यूपी में इस बार मुकाबला चौतरफा होने के आसार बढ़े
डॉ. अरूण जैन
चुनावी बेला में सभी सियासी जमात अपनी ताकत बढ़ाने के लिये हाथ−पैर मार रही हैं। सबके अपने−अपने दावे हैं। कुछ सवाल भी हैं जैसे कि कौन बाजी मारेगा? किसको हार का मुंह देखना पड़ेगा? कहां किसका किस पार्टी के साथ गठबंधन होगा? वैसे इस बार आसार मुकाबला चौतरफा होने के नजर आ रहे हैं। पिछले कई चुनावों में मुख्य मुकाबले में रहने वाली सपा-बसपा को इस बार कांग्रेस-भाजपा कड़ी टक्कर देने के लिये मशक्कत कर रहे हैं। कांग्रेस अपने रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) के बल पर ताल ठोंक रही है तो भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहारे यूपी में अपनी नैया पार लगाना चाहती है। पार्टियां तो सभी ताल ठोंक रही हैं लेकिन इधर कांग्रेस की तेजी ने सबको अचंभित कर दिया है। प्रदेश में कांग्रेस सशक्त हो रही है इस बात का कोई पुख्ता प्रमाण तो नहीं पेश किया जा सकता है। लोकतंत्र में अगर किसी पार्टी की सफलता-असफलता को भीड़तंत्र की कसौटी पर कसा जाता हो तो कांग्रेस का ग्राफ बढ़ता नजर आ रहा है। लोकसभा चुनाव से पूर्व भाजपा नेता और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का पैमाना भी तो उनकी जनसभाओं और रोड शो में जुटने वाली भीड़ से ही लगाया जाता था। लखनऊ में कांग्रेस युवराज राहुल गांधी पॉलिटिकल रैंप पर चहल कदमी करते हुए कांग्रेसियों में नई जान फूंक गये। रिझझिम फुहारों के बाद हुई तेज बरसात भी कांग्रेसियों का हौसला पस्त नहीं कर पाई। घंटों मंच से लेकर मैदान तक कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता चट्टान की तरह सियासी मोर्चे पर डटे रहे। इन लोगों में जोश भरने का काम राहुल गांधी ने किया। पटकथा पहले से तैयार थी। राहुल नायक की तरह आये और अपना किरदार निभाकर चले गये। पीछे छोड़ गये तो सियासी चर्चाओं का अम्बार। यूपी में इससे पूर्व शायद ही राहुल का कोई कार्यक्रम इतना हिट रहा होगा। राहुल तय समय पर रमाबाई अंबेडकर मैदान पहुंचे। उन्होंने सबसे पहले फ्लाइंग किस कर कार्यकर्ताओं का अभिवादन किया। इससे कार्यकर्ता जोश से भर गए। पूरा कार्यक्रम स्थल कांग्रेस के जयघोष से गूंज उठा। राहुल ने बारिश से तरबतर कार्यकर्ताओं को देखा तो उनका दिल जीतने के लिए कहा, काश एक बार फिर जोर की बारिश आ जाए और मैं भी पूरी तरह भीग जाऊं। इस समय आप भीगे हुए हैं और मैं सूखा हूं। मेरी भी इच्छा आपकी तरह भीगने की है। नेता मंच पर बैठे थे। राहुल इसी रैंप पर चहलकदमी करते हुए पहली बार कार्यकर्ताओं के सवालों के जवाब दे रहे थे। कार्यकर्ताओं के उत्साह को देखते हुए राहुल ने गुलाम नबी आजाद और राज बब्बर को रैंप पर बुलाया। उन्होंने भी कुछ सवालों उत्तर दिये। बाद मे शीला दीक्षित, संजय सिंह व अन्य नेता भी रैंप पर आए। दो घंटे के इस शो के जरिए राहुल ने कई बार कार्यकर्ताओं के दिलों को छुआ। बार-बार तालियों की गडग़ड़ाहट बता रही थी कि राहुल उनका उत्साह बढ़ाने में कामयाब रहे हैं। जिस रैली स्थल के बारे में कहा जाता है कि इसे भरने की क्षमता सिर्फ बसपा प्रमुख मायावती के पास है, उसी रमाबाई अंबेडकर मैदान में कांग्रेसी झंडे लहरा रहे थे। कांग्रेसी राहुल के लखनऊ कार्यक्रम की सफलता से गद्गद हैं लेकिन विरोधी कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। पिछले पांच महीने के दौरन अलग-अलग मीटिंग में प्रशांत किशोर ने सभी टिकट चाहने वाले नेताओं से बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं की सूची मांगी थी। पीके ने सभी टिकट चाहने वालों से 15-15 कार्यकर्ताओं को लाने के लिए कहा था। इस समय यूपी में 9000 लोग कांग्रेस से टिकट मांग रहे हैं। इनमें से आधे भी यदि 15−15 कार्यकर्ताओं को लाये होंगे तो कार्यक्रम तो सफल हो ही जायेगा। विरोधी कुछ कहें लेकिन इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि पीके की भीड़ जुटाने की यह रणनीति पूरी सफल रही। लखनऊ कार्यक्रम की सफलता कांग्रेस नेताओं के सिर चढक़र बोल रही थी। कांग्रेस की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार शीला दीक्षित, प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर से लेकर प्रभारी गुलाम नबी आजाद तक सब गद्गद थे तो कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) के चेहरे पर सुकून देने वाले भाव थे। आखिर उनका पहला शो हिट रहा था। इस कामयाबी से पीके को ऊर्जा मिली जिसका नतीजा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में देखने को मिला। वाराणसी में लखनऊ से भी बड़ी कामयाबी कांग्रेस और पीके के हाथ लगी। लखनऊ में राहुल गांधी चेहरा थे तो वाराणसी में पीके ने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी पर दांव लगाया था। वाराणसी में लखनऊ की तरह जनसभा नहीं रखी गई थी, यहां सोनिया गांधी का करीब छह किलोमीटर लम्बा रोड शो था। रोड शो में खूब भीड़ जुटी। सोनिया के रोड शो की तुलना मोदी के रोड शो से होने लगी। सोशल मीडिया पर भी सोनिया का रोड शो कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम की वजह से पूरे दिन सोनिया इन काशी के नाम से टॉप पर ट्रेंड करता रहा। सोनिया भीड़ को देखकर गद्गद थीं, वह हाथ हिला−हिलाकर भीड़ का अभिवादन कर रही थीं, लेकिन अचानक उनकी तबीयत बिगडऩे लगी। एयरपोर्ट पर चार घंटे के इलाज के बाद उन्हें दिल्ली भेज दिया गया लेकिन तब तक कांग्रेस का काम हो चुका था। पीके की रणनीति यहां भी सफल रही थी। सोनिया की गैर−मौजूदगी में शीला दीक्षित और राज बब्बर ने रोड शो की कमान अपने हाथों में ले ली। शीला दीक्षित ने तो घोषणा भी कर दी कि अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो पूर्वांचल को विशेष पैकेज दिया जायेगा। एक सप्ताह में दो बड़े और कामयाब कार्यक्रम। इससे पहले दिल्ली से कानपुर तक कांग्रेस की बस यात्रा 27 साल, यूपी बेहाल में भी खूब भीड़ देखने को मिली थी। वाराणसी में सोनिया की तबीयत खराब हो गई तो शीला दीक्षित को स्वास्थ्य कारणों से बस यात्रा बीच में ही छोडक़र वापस आना पड़ा था। इसी तरह से नई जिम्मेदारी संभालने के बाद जब शीला दीक्षित और राज बब्बर का प्रथम लखनऊ आगमन हुआ था, तब भी कांग्रेसियों के जोश ने काफी उफान मारा था। खैर, प्रथम दृष्टया यूपी में 27 वर्षों के बाद कांग्रेस के दिन बहुरते दिख रहे हैं लेकिन इसमें कितनी हकीकत है और कितना फसाना है यह अगले साल ईवीएम खुलने के बाद ही पता चलेगा। कांग्रेस की यूपी में क्या स्थिति है इसका बारीकी से विश्लेषण किया जाये तो साफ नजर आता है कि भले ही कांग्रेसी तमाम दावे कर रहे हों, लेकिन कांग्रेस के लिये यूपी में राह बहुत ज्यादा आसान नहीं है। सबसे बड़ी बात तो यही है कि 2017 में चुनाव उत्तर प्रदेश विधानसभा के होने हैं, लेकिन कांग्रेसी अखिलेश सरकार से ज्यादा हमले केन्द्र की मोदी सरकार पर करने में लगे हैं। मानो यह विधानसभा नहीं लोकसभा का चुनाव हो। काशी में रोड शो करके भले ही कांग्रेस ने अपनी ताकत दिखा दी हो, मगर यहां से जो संदेश निकला है वह लखनऊ नहीं दिल्ली ही गया है। बात यहीं खत्म नहीं होती है। कांग्रेस ने चुनावी बिगुल तो बजा दिया है लेकिन उसे अभी तक यह भी नहीं पता है कि किस पार्टी या नेता के ऊपर कितना हलका या तगड़ा हमला किया जाये। ऐसा लगता है कि भले ही कांग्रेसी एकला चलो की बात कर रहे हों, लेकिन कहीं न कहीं अंदरखाने में उनकी नजर छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन पर भी लगी हुई है। सबसे बड़ी बात तो यही है कि फिलहाल कांग्रेसी अकेले ही ताल ठोंक रहे हैं, जब सपा-बसपा और भाजपा भी मैदान में कूदेंगे तब कांग्रेस की जमीनी स्थिति का सही-सही आकलन हो पायेगा।
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