Tuesday, 28 June 2016

गंगटोक को म्यूजियम में रखने लायक शहर भी कहा जाता है

डॉ. अरूण जैन
पर्वतराज हिमालय की गोद में बसा सिक्किम भारत के सुंदरतम राज्यों में से एक है। भारत में फूलों व पक्षियों की सर्वाधिक किस्में सिक्किम में ही पाई जाती हैं। आर्किड की विश्व भर में पाई जाने वाली लगभग पांच हजार प्रजातियों में से अकेले सिक्किम में 650 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं।  सिक्किम के मूल निवासी लेपचा और भूटिया हैं लेकिन यहां बड़ी तादाद में नेपाली भी रहते हैं। अधिकांश सिक्किमवासी बौद्ध एवं हिन्दू धर्म को मानते हैं। सिक्किम उन कुछेक राज्यों में शुमार है, जहां अभी रेल सुविधा नहीं है। सिक्किम की राजधानी गंगटोक देश का एक खूबसूरत हिल स्टेशन भी है। गंगटोक की खूबसूरती का अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि कुछ इतिहासकारों ने गंगटोक को म्यूजियम में रखने लायक शहर भी बताया है। गंगटोक शहर से आठ किलोमीटर दूर स्थित ताशी व्यू पाइंट से कंचनजंघा एवं सिनोलचू पर्वत शिखरों का बड़ा मनोहारी रूप दिखाई पड़ता है। बर्फ से ढकी इन चोटियों का धूप में धीरे−धीरे रंग बदलना भी एक अद्भुत समां बांधता है। सिक्किम के पूर्व राजाओं का राजमहल एवं परिसर में बने त्सुकलाखांग बौद्ध मंदिर की खूबसूरती देख कर पर्यटक अचंभित रह जाते हैं। यहां हर वर्ष भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है। शहर से तीन किलोमीटर दूर स्थित आर्किड सेंक्चुअरी में आर्किड की सैंकड़ों किस्में संरक्षित हैं। वसंत ऋतु में इस स्थान की शोभा निखरने लगती है। तिब्बती भाषा, संस्कृति व बौद्ध धर्म के शोधार्थियों के लिए रिसर्च इंस्टीट्यूट आफ तिब्बतोलोजी एक अद्वितीय संस्थान है। इसकी प्रसिद्धि विश्व भर में है। यहां संग्रहालय में दुर्लभ पांडुलिपियों, पुस्तकों, मूर्तियों, कलाकृतियों का अनूठा संग्रह है। विषेशकर थंका पेंटिंग का वृहदाकार रूप तो यहां के संग्रहालय की अनमोल धरोहर है। इस संस्थान की नींव 1957 में दलाई लामा ने डाली थी।  गंगटोक से लगभग सात किलोमीटर दूर गणेश टाक से गंगटोक के पूर्वी हिस्सों एवं कंचनजंघा पर्वतमाला का शानदार नजारा दिखता है। कुटीर उद्योग संस्थान हस्तनिर्मित वस्तुओं, विशेषकर शालों, गुडिय़ों, कालीनों आदि के लिए प्रसिद्ध हैं। उपहार में देने लायक अनेक सस्ती व उत्तम वस्तुओं की यहां से खरीदारी की जा सकती है। यह संस्थान मुख्य बाजार से केवल आधा किलोमीटर दूर है। पालजोर स्टेडियम के पास स्थित एक्वेरियम में सिक्किम में पाई जाने वाली मछलियों की खास−खास किस्में भी आप देख सकते हैं। गंगटोक से पैंतीस किलोमीटर दूर लगभग 12,120 फुट की ऊंचाई पर छंगु लेक है। अत्यंत पवित्र मानी जाने वाली यह झील लगभग एक किलोमीटर लंबी है। जाड़ों में जब यह झील पूरी तरफ से बर्फ से ढक जाती है तब इसकी खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरी यह झील प्रवासी पक्षियों की शरणगाह भी है। छंगु लेक के किनारे दुर्लभ याक की सवारी पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र है। गंगटोक से छंगु तक जाने के लिए जीप या टैक्सियां उपलब्ध रहती हैं। छंगु जाने के लिए परमिट बनवाना आवश्यक है। यह काम टूर एजेंट आसानी से करवा देते हैं। आप स्वयं पुलिस अधिकारी से संपर्क कर भी परमिट बनवा सकते हैं। गंगटोक से चौबीस किलोमीटर दूरी पर है, रूमटेक मठ। यह बौद्ध धर्म की काग्युत शाखा का मुख्यालय है। पूरे विश्व में रूमटेक मठ की 200 शाखाएं हैं। इस मठ का अपना एक विद्यालय है और रंगबिरंगे पक्षियों से सुसज्जित पक्षीशाला भी। मठ में विश्व की कुछ अद्भुत धार्मिक कलाकृतियां भी संग्रहीत हैं। हर साल जून माह में इस स्थान पर धार्मिक समारोह का आयोजन भी किया जाता है। 51.76 वर्ग किलोमीटर में फैला फंबोंग लो वाइल्ड लाइफ सेंक्चुअरी गंगटोक से पच्चीस किलोमीटर दूर है। यहां रोडोडेंड्रोन, ओक, किंबू, फर्न, बांस आदि का घना जंगल तो है ही साथ ही यह दर्जनों पशुओं का आवास भी है। सेंक्चुअरी में पक्षियों एवं तितलियों की अनेकानेक प्रजातियां मौजूद हैं। गंगटोक सड़क मार्ग द्वारा सिलिगुड़ी, न्यू जलपाईगुड़ी, बागडोगरा, दार्जिलिंग, कलिंगपोंग आदि शहरों से जुड़ा हुआ है। सिलिगुड़ी114 किलोमीटर, न्यू जलपाईगुड़ी−125 किलोमीटर गंगटोक के दो निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। बागडोगरा−124 किलोमीटर गंगटोक का निकटतम हवाई अड्डा है। बागडोगरा से पर्यटक हेलीकाप्टर द्वारा भी गंगटोक पहुंच सकते हैं। सिलिगुड़ी से गंगटोक जाने के लिए टैक्सियां एवं बसें आसानी से मिल जाती हैं। विदेशी पर्यटकों को सिक्किम में प्रवेश के लिए परमिट बनवाना आवश्यक है। विदेशियों के लिए अधिकतम पंद्रह दिन का परमिट बनता है। सिक्किम में पालीथीन नहीं मिलती। अगर आपको इनकी जरूरत हो तो अपने साथ ले कर जाएं।

तंत्र से नहीं होता किसी का अनिष्ट: कापालिक बाबा


डॉ. अरूण जैन
कापालिक महाकाल भैरवानंद सरस्वती ने गुप्त नवरात्रि को महत्वपूर्ण बताते हुए सभी साधकों को सलाह दी है है कि वे प्रतिदिन नियमित रूप से मां की आराधना करें, संभव हो तो अन्न ग्रहण न करें। साथ ही यदि हवन भी कर सके तो उत्तम होगा। आपने कहा कि यह एकदम मिथ्या-भ्रांति है कि गुप्त नवरात्रि में किसी अनिष्ट विशेष के लिए तंत्र साधना की जाती है। ऐसी कोई भी तंत्र साधना अथवा क्रिया नहीं होती ।
कापालिक बाबा ने गुप्त नवरात्रि के संदर्भ में इस प्रतिनिधि से चर्चा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि वर्ष में चार नवरत्रियां होती है जो हर तीन माह में आती है। जिनमें से दो गुप्त नवरात्रि कहलाती है और दो सार्वजनिक नवरत्रि होती है लेकिन चारों ही नवरात्रियों में साधना की क्रियाएं एक ही होती है। साधक चाहे तो 9 दिन व्रत रख सकता है। यदि 9 दिन केवल फलाहार पर रहा जाए तो उत्तम है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि अन्न खाने वाला साधना नहीं कर सकता। साधक को प्रतिदिन सबेरे नहा-धोकर मां की आराधना करना चाहिए। इस दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ आवयक रूप से करना चाहिए। इसके एक अध्याय का पाठ भी रोज किया जा सकता है अथवा पूरी दूर्गा सप्तशती भी प्रतिदिन पूरी की जा सकती है। इसके लिए कोई निर्धारित पैमाना नहीं है।
गुप्त नवरात्रि में कई तांत्रिकों द्वारा काले जादू के नाम से साधना की जाती है, इस प्रश्न पर कापालिक बाबा ने कहा कि ऐसी कोई साधना नहीं होती। कुछ लुच्चे-लफंगे किस्म के जो लोग तंत्र साधना के नाम पर व्यापार कर रहे है वे लोगों को इस दिशा में भरमाते है। ऐसी कोई भी साधना नहीं होती। साधना एक सामान्य आदमी द्वारा किस प्रकार की जाए, इस प्रश्न के उत्तर में कापालिक बाबा ने कहा कि जब व्यक्ति अपनी प्रातः की नित्य पूजा करता है तभी कम से कम 5 माला एक मंत्र की की जाना चाहिए। आपने कहा कि ये मंत्र है- ओम, एं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्छै । जरूरी नहीं है कि पांच माला जपी जाए, साधक समय और श्रद्धा के अनुरूप जितना चाहे इस मंत्र का जाप कर सकता है। इस जाप के समय मां के चित्र के सामने दीप जरूर जलना चाहिए और बैठने का आसन उन या घास का होना चाहिए। साधक अपना चेहरा पूर्व में या उत्तर में रखे। आपने कहा कि इस मंत्र के जाप से व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिल सकता है। माता के चित्र के समक्ष संध्या अथवा रात्रि को 10 से 15 मिनट हवन अवश्य करना चाहिए। तंत्र साधना को लेकर फैली भ्रांतियों का जिक्र करते हुए बाबा ने कहा कि कुछ ऐसे लोग जिन्हें तंत्र विद्या का रत्ती भर भी ज्ञान नहीं है, वे ही इन्हें जिंदा रखे हुए है लेकिन सामान्य जन को इससे भयभीत होने की आवश्यकता नही है। मूठ मारना, तंत्र क्रिया से फूंक मारना और किसी व्यक्ति विशेष्ज्ञ का अनिष्ट करना संभव ही नहीं है ये सब लोगों की धार्मिक आस्थाओं को ठगने का प्रयास है। लोगों को इससे बचना चाहिए। एक प्रश्न के उत्तर में आपने कहा कि गुप्त और सार्वजनिक नवरात्रियों में केवल इतना भर अंतर है कि बाद की नवरात्रियों पर समारोह किए जाते है।

जलती चिता पर सेंकी रोटियां और भूने आलू


डॉ. अरूण जैन
कापालिक महाकाल भैरवानंद सरस्वती ने बीती रात चक्रतीर्थ श्मशान पर मां काली की अनूठी आराधना की। जागृत चिता के समक्ष मंत्रोच्चार पूजा, प्रसादी निर्माण, भोग अर्पण और उज्जैन सिंहस्थ के लिए शांतिपूर्ण माहौल की प्रार्थना माता से की गई। शव साधना का यह अनोखा दृष्य था। जिस समय बाबा श्मशान पर साधना करने के लिए पहुंचे, उसी दौरान एक शव लेकर कुछ लोग वहां आ गए। हालांकि बाबा ने उस शव पर साधना नहीं की, अलबत्ता प्रज्जवलित हो रही एक चिता पर उन्होंने अपनी साधना प्रारंभ कर दी। लगभग 4 घंटे तक वे साधनारत रहे । इस दौरान चक्रतीर्थ पर कई लोग एकत्रित हो गए।
शाम 6 बजे:  कापालिक बाबा अंगारेश्वर महादेव के दर्शन के पश्चात अपनी कार में बैठे और अचानक आदेश हुवा चक्रतीर्थ श्मशान पर चलो। 15 मिनिट में चक्रतीर्थ के उपरी भाग पर स्थित शिव मंदिर जा पहुंचे। फिर आदेश हुवा-दिए, तेल, गेंहू का आटा, आलू, मसाले, फूल और अन्य सामग्री मंगाओ। तुरन्त पालन हुवा। समझ नही आ रहा था कि इन सबका क्या होगा ?
संध्या 7 बजे: बाबा एक खाली चिता स्थल पर जा बैठे। संकेत पर उनके शरीर से सारे वस्त्र उतारे गए। निर्वस्त्र कापालिक महाकाल ध्यान की मुद्रा में आलथी-पालथी मारकर बैठे। ठीक सामने एक चिता जागृत थी। इशारे से जागृत चिता की भस्म उठाकर शिष्यों ने बाबा के पूरे शरीर पर मली। और फिर शुरू हो गई मंत्रोच्चार के साथ मां काली की आराधना। मरघट में मंत्रों की आवाज अंधेरे में गूंज रही थी और सामने चिता धूं-धूं कर प्रज्जवलित थी। बाबा ने मंत्रोच्चार के साथ जल छिड़काव, मंदिरा छिड़काव किया। इसके पूर्व पांच दीप प्रज्जवलित कर चिता के चारों कोनों पर रख दिए गए थे। एक दीप मानव खोपड़ी के समक्ष प्रज्ज्वलित था। एक घंटे से अधिक समय तक जागृत चिता पर साधना चलती रही
रात्रि 8.30 बजे: आराधना पूरी कर बाबा ने जागृत चिता में, लाए हुए आलू भूनने के निर्देश दिए। चिता के अंगारो में आलू बूर दिए गए। फिर आटा गूंथने और टिक्कड़ बनाने के आदेश हुए। शिष्यों ने जैसे ही टिक्कड़ तैयार किए उन्हें जलती चिता पर सेंकने को कहा गया। आधे घंटे बाद आलू भुन चुके थे, टिक्कड सिक चुके थे। आलू छीलकर चूरा कर मसाला मिलाया गया और टिक्कड़ के साथ पूजा की थाल में रखकर मां काली का स्मरण करते हुए बाबा ने जागृत चिता में आहूति डाली। मां को भोग लगाने के बाद वही प्रसादी उपस्थित उन सैकड़ो भक्तों को भी दी गई जो पूजा आराधना देखने के लिए अब तक एकत्र हो चुके थे।
रात्रि 10.00 बजे: बाबा ने जागृत चिता के समक्ष स्वयं प्रसादी ग्रहण की। उसके बाद जागृत चिता की विधिवत परिक्रमा की गई और उसके समक्ष शीश नवाकर मां काली से सिंहस्थ में सुख-शांति की प्रार्थना की। आराधना पूरी होने पर बाबा ने अपने काले वस्त्र पुनः धारण किए और चक्रतीर्थ से वापस रवाना हो गए।

एक वो सिंहस्थ था, एक यह सिंहस्थ है

डॉ. अरूण जैन

वैसे तो देश के चार शहरों में प्रत्येक 12 वर्ष बाद कुंभ/सिंहस्थ होता है। लेकिन उज्जैन का यह अकेला महापर्व है जो सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है। यहां मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरू होने से (अप्रैल-मई) शिप्रा नदी पर कुंभ का योग बनता है। शेष तीनो स्थानों पर ये महापर्व कुंभ कहलाते हैं। हरिद्वार में मेष राशि में सूर्य और कुंभ राशि में गुरू आने पर (अप्रैल-मई) गंगा नदी तट पर कुंभ होता है। इलाहाबाद में मकर राशि में सूर्य और वृषभ राशि में गुरू (जनवरी-फरवरी) होने पर गंगा-जमुना-सरस्वती संगम पर कुंभ महापर्व होता है। नासिक में सिंह राशि में गुरू-चन्द्रमा और सूर्य (जुलाई-अगस्त) आने पर गोदावरी नदी तट पर कुंभ होता है। उज्जैन सिंहस्थ पर दस पुण्यप्रद योग भी बनते हैं, जो और कहीं नही बनते-अवंतिका नगरी, वैशाख मास, शुक्ल पक्ष, सिंह राशि में गुरू, मेष राशि में सूर्य, तुला राशि में चंद्र, स्वाति नक्षत्र, पूर्णिमा तिथि, व्यतिपात योग और सोमवार ।
प्राचीन उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार सन् 1732 में उज्जैन में पहला सिंहस्थ हुवा था, जब मराठों का मालवा क्षेत्र पर अधिपत्य था। प्रत्येक सिंहस्थ, कुंभों की तरह किसी न किसी कारण के लिए जाना जाता है। वैसे मुझे 1968 और 1969 के, दो वर्ष लगातार हुए सिंहस्थ से महापर्व का आंखो देखा ज्ञान है। ग्रह योग और तिथियों को लेकर शैव और वैष्णव अखाड़ो में विवाद की स्थिति बन गई थी। वैष्णव अखाड़ों ने सन् 1968 मंे सिंहस्थ मनाया। शैव अखाड़ो ने आने से इंकार कर दया। 1969 में शैव अखाड़ो में सिंहस्थ महापर्व मनाया। 1968 के महापर्व पर 48.50 लाख रूपए व्यय हुए और 69 के सिंहस्थ पर 20 लाख रूपए मंजूर हुए थे। सन् 1980 का सिंहस्थ कई मानों में उल्लेखनीय था। एक तो उज्जैन नया-नया संभागीय मुख्यालय बना था और संभागआयुक्त पद पर संतोष कुमार शर्मा जैसे आयएएस अधिकारी आये थे, जो प्रशासनिक कम, धार्मिक ज्यादा थे। उन्होने शहर में पौराणिक नामों की कई कॉलोनियां विकसित करवाई। उस सिंहस्थ में रिकांडो कंपनी द्वारा बनाई गई सड़के अगले दो सिहंस्थ तक याद की जाती रही, जिन पर पेट का पानी तक नहीं हिलता था। इस सिंहस्थ का सर्वाधिक काला पक्ष था मंगलनाथ क्षेत्र में संतों का आपसी विवाद। संतो ने अंकपात चौराहे पर प्रदर्शन किया। विवाद बढने पर पुलिस ने डंडे चलाए और बैरागी संतों को गिरफ्तार कर भेरूगढ़ जेल भेज दिया। आग की तरह खबर दिल्ली पहुंची और तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री ज्ञानी जेलसिंह आनन-फानन में विशेष वायुयान से उज्जैन पहुंचे। सभी संतों को छुड़वाया गया और ज्ञानीजी ने उनसे प्रत्यक्ष जाकर क्षमा याचना की, तब मामला शांत हुवा। इसके पहले और बाद में कभी सिंहस्थ में ऐसी स्थिति निर्मित नही हुई। तीन शाही स्नानों को लेकर शैव और वैष्णव अखाड़ों के मध्य एक और विवाद हुवा था, पर वरिष्ठ धर्माचार्यों ने उसे सुलझा लिया। इस महापर्व का उजला पक्ष था स्थायी प्रकृति के सर्वाधिक कार्य होना। 10 करोड़ में से 9 करोड़ रूपए इन कामों पर खर्च हुए जिसमें माधवनगर ओवरब्रिज का 12 फीट चौड़ीकरण, बड़नगर रपट का 10 फीट चौड़ीकरण, गंभीर जल प्रदाय योजना, जीवाजीगंज अस्पताल, रिकांडो की सड़के और खान नदी प्रदूषण पर नियंत्रण। सन् 1992 का सिंहस्थ शताब्दी का अंतिम सिंहस्थ था। मेला क्षेत्र दुगुना हो गया। 100 करोड़ रूपए से भी ज्यादा खर्चा सरकार ने किया। स्थायी प्रकृति के काफी काम हुए। भूमि आवण्टन, समतलीकरण और जन सुविधा केन्द्र व्यवस्थित न होने से विवाद हुए। अंतिम शाही स्नान के दूसरे ही दिन अखाड़ों के नलों में पानी बंद हो गया, शौचालय उखाड़े जाने लगे। दूध का वितरण बंद हो गया। अग्नि अखाड़े के पीठाधीश्वर प्रकाशानंद जी के शिविर में बम मिला, पर इन सब विवादों पर प्रशासन ने सूझबूझ से नियंत्रण कर लिया। इस महापर्व पर सबसे बड़ी भद्द सरकार की हुई, संत आसाराम को लेकर। ग्वालियर राज्य की महारानी रही श्रीमती विजयाराजे सिंधिया सिंहस्थ समिति की अध्यक्ष थी। समापन पर संतों के सम्मान में आसाराम को मंच पर बिठा दिया गया। सारे अखाड़े उन्हे संत मानने पर उखड़कर मंच से उतर गए। श्रीमती सिंधिया दौड़कर रोते हुए मंच से उतरी और संतों से हाथ जोड़कर माफी मांगी। आसाराम को मंच से उतारकर वापस भेजने के बाद संत शांत हुए। इस महापर्व में हुई दो आगजनी में ढाई करोड़ की संपत्ति नष्ट हो गई। सन् 2004 के सिंहस्थ की शुरूआती तैयारी कांग्रेस सरकार ने दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री रहते की, 217 करोड़ रूपए स्वीकृत हुए। आरोपित है कि उन्होने पूरे मेला क्षेत्र को लिंटरलेंड नामक बहुराष्ट्रीय कंपनी को 7 करोड़ रूपए में बेच दिया और एक पुस्तक लिखने का अनुबंध भी एक करोड़ रूपए में विदेशी प्रकाशक हेडन से कर लिया। लेकिन सिंहस्थ प्रारंभ होने के पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा अस्तित्व में आ गई और उमाश्री भारती ने मुख्यमंत्री बनकर महापर्व करवाया। सारे विदेशी अनुबंध निरस्त किए गए। उमाश्री भारती के शासन ने दो गंभीर चूकें कर दी। महापर्व के तीन माह पूर्व संड़क चौड़ीकरण का अध्याय खोल दिया गया। शहर धूल धूसरित हो गया। ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास और पद्मभूषण सूर्यनारायण व्यास के मकान के हिस्से भी तोड़े गए। दूसरे चामुंडा माता चौराहे की एक मस्जिद पुलिस और प्रशासन नही हटा पाया। विरोध प्रदर्शन और पत्थरबाजी में आईजी सरबजीतसिंह घायल हुए, शहर कर्फ्यू के आगोश में चला गया। पहली बार सिंहस्थ का राजनीतिकरण हुवा। संतों ने ही संतों को शिप्रा स्नान से वंचित कर दिया। मेला प्रशासन के कई आवण्टन अखाड़ा परिषद ने निरस्त कर दिए। मुख्यमंत्री भी परिषद की गोद में बैठ गई। 40 खालसाओं के पांच हजार संत शाही स्नान के एक दिन पूर्व उज्जैन छोड़ गए। इसके पूर्व कलेक्टर राजेश राजौरा की संतों द्वारा मारपीट की घटना भी हुई।

विदेशी पूंजी का स्वागत है, पर सतर्कता बरतना जरूरी

डॉ. अरूण जैन
विदेशी पूंजी के सीधे निवेश पर भारत सरकार ने बहुत साहसिक निर्णय किया है। स्वयं भाजपा जिन क्षेत्रों में विदेशी पूंजी का डटकर विरोध करती रही है, सरकार ने लगभग वे सारे क्षेत्र खोल दिए हैं। कई क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें विदेशी कंपनियां शत प्रतिशत पैसा लगा सकती हैं और उसके लिए उन्हें रिजर्व बैंक की अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि भारतीय कंपनियों का जो अरबों-खरबों रुपया विदेशी बैंकों में दबा पड़ा है, अब देश के काम आएगा। अभी स्थिति यह है कि देश में विदेशी पूंजी लगाने वालों को भी नौकरशाही जाल काटने में बड़ी ताकत लगानी पड़ती थी और ऊपर से रिश्वत अलग देनी पड़ती थी। विश्व-बैंक की रपट का कहना है कि इस समय चीन और अमेरिका से भी ज्यादा विदेशी पूंजी भारत में आने को तैयार बैठी है। 2015-16 में 55.5 बिलियन डालर का निवेश भारत में हो चुका है। यदि अगले दो-तीन वर्षों में 5 ट्रिलियन डालर तक की पूंजी भारत आ जाए तो भारत का नक्शा ही बदल जाएगा। हर क्षेत्र में लाखों छोटे-बड़े रोजगार पैदा हो जाएंगे। भारत में बनी चीजें सस्ती पड़ेंगी और वे एशिया-अफ्रीका ही नहीं, यूरोप और अमेरिका के बाजारों में भी छा जाएंगी। यदि आधुनिकतम हथियार भारत में बनने लगें तो भारत का निर्यात तो बढ़ेगा ही, भारत कई नई मौलिक तकनीकों का स्वामी भी बन जाएगा। लेकिन विदेशी पूंजी या बड़ी पूंजी अपने साथ कई बुराइयां भी ले आती है। हम जरा चीन से कुछ सीखें। पिछले 25 साल में विदेशी पूंजी ने चीन के चरित्र को ही बदल दिया। उसे एक उपभोक्तावादी समाज बना दिया। शांघाई और पेइचिंग की चमक-दमक लंदन और न्यूयार्क से ज्यादा हो गई है लेकिन लोग गांवों में भूखे मरते हैं, गंदगी के नरक में सड़ रहे हैं और अपराधों के मारे बड़े-बड़े शहर कांप रहे हैं। अब वहां विदेशी पूंजी भी ठिठक गई है। वह आपका भला करने नहीं अपना फायदा करने आती है। यदि हमारे नेता भी चीन की-सी चकाचौंध में फंस गए तो भारत का बेड़ा गर्क होने से कोई रोक नहीं सकता। विदेशी पूंजी का स्वागत करने वाली सरकार को 'दाम बांधोÓ नीति बनानी होगी, रोजगार नीति लागू करनी होगी, मुनाफे की सीमा बांधनी होगी और हथियार-निर्माण पर विशेष निगरानी रखनी होगी। भारतीय किसानों, मजदूरों और कारखानेदारों का विशेष ध्यान रखना होगा। यदि इन सब बातों का ध्यान नहीं रखा गया और हमारे पांव उखड़ गए तो भारतीय संस्कृति और जीवन-पद्धति की हानि काफी गहरी होगी।

 शिवराज सरकार के मंत्रीमंडल का विस्तार लगभग तय


डॉ. अरूण जैन
सुत्रो के हवाले से खबर 27 जुन को मप्र शिवराज सरकार के मंत्री मंडल का विस्तार लगभग तय , एंव सुत्रो को मिली जानकारी के अनुसार इन चार विधायको का तो मंत्री बनना लगभग तय अंतिम मुहर  लगना बाकी । एंव सुत्रो के मुताबिक इनके मंत्री पद भी लगभग तय । 1) मल्हारगढ विधानसभा से पुर्व मंत्री जगदिश देवडा , को गृहमंत्री बनाया जा सकता है  2)नारेला विधानसभा से विश्वास सांरग  को जैल मंत्री बनाया जा सकता है  3 ) इंदौर2 विधानसभा से रमेश मेंदौला को श्रम मंत्री बनाया जा सकता है  4) भोपाल से रामेश्वर शर्मा  को राज्यमंत्री बनाया जा सकता है । इन पर लग सकती है अंतिम मुहर । मध्यप्रदेश मंत्री मंडल विस्तार भ्रष्ट मंत्रियों के बदलेगे विभाग...मध्यप्रदेश मे मंत्री मंडल के विस्तार की चर्चाओं की पुष्टि होते ही जहां दावेदार की सक्रीयता बढ गई है।वही वर्षों से सरकार मे जमे कुछ मंत्रियों को हटाकर संघठन के काम मे लगाया जा सकता है। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे कुछ मंत्रियों के विभागों मे फेरबदल किए जाने के संकेत है। शिवराज सरकार के इस विस्तार को मंत्री मंडल का 2018 चुनाव तक का अंतिम विस्तार माना जा रहा है।वर्तमान मंत्री मंडल मे एक दशक से ज्यादा समय से सरकार मे शामिल रहे है उनकी बायोग्राफी प्रदेश का खूफिया तंत्र लिखने मे जुटा है।सूत्र बताते है कि एक मंत्री अपने विभागों को बचाने की जुगत लगाने मे जुटे है वे अपने को मुख्यमंत्री के पसंदीदा मंत्री मे गिनवा कर खुद ही सौशल मीडिया मे संक्रीय बार लिखवा भी रहे है अच्छे प्रोफारमेंस के कारण विभागों मे फेरबदल संभव है लगातार चौथी बार प्रदेश की सरकार बनाने के लिए भाजपा संघठन को सत्ता विरोधी लहर चिंता सता रही है।प्रदेश संघठन उन मंत्रियों को लेकर उहापोह की स्थिति मे है जो सरकार मे मठाधीश बन चुके है।एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार कुछ मंत्री अपना क्षेत्र सुरक्षित कर अपने जिले मे केवल हम जीते की बिसात बिछाने मे जुटे है।सूत्रों की माने तो चंबल क्षेत्र से नरोत्तम मिश्रा को संसदीय कार्य मे सफल माना जा रहा है वही स्वास्थ्य विभाग बदनामी झेल रहा है।मालवा मे दीपक जोशी का कद बढाया जा रहा है।बुन्देलखंड मे कुसुम मेहदेले,जयंत मलैया,गोपाल भार्गव,भूपेन्द्र सिंह बडे चेहरे है।इन मंत्रियों मे मलैया और भार्गव के पास भारी भरकम विभाग है।मलैया के विभाग का जनता से सीधा जुडाव नही है ऐसी स्थिति मे पंचायत, ग्रामीण विकास, सहकारिता, समाजिक न्याय यह विभाग संघठन और सरकार की नजरों मे प्रमुखता से है।पंचायत और सहकारिता विभाग मे हुए घौटालो की चर्चाए दिल्ली के गलियारों मे भी चर्चित है। 

मोदी की सफल अमेरिकी यात्रा से चीन को चिंतित होना ही था

डॉ. अरूण जैन
अमेरिका के लिए नए संबंधों की वर्णमाला नरेंद्र मोदी ने रची है। यह वर्णमाला है भारत के हित साधने के लिए अंतरराष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन जिसे देखकर चीन का चिन्तित होना स्वाभाविक ही था। अमेरिकी संसद में भारतीय प्रधानमंत्री का शानदार संबोधन और अमेरिकी सांसदों को उनके भाषण के हर मिनट पर जोरदार करतल ध्वनि से स्वागत हर भारतीय के लिए सुखद, गर्वीली अनुभूति का कारण होना चाहिए। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और विपक्षी तेवर के विरोधी पहलू ऐसे मौकों पर भूल जाने चाहिए। खाड़ी के देशों और सऊदी अरब के सुन्नी क्षेत्रों के बाद शिया इरान की सफल यात्रा के भारत के प्रतिद्वंद्वी देशों की नींद उड़ा दी है। वे मानते थे कि हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा को मानने वाले जब सत्ता में आएंगे तो उनका न तो स्वदेश के विविध मतावलम्बी समुदायों के साथ सामंजस्य बैठेगा और न ही अतिरेकी तथा तीव्र वैचारिक भिन्नताओं वाले देशों से पट पाएगी। मुस्लिम देश और नरेंद्र मोदी? तौबा ही मानिए। अमेरिकी तथा यूरोपीय देशों के साथ मोदी का तालमेल? कोई कारण ही नहीं कि दोनों साथ जम पाएं। लेकिन यह भारत का बदलता मिजाज और बढ़ती धमक का ही नतीजा है कि न केवल लाहौर अचानक मोदी के आने से हक्का-बक्का रह गया बल्कि सऊदी अरब में भारतीयों ने भारत माता की जय के नारे लगाकर यह अंदाज बता दिया। अब अमेरिकी संसद में यदि वहां के सांसद चालीस बार तालियों से भारत के प्रधानमंत्री का स्वागत करते हैं तो यह मामला भाजपा-सपा-जद-कांग्रेस का नहीं बल्कि हिंदुस्तान को हो जाता है। दिलचस्प रहा चीन का खीझाकर बयान देना और भारत-अमेरिकी मैत्री के नए आयामों पर नकारात्मक बयान देना। क्यों? क्योंकि यह वह सहन नहीं कर पाया कि दो बड़े लोकतांत्रिक देश परमाणु शक्ति के क्षेत्र में सहयोग के लिए वचनबद्ध होकर चीन की परमाणु क्षेत्र में बढ़त को कम कर रहे हैं। परमाणु आपूर्ति समूल (एनएसजी) की सदस्यता भारत को मिले और वह विश्व की जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में उभरे यह चीन कतई नहीं चाहता। इसके पहले लखवी और मसूद अजहर के मामलों में भी चीन ने भारत का साथ नहीं दिया गया था विश्व-कुख्यात आतंकवादियों को कूटनीतिक रक्षा कवच प्रदान किया। ईरान के चाबहार बंदरगाह को विकसित करने, अफगानिस्तान की संसद के नए भवन और सलमा बांध के पूरे होने पर किए गए शानदार उद्घाटन का भी चीन और पाकिस्तान में दर्द भरा असर हुआ। भारतीय उपमहाद्वीप, जिसे अब सार्क या दक्षेस कहा जाने लगा है। चीन और पाकिस्तान भारत का बढ़ते देखना ही नहीं चाहते। जबकि इस क्षेत्र के साथ-साथ पूर्वी एशिया, दक्षिणपूर्वी एशिया एवं सुदूर पूर्व में भारत एक मैत्रीपूर्ण नेतृत्व की स्थिति रखता है। इसे अमेरिका, आस्ट्रेलियां, जापान, सिंगापुर, फिलीपीन्स, वियतनाम जैसे देश पूरी तरह समर्थन देते हैं जबकि चीन की प्रसारवादी नीतियों से उन्हें सदा आशंका रहती है। पिछले पखवाड़े शंगरीला संवाद में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर के भाषण तथा वियतनाम को ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र देने की पेशकश ने पूर्वी देशों को भारत की बढ़ती समुद्रीय आकांक्षाओं से आश्वस्त किया है। इस सभी देशों के साथ भारत के सैकड़ों वर्ष पुराने सांस्कृतिक सभ्यतामूलक मैत्री संबंध रहे हैं और इस कारण वहां के नेतृत्व और समाज में भारत के प्रति एक सहज आत्मीयता का भाव देखने को मिलता है। कांग्रेस के दो प्रधानमंत्रियों श्री नरसिंहाराव तथा डा. मनमोहन सिंह ने इसी वातावरण का भारत का हित में उपयोग किया तथा लुक-ईस्ट पालिसी अर्थात पूर्वोन्मुखी नीति का श्रेय उनको ही देना होगा। यह विडंबना ही है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने के बावजूद न तो भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता और वीटो शक्ति संपन्न राष्ट्रसंघ में स्थिति मिली और न ही परमाणु आपूर्ति समूह की सदस्यता सरलता से मिलती दिख रही है। जबकि चीन, जो दुनिया में परमाणु बम के भय का विस्तार करने वाला सबसे कुख्यात परमाणु प्रसारक देश है- दोनों स्थितियों का प्रभुत्व प्राप्त आक्रामक विदेश नीति का देश बना है। उसने ही पाकिस्तान, ईरान, अरब जैसे देशों को परमाणु तकनीक दी। उत्तरी कोरिया जैसे देश के सर्वाधिक निकट चीन ही माना जाता है और एशिया में अपनी हमलावर कूटनीति से उसने ऐसा वातावरण बना दिया है कि विश्लेषक मानने लगे हैं कि मध्य एशिया के तनाव अब पूर्वी एशिया के दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में स्थानांतरित हो रहे हैं। इस परिदृश्य में भारत का क्षेत्रीय शक्ति की धुरी बनना अपने लिए ही नहीं बल्कि आसपास के विश्व के लिए जरूरी है। यह अनिवार्य है कि भारत के राजनीतिक दल देश की मजबूती का एजेंडा जाति और निजी स्वार्थों की पूर्ति से बड़ा बने। पारिवारिक तथा अहंकार की निजी नेतृत्व केंद्रित राजनीति ने देश को बीस साल पीछे धकेल दिया। हममें सीना होना चाहिए कि मोदी की सफल विदेश नीति का गौरव मानने के साथ-साथ शिवराज सिंह चौहान, नीतिश कुमार, ममता और महबूबा की भी अच्छी नीतियों की प्रशंसा करें। दल और उनका रंग कोई भी हो, तिरंगे का मान और सम्मान बढ़े तो उसमें हर दल की इज्जत ही बढ़ती है। मोदी की सफल नीतियों, अमेरिका में मिला उनको सम्मान देश के लिए अच्छा ही मानना चाहिए। यह कह कर किसी का रूतबा कम नहीं होगा। परमाणु आपूर्ति समूह की सदस्यता का भारत के अनेकविध क्षेत्रों में व्यापक असर पड़ेगा। दवाओं के अनुसंधान के लिए आवश्यक सामग्री और उपकरण रक्षा निर्माण एवं चिकित्सा और संचार क्षेत्र में नवीनतम उपकरणों के आयात से बंधन हट जाएंगे और सामान्य गरीब लोगों की चिकित्सा एवं युवाओं के लिए नये कॅरियर विकल्प खुल जाएंगे। इसी कारण चीन भारत की बढ़त और इस नयी संभावना से परेशान है। जबकि भारत से किसी भी प्रकार के खतरे की आशंका होनी ही चाहिए। खतरा तो चीन से भारत को है इसलिए श्री नरेन्द्र मोदी की सफल अमेरिका यात्रा कई अर्थों के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुई है।