गांधी के समय तीन मूर्ति या सफदरजंग रोड़ से चलाई जाती थी। वैसे भी, जब मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद पर बिठाया  गया तो सोनिया गांधी ही शासन कर रही थीं। संसद के सेंट्रल हाल में हुए उस नाटक का मैं गवाह हूं जिसमें पार्टी सदस्य रोए थे कि सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाना चाहिए। लेकिन वह खामोश रहीं क्योंकि उनके दिमाग में उनका बेटा था। और, वह प्रधानमंत्री बन जातीं तो यह एक पहले से तय नाटक दिखाई देता। मनमोहन सिंह ने भी कई बार कहा कि राहुल गांधी जब भी तैयार हों उनके लिए कुर्सी खाली करना खुशी की बात होगी और, यही कि वह कुर्सी राहुल के लिए तैयार रखे हैं। हालांकि कुछ समय से यह बात आ रही थी, खासकर सोनिया गांधी के स्वास्थ्य ठीक नहीं रहने पर, कि राहुल गांधी का पार्टी-नेतृत्व संभालना तय है। राहुल गांधी ने पहले से ही सेकुलरिज्म का अपना घोषणा−पत्र बना रखा है। भारतीय जनता पार्टी लोगों के सामने भले ही हिंदुत्व को अपना न बताए, लेकिन यह साफ है कि 2019 का चुनाव वह सिर्फ हिंदुत्व के नारे पर लड़ेगी। प्रधानमंत्री इसे नहीं छिपाते कि वह नागपुर के आरएसएस मुख्यालय की यात्रा करते हैं और मोहन भागवत जैसे नेताओं का मार्गदर्शन लेते हैं। सब का साथ, सबका विकास उनका महज एक नारा ही साबित हुआ। यह देखा जा सकता है कि कामकाज की उनकी योजना में मुसलमान की कहीं भी गिनती नहीं है। यह दुख की बात है कि उन लोगों ने खुद ही अपने को पीछे खींच लिया है। उत्तर प्रदेश विधान सभा में भारी जीत इस बात का सबूत है कि भारतीय जनता पार्टी ने किस तरह सत्ता हासिल की है। यह साफ है कि पार्टी चाहती थी कि लोग जानें कि वह किसी भी तरह मुसलिम मतदाताओं पर निर्भर नहीं है। इस महीने चुनाव में जा रहे गुजरात में फिर यही चिन्हित होने वाला है और मोदी यह स्पष्ट कर रहे हैं कि जो गुजरात जीतेगा वह अगले आम चुनाव में भारत जीतेगा। गुजरात का उनका तूफानी चुनाव अभियान यह सवाल उठा रहा है कि मोदी गुजरात विधानसभा चुनावों में ज्यादा ही दांव लगा रहे हैं। शायद यह राज्य में भाजपा के खिलाफ लडऩे के लिए परिवर्तन चाहने वाले युवाओं और पाटीदारों के कांग्रेस के साथ आने के कारण हुआ हो।  अभी का जो रिकार्ड है उसमें किसी भी दृष्टि से राहुल गांधी प्रभावी नहीं रहे हैं। उन्होंने कई चुनाव लड़े जिसमें उत्तर प्रदेश का चुनाव शामिल है, जहां उन्होंने अखिलेश यादव के साथ गठबंधन किया था। लेकिन इससे कोई मदद नहीं मिली। कांग्रेस बुरी तरह हार गई और उसे सिर्फ चौथा स्थान मिला। अभी उन्हें गुजरात चुनावों में अपनी लोकप्रियता साबित करनी है। अगर वह विफल होते हैं तो लोग जान जाएंगे कि वह अपने बूते पर नहीं जीत सकते।  यह अचरज की बात है कि राहुल गांधी परिवारवाद का बचाव कर रहे हैं। पंजाब, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश का उदाहरण देकर वह कह रहे थे कि हर पार्टी इस पर निर्भर है। लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि इन सभी राज्यों में ये पार्टियां वैकल्पिक रूप से सत्ता में आती रही हैं। क्या राहुल या, यूं कहिए, कांग्रेस, केंद्र में सरकार बनाने के लिए बहुमत पा सकती है? उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी अगर वह कांग्रेस को सत्ता में देखना चाहते हैं। लेकिन अभी के समय में वह सत्ता को अपनी ओर खींचने की ताकत रखने वाले दिखाई नहीं पड़ते। लेकिन परिदृश्य बदल सकता है। हमने इंदिरा गांधी जिसे गूंगी गुडिय़ा कहा जाता था, को प्रधानमंत्री बनते और बहुत ही कम समय में पूरे विपक्ष का सामना करते देखा है। यहां तक कि उनका बेटा, जिसे राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने थोप दिया था, को लोगों ने स्वीकार कर लिया। कोई कारण नहीं है कि राहुल गांधी को स्वीकार नहीं किया जाए। लेकिन यह इसी पर निर्भर करेगा कि वह पार्टी को साथ ले चलने और चुनाव जीतने में इसकी मदद करते हैं। अभी के समय में यह कठिन मालूम होता है क्योंकि सेकुलरिज्म अब पीछे चला गया है। पूरे देश में एक नरम हिंदुत्व फैल चुका है। यह अफसोस की बात है कि जिस देश ने विविधता के मुद्दे पर स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई लड़ी, वह आजादी के मूल्यों पर चलने में असमर्थ हो गया।

अपने अफेयर की बात पर सोनाक्षी ने कहा, पता नहीं क्यों हर किसी को मेरी...

अरूण जैन
बंटी सचेदवा के साथ कभी ब्रेकअप तो कभी पैचअप की खबरों से सुर्खियों में रहने वाली सोनाक्षी सिन्हा का कहना है कि न सिर्फ लोगों को, बल्कि उनके दोस्तों को भी उनके अफेयर से जुड़ी जानकारियां जुटाने में मजा आता है। पेश है सोनाक्षी से की गई बातचीत के कुछ अंश। आपकी फिल्म इत्तेफाक रिलीज हो गई है। इसे लेकर आपको कैसी प्रतिक्रिया मिल रही है?इत्तेफाक को सभी अच्छा रिस्पॉन्स दे रहे हैं चाहे फिर वह मेरे फैंस हों या फिर समीक्षक। हर वर्ग के लोगों को हमारी यह फिल्म पसंद आ रही है और सभी मुझे टैग करके फिल्म का रिव्यू दे रहे हैं। सबसे खास बात यह है कि अभी तक किसी ने भी इसके सस्पेंस को खराब नहीं कहा है। एक तरफ आप फिल्म का प्रमोशन कर रही हैं और दूसरी ओर सिंगिंग रियलिटी शो 'ओम शांति ओमÓ की शूटिंग भी कर रही हैं। समय कैसे निकाल रही हैं?दोनों ही चीजें मेरे लिए जरूरी हैं। फिल्म का प्रमोशन करना मेरी जिम्मेदारी है और 'ओम शांति ओमÓ से मैं दिल से जुड़ी हूं। इस शो के सेट पर मुझे एक अजीब सी शांति मिलती है। मुझे खुशी है कि मैं देश के एक अनोखे रियलिटी शो का हिस्सा हूं। इस शो को लोगों काफी पसंद कर रहे हैं और मुझे खुद इस तरह के कार्यक्रम काफी पसंद हैं। यहां पर गाना गाने वाले सिंगर एक अलग ही लेवल पर गाते हैं। मैं आपको बता नहीं सकती कि उन्हें लाइव सुनकर कितना मजा आता है। पिछले काफी दिनों से आपकी निजी जिंदगी के बारे में काफी खबरें चल रही हैं। क्या कभी आपके बारे में पढ़कर आपके दोस्त आपसे पूछते हैं कि क्या वाकई आपका कुछ चल रहा है?हां, न जानें क्यों मेरे अफेयर के बारे में हर किसी को जानना है। मेरे दोस्त मुझसे जुड़ी जब भी कोई गॉसिप पढ़ते हैं तो मुझसे पूछने लगते हैं कि बता न सोना क्या सच में तेरा चक्कर चल रहा है। उन्हें मेरे अलावा दूसरे कलाकारों से जुड़ी खबरें जानने में भी दिलचस्पी रहती है। वे मुझसे पूछते हैं कि उस हीरो या हीरोइन की लाइफ में कौन है। क्या फलानी खबर सच है। जबकि मैं आपको सच कहूं तो मुझे बिल्कुल भी दूसरों के बारे में गॉसिप करने का शौक नहीं है। मेरे दोस्तों को लगता है कि मैं जान-बूझकर उनसे कुछ छिपा रही हूं और बताना नहीं चाहती लेकिन न तो मेरे पास उन्हें अपने बारे में बताने के लिए कुछ होता है और न ही दूसरों के बारे में। आपके बारे में चल रही अफवाहों पर आपके परिवार की क्या प्रतिक्रिया होती है?पहले मेरी फैमिली को फर्क पड़ता था। मेरे बारे में अनाप-शनाप खबरें पढ़कर उन्हें काफी बुरा लगता था। फिर मुझे लगता था कि मैंने भला किसी का क्या बिगाड़ा है, जो सब हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ गए हैं लेकिन समय के साथ अब न तो मेरे परिवारवालों को कोई फर्क पड़ता है और न ही मुझे। अब मैं बस अपने काम पर ध्यान देती हूं और फिलहाल तो मेरा सारा फोकस 'ओम शांति ओमÓ के फिनाले पर है।

गुजरात चुनाव मोदी की नहीं गुजरात के लोगों की परीक्षा है

अरूण जैन
कोई भी व्यक्ति अपने द्वारा किए गए कार्यों से समाज में नायक अवश्य बन सकता है लेकिन वह नेता तभी बनता है जब उसकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को राजनैतिक सौदेबाजी का समर्थन मिलता है। गुजरात जैसे राज्य के विधानसभा चुनाव इस समय देश भर के लिए सबसे चर्चित और हॉट मुद्दा बने हुए हैं। कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि इस बार के गुजरात चुनाव मोदी की अग्नि परीक्षा हैं। लेकिन राहुल गाँधी राज्य में जिस प्रकार, जिग्नेश मेवानी, अल्पेश ठाकुर और हार्दिक पटेल के साथ मिलकर विकास को पागल करार देते हुए जाति आधारित राजनीति करने में लगे हैं उससे  यह कहना गलत नहीं होगा कि असली परीक्षा मोदी की नहीं गुजरात के लोगों की है। आखिर इन जैसे लोगों को नेता कौन बनाता है, राजनैतिक दल या फिर जनता? देश पहले भी ऐसे ही जन आन्दोलनों से लालू और केजरीवाल जैसे नेताओं का निर्माण देख चुका है। इसलिए परीक्षा तो  हर एक गुजराती की है कि वो अपना होने वाला नेता किसे चुनता है विकास के सहारे भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए वोट मांगने वाले को या फिर जाति के आधार पर गुजराती समाज को बाँट कर किसी जिग्नेश, हार्दिक या फिर अल्पेश नाम की बैसाखियों के सहारे वोट मांगने वाले को। परीक्षा गुजरात के उस व्यापारी वर्ग की है कि वो अपना वोट किसे देता है उसे जो पूरे देश में अन्तर्राज्यीय व्यापार और टैक्सेशन की प्रक्रिया को सुगम तथा सरल बनाने की कोशिश और सुधार करते हुए अपने काम के आधार पर वोट मांग रहा है या फिर उसे जिसने अभी तक देश में तो क्या अपने संसदीय क्षेत्र तक में इतने सालों तक कोई काम नहीं किया लेकिन अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी द्वारा किए गए कामों में कमियाँ निकालते हुए समर्थन मांग रहे हैं। परीक्षा तो उस पाटीदार समाज की भी है जिसका एक गौरवशाली अतीत रहा है, जो शुरू से ही मेहनत कश रहा है, जिसने देश को सरदार वल्लभ भाई पटेल, शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति लाने वाले माननीय केशवभाई पटेल, लगातार 31 घंटों तक ड्रम बजाकर विश्व रिकॉर्ड बनाने वाली एक 23 वर्षीय युवती सृष्टि पाटीदार और विश्व के मानचित्र पर देश का नाम ऊँचा करने वाली ऐसी ही अनेक विभूतियाँ देकर देश की प्रगति में अपना योगदान दिया है। लेकिन आज वो किसका साथ चुनते हैं, उसका जो उन्हें स्वावलंबी बनाकर आगे लेकर जाना चाहता है या फिर उसका जो उन्हें पिछड़ी जातियों में शामिल करने और आरक्षण के नाम पर एक हिंसक आन्दोलन का आगाज करते हुए कहता है  यह एक सामाजिक आंदोलन है जिसका राजनीति से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन पहले ही चुनावों में पाटीदार समाज के अपने फॉलोवर्स को वोट बैंक से अधिक कुछ नहीं समझते हुए कांग्रेस से हाथ मिलाकर "अपने राजनैतिक कैरियर की शुरुआत करके अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की कोशिश में लग जाता है। परीक्षा तो गुजरात की जनता की यह भी है कि वह राहुल से इस प्रश्न का जवाब मांगें, कि कांग्रेस के पास ऐसा कौन सा जादुई फार्मूला है जिससे कुछ समय पहले तक अलग अलग विचारधाराओं का नेतृत्व करने वाले हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश तीनों को वो अपने साथ मिलाने की क्षमता रखती है? क्योंकि जहाँ एक तरफ हार्दिक का मुद्दा ओबीसी कोटे में आरक्षण का है वहीं दूसरी तरफ अल्पेश ओबीसी कोटे में किसी दूसरी जाति को आरक्षण देने के खिलाफ हैं। जबकि जिग्नेश दलित उत्पीडऩ रोकने के लिए जिस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं वो उन्हीं जातियों के विरुद्ध है जिनका नेतृत्व हार्दिक और अल्पेश कर रहे हैं। यह तो समय ही बताएगा कि गुजरात का वोटर अपनी इस परीक्षा में कितना विजयी होता है और राजनैतिक स्वार्थों से उपजी इस एकता के पीछे का सच समझ पाता है कि नहीं। क्योंकि आज पूरे देश में जब हर जगह पारदर्शिता का माहौल बन रहा है तो देश को राजनीति में पारदर्शिता का आज भी इंतजार है। आखिर राहुल गांधी और हार्दिक पटेल की बैठकों में इतनी गोपनीयता क्यों बरती गई कि सीसीटीवी फुटेज सामने आने के बावजूद हार्दिक इन मुलाकातों से इनकार करते रहे? जिस गठबन्धन के आधार पर राहुल गुजरात की जनता से वोट मांगने निकले हैं, उस गुजरात की परीक्षा है कि वोट देने से पहले हर गुजराती इस गठबंधन का आधार क्या है इस प्रश्न का उत्तर राहुल से जरूर पूछे।  कांग्रेस के लिए यह बेहतर होता कि जिस प्रकार मोदी गुजरात के लोगों से बुलेट ट्रेन, सरदार सरोवर डैम, आईआईटी के नए कैम्पस, रो रो फेरी सर्विस जैसे कामों के आधार पर वोट मांग रहे हैं वह भी अपने द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर वोट माँगती लेकिन उसके पास तो जीएसटी और नोटबंदी की कमियों को गिनाने के अलावा कोई भी न तो मुद्दा है और न ही कोई भविष्य की योजना। अपनी इस कमी को जातियों और आरक्षण के पीछे छिपाने की रणनीति अपना कर राहुल और कांग्रेस दोनों ही गुजरात को कहीं बिहार समझने की भूल तो नहीं कर रहे? जहाँ बिहार को नेताओं के स्वार्थ ने जातिगत राजनीति से कभी भी उठने नहीं दिया, वहाँ गुजरात के लोगों को मोदी ने 2001 से लगातार जातियों को परे कर विकास के मुद्दे पर एक रखा। रही बात एंटी इन्कमबेन्सी फैक्टर की, तो यह फैक्टर वहीं काम करता है जहाँ लोगों के पास विकल्प उपलब्ध हो लेकिन आज गुजरात तो क्या पूरे देश में मोदी का कोई विकल्प नहीं है क्योंकि किसी समय देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी रही कांग्रेस के राहुल गांधी तो 'अपने जवाबों के सवालÓ में ही उलझे हैं। और शायद गुजरात की जनता भी इस बात को जानती है कि असली परीक्षा उनकी ही है क्योंकि आने वाले समय में उनके द्वारा दिया गया जवाब केवल गुजरात ही नहीं बल्कि 2019 में देश का भविष्य तय करने में भी निर्णायक सिद्ध होंगे।

काम तो बहुत किया पर इस बार आसान नहीं शिवराज की राह

अरूण जैन
2018 में मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों का समय जैसे जैसे नजदीक आता जा रहा है वैसे वैसे प्रदेश में राजनैतिक हलचल भी तेज होती जा रही है। वैसे तो प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी बीते 14 सालों से सत्ता में है लेकिन शिवराज शासन की अगर बात की जाए तो विगत 12 वर्षों से प्रदेश की बागडोर उनके हाथों में है। इन बारह सालों में शिवराज सिंह सरकार के नाम कई उपलब्धियाँ रहीं तो कुछ दाग भी उसके दामन पर लगे। अगर उपलब्धियों की बात की जाए तो उनकी सबसे बड़ी सफलता मप्र के माथे से बीमारू राज्य का तमगा हटाना रहा। बिजली उत्पादन के क्षेत्र में आज मप्र सरप्लस स्टेट में शामिल है, यहाँ 15500 मेगावाट बिजली की उपलब्धता है जबकि मांग सामान्यत: 6000 मेगावाट और रबी सीजन में अधिकतम 10000 मेगावाट रहती है। अटल ज्योति योजना के अन्तर्गत 24 घंटे बिजली देना एक महत्वपूर्ण कदम रहा। हालांकि बिजली आपूर्ति के इन्फ्रास्टकचर का विकास हुआ है लेकिन देश के बाकी राज्यों के मुकाबले यह सबसे अधिक बिजली टैरिफ वाले राज्यों में शामिल है।  पर्यटन क्षेत्र 'हिन्दुस्तान का दिल देखोÓ  सड़कों की अगर बात की जाए तो गाँवों तक पहुँच आसान हो गई है।  पर्यटन के क्षेत्र में 'हिन्दुस्तान का दिल देखोÓ ऐड कैम्पेन से मप्र ने देश में उत्कृष्ट स्थान हासिल किया, इसके लिए 2008 में यूएस द्वारा मप्र को पर्यटन के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ राज्य घोषित किया गया और वर्ष 2015 में छह राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते।  कृषि क्षेत्र लगातार चार बार कृषि कर्मण अवार्ड जीतने वाला देश का पहला राज्य बना, 108 एम्बुलेंस, जननी योजना, लाडली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना, शिवराज सरकार की वो उपलब्धियाँ हैं जिन पर बेशक सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है।  निवेश क्षेत्र यह सत्य है कि विभिन्न क्षेत्रों में आशातीत निवेश नहीं हुआ है लेकिन यह भी नहीं है कि निवेश हुआ ही नहीं है। निवेश क्षेत्र– आईटी, औटॉमोबाईल, रक्षा, इनर्जी, फार्मास्यूटिकल, टैक्सटाईल, पर्यटन में सिंगल विंडो के माध्यम से तीव्रगति से एक महीने के अंदर सरकारी प्रक्रिया पूरी की जा रही है। औद्योगिक लैंड बैंक की व्यवस्था भी सिर्फ मध्य प्रदेश में ही है।  मोर्चों पर चूक कई मोर्चों पर मुख्यमंत्री से चूक भी हुई वरना 2015 में भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले रतलाम और झाबुआ लोकसभा सीट उप चुनाव के लिए बतौर सीएम रहते हुए दर्जन भर सभाएँ, 15 मंत्रियों, 16 सांसदों, 60 विधायकों के साथ चुनाव प्रचार एवं 1500 करोड़ की घोषणाओं के बावजूद शिवराज की झोली में हार क्यों आई? देवास में जीत का अन्तर भी चेहरे पर खुशी लाने वाला नहीं माथे पर बल लाने वाला रहा। हालात की अगर समीक्षा की जाए तो भले ही सरकार अपनी उपलब्धियों को आज अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापनों से राज्य में तरक्की का श्रेय ले रही हो लेकिन धरातल पर शिवराज सरकार की लोकप्रियता में निश्चित ही कमी आई है। आत्मघाती मुद्दे- व्यापमं, किसान आंदोलन और ह्त्यायें व्यापमं घोटाला भ्रष्टाचार की सारे हदें पार कर गया क्योंकि सैंकड़ों छात्रों और गवाहों की मौत का कलंक दामन से मिट नहीं सकता है, इतना ही नहीं किसान आंदोलन में किसानों पर गोली चलाना एक बहुत ही गलत कदम रहा। दरअसल यह सरकार के अति-आत्मविश्वास एवं प्रशासन तंत्र द्वारा गलत फीडबैक का नतीजा रहा। स्वयं को किसान का बेटा कहने वाले शिवराज के 13 वर्षों के शासन में, खुद मध्य प्रदेश सरकार द्वारा विधानसभा में जारी आंकड़ों के अनुसार 15129 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। एक तरफ सरकार दावा कर रही है कि राज्य में चार सालों में कृषि विकास दर 20त्न बढ़ी है तो दूसरी तरफ उसके पास इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं है कि प्रदेश का किसान असंतुष्ट क्यों है ? कभी प्याज तो कभी टमाटर सड़क पर फेंकने के लिए मजबूर क्यों है किसान ? कैग की एक रिपोर्ट के अनुसार कृषि की खेती के सामान खरीदी में प्रदेश में 261 करोड़ रुपए की धांधली हुई है। स्वास्थ्य सेवाओं की बात की जाए तो उनमें भी गिरावट आई है। शिशु-मृत्यु दर और कुपोषण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में ढेर सारे इंजीनियरिंग कॉलेज खोले जाने के बावजूद उनमें से न तो अच्छे इंजीनियर निकल रहे हैं न ही इन कालेजों से निकलने वाले युवाओं को नौकरी मिल पा रही है जिसके कारण बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है। प्रदेश में अवैध खनन ने भी सरकार की साख ही नहीं राज्य के राजस्व पर भी गहरा वार किया है। अगर सरकार की नाकामयाबियों के कारणों को टटोला जाए तो बात प्रदेश की नौकरशाही पर आकर रुक जाती है। आरएसएस की बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय तक ने नौकरशाही के हावी होने का मुद्दा उठाया था। प्रदेश की बेलगाम और भ्रष्टाचार में डूबी ब्यूरोक्रेसी के कारण प्रदेश में न तो गुड गवर्नेंस हो पा रही है न ही सरकार द्वारा घोषित योजनाओं का क्रियान्वयन हो पा रहा है। आंतरिक कलह से भी चौहान के रास्ते में कांटे तो देखना दिलचस्प होगा कि जिस भाजपा सरकार को प्रदेश की जनता ने लगातार तीन बार सिर आँखों पर बैठाया वो शिवराज के प्रशासन और नौकरशाहों पर उनकी ढीली होती पकड़ के कारण विपक्ष में बैठने का आदेश सुनाएगी या फिर काँग्रेस की आपसी फूट एवं किसी और बेहतर विकल्प के अभाव में भाजपा को एक मौका और देगी।

बिना मेकअप के नजर आईं करीना कपूर

अरूण जैन
बॉलीवुड की हॉट मॉम करीना कपूर बहुत जल्द फिल्मों में कमबैक करने जा रही हैं। फिल्म वीरे दी वेडिंग से करीना फिर से पर्दे पर लोगों को एंटरटेन करती नजर आएंगी। पिछले कई महीनों से फिल्म की शूटिंग रूकी हुई थी, लेकिन अब करीना फॉर्म में आ गई हैं और फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में दिल्ली में हैं। करीना फिल्म को लेकर काफी एक्साइटेड हैं, जो कि आप वायरल हो रही इस वीडियो को देखकर खुद ही समझ जाएंगे। इस वीडियो में करीना बिना मेकअप के दिख रही हैं। फिल्म वीरे दी वेडिंग की प्रोड्यूसर रिया कपूर भी इस वीडियो में नजर आ रही हैं। रिया कपूर ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर यह वीडियो अपलोड किया है, जिसमें वह मेकअप रूम में हैं और साथ ही मेकअप आर्टिस्ट उनका मेकअप कर रहे हैं। वीडियो में करीना खुद बोल रही हैं कि वह फिल्म को लेकर काफी एक्साइटिड हैं। करीना जितनी खूबसूरत स्क्रीन पर दिखती हैं उससे कहीं ज्यादा वह इस वीडियो में लग रही हैं। बता दें फिल्म की ज्यादातर शूटिंग दिल्ली में ही हो रही है। इसके बाद की शूटिंग के लिए टीम बैंकाक जाएगी। कुछ दिनों पहले खबरें आ रही थी कि फिल्म में छोटे नवाब तैमूर अली खान का भी छोटा-सा रोल है, लेकिन अब इन खबरों को गलत बताया जा रहा है। बता दें कि फिल्म की शूटिंग के लिए करीना अकेली दिल्ली नहीं आई थी, बल्कि उनके साथ छोटे नवाब तैमूर भी थे। 

डोकलाम विवाद के कूटनीतिक हल से मोदी का वैश्विक कद बढ़ा

अरूण जैन

भूटान के दावे वाले डोकलाम में भारत और चीन की सेनाओं के बीच जारी तनातनी जिस तरह खत्म हुई वह भारतीय कूटनीति की एक बड़ी कामयाबी है। इससे न केवल भारत का अंतरराष्ट्रीय कद बढ़ेगा, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि एक साहसी लेकिन अहिंसक नेता के रूप में सामने आयेगी। उन्होंने अपने निर्णयों से यह सिद्ध किया है कि वे भारतीय हितों की रक्षा के लिए किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम हैं। वे दोस्ती, विश्व शांति एवं सह-अस्तित्व भावना को लेकर ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने चीन जा रहे हैं, निश्चित ही व्यापारिक हितों के साथ-साथ राजनैतिक संबंधों में प्रगाढ़ता आयेगी। डोकलाम में भारत व चीन की सेनाओं के बीच बढ़ते तनाव को शांत करने में सफलता मिलने का अर्थ है कि युद्ध की आशंकाओं पर विराम लगना। इस स्थिति का बनना दोनों ही राष्ट्रों के लिये शुभ एवं श्रेयस्कर है। डोकलाम विवाद की छाया जहां चीन के लिए हर लिहाज से नुकसानदेह थी, वहीं भारत भी बिना वजह युद्ध नहीं चाहता। जो भी हो, इस फैसले से दोनों मुल्कों की जनता को राहत मिली है। दो परमाणु शक्ति संपन्न ताकतवर पड़ोसियों के बीच इस तरह तनाव बने रहना खुद में एक असाधारण और अति-संवेदनशील मामला था। यह दुनिया की एक बड़ी आबादी को हर समय विनाश की संभावनाओं पर कायम रखने जैसा था। ऐसे युद्ध का होना विजेता एवं विजित दोनों ही राष्ट्रों को सदियों तक पीछे धकेल देता, इससे भौतिक हानि के अतिरिक्त मानवता के अपाहिज और विकलांग होने का भी बड़ा कारण बनता।  डोकलाम में शांति का उजाला हुआ है, अभय का वातावरण, शुभ की कामना और मंगल का फैलाव कर दोनों ही देशों को विकास के समुचित अवसर और साधन की संभावना दी है। मनुष्य के भयभीत मन को युद्ध की विभीषिका से मुक्ति दी है। स्वयं अभय बनकर विश्व को निर्भय बनाया है। निश्चय ही यह किसी एक देश या दूसरे देश की जीत नहीं बल्कि समूची मानव-जाति की जीत हुई है। लगभग तीन महीने से चला आ रहा गतिरोध समाप्त हो गया है। इस अवधि में चीन ने न केवल भारत बल्कि विश्व को तनाव और त्रास का वातावरण दिया, अनिश्चय और असमंजस की विकट स्थिति दी। यह समय की नजाकत को देखते हुए जरूरी था और इस जरूरत को महसूस करते हुए दोनों देश डोकलाम से अपनी-अपनी सेनाएं हटाने के लिए तैयार हो गए हैं।  अब तक चीन कह रहा था कि भारत डोकलाम से पहले अपनी सेना हटा ले, उसके बाद ही कोई बातचीत होगी। भारत का कहना था कि दोनों देश एक साथ अपनी सेना वापस बुलाएं, उसके बाद वार्ता संभव है। चीन ने आखिरकार भारत की यह बात मान ली है। मामला तब शुरू हुआ जब भारत ने डोकलाम में चीन की सड़क बनाने की कोशिश का विरोध किया। जबकि चीन सड़क बनाने की जिद पर अड़ा हुआ था और कह रहा था कि उसे अपनी सीमा में निर्माण कार्य करने से कोई नहीं रोक सकता, जबकि भूटान का कहना था कि डोकलाम पठार उसके नियंत्रण में है और कानूनी तौर पर उसी का कब्जा है, जबकि चीन दावा कर रहा था कि यह उस चुम्बी घाटी का हिस्सा है जो उसके कब्जे में है। इसके साथ ही चीन यह भी स्वीकार कर रहा था कि डोकलाम विवाद को सुलझाने के लिए उसके और भूटान के बीच वार्ता तंत्र स्थापित है इसके बावजूद उसने अपनी सेना को बुलडोजरों के साथ डोकलाम पठार पर निर्माण कार्य करने के आदेश दे दिये थे।  भारत और भूटान के बीच 1949 से चली आ रही विशेष संधि के तहत उसकी राष्ट्रीय सीमाओं की रक्षा की जिम्मेदारी भारतीय सेनाओं की ही बनती है जिसको लेकर भूटान ने भारत से गुहार लगाई और भारत ने अपने दायित्व का निर्वाह करते हुए अपनी सेनाओं को इलाके की निगरानी में लगा दिया। इसके साथ ही भारत ने चीन को चेताया कि डोकलाम में सड़क बनाने से उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा को भी भारी खतरा पैदा हो सकता है, क्योंकि प. बंगाल के दार्जिलिंग से उत्तर-पूर्वी राज्यों को जोडऩे वाली संकरी सड़क चीन द्वारा बनाई जा रही सड़क से कुछ ही किमी दूरी पर रह जाएगी। इस आपत्ति पर चीन भड़क गया, उसने चीनी मीडिया के माध्यम से भारत को युद्ध की धमकी तक दी। लेकिन भारत ने अपना धैर्य नहीं खोया, संयम रखा और इस समस्या का कूटनीतिक हल तलाशना जारी रखा। सच यही है कि भारत जो चाहता था उसे मानने के लिए चीन राजी होना पड़ा। यह चीन का अहंकार एवं अंधापन ही है कि वह पहले दिन से ही ऐसे व्यवहार कर रहा था जैसे भारत उसके समक्ष कुछ भी नहीं। यथार्थ यह है कि अंधकार प्रकाश की ओर चलता है, पर अंधापन मृत्यु-विनाश की ओर। लेकिन भारत ने अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य का अहसास करा दिया।  वैसे भी अगले महीने चीन में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ब्रिक्स देश जिनमें भारत, रूस, ब्राजील, चीन, दक्षिण अफ्रीका संगठन की शीर्ष बैठक में हिस्सा लेने चीन जा रहे हैं। इस संगठन में ये केवल पांच देश ही हैं और इनके आपसी सहयोग से दुनिया में समानान्तर शक्तिशाली ध्रुव तैयार हो सकता है। ये पांचों ही देश विश्व की तेजी से विकास करती अर्थव्यवस्था वाले देश हैं। इन पांचों में से दो देशों की बीच यदि विवादों का स्तर सैनिक समाधान की हद तक पहुंचता है तो इस संगठन की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा किया जा सकता है। इस दृष्टि से भी चीन का डोकलाम से सेना हटाने या उसकी तैनाती में संशोधन का  स्वीकार करने को बाध्य होना पड़ा। कूटनीतिक रूप से कमजोर पाले में होने की वजह से भी उसे इस तरह समझौते के लिये विवश होना पड़ा। चीन पर भारत के साथ शान्तिपूर्ण संबंध बनाये रखने की ऐतिहासिक जिम्मेदारी भी है, क्योंकि 1962 में जब उसने अपनी सेनाएं हमारे असम के तेजपुर तक में भेज दी थीं तब भी अंतर्राष्ट्रीय दबाव में पीछे हटना पड़ा था। कूटनीतिक मोर्चे पर यह कोई छोटी घटना नहीं थी बावजूद इसके कि भारत युद्ध में बुरी तरह हार गया था।  चीन का यह अहंकार ही है कि वह भारत को बार-बार कमजोर समझने की भूल करता है। बुरा आदमी और बुरा हो जाता है जब वह साधु बनने का स्वांग रचता है। चीन ऐसा ही महसूस कराता रहा है। यह उसका अहंकार ही है कि शांति की बात करते हुए अशांति की दिशा में बढ़ता है। चीन को मजबूरन यह फैसला लेना पड़ा क्योंकि मौजूदा हालात उसके पक्ष में नहीं हैं। वह एक साथ कई मोर्चों पर उलझा हुआ है। दक्षिणी चीन सागर को लेकर अमेरिका से उसका तनाव बहुत बढ़ गया है। ऐसे में भारत से तनाव जारी रखना उसके लिए घाटे का सौदा हो सकता था। उसके व्यापारिक और निवेश हित भारत के साथ काफी गहरे हो चुके हैं। इस मोर्चे पर होने वाला कोई भी नुकसान चीनी अर्थव्यवस्था के लिए समस्या पैदा कर सकता था। सबसे बुनियादी वजह यह है कि एक से एक विनाशकारी हथियारों की मौजूदगी के कारण युद्ध अव्यावहारिक हो गए हैं, भले सामरिक रणनीति का खेल चलता रहता हो। दूसरे, चीन को धीरे-धीरे लगने लगा था कि दबाव बनाने की रणनीति और डराने-धमकाने की भाषा नहीं चलेगी। अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसके खिलाफ है और अमेरिका समेत तमाम देश डोकलाम गतिरोध दूर होने का इंतजार कर रहे हैं। भारत और चीन आज हजारों मजबूत धागों से एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। दोनों के बीच का सीमा विवाद भी ऐसा नहीं है कि रोजमर्रा का जीवन उससे प्रभावित होता हो या उस पर दोनों देशों का बहुत कुछ दांव पर लगा हो। यह ऐसा मसला है जिस पर शांति और सौहार्द के माहौल में बात होती रह सकती है। सामरिक दृष्टि से चाक-चौबंद रहने का हक भारत और चीन दोनों को है, लेकिन जिम्मेदार राष्ट्र होने के नाते दोनों के ऊपर क्षेत्र में अमन-चैन बनाए रखने की जवाबदेही भी है। भारत ने चीन पर जो कूटनीतिक जीत हासिल की उसका संदेश उसकी चौधराहट से परेशान उसके पड़ोसी देशों के साथ-साथ समूची विश्व बिरादरी को भी जाएगा। चीन ने जिस तरह अपना चेहरा बचाते हुए अपने कदम पीछे खींचे उसका एक मनोवैज्ञानिक लाभ यह भी होगा कि भारत की आम जनता युद्ध की कड़वी यादों को भूल कर आत्मविश्वास से लैस होगी। इस सबके बावजूद चीन से सतर्क रहने में ही समझदारी है। क्योंकि जब तक चीन के अहंकार का विसर्जन नहीं होता तब तक युद्ध की संभावनाएं मैदानों में, समुद्रों में, आकाश में भले ही बन्द हो जायें, दिमागों में बन्द नहीं होती। इसलिये आवश्यकता इस बात की भी है कि कि जंग अब विश्व में नहीं, हथियारों में लगे। मंगल कामना है कि अब मनुष्य यंत्र के बल पर नहीं, भावना, विकास और प्रेम के बल पर जीए और जीते।

जॉइन्ट फैमिली क्या होती है, हमारे साथ रहकर देखें ; संजय कपूर

अरूण जैन
एक ओर जहां सभी छोटे परिवार खुशहाल परिवार की बात करते हैं। वहीं, संजय कपूर कहते हैं कि उनका पूरा कपूर परिवार आज भी जॉइन्ट फैमिली में रहता है और उससे अच्छा कुछ नहीं होता। पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ खास अंश। इस फेस्टिव सीजन में आप अपने शो इश्क गुनाह का प्रमोशन कर रहे हैं। ऐसे में दिवाली की तैयारी कैसे हो रही है?हां, इस दिवाली मैं और मेरी पूरी टीम इश्क गुनाह का प्रमोशन कर रहे हैं लेकिन आपको इस बार भी हमारे घर की दिवाली वैसे ही दिखेगी जैसे कि हमेशा होती है। जॉइन्ट परिवार के साथ यही तो मजा है कि अगर आप व्यस्त भी हों तो बाकी घर के लोग आपके हिस्से का काम कर लेते हैं। हमारे घर का उसूल है कि हम हमेशा दिवाली अपनी मां के घर पर मनाते हैं और इस बार भी वहीं करेंगे। हम सभी भाई और बच्चे वहां पर मिलते हैं और खुलकर एंजॉय करते हैं। अगर आपको जॉइन्ट फैमिली देखनी है, कैसी होती है तो एक बार हमारे घर में आकर देखें। सभी के साथ लगता है कि ये पल कभी खत्म ही न हों। आप सालों बाद इश्क गुनाह से फिर टीवी पर वापसी कर रहे हैं। क्या इस शो को करने की कोई खास वजह है? जब मेरे पास शो का ऑफर आया तो मुझे यह काफी दिलचस्प लगा। एक कलाकार के तौर पर भले ही टीवी हो या फिर कोई फिल्म आपको बस कहानी और आपका किरदार पसंद आना चाहिए। मुझे भी कहानी और अपने कैरेक्टर से प्यार हो गया। इस शो में मेरे अलावा कई जाने-माने कलाकार काम कर रहे हैं, जिनमें निकी वालिया और स्मृति हैं। यह टीवी के बाकी धारावाहिकों से अलग है और दर्शकों को भी इस शो में हमारा काम पसंद आएगा। हमारे इस शो को फिल्ममेकर विक्रम भट्ट प्रोड्यूस कर रहे हैं। कपूर परिवार में हमेशा लोग एक-दूसरे के काम को सपोर्ट करते हैं तो आपके शो को लेकर परिवार में क्या प्रतिक्रिया है? अभी तक तो सभी ने अच्छी प्रतिक्रिया दी है। हर कोई मेरे किरदार को लेकर काफी उत्साहित है। हम सभी अपना काम करते हैं, फिर चाहे वह अनिल हो या फिर कोई भी। हम एक-दूसरे की पूरी मदद करते हैं और दुआ करते हैं कि हमारा हर काम सफल हो। मेरे लिए भी सभी की यही मनोकामना है। इन दिनों शाहरुख से लेकर सलमान और अक्षय भी टीवी पर काम कर रहे हैं। क्या आपको लगता है कि अब ट्रेंड बदल रहा है? मुझे ऐसा लगता है कि मीडिया को अब दिखने लगा है कि बड़े स्टार भी टीवी पर काम कर रहे है, जबकि बॉलीवुड के महानायक अमिताभ तो कई सालों से टीवी शो होस्ट कर रहे हैं। सलमान भी कई सालों से शो कर रहे हैं। वैसे भी एक कलाकार को प्लेटफॉर्म से कहीं ज्यादा इस बात की चिंता होती है कि वह क्या काम कर रहा है।

तीन बड़े अखबार लाखों-करोड़ों की स्कीम चलाकर पेपर बेचने की होड़ में जुटे

अरूण जैन
अखबारों की गिरती साख ने अखबारों तथा पत्रकारों को किस हद तक पहुंचा दिया है इसकी बानगी है अखबारों में पाठकों के लिए चलाई जा रही लाखों की स्कीम। खुद के नंबर वन होने का दावा करने वाले तीन प्रमुख अखबारों से जनहित के मुद्दे नदारद हैं। इससे प्रमुख बड़े अखबार लगातार जनता का विश्वास खोते जा रहे हैं। लोगों की दिलचस्पी बनाए रखने के लिए तीनों ही अखबारों में लाखों-करोड़ों की योजनाएं चलाकर अखबार बेचने की होड़ मची हुई है। सबसे पहले दैनिक जागरण ने स्कीम लांच की तथा पाठकों को कूपन चिपकाकर लकी ड्रा में षामिल होने का निमंत्रण दिया। दैनिक जागरण ने अपनी स्कीम लांच करने में षहरों में ढोल नगाड़ों के साथ रैली तक निकाली। इस कार्य में जागरण के प्रसार सहित संपादकीय व विज्ञापन के प्रतिनिधियों को बाजार में झोंका गया। अमर उजाला तथा हिंदुस्तान अखबार ने भी पाठकों के लिए स्कीम चलाकर अखबार बेचने का नायाब तरीका खोजा है। दरअसल यह मीडिया तथा अखबारों के गिरावट का दौर है। कारपोरेट का दबाव अखबारों तथा इलेंक्ट्रानिक मीडिया पर साफ दिख रहा है। जनहित के मुद्दे जब मीडिया से गायब होंगे तो लोगों की दिलचस्पी बढ़ाने के लिए इसी तरह की योजनाओं को बाजार में झोंकना पड़ेगा। दरअसल अखबार एक प्रोडक्ट हो गया है तथा पाठक महज एक ग्राहक बनकर रह गया है। जिसे अखबार के मालिकान अपना प्रोडक्ट बेच रहे हैं। इस बेरहम बाजार में पाठक को कंटेंट से आकर्शित करने अथवा जोड़े रखने की बजाय लाखों करोड़ों की योजनाओं से लुभाया जा रहा है। इन आकर्षक योजनाओं के बीच पाठक की हालत यह है कि वह कंटेंट की तुलना करने की बजाय तीनों अखबारों की योजनाओं की आपस में तुलना करते हुए बड़े ईनाम का इंतजार कर रहा है।

अच्छा तो इसलिए वत्सल सेठ को छोड़कर भाग जाती हैं लड़कियां

अरूण जैन
फिल्मों और टीवी में काम कर चुके वत्सल सेठ भले ही पर्दे पर दिलफेंक किरदार निभाते हों लेकिन असल जिंदगी में लड़कियों के सामने उनकी जुबान तक नहीं खुलती और इसी वजह से लड़कियां उन्हें छोड़कर भाग जाती हैं। पेश है वत्सल से की गई बातचीत के कुछ अंश। अब आप 'हासिलÓ में लीड भूमिका निभाने वाले हैं। शो के प्रोमो को देख लग रहा है कि इसमें भी आप पिछले शो की तरह विरोधी की भूमिका में हैं?नही, हासिल में ऐसा कुछ भी नहीं है। इसमें मैं एक ऐसे लड़के का किरदार निभा रहा हूं, जो बिना सोचे-समझे कुछ भी कर देता है। भले ही उससे किसी को कुछ भी नुकसान क्यों न हो। अममून लोग कोई काम करने से पहले सोचते हैं लेकिन वह करने के बाद सोचता है और फिर उसके बाद उसके पास पछताने के अलावा और कुछ नहीं बचता। पिछले दिनों आपके और इशिता के अफेयर के बारे में सुनने को मिल रहा था। इसमें कितनी सच्चाई है ?इसमें कुछ भी सच्चाई नहीं है। वह मेरे शो में मेरी को-स्टार थीं और अपनी को-स्टार के साथ बातचीत करने में मुझे नहीं लगता कि कोई बुराई है।जहां तक अफेयर की बात है तो सभी जानते हैं कि पर्दे पर मैं जितना दिलफेंक हूं लेकिन रियल लाइफ में उतना ही बोरिंग हूं। कोई भी लड़की एक या दो दिन से ज्यादा मेरे साथ टिकती ही नहीं है क्योंकि मैं लवर की तरह उससे बात नहीं कर सकता। रियल लाइफ में लड़कियों के सामने मैं कुछ बोल ही नहीं पाता हूं। यहां तक कि जब कोई लड़की मुझे अच्छी भी लगती है तो भी मैं उसे कभी बोल नहीं पाता और यदि किसी तरह बोल भी लिया तो अगले एक हफ्ते में वह मुझे छोड़कर भाग जाती है। इन दिनों टीवी पर बिग बॉस छाया हुआ है और सलमान खान आपके काफी करीबी भी हैं। क्या कभी सलमान ने आपको बिग बॉस में जाने की सलाह दी है?हां, वैसे मुझे बोलना तो नहीं चाहिए लेकिन कई बार सलमान भाई ने मुझे बिग बॉस में जाने के लिए कहा है लेकिन जैसा कि मैंने आपको बताया कि मैं बहुत ही बोरिंग इंसान हूं। फिर वहां पर जाकर मैं क्या करूंगा। वहां से भी लोग मुझे एक हफ्ते या दो हफ्ते में बाहर कर देंगे। ऐसे जाने का कोई मतलब नहीं है। मुझे लगता है कि मैं बिग बॉस जैसे शो के लिए नहीं बना हूं क्योंकि मैं रियल लाइफ और रील लाइफ दोनों में बहुत ही अलग हूं। मैं चाहकर भी दूसरों के जैसा नहीं बन सकता। 'हासिलÓ में आपके साथ जायेद खान भी हैं। उनके साथ आपका कैसा तालमेल है?जायेद का इस शो में होना हमारे लिए काफी फायदे की बात है क्योंकि उनके फैंस उन्हें काफी पसंद करते हैं। हम दोनों सेट पर खूब बात करते थे और आउटडोर शूट होने के कारण हम दोनों को एक-दूसरे को जानने का और भी वक्त मिल गया। जायेद एक अच्छे इंसान हैं और उतने ही अच्छे कलाकार भी हैं।    

सरकार की जवाबदेही जनता के प्रति है लोकसेवकों के प्रति नहीं

अरूण जैन
वैसे तो भारत एक लोकतांत्रिक देश है। अगर परिभाषा की बात की जाए तो यहाँ जनता के द्वारा जनता के लिए और जनता का ही शासन है लेकिन राजस्थान सरकार के एक ताजा अध्यादेश ने लोकतंत्र की इस परिभाषा की धज्जियां उड़ाने की एक असफल कोशिश की। हालांकी जिस प्रकार विधानसभा में बहुमत होने के बावजूद वसुन्धरा सरकार इस अध्यादेश को कानून बनाने में कामयाब नहीं हो सकी, दर्शाता है कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें वाकई में बहुत गहरी हैं जो कि एक शुभ संकेत है। लोकतंत्र की इस जीत के लिए न सिर्फ विपक्ष की भूमिका प्रशंसनीय है जिसने सदन में अपेक्षा के अनुरूप काम किया बल्कि हर वो शख्स हर वो संस्था भी बधाई की पात्र है जिसने इसके विरोध में आवाज उठाई और लोकतंत्र के जागरूक प्रहरी का काम किया। राजस्थान सरकार के इस अध्यादेश के द्वारा यह सुनिश्चित किया गया था कि बिना सरकार की अनुमति के किसी भी लोकसेवक के विरुद्ध मुकदमा दायर नहीं किया जा सकेगा साथ ही मीडिया में भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करने वाले सरकारी कर्मचारियों के नामों का खुलासा करना भी एक दण्डनीय अपराध माना जाएगा। जहाँ अब तक गजेटेड अफसर को ही लोक सेवक माना गया था अब सरकार की ओर से लोक सेवा के दायरे में पंच सरपंच से लेकर विधायक तक को शामिल कर लिया गया है।  इस तरह के आदेश से जहाँ एक तरफ सरकार की ओर से लोक सेवकों (चाहे वो ईमानदार हों या भ्रष्ट) को अभयदान देकर उनके मनोबल को ऊँचा करने का प्रयास किया गया वहीं दूसरी तरफ देश के आम आदमी के मूलभूत अधिकारों और प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का भी प्रयत्न किया गया। भाजपा की सरकार द्वारा इस प्रकार के फैसले ने न सिर्फ विपक्ष को एक ठोस मुद्दा उपलब्ध करा दिया है बल्कि देश की जनता के सामने भी वो स्वयं ही कठघड़े में खड़ी हो गई है। आखिर लोकतंत्र में लोकहित को ताक पर रखकर लोकसेवकों के हितों की रक्षा करने वाले ऐसे कानून का क्या औचित्य है। इस तुगलगी फरमान के बाद राहुल गाँधी ने ट्वीट किया कि हम 2017 में जी रहे हैं 1817 में नहीं। आखिर एक आदमी जब सरकारी दफ्तरों और पुलिस थानों से परेशान हो जाता है तो उसे न्यायालय से ही इंसाफ की एकमात्र आस रहती है लेकिन इस तरह के तानाशाही कानून से तो उसकी यह उम्मीद भी धूमिल हो जाती। इससे भी अधिक खेदजनक विषय यह रहा कि जिस पार्टी की एक राज्य सरकार ने इस प्रकार के अध्यादेश को लागू करने की कोशिश की उस पार्टी की केन्द्रीय सरकार द्वारा इस प्रकार के विधेयक का विरोध करने के बजाय उसका बचाव किया गया। केंद्र सरकार की ओर से केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और उनके राज्य मंत्री पीपी चौधरी का कहना था कि इस विधेयक का उद्देश्य ईमानदार अधिकारियों का बचाव, नीतिगत निष्क्रियता से बचना और दुर्भावनापूर्ण शिकायतों पर रोक लगाना है। इन शिकायतों की वजह से अधिकारी कर्तव्यों के निर्वहन में परेशानी महसूस कर रहे थे। राजस्थान सरकार द्वारा एक अध्ययन की ओर से बताया गया कि लोकसेवकों के विरुद्ध दायर मामलों में से 73त्न से अधिक झूठे प्रकरणों के होते हैं।  जब देश के प्रधानमंत्री अपने हर भाषण में भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेन्स की बात करते हों, प्रेस की आजादी के सम्मान की बातें करते हों, देश में पारदर्शिता के पक्षधर हों, जवाबदेही के हिमायती हों, और अपनी सरकार को आम आदमी की सरकार कहते हों, तो उन्हीं की सरकार द्वारा ऐसे बेतुके अध्यादेश का समर्थन करना देश के जहन में अपने आप में काफी सवाल खड़े करता है। सत्ता तो शुरू से ही ताकतवर के हाथों का खिलौना रही है शायद इसीलिए आम आदमी को कभी भी सत्ता से नहीं बल्कि न्यायपालिका से न्याय की आस अवश्य रही है। लेकिन जब न्यायपालिका के ही हाथ बाँध दिए जाएं तो?अगर सरकार की नीयत साफ है और वो ईमानदार अफसरों को बचाना चाहती है तो क्यों नहीं वो ऐसा कानून लाती कि सरकार का कोई भी सेवक अगर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता है तो उसके खिलाफ बिना डरे शिकायत करें त्वरित कार्यवाही होगी क्योंकि सरकार देश के नागरिकों के प्रति जवाबदेह हैं लोकसेवकों के प्रति नहीं। लोकसेवक अपने नाम के अनुरूप जनता के सेवक बनके काम करने के लिए ही हैं।  लेकिन अगर शिकायत झूठी पाई गई तो शिकायत कर्ता के खिलाफ इस प्रकार कठोर से कठोर कानूनी प्रक्रिया के तहत ऐक्शन लिया जाएगा कि भविष्य में कोई भी किसी लोकसेवक के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज करने की हिम्मत नहीं कर पायेगा। इस प्रकार न सिर्फ झूठी शिकायतों पर अंकुश लगेगा और असली दोषी को सजा मिलेगी बल्कि पूरा इंसाफ भी होगा। इस देश में न्याय की जीत तभी होगी जब हमारी न्याय प्रणाली का मूल यह होगा कि क़ानून की ही आड़ में देश का कोई भी गुनहगार गुनाह करके छूटने न पाए और कोई भी पीडि़त न्याय से वंचित न रहे।

अंजू महेंन्द्रू ने डिप्रेशन को कभी अपने पास फटकने तक नहीं दिया

अरूण जैन
अभिनेत्री अंजू जो करती हैं वो डंके की चोट पर करती हैं। उनका कहना है कि लाख दुखों के बाद भी वह कभी कमजोर नहीं पड़ीं और उन्हें कभी डिप्रेशन नहीं हुआ। पेश है अंजू से हुई बातचीत के कुछ अंश । आपने जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। फिर चाहे वे प्यार को लेकर हों या शादी को लेकर। लोग एक-एक करके आपका साथ छोड़ते गए। आपने कैसा महसूस किया?मैंने हमेशा से खुद को ऐसा बनाया कि बाहर लोगों को मेरी परेशानी का आभास न हो। मैंने खुद को जरूरत से ज्यादा मजबूत बनाया है। आज से तीन साल पहले दिवाली के दिन मेरी मां इस दुनिया को अलविदा कह गई और फिर भी मैं नॉर्मल रही। मैंने हमेशा खुद को डिप्रेशन से कोसों दूर रखा क्योंकि मैं जानती हूं कि ए​क बार यदि आप इसमें गए तो बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा। इंडस्ट्री के कई ऐसे लोग हैं, जो मेरे दोस्त हैं और वे डिप्रेशन का शिकार हुए हैं लेकिन उन्हें भी मैंने मजबूत रहने की सलाह दी और मैं हमेशा उनके साथ खड़ी रही हूं। इन दिनों आप 'रिश्तों का चक्रव्यूहÓ में दादी की भूमिका में हैं। क्या आप पर्दे पर दादी का किरदार निभाने के लिए तैयार थीं ?मैंने हमेशा से टीवी को बॉलीवुड से ज्यादा प्यार किया है, इसलिए जब भी टीवी पर काम करने की बात आती है तो मैं तैयार हो जाती हूं। फिर यह शो तो था ही इतना अच्छा कि न कहने का सवाल ही नहीं था। मेरा मानना है कि आपका किरदार दादी का हो या फिर हीरोइन का हो, बस अच्छा होना चाहिए और इसमें तो आपने मेरा किरदार देखा ही होगा, इसलिए मैंने इसे करने के लिए फौरन हां कर दी। अक्सर बॉलीवुड में काम करने वाले कलाकारों को टीवी पर काम करने पर दिक्कत होती है क्योंकि  यहां पर 11 से 12 घंटे तक काम करना पड़ता है तो क्या आपको कभी कोई परेशानी नहीं हुई? जैसा कि मैंने पहले भी आपको कहा कि मुझे बॉलीवुड में काम करना पसंद नहीं है। अब मैं जो भी फिल्में करती हूं, वो आपसी रिश्तों के कारण कर लेती हूं। मुझे टीवी में काम करना पसंद है क्योंकि यहां लोग एक ​परिवार की तरह काम करते हैं। साथ खाना खाते हैं और साथ एक-दूसरे के सुख-दुख बांटते हैं लेकिन बॉलीवुड में सभी एक-दूसरे से बड़ा बनने की जदोजहद में लगे रहते हैं। खासकर यदि आप 'रिश्तों का चक्रव्यूहÓ की बात करें तो यहां पर हमने ऐसा माहौल बनाया है कि कोई बाहर का बंदा भी घर जैसा महसूस करता है। यहां तक कि जानवर भी यहां पर आर्टिस्ट के कमरो में सोए रहते हैं। 

शिवराज सिंह को सताने लगा हार का डर

अरूण जैन
भाजपा के स्टार प्रचारक और सबसे सफल मुख्यमंत्रियों में से एक शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर घबराहट का शिकार हो गए हैं। इस बार उन्हे 2019 के विधानसभा चुनाव में संभावित हार का डर सता रहा है या फिर शायद इस बात का कि 19 के चुनाव का चेहरा वो होंगे भी या नहीं। भोपाल में इन दिनों संघ की बैठक चल रही है और सीएम का एक बयान सामने आया है। उन्होंने कहा मैं रहूं या न रहूं, ऐसी व्यवस्था करके जाऊंगा कि बेटियों की पढ़ाई नहीं रुकेगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने ड्रीम प्रोजेक्ट लाड़ली लक्ष्मी योजना के 11 साल पूरे होने पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। अक्सर आत्मविश्वास और खुद को चिरस्थाई मुख्यमंत्री मानते हुए धपाधप घोषणाएं करने वाले सीएम शिवराज सिंह ने अपने स्वभाव के विपरीत बयान दिया। बोले - मैं रहूं या न रहूं, ऐसी व्यवस्था करके जाऊंगा कि बेटियों की पढ़ाई नहीं रुकेगी, इसके लिए कानून बनाकर जाऊंगा। इसमें घबराहट कैसी इस तरह के बयान सीएम शिवराज सिंह के मुख से सामान्यत: सुनाई नहीं देते। यह विशेष इसलिए भी हो जाता है कि इन दिनों भोपाल में आरएसएस की बैठक चल रही है। कुछ दिनों पहले अमित शाह भोपाल आए थे। शिवराज सिंह के चेहरे का रंग उस दिन भी उड़ा हुआ था और अब जबकि आरएसएस की बैठक चल रही है तब भी वो असंयमित हो रहे हैं। उनका चेहरा साफ बता रहा है कि उनके दिमाग का एक हिस्सा किसी उधेड़बुन में है। बता दें कि एक गोपनीय रिपोर्ट यह भी आई है कि यदि भाजपा 19 के चुनाव में चेहरा बदल दे या फिर बिना चेहरे के चुनाव लड़े तो कांग्रेस को फिर से 70 पर समेटा जा सकता है। अब जबकि कांग्रेस की ओर से ज्योतिरादित्य सिंधिया लगभग तय हो गए हैं तो श्रीमंत को हराने का आनंद संघ हर हाल में उठाना चाहता है, फिर चाहे इसके लिए मामा को फार्महाउस पर ही क्यों ना भेजना पड़े। व्यापमं के समय भी हुआ था ऐसा ही तनाव व्यापमं घोटाले के समय भी शिवराज सिंह चौहान ऐसे ही तनाव में दिखाई दे रहे थे। उन दिनों तो कई लोगों ने यह मान भी लिया था कि शिवराज सिंह चौहान इस्तीफा देकर चले जाएंगे। हालात विकट थे और सहयोगी कम होते चल रहे थे। तनाव इस कदर बढ़ा कि शिवराज सिंह कुछ नई बीमारियों से भी घिर गए लेकिन चैत का सपूत इतनी आसानी से हार कहां मानने वाला था। एन मौके पर शिवराज सिंह ने बाजी पलटी और अब व्यापमं के भूत से उन्हे क्या किसी को भी डर नहीं लगता। 

शादी के सवाल से अनकंफर्टेबल हो जाते हैं प्रभास

अरूण जैन
बाहुबली बनकर पूरी दुनिया में धूम मचाने वाले साउथ एक्टर प्रभास इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म साहो के लिए हिंदी सीखने में बिजी हैं। हाल ही में हमने उनसे एक खास बातचीत की जिसमें उन्होंने अपनी शादी, फिल्मी करियर और साहो की को-स्टार श्रद्धा कपूर के बारे में कुछ दिलचस्प बाते बताईं। यहां पढ़े इस बातचीत के कुछ खास किस्से। मैं इसके बारे में कुछ नहीं कहना चाहता। मैं बहुत ही शर्मीला इंसान हूं और अपनी पर्सनल जिंदगी को कभी भी पब्लिक नहीं करना चाहता। मुझसे कई लोग मेरे अफेयर और शादी को लेकर सवाल करते हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि आप लोग मेरे इस फैसले का सम्मान करें, क्योंकि प्यार और शादी जैसे सवालों से मैं असहज हो जाता हूं। मैं एक ऐसे घर से हूं जहां पर कुछ चीजों को पर्सनल रखा जाता है और मैं भी अपनी इन चीजों को पर्सनल रखना चाहता हूं। वैसे भी जब शादी होगी तो किसी से छिपी नहीं रहेगी इतना तो मुझे पता है। आप लोग कैसे भी करके पता लगा ही लेंगे कि प्रभास की शादी हो रही है। आप श्रद्धा कपूर के साथ साहो कर रहे हैं। सुना है श्रद्धा आपको हिंदी भी सिखा रही हैं, क्या ये सच है? हां मैं साहो कर रहा हूं और हमने उस पर काम करना भी शुरू कर दिया है। श्रद्धा से ज्यादा हिंदी सीखने के लिए मुझे मेरे राइटर कहते हैं और मुझे भी लगता है कि अब बिना हिंदी सीखे मेरा काम नहीं चलने वाला है। वैसे मैं आपको बता दूं कि हिंदी के छोटे-छोटे शब्द को मैं समझ जाता हूं और कुछ तो लिख भी लेता हूं। बस आपकी तरह बोल नहीं पाता। मैं जब भी श्रद्धा से मिलता हूं तो लगभग कोशिश करता हूं कि वह हिंदी बोले हालांकि मुझे बुरा न लगे इसलिए वह इंग्लिश बोलती हैं, लेकिन मैं उनसे कहता हूं कि आप हिंदी में मुझसे बात करिए। हां बिल्कुल, बल्कि टीवी को तो लोग सबसे ज्यादा देखते हैं और खासकर सोनी मैक्स पर आने वाली फिल्में तो लोगों को पसंद आती हैं।  रोमांस2-2 पहली बार श्रद्धा के साथ होगा रोमांस सुना है कि आप श्रद्धा को कुछ एक्शन सीन भी सिखा रहे हैं। तो क्या साहो में भी बाहुबली की तरह एक्शन सीन देखने को मिलेंगे? हां साहो भी एक एक्शन फिल्म है, लेकिन अभी श्रद्धा के एक्शन सीन पर हमारी बात नहीं हुई है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में वह कुछ एक्शन सीन करें । उनकी फिल्म बागी में मैंने उन्हें एक्शन करते हुए देखा है तो मुझे उम्मीद है कि उन्हें मुझसे एक्शन सीखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बाहुबली फिल्म के बाद सारी दुनिया आपको बाहुबली समझती है। क्या आपको भी लगता है कि आप सच के बाहुबली हो गए हैं?नहीं बिल्कुल भी नहीं, मैं सिर्फ फिल्म में बाहुबली था और अब प्रभास हूं। मुझे कभी भी नहीं लगता है कि मैं बाहुबली हूं, क्योंकि मैं जानता हूं वह मेरा एक किरदार था जो अब खत्म हो चुका है। बाहुबली के साथ आपने 5 साल बिताए। तो क्या आज जब उन दिनों को याद करते हैं तो क्या याद आता है? सबसे ज्यादा याद तो मुझे राजमौली आते हैं, क्योंकि फिल्म का सफर भले ही 5 साल का हो लेकिन इस फिल्म के लिए हमने 5 साल से भी ज्यादा समय दिया है। इसके हर एक सीन को जिया है और अब जब फिल्म का प्रीमियर सोनी मैक्स पर हो रहा है तो ऐसे मैं आपके फिल्म के बीच में कई ऐसी चीजें सुनने को मिलेंगी जो आपको हैरान कर देंगी। आपको पता चलेगा कि कैसे हमने एक सीन के शूट करने के लिए 4 से 5 महीने लगाए हैं।

राजा वीरभद्र को फ्री हैंड देने को मजबूर हो गये थे राहुल गांधी

डाॅ. अरूण जैन
हिमाचल में बगावत की मार झेल रही कांग्रेस को आखिरकार राजा की जिद्द के आगे झुकना ही पड़ा है। अगर कहा जाये कि राजहठ के आगे कांग्रेस ने सरेंडर कर दिया है तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह इस तथ्य के बावजूद है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू राहुल गांधी के खासमखास हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह तो सुक्खू को प्रदेश अध्यक्ष पद की कुर्सी से हटाने की मांग पर अड़े थे लेकिन बीच बचाव का रास्ता निकाल लिया गया है। पार्टी के अंदरखाने से छनकर आ रही खबरों पर यकीन करें तो कांग्रेस ने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को फ्रीहैंड दे दिया है। इसका मतलब यह कि वे जैसे चाहें पार्टी को व सरकार को चलाएं, उनके किसी भी निर्णय पर पार्टी कोई सवाल नहीं उठाएगी। विधानसभा चुनाव में टिकट देने से लेकर तमाम फैसले उन्हीं की मर्जी से होंगे। इसी के साथ यह भी साफ कर दिया गया है कि राज्य में अगर कांग्रेस दोबारा जीतकर आती है तो मुख्यमंत्री भी वीरभद्र सिंह ही बनेंगे।  इसे बीजेपी के हाथों एक के बाद एक राज्य गंवाती जा रही कांग्रेस की मजबूरी ही कही जाएगी। कांग्रेस से भी अधिक राहुल गांधी की क्योंकि सुक्खू कांग्रेस उपाध्यक्ष के कृपापात्र रहे हैं। इसके अलावा इसे भी नहीं भूलना चाहिए कि राहुल गांधी की आलोचना के जुर्म में कई वरिष्ठ कांग्रेसजनों को बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। लेकिन शीर्ष नेतृत्व पर तल्ख टिप्पणी करने के बावजूद अगर वीरभद्र सिंह की शर्तें मानने पर कांग्रेस व राहुल गांधी सहमत हुए हैं तो इसमें छिपी उनकी सियासी मजबूरियों को साफ महसूस किया जा सकता है। वैसे कांग्रेस पार्टी यह दलील देकर खुद को तुष्ट कर सकती है कि इस सरेंडर के बावजूद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू को बलि का बकरा नहीं बनने दिया गया है। वीरभद्र सिंह के लाख चाहने के बावजूद उन्हें नहीं हटाया गया। हालांकि यह अर्द्धसत्य ही है क्योंकि कांग्रेस ने उनके सारे अधिकार मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के यहां गिरवी रख दिये हैं। अब देखना है कि दोबारा सूबे की सत्ता में आने की जद्दोजहद में जुटी कांग्रेस को इससे संजीवनी मिलती है या इसके साइड इफेक्ट उसकी संभावनाओं पर पलीता लगाते हैं। सूत्रों की मानें तो राजा वीरभद्र सिंह के सामने कांग्रेस के इस सरेंडर से सुक्खू समर्थकों में घोर बेचैनी है क्योंकि सुक्खू के नेतृत्व में संगठन की हालत पहले से बहुत बेहतर हुई है। हालांकि कांग्रेस नेतृत्व के इस फैसले के खिलाफ खुलकर बोलने की हिम्मत कोई नहीं कर रहा है।  गौरतलब है कि इस पर्वतीय राज्य में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं लेकिन यहां सत्ताधारी कांग्रेस सत्ताविरोधी लहर के अलावा आपसी बगावत से भी जूझ रही है। गुटबाजी चरम पर है। हद तो यह कि यह गुटबाजी निचले स्तर के बजाय राज्य के शीर्ष नेतृत्व स्तर पर है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू के बीच जारी नाक की लड़ाई कांग्रेस की संभावनाओं को और अधिक धूमिल कर रही थी। यहां तक कि राज्य के मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के बीच जारी रस्साकसी की जद में आलाकमान भी आ गया था।  वीरभद्र सिंह ने सुक्खू को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने को नाक की लड़ाई बना लिया था और हाईकमान को अल्टीमेटम दे दिया था कि अगर सुक्खू पद पर बने रहे तो वे चुनाव से अलग हो जाएंगे। अपनी मांगें न माने जाने से वे और अधिक उग्र हो गये थे। यही कारण है कि अभी हाल ही में उन्होंने कांग्रेस हाईकमान पर तीखा हमला बोलते हुए कहा था कि पार्टी अपनी पूर्व की नीतियों से श्अलग दिशा की ओर बढ़ रही हैश् और श्मनमाफिक तरीके से चयनश् करने का तरीका इसकी अच्छी संस्कृति का खात्मा कर देगा। वीरभद्र ने कहा था कि पार्टी नेतृत्व के सोचने और कामकाज के तरीके में बदलाव लाने की जरूरत है क्योंकि कांग्रेस कोई श्कारोबारियों की पार्टीश् नहीं है बल्कि यह उन लोगों से संबंधित है जिन्होंने देश की श्आजादीश् के लिये अपना जीवन कुर्बान किया। साथ ही वह श्अपमानित नहीं होते रहेंगेश् और किसी के श्मातहतश् चुनाव में नहीं जाएंगे। किसी से उनका तात्पर्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष से था। जाहिर है वीरभद्र को फ्री हैंड देकर कांग्रेस राहत की सांस ले रही है लेकिन डर है कि कहीं यह उसकी खुशफहमी न साबित हो जाए।

कॉमेडी के चक्कर में पसीने छूट जाते हैं ; अक्षय कुमार

डाॅ. अरूण जैन
बॉलीवुड को एक से बढ़कर एक कॉमेडी से भरी सुपरहिट फिल्में देने वाले अक्षय कुमार का कहना है कि उनके लिए कॉमेडी करना आसान नही बल्कि सबसे मुश्किल काम है। पेश है अक्षय कुमार से नीलम कोठारी की बातचीत के अंश। साल में आपकी पांच फिल्मों में तीन फिल्में कॉमेडी की होती हैं तो क्या आपको कॉमेडी करना ज्यादा आसान लगता है?नहीं आसान तो नहीं है। कॉमेडी करना मुझे इसलिए पसंद है, क्योंकि मैं जानता हूं कि हंसी से बढ़कर कोई दवाई नहीं। एक मुस्कराहट बड़े से बड़े दर्द को खत्म कर देती है और वैसे भी आज की दुनिया में हमारे पास दुखी होने के बहाने ज्यादा हैं, ऐसे में यदि आप अपनी कॉमेडी से किसी को हंसा पाएं तो इससे अच्छा क्या होगा। लेकिन मैं बता दूं कि जितना आसान पर्दे पर रोना होता है उतना ही मुश्किल कॉमेडी करना होता है। कई बार तो इतनी बार टेक देने पड़ते हैं कि हीरो और डायरेक्टर दोनों के पसीने छूट जाते हैं। अब अगर मैं तुम्हें बोंलू कि कोई ऐसी बात बोलो जिससे मैं हंस दूं तो क्या तुम बोल सकती हो, लेकिन मैं गांरटी देता हूं कि यदि मैं बोलूं कि मुझे रुला कर दिखाओ तो कैसे भी करके तुम मुझे रुला तो दोगी ही, फिर चाहे कुछ उल्टा—सीधा ही बोल दो। इसलिए बेटा कॉमेडी जितनी आसान दिखती है उतनी होती नहीं है। आप अब द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज में दिखने वाले हैं। यह एक कॉमेडी शो है, ऐसे में फिल्मों और छोटे पर्दे पर की जाने वाली कॉमेडी को किस तरह देखते हैं आप? फिल्मों में हमें पता होता है कि कितने घंटे के लिए करना है, लेकिन शो को आपको आगे खींचना पड़ता है। ऐसे में कई बार कॉमेडी की क्वालिटी खराब हो जाती है और लोग दूसरों की मजाक बनाकर कॉमेडी करने लगते हैं। कई बार वह कॉमेडी पर्सनल भी हो जाती है इसलिए इस बार मैंने कोशिश की है कि हम द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज में ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे किसी को बुरा लगे। क्या आपने स्क्रिप्ट राइटर को कोई खास निर्देश दिए हैं जिससे वह ध्यान रखें कि किसी पर पर्सनल कमेंट न हो ?अरे मैं कौन होता हूं निर्देश देने वाला। राइटर की बदौलत तो हमारी दुकान चल रही है लेकिन मुझे ऐसा कुछ भी बोलने की कोई जरूरत ही नहीं है, क्योंकि शो का फार्मेट ही ऐसा बना है कि हम खुद की मजाक बनाएंगे दूसरों की नहीं। वैसे भी मेरे हिसाब से कॉमेडियन वही है जो अपनी मजाक बनाए जैसे कि चार्ली चैपलिन। वह अपनी मजाक बनाते थे। हीरोइन उनके गाल पर चांटा मारती थी, लोग उन्हें गिराते थे। तो असली कॉमेडियन वही है जो खुइ के साथ प्रयोग करे न कि दूसरों के साथ। एक तरफ आप हैं जो कभी किसी के लिए कुछ नहीं कहते, वहीं आपकी पत्नी ट्विंकल खन्ना खन्ना अपनी आर्टिकल और टवीट के सहारे काफी कुछ कहती हैं। क्या कभी आपको लगता है कि उन्हें इतना खुलकर नहीं कहना चाहिए?नहीं मुझे ऐसा नहीं लगता। हर किसी का अपना सोचना है और मुझे नहीं लगता कि कभी भी ट्विंकल ने कोई ऐसी बात बोली है जो उन्हें नहीं बोलनी चाहिए। वह हर सही बात के साथ रहती हैं और जहां तक रही मेरी बात तो मुझे लगता है कि मेरी अपनी जिंदगी है और मुझे उसी पर फोकस करना चाहिए। आपकी बेटी नितारा के साथ हाल ही में आपका एक वीडियो काफी वायरल हुआ जिसमें आप उनके कहने पर एक्ट कर रहे थे। तो क्या खाली वक्त में आप नितारा के साथ ऐसे ही समय बिताते हैं? हां , वैसे भी मुझे नितारा के साथ समय कम मिलता है। जब भी मैं बाहर रहता हूं तो सबसे ज्यादा मुझे उसी की याद आती है। आउटडोर शूट पर मैं सबसे ज्यादा बात नितारा से ही करता हूं। आरव अब बड़ा हो गया है, उसका ज्यादा वक्त पढ़ाई और दोस्तों में चला जाता है। इसलिए घर आकर सबसे पहले मैं उससे मिलना चाहता हूं और उसी को खोजता हूं। वह भी सबसे ज्यादा मेरे साथ रहना पसंद करती है। हालांकि बोलने के मामले और आदतों के मामले में वह टीना पर गई है, लेकिन जब बात खेलने और मस्ती की आती है तो डैडी से बेहतर उसके लिए कोई नहीं है। देते हैं।

सत्ता गये तीन साल हुए, भ्रष्टाचार के आरोप कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ रहे

डाॅ. अरूण जैन
भ्रष्टाचार का भूत कांग्रेस का पीछा छोडऩे का नाम ही नहीं ले रहा। विगत तीन वर्षों से केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ खड़ा होने की कोशिश कर रही कांग्रेस को एक के बाद एक भ्रष्टाचार के तगड़े झटके लग रहे हैं। कांग्रेस लाख चाह कर भी अपनी पूर्व की छवि से भ्रष्टाचार के दागों को हटा नहीं पा रही है, बल्कि इस फेहरिस्त में नित नए नाम जुड़ते जा रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री जयंती नटराजन के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो ने भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया है। ब्यूरो ने नटराजन के कई ठिकानों पर छापे मारे। इससे कांग्रेस फिर से आरोपों के कटघरे में हैं। ऐसी हालत में केंद्र सरकार के खिलाफ हमलावर होने की मुद्रा के बजाए कांग्रेस रक्षात्मक स्थिति में है। कांग्रेस आलाकमान से लेकर वरिष्ठ नेताओं को समझ में ही नहीं आ रहा है कि पहले सुप्रीम कोर्ट और अब केंद्र की भाजपा सरकार के उठाए भ्रष्टाचार के मुद्दों पर जवाबी हमला कैसे करें। भ्रष्टाचार के एक मामले की गूंज शांत भी नहीं होती है कि दूसरा सामने आ जाता है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव के दौरान नटराजन के भ्रष्टाचार का मामला उठाया था। उस वक्त प्रचार की कमान संभाल रहे मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जयंती टैक्स का जिक्र कई बार किया था। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री रहते हुए जयंती पर कई परियोजनाओं का अनापत्ति प्रमाण पत्र देने में कुंडली मार कर बैठे रहने के आरोप लगे थे। केंद्र की भाजपा सरकार की भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई से कांग्रेस चकरघिन्नी बनी हुई है। कांग्रेस शासन में हुए कोलगेट, राष्ट्रमंडल खेल और टूजी स्पेक्ट्रम घोटालों की जांच के बाद भाजपा सरकार का मानो मौका मिल गया। नेशनल हेराल्ड मामला हो या आय से अधिक सम्पत्ति का, सबमें कांग्रेस घिरी हुई है।  नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी उलझे हुए हैं। इससे पहले हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और अब पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदम्बरम के पुत्र कार्तिक के व्यवसायिक ठिकानों पर आयकर और प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई का कांग्रेस पहले ही सामना करना रही है। कार्तिक के मामले में तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कोई राहत देने इंकार कर दिया। सोनिया के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा भी फंसे हुए हैं। कांग्रेस की कर्नाटक सरकार के मंत्री डीके शिवकुमार के 64 स्थानों पर छापों में करोड़ों के कालेधन का खुलासा हुआ। गौरतलब है कि शिवकुमार ने गुजरात के राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस विधायकों को होर्स ट्रेडिंग से बचाने के लिए कर्नाटक में ठहराने का इंतजाम किया था। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि कुछ बड़े मामलों का धमाका केंद्र सरकार ऐन चुनावी वक्त पर करे। इससे विपक्षी एकजुटता को तो झटका लगेगा ही प्रमुख विपक्ष कांग्रेस के लिए जवाब देना भारी पड़ जाएगा।  दशकों तक सत्ता में रही कांग्रेस को यह गलतफहमी हो गई कि उसके नेता कानून को ठेंगा दिखाने के लिए स्वतंत्र हैं। कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यदि गलती से केंद्र में कभी भाजपा सरकार आई भी, तब भी वे अपने काले कारनामों से अभेद्य रहेंगे। इससे पहले केंद्र में रही अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर ऐसी सख्ती नहीं दिखाई जैसी की अब मोदी सरकार दिखा रही है। इसी से कांग्रेस की गलतफहमी और बढ़ गई कि राजनीतिक दल एक−दूसरे के खिलाफ सीधे कार्रवाई करने से बचते हैं। हालांकि भाजपा की तरफ से शुरू से दलील यही दी जाती रही है कि राजनीतिक रंजिशवश कार्रवाई नहीं की जा रही है। कानून अपना काम कर रहा है। दरअसल कांग्रेस चुनाव से पहले भाजपा के रथ पर सवार नरेन्द्र मोदी के दृढ़ इरादों को भांप नहीं पाई। इसी गलतफहमी से सत्ता से साफ होने के बाद भी कांग्रेस की लगातार फजीहत हो रही है।  ऐसा भी नहीं है कि भ्रष्टाचार से भाजपा और उसके सहयोगी राजनीतिक दल सौ फीसदी मुक्त हों। शिवसेना हो या अकाली दल या फिर भाजपा शासित कई राज्य, भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे। किन्तु सत्ता में रहते हुए जितनी अंधेरगर्दी कांग्रेस ने मचाई, उसकी तुलना में भाजपा और उसके सहयोगियों पर लगे आरोप कांग्रेसी भ्रष्टाचार के दलदल में खिले कमल पर छींटे मात्र ही रहे। भाजपा चूंकि केंद्र में काबिज ही कांग्रेस के विरूद्ध भ्रष्टाचार का बिगुल फूंक कर हुई थी, इसलिए उसके खिलाफ पूरी तरह कमर कसे हुए है। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि केंद्र में भाजपा सरकार के तीन वर्षों में और उससे पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर की गई भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाई पर कांग्रेस सफाई देती ही नजर आई। कांग्रेस ने सत्ता गंवा कर भी होश नहीं संभाला। अपने घर की सफाई के बजाए सारा जोर इसी बात पर लगाया कि भ्रष्टाचार पर हुई कार्रवाई को कैसे गलत ठहराया जाए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से राष्ट्रमंडल, टूजी स्पेक्ट्रम और कोलगेट घोटाले में दिए जांच के आदेश और उनमें कई नेता−अफसरों की गिरफ्तारी से कांग्रेस की कलई खुल गई। देश में 132 सालों से बरगद की तरह जड़ें जमाए कांग्रेस यह भूल गई कि कुछ खराब टहनियों को काटने से पेड़ का कुछ नहीं बिगड़ेगा, बल्कि पूरे पेड़ को सडऩे से बचाया जा सकेगा। इससे जनमानस में उसकी पारदर्शिता बढ़ेगी और भ्रष्टाचार के खिलाफ ढुलमुल रवैया अपनाने के इरादों पर संदेह दूर हो जाएगा। इसके विपरीत कांग्रेस ने प्रारंभ से ही अपने नेताओं पर कार्रवाई का बचाव ही किया। कांग्रेस जनमानस से सहानुभूति बटोरने के लिए केंद्र की भाजपा सरकार पर बदले की भावना से कार्रवाई करने के प्रत्यारोप लगाती रही। लगता यही है कांग्रेस को कानून पर भरोसा नहीं रहा। यदि एकबारगी यह मान भी लिया जाए तो सत्तारुढ़ दल बैरभाव से कार्रवाई कर भी रहा है तो न्याय के दरवाजे बंद नहीं हुए हैं। कांग्रेस अदालत के जरिए बाइज्जत बरी होने का दावा कर सकती है। जांच एजेंसियों के खिलाफ मानहानि का मुकदमा कर सकती है। कांग्रेस को अपने पाक साफ होने पर यदि इतना ही यकीन है तो भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे नेताओं को तब तक पार्टी से बाहर किए जाना चाहिए था, जब तक कि वे अदालत से बरी नहीं हो जाते। कांग्रेस यह भूल गई कि इतना विशालकाय संगठन चंद आरोपी नेताओं से नहीं चल रहा। इनकी कीमत समूची कांग्रेस को भुगतनी पड़ रही है। आरोपियों की पैरवी करने के बजाए बाहर का रास्ता दिखाने से कांग्रेस रास्ते पर आ जाती। कांग्रेस जब तक अपनी गंभीर गलतियों को लेकर प्रायश्चित नहीं करेगी, तब तक फिर से मुख्यधारा में लौटने के मार्ग में भ्रष्टाचार के आरोप आड़े आते रहेंगे।