Thursday, 5 January 2017

संघ मुक्त भारत का आह्वान दिवास्वप्न है

डॉ. अरूण जैन
प्रधानमंत्री मोदी ने जब से कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया, बिहार के मुख्यमंत्री और मोदी के धुर विरोधी नीतीश कुमार ने भी राग अलापा संघ मुक्त भारत का। साथ ही जोड़ दिया नशा मुक्त बिहार। अब नीतीश कुमार जी से कोई पूछे कि नशा मुक्त बिहार बनाने के चक्कर में उन्होंने बिहार में शराब पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया, हजारों करोड़ की राजस्व की हानि तो हुई ही साथ ही बिहार में जहां अधिकांश लोग पान, तम्बाकू, बीड़ी व चबाने वाले तम्बाकू के बिना रह ही नहीं सकते वहां शराब बन्दी का क्या और कितना फायदा होगा। एक सूचना के अनुसार बिहार में शराब बन्दी के बाद से ही ड्रग्स व अन्य प्रकार के नशे का अवैध कारोबार खूब फलफूल रहा है। हो सकता है कि इसमें सरकार में सम्मिलित सफेदपोश लोग भी शामिल हों किन्तु कहा तो यही जायेगा कि कुएं से निकले, खाई में गिरे। खैर, अब मूल विशय पर आते हैं। सन् 1925 में जब डॉ. केशव बलिराव हेडगेवार ने विजयदशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी, तब से लेकर अब तक संघ की इतनी शाखाएं हो गयी हैं कि एक विशाल वट वृक्ष की तरह कौन सी मूल शाखा है, पहचानना ही मुश्किल है। संघ मूलत: एक सामाजिक संघटन है जिसमें सदस्य स्वयं की प्रेरणा से बनते हैं, किसी प्रलोभन अथवा लालच के कारण नहीं। एक बार संघ की शाखा में जाकर ध्वज प्रणाम करके कोई भी स्वयंसेवक बन सकता है, बशर्ते वो भारत माता से प्रेम करता हो, भारत माता की जय और वन्दे मातरम बोलता हो, आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त न हो और समाज सेवा की भावना से ओतप्रोत हो। संघ मुक्त भारत की परिकल्पना करना ही ऐसा कार्य है मानो दिन में जागते हुए स्वप्न देखना। संघ भारत की आत्मा है, कोई भी कैसे आत्मा को शरीर से अलग करने की सोच सकता है। संघ आत्मा है और भारत शरीर है, जब आत्मा शरीर से पृथक होती है तो निष्प्राण शरीर रह जाता है। भारत में शिक्षा के क्षेत्र में अनेकों शिक्षाविद् संघ से जुड़े हैं अथवा संघ ने दिये हैं। अनेकों वरिष्ठ चिकित्सक, अभियन्ता, अधिवक्ता, न्यायाधीश, समाज सुधारक, चिन्तक, विचारक, सैनिक, मजदूर और भारत के सभी वर्गों में, सभी प्रकार की विधाओं में संघ के स्वयंसेवक हैं और अपना कार्य पूरी निष्ठा के साथ कर रहे हैं। जब भी देश में कोई दैवीय आपदा अथवा दुर्घटना की स्थिति होती है, सर्वप्रथम संघ का स्वयंसेवक तैयार होता है सहायता के लिये। चाहे उत्तराखण्ड की आपदा हो, भूकम्प हो, बाढ़ हो, संघ सदैव सहायता के लिये सर्वप्रथम आगे आया। देश ही नहीं विदेशों में भी संघ विभिन्न नामों से सेवा के कार्य कर रहा है। इस देश को दो ऊर्जावान प्रधानमंत्री संघ की ही देन है, दर्जनों मुख्यमंत्री, राज्यपाल व मंत्री प्रत्यक्ष रूप से संघ से जुड़े हैं। इन सबकी प्राथमिक पाठशाला संघ की शाखा है। संघ मात्र एक संघटन का नाम ही नहीं अपितु भारत का तंत्रिका तंत्र है।  संघ का मानना है कि देश मात्र कानूनों से नहीं चलता, देश को चलाने के लिये संस्कारों की आवश्यकता होती है और संस्कार देश के प्रत्येक देशवासी में होना आवश्यक है। संस्कार धर्म से आते हैं, धर्म मानव की जीवन पद्धति का द्योतक होता है। संघ के प्रचारक व मनीशी स्व. पं. दीनदयाल उपाध्याय के अनुसार प्रत्येक मानव जीवन को पेट भरने के लिये अन्न, मस्तिष्क के लिये विचार व शरीर के लिये वस्त्रों की आवश्यकता होती है। इन सबकी भरपाई व्यक्ति कुसंस्कारों के द्वारा भी कर सकता है अर्थात छीन कर खाना, मस्तिष्क में कुविचारों का होना तथा संस्कारहीन वस्त्रों का प्रयोग। इसके विपरीत यदि कोई जीवन के चार पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को अपने जीवन का आधार मान कर जीवन यापन करना सीख ले तो उसके जीवन में कभी भी कोई कमी नहीं आ सकती, इसी मार्ग से उसकी आत्मा को संस्कार, पेट को भोजन व मस्तिष्क को विचार मिल सकेंगे। इसके विपरीत यदि व्यक्ति कामनाओं के वशीभूत होकर काम, क्रोध, लोभ व मोह के प्रति आसक्त हो जाये तो जीवन के साथ संस्कारों का नष्ट होना निश्चित है। प्रत्येक कर्म का आधार धर्म ही होना चाहिये तभी संस्कार जीवित रहेंगे तथा मानव जीवन परहित के काम आ सकता है। किन्तु संघ रहित भारत की परिकल्पना करने वाले नीतीश कुमार सम्भवत: अल्पज्ञानी होने के साथ राजनीति के भी कच्चे खिलाड़ी ही साबित होन के कगार पर हैं। महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबन्ध लगा, इन्दिरा गांधी ने आपातकाल में संघ पर प्रतिबंध लगाया, रामजन्म भूमि आन्दोलन में संघ पर प्रतिबन्ध लगा किन्तु प्रत्येक बार संघ नई ऊर्जा, नई ताकत के साथ उभरा और संघ विरोधियों को मुंह की खानी पड़ी, यही हश्र नीतीश कुमार का भी होगा।

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