ब्रिक्स की अहमियत और अंतर्विरोध
डॉ. अरूण जैन
भारत ने न सिर्फ विश्व मंच पर अपनी मजबूत स्थिति दर्ज करवाई है, बल्कि वैश्विक संगठनों में उसकी भूमिका और प्रभाव में वृद्धि हुई है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में भारत ने न सिर्फ विश्व मंच पर अपनी मजबूत स्थिति दर्ज करवाई है, बल्कि वैश्विक संगठनों में उसकी भूमिका और प्रभाव में वृद्धि हुई है। यह बात ब्रिक्स के परिप्रेक्ष्य में भी लागू होती है। आगामी पंद्रह-सोलह अक्टूबर को भारत की अध्यक्षता में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का गोवा में आयोजन वैश्विक स्तर पर भारत के बढ़ते कूटनीतिक प्रभाव को ही प्रतिबिंबित करता है। उड़ी हमले के बाद ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ से जहां भारत की ‘सॉफ्ट स्टेट’ (नरम राज्य) की छवि परिवर्तित हुई है, वहीं ब्रिक्स में भी आतंकवाद के मुद््दे पर गंभीर विमर्श संभावित है। पाकिस्तान की पहले से ही अंतरराष्ट्रीय घेराबंदी हो चुकी है। भारत गोवा ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भी पाकिस्तान को कड़ा कूटनीतिक जवाब देगा। विश्व-व्यवस्था को बहुध्रुवीय बनाने के लिए प्रमुख गैर-पश्चिमी राष्ट्रों में एकजुटता की भावना प्रबल हुई है। चीन जहां आर्थिक व सैनिक दृष्टि से अमेरिका की बराबरी में आने की राह पर है, वहीं पुतिन के नेतृत्व में रूस अपना खोया हुआ गौरव पाने को लालायित है। दक्षिण एशिया में एक सैनिक एवं आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत की पहचान भी असंदिग्ध है। लातिन अमेरिकी राष्ट्रों में जहां अमेरिका-विरोधी स्वर तेज हुए हैं, वहीं इन राष्ट्रों के बीच उभरती अर्थव्यवस्था वाले ब्राजील की स्वीकार्यता बढ़ी है। अफ्रीका महाद्वीप के देशों में दक्षिण अफ्रीका अपनी नई पहचान बना रहा है। विश्व की इन्हीं उभरती आर्थिक शक्तियों- ब्राजील, रूस, भारत व दक्षिण अफ्रीका- की सदस्यता वाले अंतरराष्ट्रीय समूह ‘ब्रिक्स’ की प्रगति को वैश्विक शक्ति संतुलन के अंतर्गत महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम माना जा रहा है। ब्रिक्स की संकल्पना सर्वप्रथम गोल्डमैन सैश बैंक के अर्थशास्त्रियों द्वारा वर्तमान शताब्दी के प्रारंभ में आगामी अर्द्धशताब्दी में वैश्विक आर्थिक प्रवृत्तियों के अध्ययन के संदर्भ में प्रस्तुत की गई थी। वर्ष 2003 में इस निवेश बैंक के अर्थशास्त्री जिम ओ’ नील द्वारा प्रस्तुत थीसिस ‘ड्रमिंग विद ब्रिक्स: द पाथ टू 2050’ में कहा गया था कि ब्राजील, रूस, भारत व चीन की संभाव्य आर्थिक क्षमता इतनी अधिक है कि ये चारों वर्ष 2050 तक विश्व की सर्वाधिक प्रभुत्वशाली अर्थव्यवस्थाओं वाले देश बन सकते हैं।ब्रिक्स दुनिया की पांच उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह है। एक समूह के रूप में इसकी स्थापना वर्ष 2009 में हुई थी। तब इसमें चार ही देश- ब्राजील, रूस, भारत और चीन- शामिल थे और इसे ‘ब्रिक’ नाम दिया गया था। यह वह समय था जब पूरा विश्व आर्थिक मंदी से जूझ रहा था। इस काल में जहां विश्व के सभी बड़े देश वित्तीय संकट से ग्रस्त थे, वहीं ब्राजील, रूस, भारत व चीन जैसे देश न सिर्फ इस वैश्विक समस्या से अछूते रहे बल्कि एक नए आर्थिक संगठन की स्थापना भी कर दी। अप्रैल 2011 में चीन में इस संगठन का तीसरा सम्मेलन हुआ, जिसमें दक्षिण अफ्रीका को औपचारिक रूप से संगठन का सदस्य बनाया गया और यह ‘ब्रिक’ से ‘ब्रिक्स’ हो गया। ऐसा माना जा रहा है कि वर्ष 2050 तक ब्रिक्स के सदस्य-देश विश्व की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं के रूप में जाने जाएंगे। आज विश्व की तैंतालीस प्रतिशत जनसंख्या व कुल वैश्विक जीडीपी में अठारह प्रतिशत हिस्सेदारी वाला यह समूह तेजी से उभर रही अर्थव्यवस्थाओं वाला समूह है। भारत को पंद्रह फरवरी को रूस से इसकी अध्यक्षता मिली थी। भारत इकतीस दिसंबर 2016 तक ब्रिक्स का अध्यक्ष रहेगा। भारत की अध्यक्षता में आयोजित होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का ध्येय-वाक्य होगा- ‘उत्तरदायी, समावेशी व सामूहिक समाधान विकसित करना’। भारत अपनी ब्रिक्स अध्यक्षता के दौरान पंचमुखी दृष्टिकोण अपनाएगा। प्रथम, ब्रिक्स सहयोग को प्रगाढ़ बनाने तथा इसे बरकरार रखने के लिए संस्थागत व्यवस्था करना। दूसरा, पूर्व शिखर सम्मेलनों में लिए गए निर्णयों का कार्यान्वयन। तीसरा, मौजूदा सहयोग तंत्रों का एकीकरण। चौथा, नवाचार अर्थात स्तरीय नए सहयोग तंत्र विकसित करना। और पांचवां, निरंतरता अर्थात परस्पर सम्मत मौजूदा ब्रिक्स सहयोग तंत्रों को जारी रखना। भारत की अध्यक्षता में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का फोकस ब्रिक्स के सदस्य-राष्ट्रों के लोगों विशेषत: युवाओं के बीच आपसी संपर्क बढ़ाने पर केंद्रित होगा। इस संदर्भ मेंअंडर-17 फुटबॉल टूर्नामेंट, युवा शिखर सम्मेलन, मैत्री शहर कॉनक्लेव: युवा राजनयिक मंच, फिल्म महोत्सव जैसे कार्यकलापों का आयोजन किया जा रहा है। विदेशमंत्री सुषमा स्वराज के अनुसार ब्रिक्स की अध्यक्षता के दौरान मंत्री, आधिकारिक, तकनीकी और ट्रैक-2 स्तर की पचास से अधिक बैठकें आयोजित की गर्इं। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स की अध्यक्षता के लिए भारत का विषय ‘बिल्डिंग रिस्पांसिव, इनक्लूसिव एंड कलेक्टिव सॉल्यूशंस’ (ब्रिक्स) है। ब्रिक्स नेताओं ने 4 सितंबर 2016 को हांगझाऊ में जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद मुलाकात की। नेताओं ने वैश्विक राजनीति, सुरक्षा, आर्थिक और वैश्विक शासन और आपसी हितों के महत्त्वपूर्ण मुद््दों पर विस्तृत विचार-विमर्श किया। इसके अलावा नेताओं ने ब्रिक्स में आपसी व्यापार, पर्यटन और यात्रा संबंधों को मजबूत बनाने पर भी विचार किया। साथ ही ब्रिक्स के नेताओं ने भारत की ब्रिक्स की अध्यक्षता और कार्यान्वयन की अच्छी गति तथा भारत की अध्यक्षता में भारत के शहरों व प्रांतों में आयोजनों के माध्यम से ब्रिक्स में लोगों के बीच आदान-प्रदान के सुदृढ़ीकरण सहित ब्रिक्स सहयोग एजेंडे के विस्तार की सराहना की। सूचना तकनीक, अंतरिक्ष अनुसंधान, सामरिक तथा परमाणु क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां हासिल कर भारत ने अपनी महत्त्वपूर्ण स्थिति बनाई है। वैश्विक मंदी में जब अमेरिका जैसे देशों की आर्थिक संस्थाएं दिवालिया हो रही थीं, तब भी भारत के वाणिज्यिक संस्थान पूरी गति से काम कर रहे थे। इस अवधि में देश की विकास दर की गति थोड़ी धीमी जरूर पड़ी, पर आज हम पुन: नौ-दस फीसद की विकास दर प्राप्त करने की ओर अग्रसर हैं। वर्तमान में विश्व के तीस तेजी से विकसित होते शहरों में से दस शहर भारत में हैं। भारत से जुड़ी ये स्थितियां ब्रिक्स के लिए लाभप्रद हैं। ब्रिक्स के संदर्भ में भारत के अन्य सदस्य देशों से द्विपक्षीय संबंध को देखें तो भारत और ब्राजील के मध्य अस्सी लाख डॉलर का वार्षिक व्यापार होता है। कुछ समय पहले भारत तथा ब्राजील के मध्य सूचना प्रौद्योगिकी, नैनो प्रौद्योगिकी, शिक्षा तथा द्विपक्षीय व्यापार के क्षेत्र में समझौते हुए हैं, जिससे दोनों देश लाभान्वित हुए हैं। इसी प्रकार ब्रिक्स का नया सदस्य दक्षिण अफ्रीका भी भारत का प्रमुख वाणिज्यिक सहयोगी है। जहां तक चीन का प्रश्न है, भारत तथा चीन के बीच लगभग तीन सौ वस्तुओं का व्यापार होता है। दक्षिण एशिया में दोनों देशों की स्थिति बराबर मजबूत हुई है और इसी कारण दोनों कई मायनों में प्रतिस्पर्धी भी हैं। सीमा संबंधी विवाद, पाकिस्तान से चीन की मित्रता तथा रूस और अमेरिका से भारत की मित्रता आदि कुछ ऐसी स्थितियां हैं जिनके कारण भारत और चीन के मध्य विश्वास का रिश्ता कायम नहीं हो पा रहा है। फिर भी दोनों देश व्यापारिक हितों को लेकर सजग हैं और इस पर किसी भी प्रकार की आंच नहीं आने दे रहे हैं। रूस के साथ तो हमारे संबंध जगजाहिर हैं। इससे दोनों देशों के बीच लाभकारी स्थितियां निर्मित हो रही हैं। ब्रिक्स के गोवा शिखर सम्मेलन पर दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। इसके कई कारण हैं। सकल राष्ट्रीय उत्पाद की दृष्टि से भारत ब्रिक्स-सदस्यों में दूसरे स्थान पर है, जबकि चीन प्रथम स्थान पर। रूस जहां क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान पर है, वहीं जनसंख्या की दृष्टि से चीन और भारत क्रमश: पहले और दूसरे स्थान पर हैं। ब्रिक्स देशों की सामूहिक शक्ति सदस्य-राष्ट्रों की अपनी-अपनी क्षमता का परिणाम है। सदस्य देशों की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इनकी अर्थव्यवस्थाएं एक दूसरे की पूरक हैं। जहां भारत और चीन ऊर्जा के सबसे बड़े उपभोक्ता देश हैं, वहीं रूस व ब्राजील ऊर्जा के सबसे बड़े उत्पादक राष्ट्र हैं। ब्राजील व रूस जहां खनिज और कच्चे माल के संदर्भ में समृद्ध हैं, वहीं चीन और भारत सेवा तथा विनिर्माण क्षेत्र में आगे हैं। भारत और ब्राजील जहां कृषि उत्पादन में अग्रणी राष्ट्र हैं, वहीं रूस तेल और प्राकृतिक गैस उत्पादन में अग्रणी है। ये सारी बातें ब्रिक्स के उज्ज्वल भविष्य की ओर संकेत कर रही हैं। यहां यह बताना भी महत्त्वपूर्ण होगा कि ब्रिक्स देशों की सम्मिलित जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग चौवालीस प्रतिशत है। ब्रिक्स देशों का कुल क्षेत्रफल विश्व का छब्बीस प्रतिशत है। विश्व के कुल जीडीपी में लगभग बीस प्रतिशत भागीदारी ब्रिक्स देशों की है तथा वर्ष 2020 तक इनका कुल जीडीपी पचास खरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। ब्रिक्स ने अपने दो नए वित्तीय संस्थानों ‘न्यू डेवलपमेंट बैंक’ व ‘आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था’ को आकार देना शुरू कर दिया है। न्यू डेवलपमेंट बैंक का मुख्यालय शंघाई में स्थापित किया जा चुका है, जिसका प्रथम अध्यक्ष बनने का गौरव प्रख्यात बैंकर केवी कामथ को प्राप्त हुआ है। आपसी सामंजस्य ब्रिक्स के स्वर्णिम भविष्य की ओर संकेत करता है। ब्रिक्स के सभी पांच सदस्य-देश जी-20 के भी सदस्य हैं और वैश्विक आर्थिक मंदी के प्रभावों को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ब्रिक्स के सदस्य राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय मुद्र्राकोष तथा विश्व बैंक में भी लोकतंत्रीकरण के लिए प्रतिबद्ध हैं। पर ब्रिक्स के कुछ अंतर्विरोध भी हैं, जो इसे राजनीतिक व कूटनीतिक रूप से कमजोर करते हैं। भारत-चीन के बीच सीमा विवाद व पाकिस्तान के आतंकवाद के प्रति चीन का दोहरा रवैया तथा रूस-चीन के बीच विभिन्न मुद््दों पर मतभेद ब्रिक्स के भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं।
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