Thursday, 5 January 2017

लालबत्ती का मोह नहीं छोड़ पाता कोई भी राजनेता

डॉ. अरूण जैन
भारत में वाहनों पर लाल बत्ती का उपयोग रौब और हैसियत जताने के लिए किया जाता है। बताया जाता है कि ब्रिटिश राज में लाट साहब, राय बहादुर और अंग्रेज हुक्मरान लालबत्ती के वाहनों में आवाजाही करते थे। उनको वहां देखते ही सडक़ों पर सन्नाटा छा जाता और लोग फुटपाथों पर सर झुका कर उन्हें निर्बाध रास्ता देते थे। आजाद भारत में भी लालबत्ती का मोह हमने अभी छोड़ा नहीं है। विशेषकर सरकारी अफसर और नेता स्वयं को किसी अंग्रेज हुक्मरान से कम नहीं समझते। सरकार ने संवैधानिक पदों पर विराजमान कुछ लोगों के लिए इस महत्वपूर्ण सुविधा का इंतजाम किया है जिसका सरेआम दुरुपयोग होता देखा जा सकता है। अनधिकृत सरकारी अफसर और जन प्रतिनिधि अपने घरेलू कार्यों तक में इसका उपयोग करते हैं। आजाद भारत के इन बेताज बादशाहों को कोई रोकने टोकने वाला नहीं है। यहाँ तक कि उनके बेटे, रिश्तेदारों और नौकरों को भी धड़ल्ले से लालबत्ती के वाहनों में घूमते देखा जा सकता है। लालबत्ती स्टेटस सिम्बल के रूप में जानी−पहचानी जाती है। वाहनों पर लालबत्ती लगाने के सम्बन्ध में केन्द्रिय मोटर यान के नियम और कानून−कायदे बिलकुल साफ हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने लालबत्ती के उपयोग के सम्बन्ध में कई बार अपनी तल्ख टिप्पणियाँ दी हैं। मगर लालबत्ती की महिमा अपरमपार है। धनसुख और सत्तासुख की तरह लालबत्ती का सुख निराला है। यह मानव को आत्मिक और सांसारिक दोनों सुख प्रदान करता है। लालबत्ती केवल उन्हीं वाहनों पर लगायी जा सकती है जिसके लिये वे अधिकृत हैं। भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रीमंडल के सदस्य, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, सेनाध्यक्ष नीति आयोग के अध्यक्ष, पूर्व प्रधानमंत्री, लोकसभा और राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष, राजदूत और हाई कमिश्नर आदि। इन सभी को चमकने वाली लाल बत्ती लगने का अधिकार है। बिना चमकने वाली लाल बत्ती के लिए मुख्या चुनाव आयुक्त, आडिटर जनरल, राज्य सभा उप सभापति, लोकसभा उपाध्यक्ष, केंद्र के राज्य मंत्री, नीति आयोग के सदस्य, अल्पसंख्यक, अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष, अटॉर्नी जनरल, केबिनेट सचिव, तीनों सेनाओं के प्रमुख, सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष, हाई कोर्ट के मुख्या न्यायाधीश, सॉलिसिटर जनरल आदि अधिकृत है। राज्यों में चमकने वाली लालबत्ती लगाने का अधिकार राज्यपाल, मुख्यमंत्री, विधानसभाध्यक्ष, कैबिनेट के सदस्य, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीशगण आदि को है। इसके अलावा मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, एडवोकेट जनरल, लोकायुक्त, नेता प्रतिपक्ष, राज्य मंत्री स्तर के दर्जे के जन प्रतिनिधि, मानवाधिकर आयोग के अध्यक्ष, रजिस्ट्रार जनरल, राज्य लोक सेवा आयोग अध्यक्ष आदि लालबत्ती का उपयोग करने के लिये अधिकृत हैं। लालबत्ती स्टेट्स सिम्बल की प्रतीक है। महत्वपूर्ण व्यक्तियों को अपने वाहनों पर निर्बाध रूप से आवागमन के लिये लालबत्ती के प्रयोग की अनुमति दी गई है। मगर आजकल हर चौराहों व रास्तों पर लालबत्ती लगी गाडिय़ाँ सरे आम मिल जायेंगीं। जितने लोगों को यह सुविधा प्रदान की गई है उससे कई गुना अधिक वाहन आपको सडक़ों पर दौड़ते मिल जायेंगे। ट्रैफिक सिग्नल पर सिपाही के हाथ लालबत्ती को देखकर सलामी की मुद्रा में अपने−आप आ जाते हैं। चाहे कोई गुण्डा बदमाश ही उस गाड़ी में क्यों नहीं बैठा हो। राजस्थान में लालबत्ती गाडिय़ों की सुविधा सीमित महत्वपूर्ण जन प्रतिनिधियों और उच्च पदस्थ लोगों को है। लेकिन देखा यह गया है कि जिन लोगों को लालबत्ती मिली है उनके परिजन इस सुविधा का दुरुपयोग करते आपको हर समय मिल जायेंगे। बड़े सवेरे स्कूल−कॉलेजों में बच्चों को छोडऩे का कार्य इन वाहनों के जिम्मे है। यहाँ तक कि सब्जी बाजार, ब्यूटी पार्लर और मनोरंजन स्थलों के बाहर भी आपको बिना रोक−टोक के लालबत्ती लगी गाडिय़ाँ मिल जायेंगी। प्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी लालबत्ती को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। राजस्थान प्रशासनिक और पुलिस सेवा के अधिकारी भी लालबत्ती का मोह पाले हुए हैं। विभागाध्यक्ष स्तर के अधिकारी भी लालबत्ती का प्रयोग करना अपना कर्तव्य व ड्यूटी समझते हैं। जन प्रतिनिधियों का शौक भी निराला है। वे बिना लालबत्ती के अपने घर से निकलना अपनी तौहीन समझते हैं। सांसदों और विधायकों का कार्य जनसेवा का है। उन्हें यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। लेकिन वे इस सुविधा का धड़ल्ले से उपयोग करते मिल जायेंगे। पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद और विधायकों तक को लालबत्ती का उपयोग करते देखा जा सकता है।

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