Tuesday 28 June 2016

गंगटोक को म्यूजियम में रखने लायक शहर भी कहा जाता है

डॉ. अरूण जैन
पर्वतराज हिमालय की गोद में बसा सिक्किम भारत के सुंदरतम राज्यों में से एक है। भारत में फूलों व पक्षियों की सर्वाधिक किस्में सिक्किम में ही पाई जाती हैं। आर्किड की विश्व भर में पाई जाने वाली लगभग पांच हजार प्रजातियों में से अकेले सिक्किम में 650 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं।  सिक्किम के मूल निवासी लेपचा और भूटिया हैं लेकिन यहां बड़ी तादाद में नेपाली भी रहते हैं। अधिकांश सिक्किमवासी बौद्ध एवं हिन्दू धर्म को मानते हैं। सिक्किम उन कुछेक राज्यों में शुमार है, जहां अभी रेल सुविधा नहीं है। सिक्किम की राजधानी गंगटोक देश का एक खूबसूरत हिल स्टेशन भी है। गंगटोक की खूबसूरती का अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि कुछ इतिहासकारों ने गंगटोक को म्यूजियम में रखने लायक शहर भी बताया है। गंगटोक शहर से आठ किलोमीटर दूर स्थित ताशी व्यू पाइंट से कंचनजंघा एवं सिनोलचू पर्वत शिखरों का बड़ा मनोहारी रूप दिखाई पड़ता है। बर्फ से ढकी इन चोटियों का धूप में धीरे−धीरे रंग बदलना भी एक अद्भुत समां बांधता है। सिक्किम के पूर्व राजाओं का राजमहल एवं परिसर में बने त्सुकलाखांग बौद्ध मंदिर की खूबसूरती देख कर पर्यटक अचंभित रह जाते हैं। यहां हर वर्ष भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है। शहर से तीन किलोमीटर दूर स्थित आर्किड सेंक्चुअरी में आर्किड की सैंकड़ों किस्में संरक्षित हैं। वसंत ऋतु में इस स्थान की शोभा निखरने लगती है। तिब्बती भाषा, संस्कृति व बौद्ध धर्म के शोधार्थियों के लिए रिसर्च इंस्टीट्यूट आफ तिब्बतोलोजी एक अद्वितीय संस्थान है। इसकी प्रसिद्धि विश्व भर में है। यहां संग्रहालय में दुर्लभ पांडुलिपियों, पुस्तकों, मूर्तियों, कलाकृतियों का अनूठा संग्रह है। विषेशकर थंका पेंटिंग का वृहदाकार रूप तो यहां के संग्रहालय की अनमोल धरोहर है। इस संस्थान की नींव 1957 में दलाई लामा ने डाली थी।  गंगटोक से लगभग सात किलोमीटर दूर गणेश टाक से गंगटोक के पूर्वी हिस्सों एवं कंचनजंघा पर्वतमाला का शानदार नजारा दिखता है। कुटीर उद्योग संस्थान हस्तनिर्मित वस्तुओं, विशेषकर शालों, गुडिय़ों, कालीनों आदि के लिए प्रसिद्ध हैं। उपहार में देने लायक अनेक सस्ती व उत्तम वस्तुओं की यहां से खरीदारी की जा सकती है। यह संस्थान मुख्य बाजार से केवल आधा किलोमीटर दूर है। पालजोर स्टेडियम के पास स्थित एक्वेरियम में सिक्किम में पाई जाने वाली मछलियों की खास−खास किस्में भी आप देख सकते हैं। गंगटोक से पैंतीस किलोमीटर दूर लगभग 12,120 फुट की ऊंचाई पर छंगु लेक है। अत्यंत पवित्र मानी जाने वाली यह झील लगभग एक किलोमीटर लंबी है। जाड़ों में जब यह झील पूरी तरफ से बर्फ से ढक जाती है तब इसकी खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरी यह झील प्रवासी पक्षियों की शरणगाह भी है। छंगु लेक के किनारे दुर्लभ याक की सवारी पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र है। गंगटोक से छंगु तक जाने के लिए जीप या टैक्सियां उपलब्ध रहती हैं। छंगु जाने के लिए परमिट बनवाना आवश्यक है। यह काम टूर एजेंट आसानी से करवा देते हैं। आप स्वयं पुलिस अधिकारी से संपर्क कर भी परमिट बनवा सकते हैं। गंगटोक से चौबीस किलोमीटर दूरी पर है, रूमटेक मठ। यह बौद्ध धर्म की काग्युत शाखा का मुख्यालय है। पूरे विश्व में रूमटेक मठ की 200 शाखाएं हैं। इस मठ का अपना एक विद्यालय है और रंगबिरंगे पक्षियों से सुसज्जित पक्षीशाला भी। मठ में विश्व की कुछ अद्भुत धार्मिक कलाकृतियां भी संग्रहीत हैं। हर साल जून माह में इस स्थान पर धार्मिक समारोह का आयोजन भी किया जाता है। 51.76 वर्ग किलोमीटर में फैला फंबोंग लो वाइल्ड लाइफ सेंक्चुअरी गंगटोक से पच्चीस किलोमीटर दूर है। यहां रोडोडेंड्रोन, ओक, किंबू, फर्न, बांस आदि का घना जंगल तो है ही साथ ही यह दर्जनों पशुओं का आवास भी है। सेंक्चुअरी में पक्षियों एवं तितलियों की अनेकानेक प्रजातियां मौजूद हैं। गंगटोक सड़क मार्ग द्वारा सिलिगुड़ी, न्यू जलपाईगुड़ी, बागडोगरा, दार्जिलिंग, कलिंगपोंग आदि शहरों से जुड़ा हुआ है। सिलिगुड़ी114 किलोमीटर, न्यू जलपाईगुड़ी−125 किलोमीटर गंगटोक के दो निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। बागडोगरा−124 किलोमीटर गंगटोक का निकटतम हवाई अड्डा है। बागडोगरा से पर्यटक हेलीकाप्टर द्वारा भी गंगटोक पहुंच सकते हैं। सिलिगुड़ी से गंगटोक जाने के लिए टैक्सियां एवं बसें आसानी से मिल जाती हैं। विदेशी पर्यटकों को सिक्किम में प्रवेश के लिए परमिट बनवाना आवश्यक है। विदेशियों के लिए अधिकतम पंद्रह दिन का परमिट बनता है। सिक्किम में पालीथीन नहीं मिलती। अगर आपको इनकी जरूरत हो तो अपने साथ ले कर जाएं।

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