Tuesday 28 June 2016

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा बहुत सार्थक रही

डॉ. अरूण जैन
अमेरिका-यात्रा सबसे अधिक सार्थक रही। कोरी भाषणबाजी और नौटंकी तो पिछले दो साल से चलती रही है। हालांकि इस छवि-निर्माण का भी कम महत्व नहीं है लेकिन अमेरिका के साथ घनिष्टता के जो बीज अटलबिहारी वाजपेयी सरकार ने बोए थे और मनमोहन सरकार के दिनों में जो अंकुरित हुए थे, वे अब पुष्पित और फलित हो रहे हैं। इस प्रक्रिया में मोदी के नौटंकीपूर्ण व्यक्तित्व का भी कुछ न कुछ योगदान जरूर है। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के साथ उनके व्यक्तिगत समीकरणों और हमारे विदेश सचिव जयशंकर (अमेरिका में रहे हमारे पूर्व राजदूत) के व्यक्तिगत संबंधों ने अमेरिकी नीति-निर्माताओं को मजबूर किया कि वे भारत के बारे में खुली घोषणा कर दें। तभी ओबामा ने कह दिया कि परमाणु सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत की सदस्यता का अमेरिका डटकर समर्थन करेगा। इसके अलावा जो ठोस उपलब्धि हुई है, वह यह कि 'प्रक्षेपास्त्र तकनीक नियंत्रण संगठनÓ (एमटीसीआर) की सदस्यता भी भारत को मिल गई है। बस उसकी औपचारिक घोषणा बाकी है। भारत की सदस्यता पर कुछ देशों ने आपत्ति की थी। उस आपत्ति को जताने की अंतिम तिथि 6 जून को पूरी हो गई है। 34 में से एक भी देश भारत के विरुद्ध नहीं गया। अब भारत को सर्वश्रेष्ठ मिसाइल और तकनीकों को खरीदने और अपने सुपरसोनिक क्रूज और ब्राह्मोज़ मिसाइल बेचने की सुविधा मिल जाएगी। जाहिर है कि यह सुविधा अमेरिकी समर्थन के बिना नहीं मिल सकती थी। इसके साथ-साथ 2008 में हुआ भारत-अमेरिकी परमाणु-सौदा अधर में लटका हुआ था। अब उसके तहत आंध्र में छह परमाणु-भट्टियों पर काम शुरु हो जाएगा। जहां तक 'परमाणु सप्लायर्स ग्रुपÓ की सदस्यता का सवाल है, अब सिर्फ चीन का अड़ंगा बना रह सकता है लेकिन अब चीन ने भी मीठे-मीठे संकेत भेजने शुरू कर दिए हैं।  चीन को लगने लगा है कि ओबामा की प्रारंभिक चीनीपरस्त नीति का समापन भारतपरस्ती से होने वाला है। अब चीन भी एनएसजी में कितने दिन अडंगा लगाएगा? मोदी और ओबामा ने जलवायु संबंधी पेरिस समझौते पर सहमति व्यक्त की है। सैन्य-सुविधाओं के लिए सहयोग समझौता भी तैयार है। हमारे विदेश मंत्रालय के अफसरों ने सही ज़मीन तैयार की है। वे बधाई के पात्र हैं लेकिन मोदी नेता हैं। उन्हें बोलने का शौक है। उन्हें ध्यान रखना होगा कि वे अपने मुंह से कोई ऐसी बात न बोलें, जिससे चीन और पाकिस्तान के इन ताजा घावों पर नमक छिड़का जाए। वे तो पहले से ही परेशान हैं। यदि चीन हमें अब चीनी परोस रहा है तो मिश्री घोलने में हमारा क्या बिगड़ रहा है?

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