Tuesday, 28 June 2016

विदेशी पूंजी का स्वागत है, पर सतर्कता बरतना जरूरी

डॉ. अरूण जैन
विदेशी पूंजी के सीधे निवेश पर भारत सरकार ने बहुत साहसिक निर्णय किया है। स्वयं भाजपा जिन क्षेत्रों में विदेशी पूंजी का डटकर विरोध करती रही है, सरकार ने लगभग वे सारे क्षेत्र खोल दिए हैं। कई क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें विदेशी कंपनियां शत प्रतिशत पैसा लगा सकती हैं और उसके लिए उन्हें रिजर्व बैंक की अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि भारतीय कंपनियों का जो अरबों-खरबों रुपया विदेशी बैंकों में दबा पड़ा है, अब देश के काम आएगा। अभी स्थिति यह है कि देश में विदेशी पूंजी लगाने वालों को भी नौकरशाही जाल काटने में बड़ी ताकत लगानी पड़ती थी और ऊपर से रिश्वत अलग देनी पड़ती थी। विश्व-बैंक की रपट का कहना है कि इस समय चीन और अमेरिका से भी ज्यादा विदेशी पूंजी भारत में आने को तैयार बैठी है। 2015-16 में 55.5 बिलियन डालर का निवेश भारत में हो चुका है। यदि अगले दो-तीन वर्षों में 5 ट्रिलियन डालर तक की पूंजी भारत आ जाए तो भारत का नक्शा ही बदल जाएगा। हर क्षेत्र में लाखों छोटे-बड़े रोजगार पैदा हो जाएंगे। भारत में बनी चीजें सस्ती पड़ेंगी और वे एशिया-अफ्रीका ही नहीं, यूरोप और अमेरिका के बाजारों में भी छा जाएंगी। यदि आधुनिकतम हथियार भारत में बनने लगें तो भारत का निर्यात तो बढ़ेगा ही, भारत कई नई मौलिक तकनीकों का स्वामी भी बन जाएगा। लेकिन विदेशी पूंजी या बड़ी पूंजी अपने साथ कई बुराइयां भी ले आती है। हम जरा चीन से कुछ सीखें। पिछले 25 साल में विदेशी पूंजी ने चीन के चरित्र को ही बदल दिया। उसे एक उपभोक्तावादी समाज बना दिया। शांघाई और पेइचिंग की चमक-दमक लंदन और न्यूयार्क से ज्यादा हो गई है लेकिन लोग गांवों में भूखे मरते हैं, गंदगी के नरक में सड़ रहे हैं और अपराधों के मारे बड़े-बड़े शहर कांप रहे हैं। अब वहां विदेशी पूंजी भी ठिठक गई है। वह आपका भला करने नहीं अपना फायदा करने आती है। यदि हमारे नेता भी चीन की-सी चकाचौंध में फंस गए तो भारत का बेड़ा गर्क होने से कोई रोक नहीं सकता। विदेशी पूंजी का स्वागत करने वाली सरकार को 'दाम बांधोÓ नीति बनानी होगी, रोजगार नीति लागू करनी होगी, मुनाफे की सीमा बांधनी होगी और हथियार-निर्माण पर विशेष निगरानी रखनी होगी। भारतीय किसानों, मजदूरों और कारखानेदारों का विशेष ध्यान रखना होगा। यदि इन सब बातों का ध्यान नहीं रखा गया और हमारे पांव उखड़ गए तो भारतीय संस्कृति और जीवन-पद्धति की हानि काफी गहरी होगी।

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