Tuesday 28 June 2016

नवविवाहितों के घूमने के लिए ऊटी बढिय़ा जगह


डॉ. अरूण जैन
दक्षिण भारत में ऊटी से सुंदर कोई पर्यटन स्थल नहीं है। इस सुरम्य स्थल से बहुत सी ऐतिहासिक कथाएं भी जुड़ी हैं। ऊटी पहुंचने के लिए मेट्टावलयम से छोटी पहाड़ी रेल से जाना चाहिए जोकि पहाड़ों के बीच से होती हुई गुजरती है। यहां पहाड़ी क्षेत्रों में चलने वाली खिलौना गाड़ी दिखाई नहीं देगी। ऊटी भारत का एकमात्र मीटर गेज पहाड़ी रेल मार्ग है। मद्रास के तत्कालीन राज्यपाल लार्ड वैनलॉक की देखरेख में स्विस तकनीक द्वारा इस रेल मार्ग का निर्माण कराया गया था। ऊटी का वनस्पति उद्यान पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है। इस वनस्पति उद्यान की नींव क्यू गार्डन के श्री जॉनसन ने रखी थी। वह अपने साथ इंग्लैण्ड से नाव में जितनी भी किस्मों व जातियों के पेड़−पौधे ला सकते थे, लाये व इस उद्यान को हर प्रकार से विकसित किया। यहां की लाल मिट्टी अत्यंत समृद्ध है तभी तो यहां किसी भी किस्म या जाति का पौधा पनप जाता है साथ ही विभिन्न प्रकार के फल-फूल भी पैदा किए जा सकते हैं। बीते दिनों की यादें ऊटी क्लब में जीवंत हो उठती हैं। ऊटी क्लब में कदम रखना विक्टोरियन इंग्लैण्ड की टाइम मशीन में सवार होने की भांति है। ताश खेलने की मेजों से सजा रमी रूम, आखेट ट्राफियों से भरा बार, ऊटी के जंगलों में शिकार की तस्वीरों से सुसज्जित कक्ष और एकमात्र बिलिर्यड कक्ष जहां पर स्नूकर खेलने के नियम लिखे हुए हैं। यही नहीं यहां की गतिविधियों पर निगाह रखती सूलीवन की तस्वीर भी यहीं पर मौजूद है। दक्कन में दोड्डा-बेट्टा सबसे ऊंची चोटी है जिसकी ऊंचाई 8000 फुट है। यह स्थान शिकार के लिए आरंभ बिंदु है। किसी समय परी कथाओं की तरह यह स्थान वाइल्ड लाइफ सेन्चुरी था लेकिन शिकारियों की बढ़ती संख्या ने सब खत्म कर दिया। अब यहां कुछ भी नहीं है। दोड्डा-बेट्टा ऊटी से 10 किलोमीटर दूर है। नवविवाहितों के घूमने के लिए ऊटी बढिय़ा जगह है। यदि आप ऑफ सीजन अर्थात सर्दियों में पहाड़ पर जाना पसंद करते हैं तो भी यहां का प्राकृतिक सौंदर्य अलग ही सुरम्यता व आकर्षण लिए हुए दिखाई देगा। सर्दियों में यहां भीड़-भाड़, शोरगुल व पर्यटकों का आना भी कम होता है। दूसरे उस मौसम में प्रकृति का छिपा हुआ सौंदर्य वादियों में अलग ही छटा बिखेरता हुआ दिखाई देता है। चारों ओर हरीतिमा ही हरीतिमा और विभिन्न प्रकार के देशी−विदेशी पेड़-पौधे पर्यटकों को मुग्ध कर देते हैं और यदि आप यहां थोड़ी देर के लिए रुकेंगे तो हर झाड़ी, हर पेड़ में से पहाड़ी बुलबुल की मीठी−मीठी आवाज आपको सुनाई देगी। शायद ही ऐसा कोई पेड़ होगा जहां कि बुलबुल का जोड़ा न बैठा हो। ऊटी आने के लिए निकटतम हवाई अड्डा कोयम्बटूर है। यहां से बस, रेल और कार द्वारा ऊटी पहुंचा जा सकता है। ऊटी रेल मार्ग से भी आया जा सकता है यदि आप यहां बस से आना चाहें तो कोयम्बटूर, मैसूर, बैंगलोर और आसपास के दूसरे शहरों से बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं।

No comments:

Post a Comment