Monday, 2 January 2017

कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि के मुताबिक भीख से चलते हैं मीडिया संस्थान!

डॉ. अरूण जैन
काठाडीह स्थित कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि एक बार फिर अपनी हरकतों से सुर्खियों में हैं। इस बार वजह बना है एक प्रश्नपत्र। रूस्ष्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग के थर्ड सेमेस्टर के क्वेश्चन् पेपर के सवाल नम्बर 5 में विवि ने पूछा है कि मीडिया संस्थान के लिए धन की व्यवस्था कैसे होती है? और जवाब के विकल्प में भीख और दान जैसे शब्द शामिल हैं। आपको बता दें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पूर्व विभागाध्यक्ष नरेंद्र त्रिपाठी भी अपने चहेते छात्रों की फर्जी अटेंडेंस लगवाते कैमरे में कैद हुये थे जिसे न केवल खबर बनने से रोका गया बल्कि एक छात्र को गैर क़ानूनी तरीके से बिना कारण बताये मुख्य परीक्षा से वंचित भी कर दिया गया। यह मामला उच्च शिक्षा मंत्री प्रेमप्रकाश पांडे से लेकर शिक्षा विभाग और राज्यपाल तक पहुंचा लेकिन राजनीतिक ताकत के आगे छात्र की गुहार ने दम तोड़ दिया। और दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई जिसके बाद छात्र ने कोर्ट की शरण ली है। अब सवाल यह उठता है कि पत्रकार बनाने वाला एक तथाकथित पत्रकारिता विवि क्या इस तरह पत्रकार तैयार करेगा? या विवि की आड़ में सिर्फ शिक्षा की दलाली चल रही है? वो दलाली जो पूर्व वीसी सच्चिदानंद जोशी के समय से शुरु हुई। बहरहाल प्रश्नपत्र में ऐसा सवाल देखकर छात्र संघटन हृस्ढ्ढ ने इस पर कड़ा आक्रोश व्यक्त किया है। छात्र नेता हनी सिंह बग्गा ने इसे मीडिया संस्थानों की छवि से खिलवाड़ बताते हुये प्रश्नपत्र की छवि कई मीडिया संस्थानों को भेजी लेकिन विवि ने कई पत्रकारों को बड़े कोर्सेस में दाखिल दे रखा है, जिसके बदले वे विवि की ऐसी खबरें प्रकाशित होने से रोकते हैं। आपको बता दें कि नेताओं के विशेष संरक्षण में चलने वाला यह विवि आये दिन किसी न किसी स्कैंडल को अंजाम देता रहता है। यही वजह है कि विवि की छवि तार-तार हो चुकी है और इसने बेहद कम समय में बदनामी की दौड़ में खुद को काफी आगे पहुंचा लिया है। स्टाफ से लेकर कुलपति तक कोई पाक साफ़ नहीं... विवि के पूर्व कुलपति सच्चिदानंद जोशी ने अपने कार्यकाल में अपने पद का सिर्फ नाजायज फायदा उठाया। उसके राज में छात्रों की आवाज दबा दी जाती थी। ऐसे भी हालात बने कि कोई छात्र आत्महत्या करने तक मजबूर हुआ तो किसी ने प्रशासन के खिलाफ कोर्ट में केस दर्ज किया। इतना ही नहीं भ्रष्ट कुलपति को देख स्टाफ भी खुलकर मनमानी करता था। क्लास में पढ़ाई कराने की बजाय छात्रों से गाने गवाये जाते थे। यही वजह है कि जोशी के जाते ही छात्रों को लगा अब उनके भविष्य से खिलवाड़ बन्द हो जायेगा लेकिन हाल वही ढ़ाक के तीन पात। कभी डिग्री फर्जी तो कभी पैसा लेकर एग्जाम में पास किये छात्र...विवि के शिक्षकों के कारनामों की बात करें तो कई प्रोफेसर ऐसे हैं जिनकी डिग्री और नियुक्ति सन्देह के घेरे में है। कुछ तो कोर्ट के डर से तड़ीपार हुये घूम रहे हैं। इन सबके बीच पेपर में पास कराने के बदले पैसे मांगते बाबू का स्टिंग भी सामने आया लेकिन वह भी सिर्फ एक खबर बनकर रह गया। ऐसा नहीं कि प्रबन्धन के खिलाफ शिकायतें नहीं हुई लेकिन कान में बत्ती डालकर बैठे नेताओं तक पीडि़तों की आवाज पहुंचती नहीं।

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