Monday 2 January 2017

कालाधन के पक्ष में खड़े क्यों दिखाई दे रहे हैं कुछ नेता

डॉ. अरूण जैन
काले धन पर मोदी के बड़े कदम (500 और 1,000 हजार रुपए के नोट बंद करना) का सबसे पहला सियासी असर अगले वर्ष पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है, जिसमें उत्तर प्रदेश प्रमुख है। शायद इसीलिये धनकुबेरों के अलावा माया-मुलायम मोदी के इस फैसले से सबसे अधिक बौखलाए हुए हैं। समझ में नहीं आ रहा है कि जब एक सुर में देश की जनता मोदी सरकार ती तारीफ कर रही है तब माया−मुलायम काला धन रखने वालों के पक्ष में क्यों खड़े दिखाई दे रहे हैं। करेंसी बदलने के मोदी सरकार के फैसले को लेकर यह नेता जनता की नब्ज भी नहीं पहचान पा रहे हैं। हिन्दुस्तान की राजनीति में ब्लैक मनी का इस्तेमाल हमेशा चिंता का विषय रहा है। यह वो पैसा होता है जो गलत तरीके से अर्जित किया जाता है और बेहिसाब तरीके से खर्च किया जाता है। भारतीय सियासत में कोई भी राजनैतिक पार्टी दावे के साथ यह नहीं कह सकती है कि वह नंबर एक के पैसे से ही चुनाव लड़ती और जीतती है। वामपंथी जरूर इससे अपने आप को इतर दिखाने की कोशिश करते मिल जाते हैं, लेकिन वह भी पूरी तरह से दूध के धुले नहीं हैं। हास्यास्पद बात यह है कि एक तरफ अन्ना हजारे जैसे समाज सेवी जो मोदी सरकार के कामकाज से ज्यादा खुश नहीं दिखते थे, वह तो उक्त फैसले का समर्थन कर रहे हैं, परंतु उनके शागिर्द और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस मुद्दे पर भी झूठ−फरेब और भ्रम फैलाने की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिये घटिया तरीके अपना रहे हैं। एक चाय वाला प्रधानमंत्री नहीं बन सकता है, जैसे दावे करने वाले मोदी विरोधी तमाम दलों के भ्रष्ट नेता और मोदी विरोधी गैंग के कथित धर्मनिरपेक्ष सदस्य (जो पूर्व की मनमोहन सरकार में सरकारी धन की खूब बंदर बांट कर रह थे।) शायद ऐसे लोगों को ही पीएम मोदी के प्रत्येक फैसले से उलझन होती रहती है। यह वो लोग हैं जो मोदी को किसी भी तौर पर पीएम बनते नहीं देखना चाहते थे। इसी लिये मोदी को भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री प्रत्याशी बनाये जाने के बाद से समय−समय पर अवार्ड लौटाने जैसे कृत्य करने वाले, आतंकी अफजल गुरु को फांसी दिये जाने पर विलाप करने वाले, आतंकवादियों के पक्ष में हुंकार भरने वाले, पाकिस्तान की भाषा बोलने वाले गैंग के सदस्य चाहते हैं कि गरीबों का खून चूसने वाले निजी अस्पतालों, जिसमें खासकर बड़े−बड़े राजनेताओं, नौकरशाहों, धन्नासेठों का काला धन लगा है, उनको भी मरीजों से पुराने नोट लेने की छूट मिल जाये, ताकि उक्त वर्ग के धन कुबेर मरीजों की आड़ में अपना काला धन सफेद कर सकें लेकिन केन्द्र सरकार इनके झांसे में आने वाली नहीं है। उसको पता है कि पहले भी यही लोग मोदी को लेकर शोर मचा रहे थे और आज भी यही लोग शोर मचा रहे हैं। आम जनता के साथ−साथ देश−विदेश के बड़े−बड़े अर्थशास्त्री, बुद्धिजीवी, अंतरराष्ट्रीय शख्सियतें यहां तक की पाकिस्तान की अवाम तक जब मोदी के इस प्रयास की तारीफ कर रही हो तब मु_ी भर नेताओं का विलाप करने का कोई मतलब नहीं बनता है। लब्बोलुआब यह है कि सियासत भी बड़ी मौका−परस्त चीज होती है। यहां नेताओं को नैतिकता, रंग और चोला बदलते देर नहीं लगती है। एक दिन जिनके साथ कंधे से कंधा और हाथ में हाथ डालकर खड़ा हुआ जाता है दूसरे ही दिन उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया जाता है। कहने को तो सियासी कौमें समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, देशभक्ति आदि न जाने किस-किस तरह का मुखौटा लगाये रहती हैं, लेकिन इनका दूर−दूर तक इन चीजों से सरोकार नहीं होता है। आजकल एक और ट्रेंड चल पड़ा है। तमाम छोटे-बड़े नेता अपनी बात को सही साबित करने के लिये जनता का लबादा पहन लेते हैं। अरविंद केजरीवाल के देखा-देखी कुछ ऐसी ही शैली में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी अपनी बात रखने लगे हैं। वह भी अपनी तमाम निजी और राजनैतिक समस्याओं को जनता से जोडऩे में लगे रहते हैं। काला धन के मामले में भी यही खेल खेला जा रहा है। आश्चर्य होता है कि बसपा सुप्रीमो मायावती, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, आप नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाली की टीम के सदस्य और राहुल गांधी सहित कांग्रेसी नेताओं को इस बात का दुख तो है कि केन्द्र सरकार के पुराने नोट हटा कर नये नोट लाने की प्रकिया से देश की गरीब जनता परेशान हो रही है, लेकिन कोई अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा रहा है। वह जानते हैं कि कोर्ट यह भी पूछ सकती है कि क्या आप लोग नहीं चाहते हैं कि काला धन बाहर आये। इन नेताओं को समझना होगा कि अब समय बदल रहा है। अब देश की सवा सौ करोड़ जनता देश के और अपने हितों की कुर्बानी देकर इन राजनेताओं को तिजोरी भरने और इस पर सियासत करने का मौका नहीं देने वाली है।

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