डाॅ. अरूण जैन
इसी साल होने वाले चुनाव में कांग्रेस सरकार बदलने में सफल हो न हो, पर भाजपा से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि वह मुख्यमंत्री बदल सकती है। मध्य प्रदेश में बदलाव की आहट सुनाई दे रही है. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों की तरफ़ से. कांग्रेस यह जोर लगा रही है कि वह सरकार बदल डाले और 15 साल का अपना सियासी सूखा ख़त्म करे. वहीं सत्ताधारी भाजपा स्वाभाविक तौर पर अपनी सरकार बनाए रखने की जुगत में है. लेकिन इस सबसे ज़्यादा दिलचस्प यह है कि बीते कुछ दिनों से भाजपा भी बदलाव के संकेत देने लगी है. संकेत 'सरकार का चेहराÓ यानी मुख्यमंत्री बदले जाने के हैं. और ये संकेत जिस स्तर पर मिल रहे हैं कि उन्हें देखकर सियासी समझ रखने वाले तो ये भी कहने लगे हैं कि छह महीने में होने वाले चुनाव के बाद सरकार बदलने में कांग्रेस क़ामयाब हो न हो पर भाजपा ज़रूर 'सरकारÓ बदल देगी.
सूत्र बताते हैं कि प्रदेश की राजनीति में पहली बार सक्रिय कमलनाथ धीरे-धीरे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर निर्भर हो रहे हैं. बताया जाता है कि पर्दे के पीछे उनके लिए रणनीति तय करने का काम दिग्विजय ही कर रहे हैं. ख़बर तो यहां तक है कि दिग्विजय के पुत्र जयवर्धन को युवक कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया जा सकता है. अभी हाल में ही कमलनाथ ने तमाम प्रवक्ताओं वग़ैरह की जो नियुक्तियां की हैं उनमें भी उन्होंने दिग्विजय और अपने समर्थकों को ही तवज्ज़ो दी है. यानी कमलनाथ की आड़ में प्रदेश इकाई पर दिग्विजय सिंह के हावी होने के आसार बन रहे हैं. जानकारों के मुताबिक इस घालमेल के चलते कोई भी दावे के साथ नहीं कह सकता कि इन स्थितियों में कांग्रेस मध्य प्रदेश में सरकार बदलने में सफल हो ही जाएगी. सो अब बात भाजपा की जो अपने ही स्तर पर 'सरकारÓ बदलने के संकेत दे रही है. भाजपा की 'सरकारÓ बदलने की संभावना क्यों लगती है अभी तीन मई की ही बात है. झाबुआ जिले में आनंद विभाग के कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सबको चौंका दिया. कार्यक्रम खत्म होने से पहले ही यहां से निकलते हुए उन्होंने अपनी खाली कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए कहा, 'मेरे कुछ और कार्यक्रम हैं तो जल्दी जाना पड़ेगा. इससे एक मौका और मिलेगा. यह कुर्सी जिस पर लिखा है- माननीय मुख्यमंत्री- उस पर भी कोई बैठ सकता है.Ó इससे तरह-तरह के कय़ासों का दौर शुरू हो गया. इस कय़ासबाजिय़ों की वज़ह भी थी. पहली- एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री दिल्ली से लौटे थे और दूसरी- अगले दिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह प्रदेश इकाई के प्रमुख राकेश सिंह के ख़ास बुलावे पर कर्नाटक का चुनाव प्रचार छोड़कर भोपाल आ रहे थे. सूत्रों की मानें तो अमित शाह ने भोपाल आकर प्रदेश अध्यक्ष से यह कहा भी कि वे ख़ास तौर पर उनके आग्रह की वज़ह से आए हैं. यही नहीं, मंच से शाह ने इससे भी आगे की बात कह दी. उनका कहना था, 'इस बार मध्य प्रदेश के चुनाव में कोई चेहरा नहीं होगा. मुख्यमंत्री बदले जाने की संभावना क्यों? मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री बदले जाने की संभावनाएं कई कारणों से हैं. पहला तो यही कि शिवराज को प्रदेश में राज करते हुए 13 साल से ज़्यादा हो चुके हैं. लेकिन इतना वक़्त बीतने के बाद भी हालात ये हैं कि नीति आयोग के मुताबिक बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्य देश को विकास के मोर्चे पर पीछे धकेल रहे हैं. कहा यह भी जा रहा है कि जबलपुर में प्रधानमंत्री की कलेक्टरों को दी गई चेतावनी अप्रत्यक्ष रूप से शिवराज के लिए भी थी जिनके बारे में माना जाता है कि वे घोषणाएं खूब करते हैं पर उनमें से आधी भी अमल में नहीं आतीं. एक स्थानीय अख़बार ने अभी हाल में ही अपनी पड़ताल के आधार पर यह तथ्य उजागर किया है. माना यह भी जाता है कि राज्य के मंत्रियों और अफसरों पर भी शिवराज का बहुत नियंत्रण नहीं है. यहां तक कि वे पिछले कई मौकों पर अपने कई दागी मंत्रियों को हटाने तक का जोखिम नहीं ले पाए. फिर इसी साल हुए कुछ उपचुनाव के नतीजे भी हैं जिनमें पूरा जोर लगाने के बाद भी शिवराज भाजपा के प्रत्याशियों को जिता नहीं पाए. कर्मचारियों की नाराजग़ी, प्रदेश के गड़बड़ाते वित्तीय हालात (इन्हीं वज़हों से राज्य के सभी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा 60 से बढ़कर 62 की गई) और सरकारी खज़़ाने पर बढ़ता कजऱ् (लगभग 1.17 लाख करोड़ रुपए) जैसे कुछ और भी कारण हैं जिनके चलते यह माना जा रहा है कि इस बार मध्य प्रदेश में सत्ताविरोधी रुझान व्यापक है. कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा के 120 विधायकों के टिकट इस बार इसी वज़ह से मुश्किल में पड़ सकते हैं. परिवर्तन हुआ तो अगला चेहरा कौन? प्रदेश भाजपा की सरकार में परिवर्तन के तमाम आसार के बीच यह स्वाभाविक सवाल है और इसका ज़वाब बस अटकलों में ही छिपा है. इसमें पहली यह है कि शिवराज को केंद्र में ले जाकर नरेंद्र सिंह तोमर को प्रदेश सरकार की कमान सौंपी जा सकती है. कैलाश विजयवर्गीय दूसरे दावेदार हैं. वे अमित शाह की टीम के मुख्य सदस्य और उनके विश्वस्त हैं. फिर अन्य नामों में राज्य के मंत्री नरोत्तम मिश्रा, सांसद प्रह्लाद पटेल, फिर उन्हीं की तरह कोई और छिपा रुस्तम सामने आ जाए तो भी किसी को अचरज नहीं होना चाहिए.
No comments:
Post a Comment