प्रियंका गाँधी कांग्रेस का भविष्य हैं, राहुल फेल साबित हो रहे
डॉ. अरूण जैन
उत्तर प्रदेश के चुनाव को लेकर कांग्रेस कमर कस चुकी है जिस प्रकार से हाल ही में लखनऊ में रैली निकाली गई इससे यह साफ हो गया है कि इस बार कांग्रेस उत्तर प्रदेश को हल्के में नहीं ले रही है। इस बीच यह भी खबर आ रही है कि अब प्रियंका गांधी विधानसभा चुनाव में जोर शोर से प्रचार करेंगी लेकिन अभी इस खबर की पुष्टि नहीं हुई है। लेकिन यह तय है कि आने वाले दिनों में वह महत्वपूर्ण भूमिका में होंगी। आखिर क्यों है प्रियंका को इतनी मांग?सच तो यह भी है कि पार्टी का एक तबका प्रियंका में उनकी दादी इंदिरा गांधी की झलक देखता है और वह चाहता है कि प्रियंका सक्रिय भूमिका निभाएं। एक तबके का मानना है कि उत्तर प्रदेश और अन्यत्र पार्टी के बेहतर भविष्य के लिए ऐसा किया जाना अनिवार्य है। पिछले 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने राहुल की अगुवाई में उत्तर प्रदेश में बेहतर प्रदर्शन किया था और उसे 22 सीटें मिली थीं, लेकिन विधानसभा चुनावों के दौरान प्रदर्शन अपेक्षित नहीं रहा और पार्टी के गढ़ माने जाने वाले अमेठी एवं रायबरेली जैसे स्थानों पर भी पार्टी ने खराब प्रदर्शन किया। उसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में हार तो जगजाहिर है। चुनावों में प्रदर्शन खराब रहने के कारणों को लेकर राहुल ने खुद ही पार्टी विधायकों, सांसदों और वरिष्ठ नेताओं से बातचीत की थी। गौर करने योग्य यह भी है कि पहले राजनीति में आने के सवाल पर प्रियंका कहती थीं कि राजनीति में बिना आए भी समाज की सेवा की जा सकती है, लेकिन अब माहौल बदल गया लगता है। प्रियंका ने राजनीति में आने के संकेत कई महीने पहले ही देने शुरू कर दिए थे। 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान जब मीडिया ने प्रियंका गांधी से पूछा था कि वे राजनीति में कब आएंगी, तो इसके जवाब में उन्होंने कहा था, जब राहुल भैया चाहेंगे तब राजनीति में आएंगी। हालांकि कांग्रेस के प्रवक्ता अब भी इसकी पुष्टि नहीं कर रहे कि प्रियंका सक्रिय राजनीति में आएंगी और यह कह कर सवालों को टाल देते हैं कि आखिरी निर्णय तो प्रियंका को ही करना है। इससे साफ जाहिर है कि कांग्रेस उन्हें आगे लाने को आतुर है। कुछ दिग्गज तो साफ कह भी चुके हैं कि प्रियंका को आगे आना चाहिए। सच तो यह है कि कांग्रेस के दिग्गज नेताओं व कार्यकर्ताओं में यह धारणा मजबूत होती जा रही है कि चूंकि राहुल गांधी खारिज होते नजर आ रहे हैं, ऐसे में प्रियंका को ही आखिरी दांव के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। वे ही राजनीति के खेल में कांग्रेस का आखिरी ‘तुरूप का पत्ता’ साबित हो सकती हैं। मगर संभवत: सोनिया गांधी इस राय से इत्तेफाक नहीं रखतीं। दरअसल, कांग्रेस में गांधी परिवार का बड़ा ही योगदान रहा है। जब-जब कांग्रेस कमजोर हुई है या कमजोर की गई है, गांधी परिवार के किसी ना किसी व्यक्ति ने इसको उबारने में महती भूमिका निभायी है। जिसमें उनके बलिदान तक की बातें निहित हैं। 20वीं सदी के अंत में जब कांग्रेस कई टुकड़ों में विभाजित हो गई थी ओर देश में भाजपा की सरकार चल रही थी। उस समय कांग्रेस की अपील पर गांधी परिवार की मुखिया सोनिया गांधी ने अपने पुत्र राहुल गांधी के साथ राजनीति में सक्रिय होकर भारतीय कांग्रेस का नेतृत्व संभाला। इसमें संदेह नहीं की गांधी परिवार ने अपने नेतृत्व क्षमता और साफ सुथरी छवि के आधार पर 2004 के आम चुनाव में आम जनमानस के सहयोग से विखंडित कांग्रेस को संगठित एवं जोडक़र भारत की सत्ता में पुन: वापसी की। प्रियंका गांधी का राजनीतिक योगदान इस चुनाव में काफी बढ़ गया, वे कांग्रेसियों को जोडऩे में सफल रहीं। उनके सक्रिय राजनीति में आने का प्रश्न अब महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि उन्हें तो अब इसका विस्तारीकरण करना है। अमेठी और रायबरेली में वह लगातार समय देती आ रही हैं। उनके आने से निश्चित रूप से कांग्रेस को फायदा होगा, क्योंकि वह इंदिरा गांधी की प्रतिरूप मानी जाती हैं। साथ ही उनकी छवि संवेदनशील एवं ईमानदार राजनीतिज्ञ की है। रही बात वंशवाद की तो अगर किसी के पूर्वज राजनीति में थे, तो उसमें उसका क्या दोष?कांग्रेसियों की ओर से यह भी कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नि:सन्देह एक संभावनाशील महिला हैं। लोग अपने नेता के किसी गुण से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं तो वह उसके द्वारा करिश्मा पैदा करने की क्षमता से होते हैं। 1999 के संसदीय चुनाव में प्रियंका गांधी के मात्र एक चुनावी संबोधन से रायबरेली लोकसभा में कांग्रेस ने भाजपा के प्रत्याशी अरुण नेहरू को हरा दिया था। प्रियंका गांधी के व्यक्तित्व में यदि कोई गुण सर्वाधिक प्रभावित करता है, तो वह उनके द्वारा लोगों से सहज संवाद स्थापित करने की क्षमता है, वह बोली-वाणी, पहनावे एवं रहन-सहन से लोगों को सीधे प्रभावित करती हैं। भीड़ में विषेशतया महिलाओं में अपने घुलने मिलने की क्षमता के कारण वह लोगों के दिलों में अपनी जगह बना लेती हैं। जो लोग कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप लगाते हैं, वह अन्य राजनीतिक दलों के वंशवाद की तरफ से आंखें फेरे हुए हैं। अन्य दलों से विपरीत कांग्रेस का परंपरा से प्राप्त नेतृत्व सदैव जनता द्वारा बड़े इम्तिहान पास कर आता है। वह चाहे इंदिरा जी की ‘इन्डीकेट बनाम सिण्डीकेट’ की लड़ाई हो, संजय गांधी द्वारा 1977 के आम चुनाव में पस्त मृतप्राय कांग्रेस में जान फूंकने का काम हो, राजीव गांधी द्वारा इंदिरा जी की हत्या से उपजे शून्य को भरना रहा हो, या सोनिया गांधी द्वारा 2004 में कथित साम्प्रदायिक ताकतों को सत्ता से अप्रत्याशित तौर पर बाहर करना हो। इस तरह नेहरू-गांधी परिवार का नेतृत्व जनता द्वारा कठिनतम परीक्षा पास करता आ रहा है। प्रियंका गांधी नि:सन्देह कांग्रेस का भविष्य हैं उनके आने से कांग्रेस को मजबूती मिलेगी एवं समाज को भी एक सक्षम नेतृत्व मिलेगा।
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