Tuesday 10 July 2018

नरेंद्र मोदी के लिए दोबारा सत्ता में आना आसान नहीं होगा

डाॅ. अरूण जैन
पूर्वोत्तर में जीत पर देशभर में जश्न मनाने वाली बीजेपी को 10 दिन बाद तगड़ा झटका लगेगा इसका अंदाजा पार्टी के दिग्गजों को भी नहीं होगा। यूपी और बिहार में हुए उपचुनाव में मिली करारी हार ने बीजेपी में खलबली मचा दी है। 25 साल बाद त्रिपुरा में लेफ्ट का किला ढहाने के बाद जो बीजेपी अपनी जीत पर इतरा रही थी उपचुनाव के नतीजे के बाद उसी बीजेपी के दफ्तर में सन्नाटा पसरा था। बिहार में मिली हार को बीजेपी पचा भी ले लेकिन यूपी के गोरखपुर और फूलपुर में उसका हारना बड़े खतरे का इशारा कर रहा है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर में बीजेपी 28 साल से जीत रही थी...मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी ने जब गोरखपुर सीट छोड़ी थी तो बीजेपी को कहीं से इसका अंदाजा नहीं था कि ये सीट उसके हाथ से निकल जाएगी...लेकिन जब उपचुनाव के नतीजे आए तो योगी से लेकर पार्टी का हर बड़ा नेता हैरान रह गया। वैसे योगी ने इसे जनता का जनादेश बताकर हार तो मान ली...लेकिन साथ में ये भी माना कि उनकी पार्टी अति आत्मविश्वास के कारण हारी। बीजेपी को झटका सिर्फ गोरखपुर में ही नहीं लगा...फूलपुर सीट जहां पिछले चुनाव में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भारी बहुमत से जीत हासिल की थी वहां भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। फूलपुर में एसपी उम्मीदवार ने बीजेपी उम्मीदवार को 59000 से ज्यादा मतों से हराया। गोरखपुर और फूलपुर में बीजेपी को मिली हार के पीछे ज्यादातर लोगों की यही राय है कि ऐसा इसलिए मुमकिन हुआ क्योंकि अखिलेश और मायावती साथ आ गए। मायावती ने दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे और उन्होंने समाजवादी पार्टी को समर्थन देने का एलान कर दिया। ये बात सही है कि अगर इन दोनों सीटों पर बीएसपी अपना उम्मीदवार उतारती तो उसका फायदा बीजेपी को मिलता...लेकिन हार तो हार होती है।  अब बिहार की बात करते हैं...अररिया लोकसभा सीट पर आरजेडी उम्मीदवार का बड़े अंतर से जीतना न सिर्फ बीजेपी के लिए बल्कि नीतीश कुमार के लिए भी बड़ा झटका है। लालू के जेल में रहते अररिया लोकसभा और जहानाबाद विधानसभा सीट पर आरजेडी उम्मीदवार की बड़ी जीत ने तेजस्वी को एक बड़े नेता के तौर पर पेश किया है। बीजेपी ने भभुआ विधानसभा उपुचनाव में जीत हासिल कर अपनी लाज तो बचा ली...लेकिन यूपी और बिहार में मिली हार ये बता रही है कि बीजेपी के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव आसान नहीं होगा। वैसे 2019 को लेकर अखिलेश की पार्टी से मायावती ने अभी गठबंधन का एलान नहीं किया है...लेकिन उपचुनाव नतीजे के बाद अखिलेश का मायावती की तारीफ करना और फिर लखनऊ में उनके घर जाकर उनसे एक घंटे तक मुलाकात करना बताता है कि बीजेपी को हराने के लिए दोनों साथ आ सकते हैं। दो दिन पहले दिल्ली में सोनिया गांधी के घर 10 जनपथ पर हुई डिनर पार्टी में 20 विपक्षी दलों के नेताओं का पहुंचना साफ-साफ बताता है कि विपक्ष ने 2019 में मोदी को हराने के लिए रणनीति तैयार कर ली है। अगर 2019 में यूपी में बीएसपी-एसपी साथ-साथ चुनाव लड़ती हैं तो बीजेपी की राह काफी मुश्किल हो जाएगी। महाराष्ट्र में पिछली बार कांग्रेस-एनसीपी अलग-अलग चुनाव लड़ी थीं...लेकिन सोनिया के घर डिनर पार्टी में पहुंचकर शरद पवार ने संकेत दे दिया है कि अब आगे ये गलती नहीं दोहराएंगे। बीजेपी से नाराज शिवसेना अगर लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन तोडऩे का एलान कर डाले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।  आंध्र प्रदेश में जो हो रहा है वो सभी को मालूम है....राज्य को विशेष दर्जे की मांग को लेकर टीडीपी सांसदों ने संसद नहीं चलने दी...और तो और उसके दो मंत्रियों ने इस्तीफा भी सौंप दिया। बंगाल में बीजेपी को हराने के लिए ममता और कांग्रेस साथ आ सकती है। मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए विपक्ष आपसी मतभेद भुलाकर साथ आने को तैयार है। अगर कांग्रेस बीजेपी के विरोधियों को एकजुट करने में कामयाब हो जाती है तो फिर मोदी के लिए दोबारा सत्ता में आना आसान नहीं होगा। आज अगर राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव हुए तो वहां बीजेपी के लिए वापसी करना आसान नहीं होगा। राजस्थान में हुए उपचुनाव में हार के बाद वसुंधरा के खिलाफ बगावत के सुर तो नरम पड़ गए हैं लेकिन वहां कांग्रेस का पलड़ा भारी दिख रहा है। यही हाल मध्य प्रदेश का है। तो क्या देश में मोदी का जादू खत्म हो रहा है...क्या मोदी के खिलाफ विपक्ष का एकजुट होना ही बीजेपी के लिए खतरा है..अब बीजेपी को भले ही इसका अहसास नहीं हो लेकिन यूपी और बिहार में हुए उपचुनाव के नतीजे इस बात के संकेत दे रहे हैं कि जो जनता कल तक बीजेपी के साथ थी अब वो धीरे-धीरे उसके खिलाफ हो रही है। गोरखपुर जैसी सीट पर बीजेपी का हारना ये बताता है कि लोग गुस्से में हैं...कई लोगों का ये भी मानना है कि शाइनिंग इंडिया की तरह उनका अच्छे दिन वाला जुमला ही बीजेपी को ले डूबेगा।

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