अरूण जैन
अखबारों की गिरती साख ने अखबारों तथा पत्रकारों को किस हद तक पहुंचा दिया है इसकी बानगी है अखबारों में पाठकों के लिए चलाई जा रही लाखों की स्कीम। खुद के नंबर वन होने का दावा करने वाले तीन प्रमुख अखबारों से जनहित के मुद्दे नदारद हैं। इससे प्रमुख बड़े अखबार लगातार जनता का विश्वास खोते जा रहे हैं। लोगों की दिलचस्पी बनाए रखने के लिए तीनों ही अखबारों में लाखों-करोड़ों की योजनाएं चलाकर अखबार बेचने की होड़ मची हुई है। सबसे पहले दैनिक जागरण ने स्कीम लांच की तथा पाठकों को कूपन चिपकाकर लकी ड्रा में षामिल होने का निमंत्रण दिया। दैनिक जागरण ने अपनी स्कीम लांच करने में षहरों में ढोल नगाड़ों के साथ रैली तक निकाली। इस कार्य में जागरण के प्रसार सहित संपादकीय व विज्ञापन के प्रतिनिधियों को बाजार में झोंका गया। अमर उजाला तथा हिंदुस्तान अखबार ने भी पाठकों के लिए स्कीम चलाकर अखबार बेचने का नायाब तरीका खोजा है। दरअसल यह मीडिया तथा अखबारों के गिरावट का दौर है। कारपोरेट का दबाव अखबारों तथा इलेंक्ट्रानिक मीडिया पर साफ दिख रहा है। जनहित के मुद्दे जब मीडिया से गायब होंगे तो लोगों की दिलचस्पी बढ़ाने के लिए इसी तरह की योजनाओं को बाजार में झोंकना पड़ेगा। दरअसल अखबार एक प्रोडक्ट हो गया है तथा पाठक महज एक ग्राहक बनकर रह गया है। जिसे अखबार के मालिकान अपना प्रोडक्ट बेच रहे हैं। इस बेरहम बाजार में पाठक को कंटेंट से आकर्शित करने अथवा जोड़े रखने की बजाय लाखों करोड़ों की योजनाओं से लुभाया जा रहा है। इन आकर्षक योजनाओं के बीच पाठक की हालत यह है कि वह कंटेंट की तुलना करने की बजाय तीनों अखबारों की योजनाओं की आपस में तुलना करते हुए बड़े ईनाम का इंतजार कर रहा है।
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